Wednesday 30 September 2015

//// 'सनातन संस्था' में सनातन कुछ नहीं ....////


'सनातन' !! .... इसका मतलब होता है बहुत प्राचीन काल यानि आदिकाल से बराबर चली आ रही मान्यता या विचार या परम्परा आदि - जिसके आदि का समय ज्ञात ना हो ....

पर आज इस शब्द और इसके अर्थ का उपहास हो रहा है .... क्योंकि 'सनातन' नाम की आड़ में हाले-फिलाले ही जो कुछ हो रहा था इसके खुलासे हो रहे हैं ....

एबीपी न्यूज़ चैनल पर हो रहे या किये जा रहे खुलासों या सामने आ रहे तथ्यों या लगाए जा रहे आरोपों या फूहड़ता के साथ किये जा रहे बचाव पर एक जुम्मे-जुम्मे बनी "सनातन संस्था" पर कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं ....

और सबसे बड़ा प्रश्न किया जा रहा है - बावजूद इसके कि इस संस्था पर सम्मोहन करने, हथियारों का प्रशिक्षण देने, हत्याएं कराने, बलवा कराने आदि जैसे संगीन आरोप लगते आए हैं - और बावजूद इसके कि पूर्व में महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस संस्था पर बैन लगाने कि सिफारिश हो चुकी है - इस संस्था पर अभी तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं हुई ????

कोई जवाब दे या ना दे मैं ज़रूर इस प्रश्न का जवाब देने का प्रयास करूंगा - और जवाब संक्षिप्त है ....

हिन्दू धर्म सनातन माना गया है और इसलिए 'सनातन' शब्द हिन्दू धर्म संबंधित माना जाता है - और शायद एक संस्था ने हिन्दू धर्म की ठेकेदारी का धंधा चलाने के नाम पर अपना नाम 'सनातन संस्था' रख लिया है -  मानो सनातन सनातन ही ना होकर मात्र कालांतर की कोई उत्पत्ति हो .... और फिर यह हुंकारा कि हिन्दू भी तो कोई चीज़ हैं - हिन्दुओं की भी तो कोई औकात है .... और फिर यह तथ्य कि हिन्दुओं का भी तो कोई 'वोट बैंक' है - और 'वोट बैंक' इस देश की राजनीति का एक अभिन्न घिनौना अंग है .... और ये सिलसिला जारी है ....

इसलिए जब राजनीति है तो फिर 'सनातन' का क्या महत्व ?? ....राजनीति आते ही हर मुद्दे में घुस सी जाती है 'धर्म' और 'जाति' .... और देखते देखते 'सनातन' के नाम पर सब कुछ हो जाता है - 'टनाटन' और 'तनातन' - और गौण हो जाता है 'सनातन' .... बस इसलिए ही 'सनातन संस्था' पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है - और ये संस्था 'सनातन' होने का असंभव सा कुप्रयास कर रही है .... पर क्या ये कभी 'सनातन' होने का आभास भी दे सकेगी ?? .... हा !! हा !! हा !! हा !! .... कदापि नहीं !!!!

Tuesday 29 September 2015

//// एक बिन बेटे बिन बेटी बिन दामाद वाले थे - चर्चा करते थे ....////


भारत पहुंचकर चुप्पी साधने के पूर्व - अमेरिका में मोदी जी बोले .... पहले चर्चा होती थी - बेटे ने २५० - बेटी ने ५०० - दामाद ने हज़ार करोड़ बनाए ....

यदि बात सही है तो अगला प्रधानमंत्री बोलेगा ....

एक बिन बेटे बिन बेटी बिन दामाद वाले थे - चर्चा करते थे - बेटे ने २५० - बेटी ने ५०० - दामाद ने हज़ार करोड़ बनाए .... पर करते कुछ नहीं थे - बस फांकते थे - फेंकते थे .... और वो भी विदेश में .... देश में तो भीगी बिल्ली जैसे चुप और फ़ुस्स्स !!!!

Monday 28 September 2015

//// दूसरों पर व्यक्तिगत टिप्पणी करना तो सही - पर अपनी बारी छुईमुई ? ..////


'शहज़ादे' - 'माँ बेटे' - 'माँ बेटी बेटे' - 'जीजा' - 'साले' - 'दामाद' .... रटते रहे चिल्लाते रहे चिढ़ाते रहे धिक्कारते रहे तंज़ कसते रहे निर्लज्ज हो मज़े लेते रहे ....  
फिर बारी आई बाप बेटी की .... बोलते धिक्कारते बाप बेटी से ना मालूम कौन कौन से रिश्ते जोड़ लिए .... अब तो ना बाप बोलते हैं ना बेटी ....

और अब स्वयं ही रोने लगे .... माँ - माँ - माँ .... मेरी माँ ....

और जो थोड़ा सा टोंचा क्या लगा - छुईमुई हो गए - विलापने लगे - माँ पर राजनीति नहीं होनी चाहिए ....

दूसरे के व्यक्तिगत रिश्तों पर टीका टिप्पणी करते रहे और माँ पर राजनीति भी खुद ही कर रहे - और खुद ही रो भी रहे .... छिः: रोतले !!!!

//// मक्कार "चौकीदार" से लाख दर्जे भला मेहनतकश योग्य "चपरासी" ....////


आपको याद होगा कि उत्तरप्रदेश में चपरासी के ३६८ पदों के लिए २३ लाख से ज्यादा लोगों ने आवेदन दे दिए थे .... नतीजा !! सब कुछ ध्वस्त सा मान लिया गया - और भर्ती प्रक्रिया निरस्त कर देनी पड़ी ....

खैर जो हुआ सो हुआ - पर मुझे बहुत संतोष हुआ कि इस देश को अव्वल "चपरासी" तो मिल ही सकते हैं .... न्यूनतम जरूरत से भी कहीं अधिक योग्यता वाले "चपरासी" - पढ़े लिखे और बिना शर्म मेहनत और ईमानदारी से कोई भी काम करने को तैयार "चपरासी" .... 

और मेरा ऐसा भी मानना है कि इस देश को "चौकीदार" के बजाय "चपरासी" की ज्यादा आवश्यकता है ....

क्योंकि अब तो देख लिया कि "चौकीदार" तो बेकार होता है - कुछ करता धरता ही नहीं .... तिजोरी पर पंजे हाथ पाँव घुटने कोहनी सब पड़ ही पड़ रहे हैं - और चौकीदार आँखे बंद कर चुप्पी साधे बैठा है - मुँह में सीटी डाले - पर बिना हवा निकाले - फुस्स:::: !!!!   

पर "चपरासी" तो बेचारा मेहनतकश होता है - और आदेश सुनने के लिए हमेशा तैयार और आदेश पालन करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है .... इसलिए देश सेवा हेतु "चौकीदार" के बजाय "चपरासी" निश्चित ही उपयुक्त होगा .... वो देश की सेवा आवश्य ही करेगा ....

तो मेरा सुझाव है - संसद और विधानसभा को अयोग्य चौकीदारों और अन्य मक्कारों से खाली करो .... और भर दो सभी पद .... पढ़े लिखे पीएचडी बीटेक बीएससी बीकॉम एमएससी एमकॉम एमए "चपरासियों" से ....
मेरा दावा है देश का भाग्य सुधर जाएगा .... और भविष्य में कोई "चौकीदार" देश की तिजोरी और संस्कारों की वाट नहीं लगा पाएगा !!!!

Sunday 27 September 2015

//// काश !! ओबामा जब इंडिया आए तो मुझ से मिले और खुश हो जाए ..////


पहले का समय था जब कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री से मिल कर या हाथ मिलाकर या उसके साथ भोज कर या चाय पी कर गौरवान्वित हो खुश हो जाया करता था .... नेहरू इंदिरा शास्त्री राजीव अटल आदि से मिलकर कौन खुश नहीं हुआ होगा ....  

आज भक्त बावले हो रहे हैं कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी पिचाई से मिले - जुकरबर्ग से मिले - सत्या से मिले ....

काश !! ओबामा भी जब अगली बार इंडिया आए तो मुझ से मिले - और खुश हो जाए - मैं भी खुश और वो भी खुश .... काश !!!! ....

//// "मेक-इन-इंडिया" पर कुप्पा लोगों को "मेक इंडिया" से खुजाल क्यों ?....////


केजरीवाल ने कह दिया - " मेक-इन-इंडिया " के बजाय " मेक इंडिया " होना चाहिए ....

और मुझे पूरा भरोसा है कि लाख टके की उपरोक्त बात मोदी जी के दिमाग में ठस ही जानी चाहिए .... क्योंकि ये तो बात ही तर्कपूर्ण है - और किसी पढ़े लिखे कुशाग्र बुद्धि के दिमाग की ही उपज हो सकती है - और इसको तो कोई मंदबुद्धि भी नकार नहीं सकता .... फिर मोदी तो जरूरत के मुताबिक़ सब से अच्छे सुझाव मांगते ही रहते हैं !!!!    

लेकिन ना मालूम क्यों - पूरी भाजपा चिढ कुढ़ गई .... संबित पात्रा कह रहे हैं - जनता ने केजरीवाल को दिल्ली की जिम्मेदारी दी थी - इसलिए वो केवल दिल्ली पर ध्यान देवें - बस दिल्ली पर ....

मेरी प्रतिक्रिया ....

संबित पात्रा जी !! जनता ने मोदी जी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में चौकीदारी करने की जिम्मेदारी सौंपी थी - तो उन्हें मन लगा कर प्रधानमंत्री की जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए .... फिर ये मोदी जी फुदक फुदक कर जब तब चुनावी रैलियों में क्यों पहुँच जाते हैं ?? और प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को अपने स्तर तक क्यों गिराते हैं ?? .... अब बिहार चुनाव में दर्जन भर से ज्यादा चुनावी रैली क्यों ?? क्या देश ने मोदी को भाजपा के प्रचार प्रसार करने के लिए चुना था ?? .. शौक है तो दो इस्तीफ़ा और करो प्रचार ....

और हाँ जनाब पात्रा जी !! आपको भाजपा के प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई है - तो आप मोदी सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव और आप पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल पर टीका टिप्पणी क्यों करते हैं ?? .. आप अपनी भारतीय जनता पार्टी तक ही सीमित क्यों नहीं रहते ?? और आपकी भाषा में यदि प्रतिप्रश्न पूछूँ तो मसलन क्यों नहीं पहले बताते आपके बिहार आरा के सांसद आर के सिंह का दिमाग ठिकाने है या वो पागलपन में कुछ भी बड़बड़ाते रहते हैं - बिलकुल शत्रु की तरह ????

//// मोदी हारे - केजरीवाल जीते - कर्म क्रियान्वयन और "सोच" में भी ..////


और आज अरविन्द केजरीवाल ने मोदी पर जो निशाना साधा है वो सौ प्रतिशत टंच कहा जा सकता है - और सौ प्रतिशत निशाने पर ....
और असर ?? .... असर तो गजब का हुआ है .... आप स्वयं आंकलन करें ....

अरविन्द केजरीवाल ने कहा है ....
'मेक-इन-इंडिया' की जगह 'मेक इंडिया' जरूरी  ....
दूसरे देशों में जाकर गिड़गिड़ाने से अच्छा है 'मेक इंडिया' करें ....
'मेक- इन- इंडिया' से पहले हम 'मेक इंडिया' बनाएं - हम शिक्षा स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दें - 'मेक-इन-इंडिया' अपने आप होगा ....
'मेक इंडिया' होगा तो दुनिया खुद-ब-खुद गिड़गिड़ाते इंडिया आएगी .... आदि !!!!

और खिसियाई सी भाजपाई प्रतिक्रिया ....

संबित पात्रा बोले .... केजरीवाल केवल दिल्ली की चिंता करें - लोग डेंगू से परेशान हैं ....
मिनाक्षी लेखी बोलीं .... दिल्ली में पानी की कमी है ....

और मैं पेट पकड़ कर हंस रहा हूँ .... 

ये मोदी भारत के अकेले ठेकेदार कब से हो गए ???? और ठेकेदारी भी कैसी - कि बस जो सोचेंगे मोदी सोचेंगे - बाकी कोई नहीं ????

भाजपा अब तक इंदिरा गांधी की इमरजेंसी की भर्तस्ना करती रही है - पर अब कई विषयों पर बैन लगाने की चेष्टा भी कर चुकी है ....

लेकिन आज तो पराकाष्ठा हो गई .... // अरविन्द केजरीवाल के सोचने पर भी पाबंदी // ????

स्पष्ट है !! .. मोदी हार चुके हैं - केजरीवाल जीत चुके हैं - कर्म क्रियान्वयन और "सोच" में भी ....

!!!! जय हिन्द !!!!

पुनश्चः 
मुझे याद हो आया जब मोदी जी ने नितीश कुमार पर तंज़ कसा था कि वो " बिहार पैकेज " की माँग हेतु जब तब दिल्ली में कटोरा लिए पहुँच जाते हैं ....
और अब केजरीवाल ने मोदी पर तगड़ा तंज़ कस दिया है कि मोदी कटोरा लिए विदेशों में घूम रहे हैं - " इंडिया आओ ना !! " ....

//// झांकी तो जमा ही दी ....////


आज गणेश विसर्जन का दिन है - जब हमारे इंदौर में वर्षों पुरानी परम्परानुसार झांकियां निकलती हैं ....

झांकियां विभिन्न धार्मिक सामाजिक और सामयिक विषयों पर आधारित होती हैं .... जो पूरी साजसज्जा झमाझम जंकामंका उत्सवी ढोले ढमाके नाच गाने अखाड़ों के साथ शहर के मुख्य मार्गों से होते शानो-शौकत से निकलती हैं - और लाखों लोग रात भर पूरे हर्षोल्लास से इसका आनंद लेते हैं .... एक अनूठा आयोजन - एक अनूठा आनंददायी अनुभव .... 

और आज दैनिक भास्कर में छपे लेख अनुसार बताया गया है कि इस बार दो झांकिया "मेट्रो ट्रेन" और "स्मार्ट सिटी" विषयों पर सज्जित होंगी ....

तो कह सकते हैं कि मोदी सरकार ने "मेट्रो ट्रेन" और "स्मार्ट सिटी" के विषयक कोई ठोस कार्य किया हो या ना हो - "झांकी तो जमा ही दी" ....

और मालवा की प्रचलित लोकोक्ति   - "झांकी जमाने" का असली मतलब भी आज और अच्छे से समझ आ गया .... "झांकी तो जम गई" .... पर बस - झांकी - सब कुछ झांकी - केवल झांकी ....

Saturday 26 September 2015

//// सोमनाथ पुलिस और कुत्ते में भारी कौन ?? ....////


सोमनाथ भारती - पत्नी पीड़ित या पत्नी को पीड़ित करने वाले - पत्नी शिकायत पर प्रकरण दर्ज हो जाने के बाद ऐसा भागते छुपते फिर रहे हैं जैसा कि हर नेता और हर रसूखदार करता आया है - और जैसी हमारी कानून व्यवस्था करने और होने की अनुमति देती है .... यानि सबकुछ सामान्य .... 

पर कुछ असामान्य भी .... सोमनाथ भारती विषयक नहीं - पर उनके कुत्ते विषयक ....

जी हाँ जब वो भागते फिर रहे थे तब उनकी गिरफ्तारी पर कोर्ट का २ दिनी स्टे मिलते ही कुछ दिन पहले वो अपने कुत्ते सहित पुलिस थाने पहुँच गए थे .... ये गुर्राते हुए कि पूछ लो मुझ से और मेरे कुत्ते से क्या पूछना है .... और तब सोमनाथ की सर्वत्र निंदा हो गई - नौटंकी करने के लिए ....

पर एक बार फिर पुलिस सोमनाथ को ढूंढ रही है और सोमनाथ फरार हो गए हैं ..... और पुलिस ढूंढते हुए जब उनके घर पहुंची तो नदारद सोमनाथ के बदले हाज़िर कुत्ते को पकड़ लाई ....

तो कुत्ते को क्यों पकड़ लाई ??
कुछ तो कारण होगा ....
क्या कारण हो सकता है ??
क्या कुत्ता न्यायालय में बयान देगा ??

मुझे तो इसमें साज़िश नज़र आती है .... साज़िश ये कि कुत्ते से पुलिस वालों को ट्रेनिंग दिलवाई जानी होगी - कि किस तरह वफादारी का परिचय देते हुए अपने आका के इशारे पर किसी को भी कैसे काटा जाए ..... बस आजकल इसी खूबी की तो दीवानगी हुई पड़ी है - और लोग ऐसे कुत्ते ही तो ढूंढ रहे हैं .... 

या हो सकता है कि पुलिस सोमनाथ को संदेश देना चाहती हो कि समझ लो कौन बड़ा - तुम्हारा कुत्ता या पुलिस ?? .... अब समर्पण कर दो - नहीं तो तुम पर भी कुत्ता छोड़ देंगे - वो भी तुम्हारा अपना ....

और सोमनाथ सोच रहे हैं कि - कुत्तों के छूटने से कौन डरता है - पर यदि पुलिस छूट गई तो ??

इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि अंततः भारी कौन पड़ता है - सोमनाथ पुलिस या कुत्ता ????

//// ये पार्टी टिकट बंटवारे को लेकर "बकवास" और "बगावत" क्यों ?? ....////


आर के सिंह - पूर्व गृह सचिव एवं वर्तमान में बिहार के आरा से भाजपा सांसद (भविष्य में निलंबित - निष्कासित भाजपा सांसद) ने आज कुछ ऐसी बात कर दी है जिसे राजनीति में बागी हो जाना कहते हैं .... जैसे कि कुछ समय पहले योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण कर रहे थे और भाजपाई हाथ पाँव से तालियां भाँज रहे थे ....
आर के सिंह कह दिए हैं कि बिहार में पार्टी टिकट ही सही नहीं बँटे.... अच्छे योग्य जीतने वालों के टिकट अकारण काट लिए गए - और गलत छवि वालों को पैसे लेकर टिकट दे दिए गए .....

मेरी प्रतिक्रिया ....

भाजपा में टिकट बाँटने वाले कौन हैं ?? और उनकी छवि कैसी है ?? .... स्पष्ट कर दूँ मेरा प्रश्न है छवि कैसी है ?? मैं औकात पर प्रश्न नहीं उठा रहा हूँ ....

आर के सिंह साहब !! आप औकात वालों को अपनी औकात बता रहे हैं - निश्चित ही आपकी अच्छी छवि और सुधरेगी .... शायद समय आ गया है जब पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर भी कभी कभार बगावत करनी ही चाहिए .... और मैं भी ऐसी बगावत के पक्ष में हूँ .... इसलिए आपको बधाई !!!!

पर मित्रो ध्यान रहे मैं योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण की "चुनाव उपराँत" की गई बकवास बगावत के पक्ष में नहीं .... जो आज तक खुद ये नहीं तय कर पाए हैं कि बगावत के बाद करना क्या है ? और कैसे करना है ?? .... नई पारदर्शी पार्टी कब और कैसे बनाना है जो सही लोगों को सही टिकट दे सके ....

Friday 25 September 2015

//// 'ना खाएंगे ना खाने देंगे' - पर 'खान खदान' फ्री में ही देंगे ?? ....////


अभी-अभी कांग्रेस ने प्रेस कांफ्रेंस कर राजस्थान में खदान खनन घोटाले के बारे में आरोप लगाए हैं .... घोटाला ४५००० करोड़ का बताया गया है ....

आगे क्या होगा ????

भाजपा कहेगी .... कांग्रेस पहले अपने गिरेबान में झांके - उसे घोटाले का आरोप लगाने का कोई अधिकार नहीं .... जो घोटाले की बात करते हैं आओ उसके बारे में अब हम भी बताते हैं कि कांग्रेस ने कितने खदान खनन घोटाले कर रखे हैं .... तो शुरुआत करते हैं कोयला घोटाले से और ........

पर जनाब फिर कांग्रेस के घोटालेबाजों पर कार्यवाही क्यों नहीं ??
और उत्तर होगा - हम बदले की कार्यवाही नहीं करते ....

तो फिर 'ना खाएंगे ना खाने देंगे' जैसी बात का क्या होगा ??
और उत्तर होगा - वो तो प्याज़ और दाल के सन्दर्भ में कही गई सारगर्भित बात थी - 'ना खाएंगे ना खाने देंगे' .... पर खान खदान तो हम भी फ्री में ही देते रहेंगे ....

//// शैतानों को कंकर मारने - और इनकी कुर्बानी देने को दिल चाहता है ....////


मुझे हमेशा से शैतान को कंकर मारने में मज़ा आता रहा है - पर खुद शैतान होने से घृणा करता रहा हूँ - और अन्य को ऊँगली करने से मैं परहेज़ भी करता रहा हूँ ....

और मैं तो कुर्बानी देने के पक्ष में भी रहा हूँ - पर किसी की कुर्बानी लेने को घृणित मानता रहा हूँ - शायद इसलिए ही कि किसी अन्य को ऊँगली करने से मैं परहेज़ भी करता रहा हूँ .... 

मुझे समझ नहीं आता कि लोग शैतानी करते ही क्यों हैं - कुर्बानी का नाटक करते ही क्यों हैं ....

क्यों झूठे वादे करते हैं - क्यों जुमले गढ़ते हैं - क्यों शैतानी करते हैं ????
और क्यों खुद आकंठ सत्ता सुख भोगते हुए "देश सेवा - देश सेवा" का स्वांग रचते हैं ????

इसलिए कभी कभार ऐसे शैतानों पर कंकर मारने का दिल आ ही जाता है - और इनकी कुर्बानी देने को दिल चाहता है ....

Wednesday 23 September 2015

//// मोदी संस्कृत का रोना रो रहे - और संस्कारों की वाट लगा दी ....////


और आज एक बार फिर हमारे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयरलैंड पहुंचते ही घोर आपत्तिजनक बयान दिया .... उनका स्वागत संस्कृत गान से हुआ था - शायद कुछ संपट ना बैठी होगी - और श्रीमान ने कह मारा कि यदि ऐसा भारत में होता तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बवाल मच जाता ....

मेरी प्रतिक्रिया ....

संस्कृत पर बवाल तो कभी ना हुआ है ना होता .... पर हाँ संस्कार पर बवाल जरूर हुआ है .... क्योंकि मोदी जी ने संस्कार रहित बात कही है ....

और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है .... मोदी जी पहले भी ऐसी हरकतें करते रहे हैं जिसकी घोर निंदा भी होती रही है .... इसलिए मैं आशा करता था कि मोदी जी अपनी आलोचनाओं से सीख लेंगे और इस महान देश के सुसंस्कारों के ठीक विपरीत अपने ही देश की विदेश में जग हँसाई कर अपने को तीसमारखां सिद्ध करने का फूहड़ प्रयास नहीं करेंगे .... पर बड़े खेद का विषय है - मोदी जी देश को नीचा दिखा कर ही अपने आप को महिमामंडित करने में लगे हैं .... और यह देश हित में नहीं है ....

पर अब किया ही क्या जा सकता है ?? .... सिवाय इसके कि प्रधानमंत्री ही बदला जाए ....

Monday 21 September 2015

//// आरक्षण का आधार "हार्दिक" ना हो "आर्थिक" ही होना चाहिए ....////


आरक्षण पर आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत तक ने बयान दे दिया .... बयान भी क्या बखान दे दिया - जिसका लुब्बेलुबाब तो बस यही निकलता है कि - आरक्षण नीति पर समीक्षा होनी चाहिए ....

अब समीक्षा क्या होती है ? क्या हो सकती है ? क्या होनी चाहिए ? आदि विषय हवा में तैरने लगे हैं .... और राजनीतिक बयान और कयास भी चल पड़े हैं कि भागवत जी के बयान के क्या मतलब ? क्या संदर्भ ? क्या मायने ? क्या मकसद ? क्या महत्त्व ? क्या निशाने ? और बयान कितने तोड़े मरोड़े गए ? आदि ....

पर जैसा कि बड़े लोग करते आए हैं - मोहन भागवत बयान उपरान्त खामोश हैं - और खामोश ही अपेक्षित हैं ....

और अपेक्षित यह भी है कि - बिहार चुनाव तक सभी जवाबदार खामोश ही रहेंगे .... तथा राजनीतिक शाने पक्ष या विपक्ष में बिना तर्क अस्पष्ट भाषा में द्विअर्थी बयान देंगे .... तथा राजनीतिक बुद्धू पक्ष या विपक्ष में बिना तर्क स्पष्ट भाषा में बयान देंगे .... और कुछ एक समझदार तर्कसंगत बात भी करेंगे ....

इसलिए मेरी तर्कसंगत बात ....

आरक्षण पर समीक्षा होनी चाहिए .... आरक्षण का मकसद वंचित को सहायता देकर उसे ऊपर उठाना है .... और असली मायने में वंचित वही है जो सुख सुविधाओं से वंचित है - और सामान्यतः सुख सुविधाओं से वंचित वही है जो गरीब है जिसके पास सुख सुविधाएं प्राप्त करने हेतु धन और साधन नहीं हैं ....

अतः मेरे तर्क अनुसार आरक्षण जाति या धर्म आधारित नहीं होना चाहिए - बल्कि आरक्षण तो सीधे-सीधे वंचित गरीब के लिए गरीबी के तार्किक मापदंड निर्धारित करने के उपरान्त होना चाहिए .... यानि आरक्षण का आधार "हार्दिक" ना हो "आर्थिक" ही होना चाहिए !!!!

और हाँ !! मौन मोदी ने तुरंत इस विषय पर अपने मुख से अपनी राय समक्ष में रखनी चाहिए .... भले ही उनका बोलना मात्र ही बिहार चुनाव की हार का कारण स्थापित प्रतीत हो जाए या मान्य हो जाए ....

पर क्या शाने मोदी ऐसा करेंगे ? कुछ कहेंगे ?? इस यक्ष प्रश्न का सरल उत्तर है - कदापि नहीं .... और इसलिए मेरे अभिमत में तो ये "जुमला" जैसा ही "शगूफा" है जो किसी स्वहित में छोड़ा गया है .... जो अंततः समाज में विद्वेष की भावना बढ़ाने का नियोजित प्रयास प्रतीत होता है .... जो निंदनीय ही सिद्ध होगा !!!!

Thursday 17 September 2015

//// मुफ्त के टिकट ना तो छपते हैं - ना चलते हैं ....////


कांग्रेस मुक्त भारत को लेकर आगे बढ़ रही कांग्रेस भुक्त मोदी सरकार के कुछ कुंठित निर्णय समक्ष में आ रहे हैं ....

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री यशस्वी इंदिरा गांधी को लेकर जारी किए गए डाक टिकट बंद ....
दीनदयाल उपाध्याय, जयप्रकाश नारायण, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और राममनोहर लोहिया के डाक टिकट जारी करने की तैयारी ....
और फिलहाल भाग्यशाली महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डाॅ. आंबेडकर, सत्यजीत रे, होमी भाभा, जेआरडी टाटा और मदर टेरेसा आदि के डाक टिकिट जारी रहेंगे ....

मेरी प्रतिक्रिया ....

यदि कोई आक्रोश में यह सोच रहा है कि भविष्य में मोदी के टिकट भी बंद किये जाएंगे तो वह भारी भूल कर रहा है .... हर टिकट और टिकट पर छपने वाले का अपना मूल्य होता है .... मुफ्त के टिकट ना तो छपते हैं - ना चलते हैं .... फिर बंद होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ....

Wednesday 16 September 2015

//// बिहारियों को सलाह - मोदी को 'मन की बात' करने दें और गौर से सुनें ..////


बिहार चुनाव की घोषणा हो चुकी है ....
मोदी जी के "मन की बात" पूर्व निर्धारित होना थी - "पूर्व निर्धारित मन की बात" होती भी आई है .... यानि सब कुछ "पूर्व निर्धारित" और मनमानी .... 

पर कुछ भाई लोग पहुँच गए 'चुनाव आयोग' - ठोंक दी अपील कि 'मन की बात' पर रोक लगे - क्यों ?? - क्योंकि मोदी मन की बात में हमेशा अपने मन की ही बात करते हैं जो बिहार चुनाव पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है ....

पर प्रबुद्ध आयोग ने भाई लोगों की अपील ठुकरा दी - ये कह कर कि - 'मन की बात' पर रोक नहीं लगाई जा सकती .... हाँ यदि मोदी आचार संहिता का उल्लंघन कर कुछ भी आपत्तिजनक बोलते हैं तो फिर चुनाव आयोग उसका संज्ञान ले उस पर कार्यवाही कर सकता है ....

मेरे 'मन की बात' ....

मुझे समझ में नहीं आता ४ रैलियों में इतना कुछ बेअसर कहने के बाद भी क्या मोदी जी को बिहार विषयक असरकारक बोलने के लिए कुछ भी शेष रह गया है ?? .... और सवा लाख करोड़ का पैकेज दान करने के बाद कुछ और हवाबाजी में देने के लिए शेष रह गया होगा ???? 

मेरे अभिमत में तो यदि अब से मोदी जी रोज़ाना अपने मन की बात करेंगे तो - और जितना ज्यादा करेंगे उतना ही - लोगों के मन में तथ्य समाते जाएंगे .... और दिल्ली जैसे परिणाम ही आएंगे - ०३/७० !!!!

अतः मैं चाहूँगा कि मोदी जी के आगामी "मन की बात" को अपीलकर्ता - चुनाव आयोग - विपक्ष - और देश की जनता गौर से सुने .... आखिर मोदी जी आज की तारीख में हमारे प्रधानमंत्री हैं भाई ....

और विशेषकर बिहार की जनता तो जरा ज्यादा ही गौर से सुनें - आखिरकार ये तो हो ही सकता है ना कि प्रधानमंत्री से बेदखल हो और गुजरात में "हार्दिक प्रतिरोध" के रहते मोदी बिहार के मुख्यमंत्री पद पर ही अपना दाँवा ठोंक दें ....
ऐसा इसलिए भी संभावित एवं व्यवहारिक लगता है क्योंकि कहीं देखा है ऐसा प्रधानमंत्री ऐसा राज्यस्तरीय निम्नस्तरीय प्रचार करते ????

//// घुटने वालों के लिए मराठी का महत्त्व ....////


महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना कोटे से परिवहन मंत्री दिवाकर राउते ने कहा है कि राज्य में 1 नवंबर से सिर्फ उन लोगों को ही ऑटो रिक्शा का परमिट मिलेगा जो मराठी बोलना जानते होंगे ....

शायद भक्त और भाजपा भी इस फरमान से भेरू हो रहे होंगे .... पर फरमान शिवसेना के नामे और माथे और अधिकार क्षेत्र में .... इसलिए निश्चित ही मजबूरी में "मोदी अस्त्र" और मोदी के प्रिय मित्रधन यानि शत्रुघन के जुमले का ही अनुसरण होगा .... यानि - "खामोश" ! "खामोश" !! "खामोश" !!!

पर मैं सोच रहा था कि ऐसे फ़ड़तूस फरमान के पीछे क्या फ़ड़तूस तर्क रुपी टेका तैयार होगा .... मेरी समझ और तर्क अनुसार तो टेका यही हो सकता है कि - सवारी और ऑटोचालक के बीच संवाद स्पष्ट और संशयरहित हो .... "no confusion" .... नहीं तो मालूम पड़े जाना था 'मीरा भयंदर' पहुँच गए 'पोरबंदर' .... 

अस्तु मेरा महाराष्ट्र के बीमारू नेताओं को एक और सुझाव है .... महाराष्ट्र में एक और फरमान शीघ्र पारित करें .... // चिकित्सा करने का परमिट भी केवल उन्हीं चिकित्सकों को मिलेगा जो मराठी जानते होंगे // .... और इसके पीछे सटीक तर्क - क्या पता अस्पष्ट संवाद के कारण चिकित्सक दिमाग से बीमार नेता के घुटने छोड़ उसकी खुपड़िया खोल डाले .... और महाराष्ट्र की अपूरणीय क्षति हो जाए !!!!

Tuesday 15 September 2015

//// मोदी ने राहुल से हार मानी - केजरीवाल ने मोदी से हार नहीं मानी - यानि....////


जब से भूमि अधिग्रहण बिल को मोदी सरकार द्वारा बड़े बेआबरू हो वापस लेना पड़ा - और जब से संसद के पूरे सत्र की धुलाई हो गई और मोदी संसद में चूँ करने की हिम्मत भी ना जुटा पाए - और जब से जीएसटी बिल अटकलों के बाद अटक ही गया - और जब से राहुल वयस्क हो मोदी जी को पप्पू की भाषा में लताड़ लगा गए .... तब से मोदी जी ने नया राग अलापना शुरू कर दिया ....
विपक्ष साथ नहीं दे रहा - सहयोग नहीं कर रहा - रोड़े अटका रहा है - राजनीति कर रहा है - जिसके कारण सरकार काम नहीं कर पा रही है - और विकास ठप्प हो गया है ....

यानि मोदी जी ने राहुल से हार मान ली ....

और दूसरी तरफ .... केजरीवाल भी यही बोलते रहे हैं कि ....
केंद्र साथ नहीं दे रहा - सहयोग नहीं कर रहा - रोड़े अटका रहा है - राजनीति कर रहा है .... पर साथ ही यह भी कह रहे हैं कि सरकाम काम कर रही है - और दिल्ली का विकास हो रहा है ....

यानी केजरीवाल ने मोदी से हार नहीं मानी है ....

और मैं सोच रहा था कि जो बच्चों से डर हार जाए उसे वयस्क कैसे माना जाए ?? - और जो पके पकाए वयस्क को बच्चों जैसे रोने हारने पर मज़बूर कर दे उसे ही अब परिपक्व वयस्क क्यों ना माना जाए ??

और साथ ही जो प्रधानमंत्री एक मुख्यमंत्री को खुद परेशान करे और बदले में खुद ही परेशान हो जाए उसे सक्षम प्रधानमंत्री कैसे माना जाए ?? - और जो मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री से बिना डरे अपने काम में सफल होता दिखे उसे ही अगला प्रधानमंत्री क्यों ना बनाया जाए ??

अस्तु मैंने तो निष्कर्ष निकाल लिया है कि .... " केजरीवाल >> राहुल गांधी >> नरेंद्र मोदी " .... यानि अगला चुनाव संभवतः आप और कांग्रेस के बीच ही लड़ा जाएगा .... क्योंकि तब तक भाजपा भारी भरकम मोदी के बोझ तले डूब चुकी होगी ....

Monday 14 September 2015

//// मेरा दावा - बिहार का चुनाव विकास के मुद्दे पर ही हारा जाएगा ....////


और अंततः अमित शाह के नेतृत्व में एनडीए ने सीटों का एनडीए में सर्वमान्य मान्य बंटवारा कर लिया .... और मानना पड़ेगा कि बंटवारा छोटे मोटे अमान्य बिन्दुओं के रहते सर्वमान्य ही है .... 

यानि अब अगले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा की कौन कहाँ से लड़ रहा है .... और फिर शुरुआत होगी प्रचार कहे जाने वाले आरोपों और प्रत्यारोपों की .... और आप हम देखेंगे कि प्यार में लड़ाई में और राजनीति में सर्वमान्य नाजायज़ भी जायज़ होगा ....

और उद्घोषित उद्देश्य तो सबका एक सर्वमान्य उद्देश्य ही होगा - और वो होगा - "बिहार का विकास" - विकास ! विकास !! विकास !!!!
पर जब आप ज़रा सा भी गौर से देखने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि सबका उद्देश्य असल में विकास के नाम पर जीत हासिल करने का ही होगा ....

प्रजातंत्र है - वैसे भी उद्देश्य तो जीत का ही होना चाहिए - फिर विकास के नाम पर क्या आपत्ति हो सकती है ?? .... पर ध्यान रहे कि "विकास" की बात तो "जुमला" सिद्ध हो चुकी है .... पर क्योंकि चुनावों में जुमले तो बहुतायत में चलते ही हैं - इसलिए जीत के उद्देश्य से विकास की बातें ही अब बिहार चुनाव में देखने सुनने को मिलेंगी ....

पर जीतेगा कौन ??

प्रश्न थोड़ा क्लिष्ट प्रतीत हो सकता है - इसलिए थोड़ी विवेचना भी जरूरी है ..... और प्रथम आंकलन अनुसार मैं कयास लगा सकता हूँ कि चुनाव कौन जीतेगा .... चुनाव जीतेगा वो ही जो विकास की बात करेगा ....
पर जैसा कि स्पष्ट है विकास की बात तो हर कोई करेगा .... तो घूम फिर कर प्रश्न फिर वहीँ आ खड़ा होता है कि चुनाव कौन जीतेगा ?? यानि प्रश्न उलझ गया .... तो आइये प्रश्न मैं सुलझा देता हूँ - प्रश्न बदल कर ....

आइये गौर फरमाएं कि - चुनाव हारेगा कौन ????

मुझे लगता है कि जो विकास के नाम का ज्यादा ढिंढोरा पीट फुस्स हो चुका है वो यह चुनाव हारेगा ....
यानि जिसने विकास का सरनेम जुमला रख दिया है वो चुनाव हारेगा .... विकास के मुद्दे पर ही हारेगा !!!!

और हारना भी चाहिए .... आखिर विकास की भी तो कोई अहमियत है कि नहीं ????

अस्तु बिहार का चुनाव मेरे अभिमत में अभूतपूर्व है जो विकास के मुद्दे पर ही लड़ा जाकर हारा जाएगा ....

Sunday 13 September 2015

//// मिर्ची के बाद - शहद या कांटे ?? ....////


बिहार चुनाव के अब मज़े आने लगे हैं .... गतिविधियाँ बहुत तेज़ हो गई हैं - सीटों के बंटवारे संबंधित तमाम उलझनों झगड़ों टंटों दांव पेंचों के रहते भी हर मसला बड़ी आसानी से सुलझा लिया गया बता दिया गया है .... वो भी बड़े आराम से ....
और कुछ घोषणाएं भी हो गई हैं कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा .... कौन किसके लिए कितनी सीटें छोड़ेगा और कौन कितनी सीटें झटकेगा .... आदि .... और सभी कलाकारों और अंगूठा छाप नेताओं का गणित बनते बिगड़ते सबको इसका अच्छा अभ्यास हो गया दिखता है कि कितना जोड़ा जाए और कितना घटाया जाए कि जोड़ २४३ आ जाए .... बस !!!! 

यानि सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था .... पूर्ण उठापटक के साथ !!!!

पर एकाएक MIM के असदउद्दीन ओवैसी ने कल घोषणा कर दी कि वो भी बिहार चुनाव में शिरकत करेंगें - कोई २०-२५ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे .....
बस फिर क्या था - कई लोगों को तो मिर्ची लग गई .... मिर्ची .... !!

पर क्योंकि मामला संवैधानिक सीमाओं के अंतर्गत बैठता था - तो कोई भी ज्यादा बकवास कर नहीं सका .... सीधी बात - हर किसी को लड़ने का अधिकार - इसलिए लड़ता है तो लड़ने दो .... और इसीलिए मैंने कहा - "मिर्ची लग गई" .... मिर्ची .... !!

पर जनाब आज तो एक और गजब हो गया .... अभी-अभी समाचार आ गया है कि - शिवसेना भी बिहार में ५० सीटों पर चुनाव लड़ सकती है ....
और यह बात भी  संवैधानिक सीमाओं के अंतर्गत ही बैठती है ....

इसलिए मैं सोच रहा था की जिनको ओवैसी की घोषणा से मिर्ची लगी होगी उनको कैसा एहसास हो रहा होगा ???? .... शहद लग रहा होगा ?? या कांटे लगने जैसा कुछ ????

Friday 11 September 2015

//// कुत्तों के "अच्छे दिन" तो आ ही गए हैं ....////


विदित हो कि भारतीय सेना में बाकायदा कुत्तों की भी भर्ती होती है तथा उनका रैंक आदि भी होता है .... और अब तक बड़ा ही विचित्र और कुत्ताई से भरा नियम रहा है कि सेवा से निवृत्त होने के बाद कुत्तों को मार दिया जाता रहा है .... छिः !!!!

पर अब एक अच्छा समाचार आया है -  केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में बताया है कि सेना में सेवानिवृत्ति के बाद कुत्तों को मारने के बजाय अब उनकी देखरेख व अच्छे जीवन के लिए नीति बनाई जाएगी .... नई नीति के तहत ऐसे कुत्तों की देखभाल के लिए व्यवस्था करने के अलावा अलग से स्टाफ की भी नियुक्ति की जाएगी .... 

ये समाचार तो कल ही आ गया था - और मैं सोच रहा था कि अब इस पर भी बवाल मचेगा .... कई आदमी टाइप लोग कुत्तों जैसे ही लड़ पड़ेंगे - बहस करेंगे - पहले सही था - नहीं अब गलत है - जो नियम ६० साल से चल रहा था मोदी सरकार ने उसे पलक झपकते १५ महीने में बदल दिया - मोदी सरकार कुत्तों तक की परवाह करती है - नहीं मोदी सरकार कुत्तों की ही परवाह करती है .... आदि इत्यादि ....

पर जनाब गज़ब हो गया .... पूरे देश में ना तो एक इंसान ही इसके विरोध में बोला ना ही कोई कुत्ता ....
सब के सब राजनीति से ऊपर उठ देशहित में देश के कुत्तों के मामले में एकजुट एकमत दिखे .... और सांसदों के वेतन भत्ते के विषय को छोड़ शायद ही कभी ऐसा एकतरफा १००% समर्थन कभी भी किसी अन्य को भूतकाल में मिला होगा !!!! 

वाह !! अहोभाग्य कुत्तों का !!!!

स्पष्ट है किसी के आए हों या ना हों - पर यकीनन कुत्तों के अच्छे दिन तो आ ही गए हैं ....
और आज ये भी पुनः सिद्ध हो गया कि - " हर कुत्ते के दिन आते हैं " ....

कुत्तों को हार्दिक बधाई !!!!

//// मुर्गी - "हवाबाज" - "हवालाबाज" ....////


एक थी मुर्गी .... बेचारी मुर्गी .... बेचारी इसलिए कि उसकी शादी बाज से हो गई ....
मुर्गा परेशान हलाकान .... नाराज़ .... हम मर गए थे क्या ??
संस्कारी मुर्गी ने ढांढस बंधाया .... नहीं ऐसी कोई बात नहीं थी .... वो तो बस क्या था मम्मी पापा ने बहुत पहले से निर्णय कर लिया था कि लड़का "Air-force" में होना चाहिए ....

और बेचारी मुर्गी बाद में बहुत पछताई .... क्योंकि लड़का तो "हवाबाज" निकला ....

जो उड़ा तो बस उड़ ही रहा है .... ज़मीन पर फिर पाँव ही नहीं रखा .... सब हवा हो गया - हनीमून तक हवा हो गया .... और मुर्गी बेचारी मायूस सी तब से आकाश ही तक रही है .... अपनी किस्मत को रो रही है ....

और मुर्गा अब ताने मार रहा है - "Air-force" के नाम पर हवाबाजी का "हवाला" दे रहा है .... तो "हवाबाज" चिढ़ के मुर्गे को "हवालाबाज" कह रहा है ....

कुल मिला के मुर्गी बेचारी लाचार है - परेशान है - सोच रही है - ना तो "हवाबाज" और ना ही "हवालाबाज" अपनी हरकतों से बाज़ आ रहा है .... 
"हवालाबाज" उड़ना नहीं जानता - और "हवाबाज" उड़ता ही रहता है ज़मीन पर नहीं आता .... 

और मुर्गी के मम्मी पापा सोच रहे हैं - काश हमने "Air-force" के बजाय "IIT Pass Engineer" लड़के का उचित निर्णय किया होता ....

Wednesday 9 September 2015

//// आइये इन्द्राणी और उसके 'पतियों' को छोड़ 'पतितों' की ऐसी तैसी करें ..////


बिहार में चुनाव की घोषणा आज हो गई ....
और गठबंधनों की तैयारी भी अंतिम दौर में पहुँच गई .... 

गठबंधन तो इन्द्राणी ने भी कई किए - और कई 'पति' ....

पर ज़रा गौर फरमाएं ..... उससे कहीं अधिक गठबंधन तो बिहार में हो चुके हैं - और 'पतितों' की संख्या अनंत ....

गठबंधन के मामले में तो फिर भी इन्द्राणी के 'पति' ठीक ठाक थे .... पर बिहार के 'पतितों' के गठबंधन का तो कोई स्तर ही नहीं है ....

कौन कब किसके साथ था किसके साथ रहेगा - किसने किसकी इज़्ज़त उतारी और किसे अपनी इज़्ज़त बेची - किसने मर्यादा तोड़ी और किसे मर्यादा का पाठ पढ़ाया - कौन टुच्चा था और कौन टुच्चा निकला - कौन किसके साथ भागा और कौन किसे भगा ले गया - कौन किसकी पैदाइश और कौन किसका बाप - किसने किसको मारा और कौन किसको मारेगा - और कौन जीतेगा और कौन हारेगा - कुछ समझ ही नहीं पड़ रही है ....

समझ में पड़ रही है तो बस एक बात .... इन 'पतितों' के मुकाबले तो इन्द्राणी एक सुशील सभ्य सौम्य शख्सियत है .... और उसने 'पति' भी ठीक ठाक ही चुने थे ..... बस उसकी गलती ये हो गई कि वो राजनीति में ना आकर कुछ और करने लगी .... राजनीति में होती तो हो सकता है .... इन्द्राणी आज "माननीय इन्द्राणी जी" होतीं .... और पीटर - खन्ना - दास आदि 'पति' ना होते हुए वो भी 'पतित' ही होते .... या फिर वो भी "माननीय" हो सकते थे ....

पर अब क्योंकि बिहार चुनाव सर पर आ गए हैं अस्तु मेरा ऐसा मानना है कि अब समय आ गया है जब इन्द्राणी और उनके 'पतियों' पर से ध्यान हटा 'पतितों' के बारे में सोचा जाए .... सोचा जाए किस 'पतित' को जिताया जाए और किसे हराया जाए ????

और मेरा विश्वास करें - बिहार में कौन 'पतित' जीतेगा और कौन हारेगा इसका पता तो ८ नवम्बर को लग जाएगा .... पर इन्द्राणी और उसके 'पतियों' का क्या होगा ये तो अब ना तो मारिया और ना ही आरुषि की आत्मा ही बता पाएगी .... इसलिए समय बर्बाद करने से क्या मतलब ??
आइये इन्द्राणी और उसके 'पतियों' को छोड़ 'पतितों' की ऐसी तैसी करें .... !!!! धन्यवाद !!!!

Monday 7 September 2015

//// "हिन्दू टेस्ट ट्‌यूब बेबी" ?? ....////


विश्‍व‌ हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया जनगणना के आने के बाद हिंदुओं की आबादी दर घटने से काफी ‌चिंतित है .... और चिंतित हो उन्होंने कहा है कि - विश्व हिंदू परिषद निसंतान हिंदू जोड़ों के लिए हेल्पलाइन जारी करेगी - उन्हें डॉक्टरी सेवा उपलब्ध कराने में मदद करेगी - अगर दंपती टेस्ट ट्‌यूब बेबी के जरिये माता-पिता बन सकते हैं, तो उनकी मदद के लिए भी वे तैयार हैं .... आदि !!

मेरी प्रतिक्रिया ....

यानि "टेस्ट ट्‌यूब बेबी" भी "हिन्दू टेस्ट ट्‌यूब बेबी" ??

तो कल जो रोबोट बनेंगे वो भी "हिन्दू रोबोट" या "मुस्लिम रोबोट" जैसे कुछ होंगे ??

तो क्या हिन्दू के खूंटे से बंधने वाला गधा भी "हिन्दू गधा" और मस्लिम के खूंटे से बंधने वाला गधा "मुस्लिम गधा" कहलायेगा ??

तो यानि बेचारा गधा भी खालिस गधा नहीं रह जाएगा - वो भी जातिगत हो जाएगा ?? ....
नहीं !! ये तो गधों की जमात पर अन्याय होगा .... ये तो गधाधिकारों का हनन होगा ....

और क्योंकि मैं मानवाधिकारों का हिमायती हूँ - इसलिए मैं गधाधिकारों का हनन भी नहीं होते देखना चाहता हूँ और इसलिए ऐसी प्रवृत्ति का विरोध करता हूँ - और माँग करता हूँ कि मानव को केवल मानव माना जाए - और !! .... और गधों को केवल गधा ही कहा जाए - कुछ और नहीं .... फिर चाहे वो किसी भी प्रकार का या किसी भी दर्जे का या किसी भी प्रजाति का या किसी भी जाति का गधा क्यों ना हो !!!!

//// बुद्ध की महिमा अपरम्पार ....////


मेरा हमेशा से ही सामयिक विषयों पर ध्यान केंद्रित हो जाता है ....
और इसलिए आजकल मैं बुद्ध के और बुद्धू के बारे में अनायास ही सोचने लगा हूँ .... 

बुद्ध यानी ज्ञान सहित .... बुद्धू यानी ज्ञान रहित ....

तो क्या बुद्धू बुद्ध नहीं बन सकता ??
नहीं बन सकता जी !! - क्योंकि सच तो यह है कि बुद्ध होना तो अपने आप में एक अनोखी सम्पूर्णता है - और सम्पूर्णता हासिल करना हर किसी के बस की बात नहीं - बुद्ध तो बस गौतम बुद्ध ही हो सकते थे ....

तो क्या बुद्धू ज्ञानी भी नहीं हो सकता ??
नहीं हो सकता जी !! - क्योंकि ज्ञानी होने के लिए भी थोड़े बहुत ज्ञान की आवश्यकता होती ही है - फिर बुद्धू तो ज्ञान रहित होता है ....

तो क्या बुद्धू कभी अक्ल कि बात नहीं कर सकता ??
कर सकता है जी !! - और उसके लिए एक ही तरीका है - "बुद्धम शरणम् गच्छामि" - यानि यदि बुद्धू बुद्ध रुपी ज्ञान के प्रति आकृष्ट भर हो जाएं तो भी बुद्धिमानी का परिचय दे सकते हैं ....

इसलिए जब भी कोई बुद्धू या ही कोई सामान्यजन और या ही कोई ज्ञानी "बुद्ध" कि शरण में जाता है तो माना जा सकता है और कहा जा सकता है कि .... निश्चित ही यह उचित सराहनीय संतोषप्रद स्वागत योग्य बौद्धिक कार्य हुआ ....

पुनश्च: .... पर जनाब कुछ बुद्धू बहुत ठस बुद्धी होते हैं .... ऐसे ही मेरे एक मित्र हैं - बहुत अच्छे हैं - पढ़े लिखे हैं - समाज में सम्मानित ससंपन्न हैं - हरिद्वार में रहते हैं - एक राजनीतिक दल से जुड़े कर्तव्यनिष्ठ  कार्यकर्त्ता हैं - नाम भी कमल का पर्यायवाची - और मेरे बहुत प्यारे से आलोचक हैं .... अक्सर मेरे लेख पर उनका लेख के मुद्दे से बिल्कुल अलग एक चिढ़ा कुढ़ा कुंठित संस्कारी कमेंट आ ही जाता है - जिससे मुझे ये ज्ञान होता है कि मेरा लेख खोट रहित था - और क्योंकि वो मेरे लेख में कोई खोट ढूंढ नहीं पाते वो मुझ में खोट आवश्य ढूंढ लेते हैं - और उनकी इसी 'ढूंढ' के चलते न जाने कब और क्यों वो मुझे एक 'शिक्षक' समझने और कहने लगे - और शायद इसलिए ही वो मुझे कभी कभार 'मास्टरजी' भी लिख बैठते हैं ....

इतना सब लिखने का मेरा मकसद बस इतना ही था कि काश !! .... एक और बुद्धू किसी बुद्ध की शरण में चला जाए तो उसे भी ज्ञान हो जाए कि - // हर किसी को शिक्षक मान लेना कदापि उचित नहीं // - और मान ही लिया है तो ज्ञानी शिक्षक का और उसके ज्ञान का तिरस्कार उपयुक्त नहीं .... मित्रो !! मैनें सही कहा ना !!!!

//// OROP और भ्रम की स्थिति !! .. कोई भी भ्रम में नहीं रहे तो बेहतर .... ////


परसों रक्षा मंत्री ने OROP की घोषणा करी थी .... और कहा था VRS वालों को इसका लाभ नहीं मिलेगा ....

पकी-पकाई की घोषणा करने में १५ माह का समय लगने का औचित्य केवल ये ही माना जा सकता था - कि "मजमून" सही-सही तय किया जाए और लिखा जाए .... वर्ना वायदा तो किया ही था - मुद्दा स्पष्ट था - सिद्धांत रूप से माँग स्वीकार्य करने की घोषणाएं भी करी जा चुकी थीं .... तो बस फिर "मजमून" ही तो बचा था ....

लेकिन जनाब VRS की बात आते ही सभी आंदोलनकारी भड़क गए .... सबको लगा ये कौन सा नए टाइप का प्याज अदरक लस्सन के रस का रईसी रायता है जो सड़ांघ मारते फैलाया जा रहा है ....

और जब सैनिक भड़के तब प्रधानमंत्री फड़के .... दूसरे ही दिन फरीदाबाद में आदतन कांग्रेस को कोसते खिसियाते घोषणा कर दी .... VRS को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है .... OROP का फायदा सबको मिलेगा ....

और तब जाकर रायते पर पानी फिरा .... और भ्रम की स्थिति ख़त्म सी हुई !!??!!

और भ्रम मेरा भी टूट गया .... मैं रक्षामंत्री पर्रिकर को समझदार मानता था .... पर "मजमून" में ऐसी गलती ?? .. सैनिक बता रहे हैं कि सेना में तो VRS होता ही नहीं है .... फिर VRS की बात क्यों ?? .... और इसलिए मुझे लगता है कि मोदी जी ने सही आक्षेप लगाया कि कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं .... क्योंकि ऐसा कर रक्षामंत्री पर्रिकर ने भ्रम फैलाया ये तो स्पष्ट है ....

और इसलिए मैं सोचता हूँ कि भक्तों को भी अपना भ्रम तोड़ लेना चाहिए .... जो सरकार एक घोषणा का या एक प्रावधान या कानून का "मजमून" तक ससमय और सही-सही नहीं बना सके वो सरकार सफल साबित क्या ख़ाक होगी ?? .... अतः .. कोई भी भ्रम में नहीं रहे तो बेहतर !!!!

Sunday 6 September 2015

//// ओ मारिया ओ मारिया ओ मारिया .. ओह हो !! ....////


शीना बोरा जैसा शर्मनाक मर्डर केस - और मुंबई पुलिस कमिश्नर मारिया ने बयान दिया है .... मैं इसे आरुषि मर्डर केस नहीं बनने दूंगा .... मैं ३० सितम्बर तक इसी पद पर हूँ और तब तक पूरा प्रकरण सुलझा लूँगा .... ये केस मुंबई पुलिस की इज़्ज़त का सवाल है .... आदि .... और ये भी कह दिया कि मीडिया की वजह से बहुत परेशानियां आ रही हैं ....

मेरी प्रतिक्रिया ....

१) यदि मीडिया की वजह से परेशानियां आ रही हैं तो मीडिया से फालतू की गपशप क्यों ? .. चुपचाप अपना काम क्यों नहीं करते ??

२) ३ साल पहले हुए मर्डर को आज तक नहीं सुलझा पाए - और टेका लगा रहे हो पुराने आरुषि मर्डर जैसे फ्लॉप केस का .... बिल्कुल वैसे ही जैसे कि मोदी सरकार जब खुद कुछ नहीं कर पा रही तो टेका लगाती फिरती है पूर्व फ्लॉप सरकार का .... लगता नहीं डीएनए मिलता है ??

३) यदि आप लन्दन में ललित मोदी से मिल आते हो और यदि ३ साल पहले के ऐसे खुल्लमखुल्ला मर्डर केस पर पर्दा पड़ा रहता है - तो भी क्या मुंबई पुलिस की इज़्ज़त का कोई सवाल बना या बचा रहता है ??

४) किसी भी केस की प्रक्रिया केस के मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए ना कि किसी पुलिस अफसर की पद पर रहने के समयावधि पर .... लगता है यदि मारिया ३० सितम्बर के बजाय ३० अगस्त तक ही वर्तमान पद पर बने रहने वाले होते तो इन्द्राणी मुखर्जी अभी तक जेल में होती - और अगर वो अगले साल तक इसी पद पर रहने वाले होते तो ? तो कहीं इन्द्राणी मुखर्जी अभी तक एक और पति पैदा तो नहीं कर लेती ??

५) मारिया साहब !! क्या आप ये गुत्थी सुलझाने के बाद कि इन्द्राणी ने शीना को क्यों मारा था - कहीं लगे हाथ ये रहस्योद्घाटन तो नहीं फेंक दोगे ना कि "कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा था" ??

इसलिए आज तो मैं एक ही गाना गुनगुना रहा हूँ ....

ओ मारिया ओ मारिया ओ मारिया हो हो ....
ओ मारिया ओ मारिया ओ मारिया .. ओह हो !!
अरे पीटर जब बोला था तुझसे ....

Saturday 5 September 2015

//// पकाने वाला उबालता ही रह गया पकाना नहीं आया ....////


और अंततः .... मजबूर सरकार ने OROP लागू करने की घोषणा कर दी ....

भाजपा के अमित शाह ने सबको बधाई दे दी .... मोदी की तारीफ के पुल बाँध दिए .... और लगे हाथ बैठे बैठाये आदतन रोते बिलखते विलापते खिसियाते कांग्रेस की जमकर आलोचना कर दी .... 

पर जिन सैनिकों के लिए ये महान घोषणा हुई है उन्हें कुछ मज़ा नहीं आया .... और उन्होंने तो इसे सरकार द्वारा धोखा जैसा देने की बात कहकर अपना आंदोलन जारी रखने की घोषणा कर दी ....

मेरी प्रतिक्रिया ....

जिन्हें कांग्रेस के ५०० करोड़ का बजट याद हो आया ....
उन्हें कई हज़ार करोड़ खर्च करने का शऊर भी ना आया ....
मुर्गी गई जान से खाने वाले को मज़ा नहीं आया ....
पकाने वाला उबालता ही रह गया पकाना नहीं आया ....

Friday 4 September 2015

//// ये राजनेता - 'शिक्षकों' से उनका 'शिक्षक दिवस' ही छुड़ा भाग लिए ....////


कल शिक्षक दिवस है - आज ही मन गया - मना लिया गया .... देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे माननीय राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के बच्चों से किये संबोधन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित कर .... बस मन गया !!!!

दोनों संबोधन बेहतरीन थे .... पर मुझे संबंधित "शिक्षक" नदारद दिखा .... जैसे कि बात हो मुछंदर  की और मूछें नदारद !!!!

'शिक्षक दिवस' जैसे कि नाम ही निरूपित करता है - ये शिक्षकों को ही समर्पित होना चाहिए था .... इस दिवस पर उनका यथायोग्य मान सम्मान होना चाहिए था - शिक्षकों से संबंधित समस्याओं का निराकरण और घोषणाओं का दिन होना चाहिए था !!!!

पर ऐसा हुआ नहीं .... शिक्षकों का महत्व तो बताया गया .... और खुद राजनेता होते हुए भी छद्म शिक्षक बन कर बताया गया .... पर शिक्षकों के हित की बात और उनके 'मन की बात' नदारद रही ....

इसलिए प्रश्न उठते हैं कि मुद्दे की ये बातें अब कब होंगी ???? जैसे कि - शिक्षकों का वेतन कितना होना चाहिए ?? उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया क्या होनी चाहिए ?? उनकी नियुक्ति का प्रकार कैसा होना चाहिए जैसे कि नियमित या तदर्थ ?? शिक्षकों को छात्रों और छुटभैय्ये नेताओं और गुंडों और कभी कभार पुलिस से पिटने से कैसे बचाना चाहिए ?? शिक्षकों की दयनीय सामाजिक इज़्ज़त को कैसे तत्काल ठीक ठाक करने के उपरांत स्तरीय करा जाना चाहिए ?? .... आदि !!!!

इसलिए मैं आज भी व्यथित हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि शिक्षक दिवस पर राजनेता अपने को तो चमका गए - पर बड़ी शानपत के साथ शिक्षकों से उनका 'शिक्षक दिवस' ही छुड़ा भाग लिए ....
बेचारे शिक्षक !!!!

Thursday 3 September 2015

//// ये मजबूरी की बेशर्मी - या बेशर्मी की मजबूरी ?? ..////


प्रधानमंत्री बनने से पहले जब मोदी जी सत्ता पाने के लिए आतुर हो दिन-ब-दिन रैली-रैली ऊंची-ऊंची फेंक रहे थे तब ही उन्होंने मनमोहन सरकार का उपहास करते हुए एक चुनावी रैली में बड़े ही दम्भ से कहा था - " सत्ता में आने पर शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाकर उन्हें न्याय दिलाउंगा - और देश का सम्मान लौटाएंगे " ....

तो यानी बात देश के सम्मान से जुडी होना तय हुआ ....

पर बाद में मोदी सरकार ने पलटी मारी - और बाकायदा संसद में घोषित कर दिया कि - अंतरराष्ट्रीय अदालत में कैप्टन कालिया पर हुए पाकिस्तानी अत्याचार के खिलाफ अपील करना संभव नहीं है ....

बात देश के सम्मान से जुडी थी - हल्ला मचना था - हल्ला मच गया था - मानवाधिकार और मानवीय आधार भी चर्चा में आ गए थे .... 

और मामला बढ़ता देख मानवीय आधार की पक्षधर हमारी तब यशस्वी विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने सार्वजनिक रूप से तुरंत वक्तव्य दिया था कि - " सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा बदलेगी - केस के अपवाद होने का मुद्दा बनाकर इंटरनेशनल कोर्ट जाएंगे " ....

सुषमा के वक्तव्य की सराहना होनी थी - हो भी गई थी .... आखिर बात देश के सम्मान से जो जुडी थी !!

पर जनाब अब सुप्रीम कोर्ट में देश का सम्मान लौटाने का दावा करने वाली मोदी सरकार ने एक बार फिर पलटी मार ली है - जबरदस्त पलटी - उल्टी पलटी .... उस मनमोहन सरकार की ही तरह जिस पर मोदी देश के सम्मान को गिरवी रखने का आरोप लगा रहे थे मोदी सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में शिमला समझौते की मजबूरी बता दी - और कह दिया कि चूँकि पाक इस मुद्दे को अंतराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने के लिए राजी नहीं है इसलिए अंतरराष्ट्रीय अदालत में कैप्टन कालिया पर हुए पाकिस्तानी अत्याचार के खिलाफ अपील करना संभव नहीं है .... 

यानि प्रथम दृष्टया तो यही दिखता है कि मोदी सरकार देश के सम्मान को लौटाने में असफल हो गई है - और ऐसी बेशर्मी का कारण "मजबूरी" जैसा कुछ प्रतीत होता है ....

मजबूरी इसलिए कि मोदी सरकार अब मजबूर सरकार सिद्ध हो चुकी है .... सिद्ध इसलिए कि काला धन ना ला पाने में मजबूर - भूमि अधिग्रहण बिल वापस लेने में मजबूर - OROP मामले में वादाखिलाफी हेतु मजबूर - संघ की शरण और काबू में जाने के लिए मजबूर - सांप्रदायिक ताकतों के आगे झुकने के लिए मजबूर - दागी नेताओं का इस्तीफ़ा ना लेने में मजबूर -  देश में लहराते पाकिस्तानी झंडे देखने और पाकिस्तान समर्थित नारे सुनने को मजबूर - और गजेन्द्र चौहान तथा रामनरेश यादव तथा नजीब जंग तथा नरेंद्र मोदी जी को तोकने और ढोने में मजबूर ....

पर क्योंकि ये मामला देश के सम्मान से जुड़ा है - मैं इसके बारे में बहुत सोच विचार कर रहा हूँ और समझ नहीं पा रहा हूँ कि ये मजबूरी बेशर्मी के कारण है - या ये बेशर्मी मजबूरी के कारण है ?? ....

फिर सोचता हूँ कि क्या फर्क पड़ता है - ये मजबूरी की बेशर्मी हो - या बेशर्मी की मजबूरी - दोनों ही स्थिति में इस सरकार की हर मोर्चे पर मजबूरी और बेशर्मी साफ़ दिखती ही है .... है ना !!!!

अमर शहीद कैप्टन सौरभ कालिया को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित .... माफ़ी के साथ !!!!

Wednesday 2 September 2015

//// ३ रहिन मोदी - १ रहिन फत्ते .. बेचारे फत्ते !! ....////


३ रहिन मोदी !!!!
पहले फरार .... भारत से भाग लन्दन में आराम फरमा रहे ....
दूसरे बेकार .... बिहार के सबसे बड़े नेता पर मुख्यमंत्री लायक नहीं रहे ....
तीसरे लाचार .... अब कुछ भी तो कर नहीं पा रहे ....

एक रहिन फत्ते !!!!
बेचारे तीनों मोदियों को टेके लगाते हैं .... प्रवक्ता जो हैं - अपात्र को भी पात्र सिद्ध करने में अपनी पूरी शक्ति लगाते हैं - और पात्रा कहलाते हैं ....
बहुत चतुर शाने हैं इसलिए ....
फरार को फरार नहीं मानते - फरार को तो बस मानव और फरारी को मानवीय बताते हैं ....
बेकार को बेकार नहीं मानते - बिहार के सबसे बड़े नेता बताते हैं - "शत्रु" से भी सक्षम बताते हैं ....
लाचार को लाचार नहीं मानते - सारी लाचारी और अकर्मण्यता का ठीकरा पिछले ६० साल पर फोड़-फोड़ कर भी कुछ ना करने वाले को भी कर्मवीर बताते हैं .... और बस "राहुल-राहुल" चिल्लाते हैं ....

और एक रहिन हम !!!!
हमारा मानना है कि सभी मोदियों से फत्ते भले .... टेके बहुत अच्छे लगाते हैं - फ़टे को रफू बहुत अच्छा कर जाते हैं - पर बड़े फ़टे में अब थेगड़े लगाने में ज़रा असहज हो जाते हैं .... अब तो कई बार बौराने भी लगे हैं - खुद के कपडे भी फाड़ने लगे हैं ....

इसलिए अब मुझे फत्ते भी लाचार ज्यादा नज़र आने लगे हैं .... बेचारे फत्ते !!!!

Tuesday 1 September 2015

//// एक वैचारिक संत की विचार शून्य कट्टरपंथियों द्वारा हत्या ....////


कर्नाटका की हम्पी यूनिवर्सिटी के विद्वान प्रोफेसर एम.एम. कलबुर्गी की हत्या कर दी गई ....

मेरे जैसे सीमित जानकारी वाले और साहित्य अनभिज्ञ व्यक्ति को हत्या के बाद ही मीडिया में आई ख़बरों से उस महान व्यक्तित्व के बारे में पता चला ....

पता चला कि वे समाजसेवी थे - विद्वान साहित्यकार थे - मूर्ती पूजा के विरूद्ध थे - रूढ़िवादिता के प्रखर विरोधी थे - और !! - और शायद इसलिए ही कट्टरपंथियों के निशाने पर थे ....

मैनें भले ही कलबुर्गी जी को पहले से नहीं जाना था - पर मैं यह बहुत पहले जान चुका हूँ कि कट्टरपंथ से बड़ा नुकसानदेह और घृणित कुछ भी नहीं .... और इस देश में आज की राजनीति कट्टरपंथ के इर्द गिर्द ही घुमाई जा रही है ....
और कट्टरपंथ को यदि कोई मिटा सकता है तो वो और कोई नहीं - वो कोई ना कोई "कलबुर्गी" जैसा निर्भीक विद्वान ही हो सकता है .... कोई कट्टरपंथी राजनेता तो कदापि नहीं !!!!

अमर वैचारिक संत स्वर्गीय "कलबुर्गी" जी को अति व्यथित मन से श्रद्धांजलि ....

और विचार शून्य 'मरे हुए ज़िंदा' कट्टरपंथी हत्यारों और उनके आकाओं और उनके समर्थकों को धिक्कार ....

और धर्म के ठेकेदारों से पूछना चाहूँगा कि वो कौन सा भगवान है जिसका वो बखान करते हैं ?? और वो कौन सा भगवान है जिसने कलबुर्गी जी को उठा लिया ?? और वो कौन सा भगवान है जिसके पास कलबुर्गी जी पहुंचे होंगे ?? और वो कौन सा भगवान है जिसकी कृपा से कलबुर्गी जी के हत्यारे अभी भी ज़िंदा हैं ?? .... और वो कौन सा भगवान है जो " है " ????