मुझे याद आ रहे हैं वो वाकये जब अरविन्द केजरीवाल और उनके साथियों को थप्पड़, मुक्के और धक्के मारे गए थे - उन पर स्याही फेंकी गई थी .. और क्रांतिकारी को 'बदनसीब' 'नक्सली' बता उन पर संस्कारी गालियों की बौछारें की जा रही थीं .. ..
और याद इसलिए आ रहे हैं कि आजकल "नीच-नीच" बहुत सुनने को मिल रहा है .. और गुजरात चुनावों में 'पाकिस्तान' तक को सुनियोजित तरीके से घुसेड़ने के कुप्रयास हो रहे हैं ..
और ये सब याद कर और सुन कर मुझे तो बहुत ख़ुशी हो रही है और सुकून भी मिल रहा है .. ..
अब यदि किसी भक्त को बुरा लग रहा हो या दुःख हो रहा हो तो वो दुखी हो सकता है - और दुःख का इज़हार भी कर सकता है .. क्योंकि ऐसा करना उसका अधिकार है .. और उसको ऐसा करना ही चाहिए .. और तो और शब्दों के द्वारा की गई हिंसा का भी तो विरोध होना ही चाहिए .. है ना !!
पर मैं स्पष्ट देख रहा हूँ कि अभी तक "नीच" बयान पर किसी भक्त का शोक संदेश आया नहीं .. और कोई भक्त शोकाकुल भी दिखा नहीं ?? .. ..
तो क्या इसका मतलब ये तो नहीं की भक्त भी अब बदल रहे हैं समझ रहे हैं ?? .. ..
अरे तौबा करिए जनाब !! - भक्त और समझदार ?? .. .. दरअसल बात ये है कि कुछ लोग इतने नीचे गिर चुके हैं कि यदि उन्हें गालियां खाने से फायदा होने का अंदेशा भी हो तो उन्हें गालियां खाने में भी मज़े आने लगते हैं - फिर किस बात का दुःख और कैसा विरोध ?? .. कैसी मानहानि - कैसी रपट ?? .. हा !! हा !! हा !! .. ..
लेकिन इस विषयक केवल एक बात पर विमर्श जरूरी है कि क्या अपने कर्मों से इतने नीचे गिरे हुए लोगों को "नीच" जैसे अपशब्द के अलावा भी क्या किसी अन्य उपयुक्त शब्द से नवाज़ा जा सकता है ?? .. और मेरा विमर्श जारी है .. !! जय हिन्द !!
ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl
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