Sunday 30 September 2018

EVM से छेड़छाड़ नहीं हो सकती ??.. जबकि प्रधानसेवक से छेड़छाड़ होने लगी है !!..


Saturday 29 September 2018

// भैंस पानी में गई .. या .. गधे धूल में लोटमलाट हो लिए ??.. ..//


कुछ बड़ा हुआ है बताऊंगा नहीं : राजनाथ !!..
(सीमा पार किसी बड़ी कार्यवाही की ओर इशारा !!..)

वाह क्या बात है - देर आयद दुरुस्त आयद ??..

मैं भी यही कहता आया हूँ कि दिन रात २४x७ बकर चकर से पूरा देश चकरभिन्नी हुए जा रहा था.. जब देखो पाकिस्तान का नाम हर जगह घुसेड़ देना.. और जब चाहे तब कुछ तो भी बकवास पटक देना.. कभी धमकी देते रहना तो कभी कपड़े फाड़ते रहना !!..

और ये सब कूटनीति और विदेशनीति या अंतर्राष्ट्रीय मामलों के मद्देनज़र निहायत बेवकूफाना बचकाना रवैय्या ही लगता रहा था !!..

और तो और अपनी सेना से जुड़े कई यशस्वियों तक को ये बतियाने और बोलने की बीमारी सी लगी हुई है.. जो जब देखो तब कुछ ना कुछ बोलने के या तो शौक़ीन हो गए हैं या किसी के निर्देशों या इशारों या इच्छा के लिए अपना मुंह खोलते रहते हैं.. जो सेना के लिए कदापि उपयुक्त और देशहित में नहीं माना जा सकता !!..

पर मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के ५२ माह के दौरान और अस्तित्व में नहीं रहने के केवल ८ माह के रहते मेरे धोतीपकड़ ने कुछ ऐसा किया प्रतीत होता है जिसे "अक्लमंदी" कहा जा सकता है..

पर अफ़सोस !!.. शायद आदत से मजबूर पेट में बात २-३ रोज़ से ज्यादा पचा नहीं सके और फिर अपनी औकात बता दी.. और कल ही कह दिया.. २-३ रोज़ पहले कुछ हुआ है - और ठीक ठाक हुआ है - पर मैं बताऊंगा नहीं क्योंकि ऐसी बातें बताई नहीं जातीं !!..

और इस प्रकार देश के गृहमंत्री ने एक बार फिर कुछ वो बोल दिया उगल दिया या बता ही दिया जो ना तो बताना अनिवार्य था - और कुल मिलाकर जो बताना ही नहीं बनता था..

यहां तक कि.. यदि नौबत यहां तक आन पड़ी थी कि देश का ध्यान राफेल या बढ़ते पेट्रोल डीजल के भावों से भी भटकाना आवश्यक हो चला था - तो भी ऐसी भोंडी बात बोलना भी कहाँ की समझदारी मानी जा सकती है जिस पर बाद में इसी बात के बवाल पर से ध्यान हटाने के लिए एक और अन्य खुराफाती बात उगलनी पड़े या कुछ और शिगूफा छोड़ना पड़े ??..

और ऐसी ही परिस्थिति के समय मुहावरा उपयोग में आता है कि.. "गई भैंस पानी में"..
पर मैं आज इस विशेष परिस्थिति के लिए जुमलेबाजों के लिए एक नया जुमला गढ़ता हूँ जो शायद ज्यादा प्रासंगिक होगा..
"लोटमलाट हुआ गधा धूल में"..

और अंत में इसी प्रसंगवश कुछ समझाइश भी..

गृहमंत्री जी !!.. खबरदार जो अब इस मामले में कुछ और बताया.. क्योंकि कुछ बातें बताने वाली होती ही नहीं हैं.. समझे ??..
प्रधानमंत्री जी !!.. ये जो गृहमंत्री रक्षामंत्री और वित्तमंत्री होते हैं ना.. इनमें अक्कल गंभीरता गहराई परिपक्वता की आवश्यकता होती है.. इसलिए इन्हें बदल डालो तो बेहतर होगा.. ठीक ??..

और मित्रों !!.. प्रधानमंत्री ऐसा होना चाहिए जिसमें केवल फेंकने या चुनाव जीतने जिताने की ही औकात ना हो.. बल्कि कुछ अच्छे उपयोगी काम करने करवाने की क़ाबलियत भी हो.. इसलिए इन्हें भी बदल डालना आवश्यक है.. नितांत आवश्यक.. है ना ??..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Friday 28 September 2018

// सुप्रीम कोर्ट से निकलते राफेल-गति संदेश !!.. मोदी स्वयं सत्ता से बेदखल हो लें !!.. //


सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं : सुप्रीम कोर्ट
और ताजे-ताजे इस एक और निर्णय की विशेष बात : किसी भी प्रकार की आस्था या धार्मिक परम्पराओं को संविधान के ऊपर किसी भी प्रकार की मान्यता नहीं..

आशा है निर्विकार सी चालाक निकम्मी खुराफाती मोदी सरकार - जिसके द्वारा ऐसे विषयों में स्पष्ट मत नहीं दिया जाता है और इस विषय पर भी अपना स्पष्ट मत नहीं दिया गया था - वह टीप करेगी कि.. ये देश अब ऐसे खुले विचारों वाले शासन तंत्र को स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है जिसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं हो - और समाज में दकियानूसी बातों को प्रोत्साहन मिलना बंद हो - और धर्म का राजनीति में घालमेल भी नहीं हो !!..

इसलिए मेरी मोदी को सलाह है कि :

मोदी सरकार कम से कम अब तो धर्म जाति के विषयों से अपने आपको अलग कर ही ले..
और अब अपना बोरिया बिस्तर लपेट सत्ता से स्वयं बेदखल भी हो ले..

और मेरी सलाह के पीछे सारगर्भित बातें कुछ यूँ हैं.. ..

क्योंकि वैसे भी अब जब धर्म जाति के मुद्दे कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से हथिया ही लिए हैं.. मसलन मोदी तो हिन्दू हिन्दू राम राम करते रह गए - और देखते ही देखते राहुल भी हिन्दू हिन्दू करते शिव को ले उड़े और अब तो राम जी को भी अपने पाले में ले जाने की मुहीम चित्रकूट से चला दिए हैं.. इसलिए अब इस क्षेत्र में तो प्रतिस्पर्धा भी बहुत पेचीदा हो गई है.. और इसलिए अब हिन्दू-हिंदुत्व-राम-धर्म की दाल गलने वाली नहीं है..

और विकास के मुद्दे पर अब इसलिए लौटा नहीं जा सकता क्योंकि विकास करने के लिए समय अक्कल और नीयत लगती है..
और मोदी के पास अब ना तो समय बचा है ना अक्कल थी और ना नीयत ही थी.. और विकास किया भी नहीं - हुआ भी नहीं..

और इसके अलावा ये 'राफेल का भूत' भी अब 'चौकीदार चोर है' चिल्ला ही रहा है..

इसलिए भक्तों को भी आज तो यही कहूंगा कि बोलो..
बम बम बोल !!.. बम बम भोले !!.. जय श्री राम !!..
सबरीमाला की जय !!.. संविधान की जय !!.. जय भीम !!.. ..

और "जय भीमा-कोरेगाँव" भी !!.. जहाँ अभी-अभी आ रहे निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने ५ प्रख्यात व्यक्तियों की पुलिस गिरफ्तारी हेतु अनुमति देने से एक बार फिर इंकार कर दिया है.. .. आगे-आगे देखिए होता है क्या !!..

और आओ भक्तों नया नारा भी लगाओ.. राफेल !!.. राफेल !!.. राफेल !!..
या फिर..
चौकीदार चोर है !!..
हा !!.. हा !!.. हा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Thursday 27 September 2018

// अयोध्या विवाद !!.. अब और साफ़ हुआ कि.. मुद्दे की बात होगी.. आस्था की नहीं.. //


सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर ये साफ़ कर दिया है कि अयोध्या विवाद में निर्णय एक जमीन के मालिकाना हक़ के परिप्रेक्ष्य में ही होगा.. आस्था की बिनाह पर नहीं होगा !!..

और मैं जितना इस देश के कानून और न्याय को समझता हूँ उसके अनुसार भी जमीन जिसकी होगी भवन का मालिक भी वही माना जाएगा..

मसलन क्या कभी कल्पना की जा सकती है कि यदि दुआ जी की जमीन पर दुबे जी ने मकान बनाया और उसमें ढैय्या जी रहने लगे और उस पर कब्ज़ा चौबे जी ने कर लिया.. तो क्या दुआ जी को मालकियत से बेदखल मान लिया जाएगा ??.. नहीं ना !!.. संपत्ति के मालिक तो दुआ जी ही रहेंगे ना !!..

या फिर क्या भक्तों के अलावा कोई यह मान सकता है कि यदि चौबे जी दुबे जी की जमीन पर पैदा हुए थे और उसके बाद दुबे जी ने जमीन दुआ जी को बेच दी थी.. तो क्या फिर भी जमीन का मालिकाना हक़ चौबे जी का माना जाएगा - ना दुबे जी का ना दुआ जी का ??..

या फिर मान लो कि मैं यदि ये दावा कर लूँ और लाखों लोगों से अपने दावे का समर्थन भी करवा दूँ कि मेरे परदादा जी दिल्ली में ठीक उसी जगह पैदा हुए थे जहां आज भाजपा का सात-सितारा कार्यालय बनाया गया है.. तो क्या वो संपत्ति भी मेरी मान ली जाएगी ??..  

यदि हाँ तो फिर तो ठीक है !!..
पर यदि नहीं तो मैं धिक्कारता हूँ इस देश के अंदर नासूर बने लोगों और संस्थाओं को जो अपने स्वार्थों के रहते बिलावजह मुद्दे उठाते रहे हैं ताकि गरीबों और आम जनता के सरोकार के मुद्दे पीछे रह जाएं और धूर्त लोग मज़े लूट ले जाएं !!..

इसलिए मेरी सबको सलाह है कि सुप्रीम कोर्ट में मालिकाना हक़ का निर्णय होता रहेगा.. पर तब तक पेट्रोल डीजल रुपैय्या डॉलर एनपीए हिंसा बर्बरता लूट-खसोट भ्रष्टाचार स्वास्थ्य शिक्षा और राफेल चोर चौकीदार के मुद्दों पर और मोदी सरकार की करतूतों पर अपना ध्यान केंद्रित रखें !!..

जय श्री राम.. जय हिन्द !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

एडल्ट्री अपराध नहीं : सुप्रीम कोर्ट.. मोदी सरकार भाजपा और आरएसएस को बधाई !!..


Wednesday 26 September 2018

// चोर चौकीदार को जवाब तो देना ही पड़ेगा.. और मायूस भक्तों को चुप रहना होगा.. //


मैं स्पष्ट देख पा रहा हूँ कि चालाक चौकीदार जगजाहिर हो चुकी चोरी को छुपाने के लिए अब तक पप्पू या मणिशंकर या गुलामनबी जैसे लोगों या फिर कांग्रेस के पीछे छुपने का प्रयास कर रहा था.. पर अब तो बेहयाई की सभी सीमाएं लाँघ रहमान मालिक या इमरान जैसे पाकिस्तानियों या फिर पाकिस्तान के पीछे छुपने की धूर्तता कर रहा है..

और मैं ऐसा मान सकता हूँ कि राजनीति के गिरते स्तर के मद्देनज़र चोर को पप्पू के पीछे छुपने की कोशिश करना तो बनता ही था.. क्योंकि फंसता घबराता मरता क्या ना करता.. पर पाकिस्तान की आड़ के पीछे छुपने की धूर्तता तो बर्दाश्त के बहार ही होनी चाहिए..

और मेरा ऐसा भी मानना है कि चोर चौकीदार भले ही पप्पू या किसी कोंग्रेसी या किसी विरोधी पार्टी के नेताओं को अपना जवाब या भोंडी सफाई दे या ना भी दे - पर उसकी अपनी ही पार्टी के अरुण शौरी यशवंत सिन्हा शत्रुघ्न सिन्हा सुब्रमण्यम स्वामी आदि बड़े नेताओं के प्रश्नों का जवाब तो देना ही चाहिए..

और साथ ही जब स्वतंत्र रवीश कुमार या अभिसार शर्मा या पुण्य प्रसून वाजपेई या विनोद दुआ या प्रशांत भूषण जैसे अनन्य लोग - या फिर अब तो मेन स्ट्रीम गोदी चैनल वाले सरदाना या अंजना जैसे कुख्यात एंकर भी - या चोर के सर पर चढ़ कर चोर के बाल नोचती 'द वायर' जैसी अन्य मीडिया चैनल्स भी - या छाती पर मूंग दल रही 'आप' पार्टी भी - अब जब सार्वजनिक रूप से कुछ सीधे सपाट स्वस्थ आवश्यक सार्थक स्वाभाविक जाहिर प्रश्न पूछते ही जा रहे हैं - तो फिर तो जवाब देना बनता है..

और मजे की बात तो ये है कि भले ही जवाब देते ना भी बने तो भी जवाब देना तो बनता ही है.. और यदि जवाब देते नहीं बना है तो फिर तो जवाब देना ही पड़ेगा.. आखिर अब बच के कहाँ जाओगे बच्चू ??..

जॉनी वॉकर का एक फ़िल्मी डायलॉग याद दिलाता हूँ.. ध्यान से सुनना और याद रखना.. 
" कब तक छुपेगी कैरी, पत्तों की आड़ में,
एक न एक दिन तो आना ही पड़ेगा बिकने बाज़ार में "..

और यदि मुझ जैसा एक परिपक्व आम आदमी भी तुमसे सवाल पूछने लगा है तो फिर तो तुमको गालियां खा-खा कर जवाब उगलना होगा और बताना होगा कि..

राफेल के भाव तीन गुना से भी ज्यादा क्यों बढ़े ??.. 
तेल के भाव क्यों बढ़े.. राफेल जैसी चोरी के असर के कारण ही ना ??..
रुपया और चोर औंधे मुंह क्यों गिरे.. राफेल जैसी चोरी की वजह से ही ना ??..
ये "चौकीदार चोर है" फिल्म में खलनायक चरित्र अभिनेता अनिल अम्बानी की एंट्री कब हुई और किसके कहने पर हुई और क्यों हुई ??..
और राफेल विमानों की संख्या १२६ के बजाय ३६ क्यों और किसकी सनक या धमक के कारण हुई ??..
और बाकी आवश्यक बची संख्या ९० जहाज क्या अनिल अम्बानी का कोई रिश्तेदार बनाएगा या पर्रिकर या निर्मला या शाह या स्मृति या रविशंकर या जेटली बनाएगा ??..

या फिर बाकी ९० जहाज कहीं चोर चौकीदार खुद तो नहीं बनाएगा ??..
और यदि बनाएगा तो क्या आलू की फैक्ट्री में बनाएगा.. या नागपुर की संस्कारित धरती पर - या भारत के क्योटो में - या पतंजलि में - या गुजरात की साबरमती नदी पर तैरते हुए जहाज पर - या वडनगर स्टेशन पर बनाएगा ??..

या फिर ललित मोदी विजय माल्या नीरव मोदी मेहुल चौकसी जैसे हर भगोड़े को कहा जाएगा कि जो भारत वापस आना चाहता हो उसका स्वागत है.. बशर्ते वो दीनदयाल या गोलवलकर या अटल जी की जयंती के दिन राफेल विमानों पर 'राफेल' की जगह 'वंदे मातरम' पुतवा कर एक हाथ में तिरंगा झंडा और दूसरे हाथ में कमल का फूल थामे माँ भारती की पावन धरती के एक चिन्हित भाग सिक्क्म एयरपोर्ट पर उतरे.. और अपना राफेल विमान प्रधानसेवक या रक्षामंत्री या वायु सेनाध्यक्ष या ठेकाप्राप्त चहेते ठेकेदार अंबानी को सौंप अपने चिरपरिचित काम धंधे से लगे !!..??..

और हाँ मेरी मायूस भक्तों को भी नसीहत है कि भले ही अचम्भित कुपात्रा के नेतृत्व में उछलते रहो कूदते रहो चोर-चोर डकैत-डकैत चिल्लाते रहो.. रोते रहो विलापते रहो गुर्राते भी रहो.. पर ध्यान रहे जो प्रश्न मैने पूछे हैं उनका जवाब देने का कुप्रयास बिल्कुल मत करना और बिल्कुल चुप रहना.. और वो इसलिए कि जब पुलिस एक चोर से तफ्तीश कर रही हो तो दूसरे उठाईगिरे या चंगू-मंगू को बीच-बीच में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से बचना होता है.. नहीं तो डंडा चोर के साथ-साथ टुच्चे उठाईगिरे के पिछवाड़े भी पड़ जाता है..

समझे !!.. !! जय हिन्द !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Sunday 23 September 2018

// शहादत प्राप्त करना चाहते हो ??.. पप्पू से चपतियाने के बाद अब केजरी से भिड़ो.. //


तुम्हारी उम्र निकल गई पप्पू को लताड़ते हुए.. और वो भी सार्वजनिक रूप से..
क्या-क्या नहीं कहा.. पैदाइशी बेवकूफ, भ्रष्टाचारी बाप का बेटा, विलायती माँ का बच्चा, अय्याश वंश की औलाद, निकम्मा कमज़ोर जोकर फडतूस बेचारा नादान पगला कमज़ोर नाकाबिल आदि !!..

और सब कुछ जानते-बूझते भी फेंकने की आदत से मजबूर खुद को कहते रहे.. तुर्रमखां सर्वशक्तिमान बुद्धिमान हरफनमौला लाजवाब ताकतवर नायाब वयस्क छप्पन इंची पहलवान आदि-आदि !!..

पर ये क्या हुआ ????..
जवान हो रहे खानदानी पप्पू ने सरेआम सबके सामने बिना लाग लपेट तुम्हारे फूले गाल पर एक चांटा दे मारा - और चांटे की रसीद भी फाड़ सार्वजनिक कर दी !!..

और दर्द तो थोबड़े में ही होना था पर तुम्हारा तो पूरा शरीर झन्ना गया.. तुम्हारे तो अस्थि पंजर तक फड़फड़ा गए..
और तो और लगता है चांटे की चोट तुम्हारे तोमल तमल दिल तक पहुँच तुम्हें रुला गई !!..

ऐसा क्यूँ हुआ बे ????..

ऐसा इसलिए हुआ बे.. क्योंकि पप्पू के पास खोने को कुछ नहीं था और तुमने उसे चांटा मारने के लिए मजबूर कर अपना गाल आगे कर दिया.. और जब पप्पू से चांटा खा गए तो फड़क गए.. और अब चुपचाप तड़प-तड़प भड़क रहे हो !!..

इसलिए आइंदा के लिए एक समझाइश !!..

सार्वजनिक रूप से लड़ाई लड़ के यदि यश प्राप्त करना चाहते हो तो अपनी बराबरी वाले या बिना डरे अपने से ताकतवर को चुनौती दो या उसकी चुनौती स्वीकार करो..

मसलन बिना डरे केजरीवाल से चुनौती-चुनौती खेलो - और एक बार फिर केजरीवाल से अड़ो लड़ो भिड़ो.. और एक बार फिर उससे तबियत से पिटो..

और मेरा यकीन करना.. तब जाकर तुम्हारा हमेशा के लिए फड़फड़ाना बंद होगा और तुम्हें कुछ इज़्ज़त की शहादत नसीब होगी.. अन्यथा तो यूं ही अपनी बेइज़्ज़ती कराते-कराते निपट जाओगे..

समझे फोकटी तुर्रमखां बौराए भक्तों !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Saturday 22 September 2018

// चौकीदार चोर है और पत्रकार मक्कार.. आप विचलित हों या ना हों आपकी मर्ज़ी !!..//


पत्रकार : साहेब पप्पू आप को चोर कह रहा है फिर भी आप विचलित क्यों नहीं होते ??..

चोर : ये तो सच्चाई है.. और सच्चाई पर कोई कैसे विचलित हो सकता है ??..

पत्रकार : तो यानि आप मानते हैं कि आप चोर हैं ??..

चोर : लोकतंत्र में जनता जनार्दन होती है.. और ये निर्णय तो अब जनता को ही करना है कि कौन चोर है कौन नहीं !!.. मैं तो अपने आपको चौकीदार मानता हूँ !!..

पत्रकार : पर दरअसल पप्पू तो कह ही रहा है कि चौकीदार ही चोर है.. और आप कह रहे हैं कि आप चौकीदार हैं.. तो फिर चोर तो आप ही हुए ना..

चोर : देखिए यदि चोर चौकीदारी करने लगे तो आप उसे चौकीदार मान लेंगे क्या ??..

पत्रकार : नहीं वो तो चोर ही कहलाएगा..

चोर : तो बस यदि कोई चौकीदार चोरी कर ले तो फिर आप उसे चोर कैसे कह सकते हैं ??.. वो तो चौकीदार ही कहलाएगा ना ??..

पत्रकार : जी हाँ आप की बात में दम तो है.. वो तो चौकीदार ही कहलाएगा !!..   

चोर : बस आप से यही अपेक्षा है कि पप्पू भले ही मुझे चोर कहता रहे पर कम से कम आप तो मुझे चोर ना कहें.. क्योंकि मैं तो आपका चौकीदार ही हूँ..

पत्रकार : पर पप्पू ही नहीं अब तो जनता भी कहने लगी है कि आप चोर हैं !!..

चोर : ऐसा क्या ??.. तो फिर आपने क्यों कहा कि पप्पू मुझे चोर कह रहा है ??.. आप अफवाह क्यों फैला रहे है.. मुद्दों को भटका क्यों रहे हैं.. फ़ोकट शानपत क्यों बघार रहे हैं ??.. कहीं आप पाकिस्तानी एजेंट तो नहीं - कहीं आप देशद्रोही तो नहीं ??..

पत्रकार : नहींsssssssssssssssss!!..

चोर : नहीं ??.. तो फिर आप विचलित क्यों हो रहे हैं - और मक्कारी क्यों कर रहे हैं ??.. कहीं आप मक्कार तो नहीं ??..

पत्रकार : अरे नहीं साहेब जी.. हम तो पत्रकार हैं.. मक्कारी करें भी तो हम मक्कार क्यों कहलाएंगे.. हम तो पत्रकार ही कहलाएंगे ना !!..

चोर : ये हुई ना बात.. तुम तो बहुत समझदार और देशभक्त निकले.. बस इसलिए एक ही मंत्र याद रखना.. विचलित नहीं होना !!.. भारत माता की जय !!..

और भक्त क्या सोचता है :
देखा !!.. आप लाख चिल्लाते रहो - गली गली में शोर है चौकीदार चोर है.. पर हमारे साहब कभी विचलित नहीं होते - उन्हें तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता !!..
और यही खासियत और ख़सलत उन्हें सबसे अलग बनाती है !!.. 

और आम आदमी क्या सोचता है :
चौकीदार चोर है.. पत्रकार मक्कार है.. भक्त भक्ति में लीन है..
इसलिए विचलित होना तो बनता है..

इसलिए मेरा निष्कर्ष !!..

यदि आप विचलित हैं तो आप भक्त नहीं हैं.. और यदि आप भक्त हैं तो आप विचलित हो ही नहीं सकते..
वैसे चौकीदार चोर है और पत्रकार मक्कार है..
अब भी आप विचलित हों या ना हों आपकी मर्ज़ी !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Thursday 20 September 2018

// रिपोर्टिंग पर रोक हटी.. तो अब इंतज़ार करिए गोदी मीडिया की टुच्ची रिपोर्टिंग का.. //


अभी-अभी.. ब्रेकिंग न्यूज़ ब्रेक हुई है कि..

सुप्रीम कोर्ट ने मुज़फ़्फ़रपुर बालिकागृह कांड की मीडिया रिपोर्टिंग पर पटना हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई रोक हटाई !!..

यानि अब टुच्चे नंगों की टुच्चई नंगाई पर मीडिया रिपोर्टिंग कर सकेगा !!..

पर अब एक नया प्रश्न खड़ा हो गया है..
ये गोदी मीडिया ने कौनसी रिपोर्टिंग तब कर ली थी जब रोक नहीं थी ??.. और ये गोदी मीडिया उन अन्य अनन्य मामलों में कौन सी और कैसी रिपोर्टिंग करता रहा है जिन पर रोक कभी थी ही नहीं ??..

अरे जनाब !!.. जब रिपोर्टरों के मालिकों को ही अपराधियों के सरगनाओं या आकाओं को रिपोर्टिंग करनी पड़ती हो तो फिर रिपोर्टर क्या खा के और क्या हग के रिपोर्टिंग करेगा ??..

वैसे यदि सुप्रीम कोर्ट ये कहता है कि रिपोर्टर रिपोर्टिंग कर सकते हैं तो कसम से कुछ ऐसा एहसास होता है जैसे कि देश में न्यायपालिका को स्वतंत्रता के साथ कार्य करने की छूट मिल गई हो..

मसलन पटना हाईकोर्ट को छूट थी कि वो मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा देता और सुप्रीम कोर्ट को छूट है कि वो लगी रोक को हटा लेता..

बाकी तो आप और हम सब बिना छूट प्राप्त किस्मत के मारे ही हैं जो सब जानते बूझते न्यायालयों के पीछे छुप कर किए जा रहे अन्यायों और कारगुजारियों को कानून व्यवस्था में बंधे-बंधे केवल देखने के लिए मजबूर ही हैं.. क्योंकि सत्ता गलत हाथों में पहुँच चुकी है.. जिसने कम से कम मीडिया को तो अपनी गोदी में बैठा ही लिया है.. और जनता को सहजता और सरलता के साथ तथ्यों को जानने के अधिकार और सुविधाओं से वंचित कर दिया है..

वैसे सभ्यता और औपचारिकता के नाते मैं सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद दे देता हूँ.. 

तो अब इंतज़ार करिए.. मुज़फ़्फ़रपुर बालिकागृह कांड में लगाए जाने वाले अगले दांवपेचों का और अपराध में लिप्त सत्ताधारियों के बारे में गोदी मीडिया की "रिपोर्टिंग" का.. जिसके तहत शायद ये भी रिपोर्ट कर दिया जाए कि पीड़ित बालिकाओं का क्या दोष था.. क्योंकि अब तो रिपोर्टिंग करने से सुप्रीम कोर्ट ने छूट जो दे दी है.. है ना ??..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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// बजाय ३ दिन बोलने के ३ मिनिट में बस इतना बोल देते.. अब मोदी हटाओ !!.. ..//


३ दिन अनवरत कहते-कहते मोहन भागवत ने क्या-क्या बेहतरीन कहा.. ..

कांग्रेस का आजादी के आंदोलन में रहा बड़ा योगदान..
कांग्रेस से जुड़े रहे कई नेताओं का चरित्र देता है प्रेरणा..
कांग्रेस विषयक, संघ, 'युक्त' पर जोर देता है 'मुक्त' पर नहीं..
आरक्षण जारी रहना चाहिए, आरक्षण वाले ही खात्मे पर करेंगे फैसला..
आरक्षण समस्या नहीं है. आरक्षण पर राजनीति समस्या है..
गौरक्षा के मामले पर कानून हाथ में लेना गलत है, गुनाह है..
जाति अव्यवस्था है, इसे भगाने का प्रयास करना चाहिए..
अत्याचार दूर करने के लिए बने एससी/एसटी कानून को ठीक से लागू करना चाहिए..
हर समलैंगिक व्यक्ति समाज का अंग है, उनकी व्यवस्था समाज को करनी चाहिए..
अपने समाज के जो अल्पसंख्यक बंधु बिखर गए हैं उन्हें जोड़ना है..
इस देश में मुसलमान नहीं रहेंगे, तो ये हिंदुत्व नहीं होगा, हम एक देश की संतान हैं..
'बंच ऑफ़ थॉट्स' में कहीं गई वो बातें परिस्थितिवश बोली गईं, वो शाश्वत नहीं..
धारा 370 और 35ए नहीं रहने चाहिए..
विविधता में एकता का विचार ही मूल बिंदु है और इसलिये अपनी-अपनी विविधता को बनाए रखें और दूसरे की विविधता को स्वीकार करें..
भाजपा या अन्य किसी संगठन पर संघ रिमोट कण्ट्रोल से नियंत्रण नहीं करता..
श्‍मशान क़ब्रिस्तान की बातें तब होती हैं जब सिर्फ़ सत्ता के लिए राजनीति होती है, जो नहीं होनी चाहिए.. जो राजनीति में हैं वे विचार करें.. .. ..

मेरी प्रतिक्रिया..

मुझे लगता है मोहन भागवत ने अपनी करनी के विरुद्ध अपनी कथनी से मुझे खुश कर दिया.. क्योंकि बस यही सब कुछ तो मैं और बुद्धिजीवी और इंसानियत के धनी देशवासी भी कहते आए हैं.. और लगभग इन्हीं शब्दों में या इन से भी कहीं बेहतर और विस्तृत शब्दों वाक्यों और पृष्ठों में अनवरत कहते आए हैं - लिखते भी आए हैं..

बस कमी रह गई तो शायद इतनी बड़ीवाली कि काश भागवत जी और संघ ने स्वयं ही इन सभी बातों का अनुसरण किया होता या करने का प्रयास किया होता या करवाया होता..

और इतना सब कुछ बेहतरीन कहने के बावजूद भी भागवत जी ने मजबूरी में जो नहीं कहा वो मैं जोड़ देता हूँ..
ये जो मोदी है ना इसने उपरोक्त एक भी बात का अभी तक लेशमात्र भी अनुसरण नहीं किया.. बल्कि सभी बातों का उलट ही किया है..

इसलिए यदि मोहन भगवत जी ३ दिन लगाकर इतना सबकुछ कहने के बजाय ३ मिनिट में केवल इतना ही कह देते कि.. ये मोदी को हटा डालो क्योंकि ये संघ की ताजा-ताजा बदली-बदली विचारधारा के विरुद्ध कार्य करता जा रहा है.. ये नाकारा है.. और इससे संघ पार्टी और देश को बहुत ज्यादा नुक्सान हो रहा है.. तो शायद बेहतरीन होता !!..

वैसे एक बात और..
मेरा आंकलन यही है कि मोहन भागवत जी ने मन मसोस दिमाग लगा दबी जुबान यही कहा है कि.. बस अब मोदी और नहीं !!..

और मुझे तो संघ इस बात को लेकर चिंतित और क्रियाशील भी दिख रहा है.. क्योंकि जैसा मैने पहले भी कहा था.. संघ ये समझ चुका है कि असफलता का पर्याय बन चुका ये फेंकू मोदी खुद तो डूबेगा ही भाजपा और संघ को भी ले डूबेगा..

और भागवत और मोदी में यही अंतर है.. भागवत में अक्ल और समझ भी है..
और संघ और भाजपा में भी अंतर ये है कि.. संघ के पास मोदी से बेहतर मोदी के अनेक विकल्प होंगे.. पर भाजपा के पास ढूंढें से भी कोई विकल्प नहीं है - शायद सिवाय अमित शाह के..

और इसलिए संघ को अनवरत ये कहते हुए कि वो किसी भी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं करता.. राजनीतिक हस्तक्षेप करना पड़ गया है..

और इसलिए भक्तों को समझाना चाहूंगा कि ये सब कुछ संघ का 'हस्तक्षेप' भी है और 'लत्ताक्षेप' भी - और लातों के भूतों को ये बात समझ आ जानी चाहिए..
और समझ वाले बिरले भक्तों को ये बात समझ पड़ चुकी है.. शर्तिया !!.. कोई शक ??..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

// सन २२ तो आने दे इक बार.. उदासी मन काहे को डरे.. ..//


तेरा मोईजी करेंगे बेड़ा पार
उदासी मन काहे को डरे ..

नैया तेरी मोई हवाले
लहरलहर मोई आप सम्हाले
मोई आप ही उठायें तेरा भार
उदासी मन काहे को करे..                        

काबू में मँझधार उसी के
हाथों में पतवार उसी के
तेरी जीत भी तो होती तेरी हार
उदासी मन काहे को करे..

सहज रोजगार मिल जाएगा
१५ लाख भी मिल जाएगा
डोरी सौंप दी थी ना इक बार
उदासी मन काहे को करे..

तू तो 'भक्त' तुझे क्या डर है
पग पग पर मोई ईश्वर है
तू तो मन से करता रह पुकार
उदासी मन काहे को करे..

सन २२ तो आने दे इक बार..
उदासी मन काहे को डरे..

काहे को डरे रे.. काहे को डरे..

बोलो मोई-शाह की जय !!.. 

(जलोटा स्मरण में - हरी ॐ जी की शरण में.. ब्रह्म प्रकाश दुआ.. २०-०९-१८)

Sunday 16 September 2018

// चुनाव आयोग को 'गोदी' से उतरवाने के लिए 'डूसू' को अग्रिम धन्यवाद .. ..//


अभी चुनाव आयोग ने कबूल कर लिया है कि 'डूसू' में ईवीएम उनकी नहीं थीं..
और भक्त ताल ठोक रहे हैं कि 'डूसू' चुनाव में कोई गड़बड़ी नहीं हुई..

यानि तय हुआ कि गड़बड़ी उन्हीं नसीब चमकाने वाली ईवीएम में है जो चुनाव आयोग की हैं..

और चुनाव आयोग गोदी में है..
इसलिए ईवीएम का बोलबाला है..
और ईवीएम का ही तो घोटाला है..

और इसी घोटाले के तारतम्य में एक और बात..
अब तक तो यही बताते थे कि जैसे करेंसी नोटों का कागज़ हर किसी नत्थू के हाथ नहीं लग सकता.. उसी तरह ईवीएम भी चुनाव आयोग के सिवाय किसी और के पास नहीं हो सकती - और यदि किसी के पास ईवीएम बरामद हो जाए तो उस की तो खैर नहीं..

और ईवीएम 'आप' के हाथ लग जाए या उन्हें २ घंटे के लिए भी चुनौती पूर्ती हेतु सौंप दी जाए - तौबा !!.. तौबा !!.. ऐसा तो हो ही नहीं सकता.. क्योंकि फिर तो देश की सुरक्षा और देश का प्रजातंत्र केजरीवाल के रहमोकरम पर खतरे में पड़ जाएगा.. है ना !!..

लेकिन अब लगता है कि 'डूसू' के मामले में एक बार फिर मिलीभगत पूरी बेशर्मी ढीढता बेहयाई के साथ हुई है और दबी जुबान मान ली गई है..
और अब ईवीएम को लेकर बहुत सारे प्रश्न शंकाएं आपत्तियां और चुटकुले या कटाक्ष देश की फ़िज़ा में और भक्तों के मुंह के सामने तैरने जैसे लगे हैं.. जो अंततः ईवीएम पर रोक लग जाने की दिशा में अपना महत्वपूर्ण निर्णायक योगदान देंगे..

और जैसे ही ईवीएम पर रोक लगेगी वैसे ही चुनाव आयोग भी शायद गोदी से उठ अपने पांवों पर भाग खड़े होने पर मज़बूर हो ही जाएगा !!..

इसलिए.. चुनाव आयोग को 'गोदी' से उतरवाने के लिए 'डूसू' को अग्रिम धन्यवाद !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Friday 14 September 2018

तो माल्या भी भगोड़ा नहीं 'विवादित भारतीय' था..


// अब जाकर "अच्छे दिन" आने वाले हैं.. क्योंकि अफलातून प्रधानसेवक जाने वाले हैं..//


मोदी मंत्रिमंडल का कोई भी मंत्री अपनी बात नहीं करता.. और जब देखो तब दूसरे की फटी में टांग अड़ा रहा होता है या दूसरे की फटी में थेगड़ा लगा रहा होता है..  

पेट्रोलियम पर कानून मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस करते है, वित्त पर कपड़ा मंत्री, विदेश पर रक्षा मंत्री और रक्षा मामलों पर वित्त मंत्री.. और छुट्टे विषयों पर जब कभी चौराहे पर छुट्टे पकड़े जाते हैं तो गृहमंत्री बयानबाज़ी कर लेते हैं - जो खुद कानून व्यवस्था की दुर्गति पर बोलने से ऐसे कतराते हैं जैसे आडवाणी अपनी दुर्गति पर बोलने से..
और यदि मामला भाजपाइयों या संघियों की कारगुजारियों का या अपने वालों के भ्रष्टाचार का हो तो फिर तो सब ऐसे मौन हो जाते हैं जैसे बड़बोले प्रधानमंत्री.. जो चुप रहकर भी बेशर्म और शर्मीले होने का भेद समझा जाते हैं..   

और प्रधानमंत्री तो कोई प्रेस कांफ्रेंस भी नहीं करते..
वो तो केवल अपने ज्ञान और अपनी औकात अनुसार एकतरफा अपने मन की बातें करते हैं.. कभी शौच की तो कभी पकोड़ों और नाला गैस की.. या फिर मंगलयान की और सीधे अंतरिक्ष में छोड़ने की.. 

और तो और इनके घटिया प्रवक्ता भी आजकल प्रश्नों के जवाब नहीं दे पाते.. और संघ वाला कहता है मैं भाजपा का प्रवक्ता नहीं और भाजपा वाला कहता है मैं संघ की क्या जानूं.. और चिल्लाने वाले १-२ सरकारी प्रवक्ता तो एंकर की मदद से टीवी पर आकर इतना चिल्लाते और चिल्ल्वाते हैं कि कोई बात ही न हो पाए - जबकि बात करने वाले सरकारी प्रवक्ता आजकल टीवी पर आना ही बंद हो गए हैं.. इसलिए मंत्री ही आते हैं और जिनसे अपनी धुलती नहीं दूसरों की खुजाते रह जाते हैं..

और ये सभी प्रवक्ता प्रश्नों के जवाब में प्रश्न और प्रतिप्रश्न और पुराने प्रश्न और उत्तरित प्रश्न और फ़ोकट प्रश्न और बकवास प्रश्न आदि तो दाग-दूग लेते हैं - पर इनसे पूछे गए प्रश्नों का जवाब नहीं देते.. क्योंकि इनके पास भी राम जी की कृपा से प्रश्न तो बहुतेरे हैं - पर ये सभी आसाराम और राम रहीम और रामपाल और रामदेव की सोहबत के कारण जवाब देने लायक ही नहीं बचे हैं..

और सबसे मजे की बात तो ये है कि इनमें से कोई भी अब "अच्छे दिनों" की बात नहीं करता.. मानों जैसे अब बिना किसी शक-शुबा की संभावनाओं के भक्तों के दिमाग में ठोस ठूस देना चाहते हों कि.. मित्रों !! ना तो अच्छे दिन आने थे ना आए और ना आएँगे !!.. इसलिए अब इस जुमले पर आगे से कोई शिगूफा भी नहीं छेड़े..

जबकि अब अटल बात तो यह बन पड़ी है कि कुछ अच्छे दिन वापस आने की उम्मीदें अब ही जाकर बनी हैं .. क्योंकि अनुत्तरित असंयमित असहज अफलातूनी प्रधानसेवक सेवा से मुक्त होने वाले हैं.. और बुरे दिन जाने वाले हैं..

यानि यदि आपका भक्तों की बेवकूफाना बकवास सुनसुन कर मन भर गया हो तो अब मार्के की एक ही बात भी जान लें..

अब जाकर "अच्छे दिन" आने वाले हैं..
क्योंकि अफलातून प्रधानसेवक जाने वाले हैं..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Thursday 13 September 2018

// जैसे केजरीवाल एक पढ़े-लिखे शहरी हैं.. तो वो अनपढ़ गँवार नहीं हुए क्या ??.. //


इस बार एक बड़बोले कोंग्रेसी ने मोदी को अनपढ़ और गँवार कह दिया है..

और भक्त छुई-मुई हुए जा रहे हैं.. गुस्सा कर रहे हैं.. बौखला रहे हैं.. बुरा मान रहे हैं.. फोकट दिल पर ठेस लगा रहे हैं..  जैसे कि कुछ बिलकुल गलत या अनर्थ कह दिया हो..

अब यदि मोदी अनपढ़ नहीं हैं तो केजरीवाल को रोल नंबर बता दें.. डिग्री घर पहुँचने की सुविधा हो गई है.. बस डिग्री घर पहुँचते ही सबको बता दें..

पर डिग्री हो तो ना.. डिग्री तब हो जब एग्जाम दिए होते.. एग्जाम तब दिए होते जब पढ़ाई लिखाई किए होते.. और पढ़ाई लिखाई किए ही नहीं थे तो - अब अनपढ़ ही तो कहलाओगे ना..

और वैसे भी क्योंकि मैं खुद पढ़ा लिखा हूँ इसलिए मुझे नहीं लगता कि मोदी पढ़े-लिखे हैं.. क्योंकि खाए के गाल नहाए के बाल और पढ़ेलिखे की चाल ढाल अलग से ही समझ आ जाती है..  

और हाँ गंवार का मतलब मालुम है.. कसम से डिक्शनरी देख के बता रहा हूँ - गाँव का रहने वाला..

और मोदी जी तो खुद कह चुके हैं कि वो वडनगर के रहने वाले हैं - और वडनगर शर्तिया एक गाँव है कोई स्मार्ट सिटी तो है नहीं.. तो फिर मोदी को गँवार कह दिया तो क्या गलत कह दिया ??..

अच्छा क्या शहरी कहते तो ठीक रहता ??.. शहरी अनपढ़ ??..

नहीं यार ये शहरी या अर्बन अनपढ़ तो जमता नहीं.. क्योंकि शहरी होते हुए भी यदि कोई अनपढ़ रह जाए तो ये तो फिर गाली जैसा ही लगता है.. अर्बन नक्सली से भी नीच गाली जैसा.. इससे तो फिर गँवार अनपढ़ ज्यादा लॉजिकल और सरल संभावित सा लगता है..

इसलिए मेरी भक्तों को समझाइश है कि पूरे मसले पर किसी समझदार से मार्गदर्शन प्राप्त करें और विमर्श करें कि मोदी अनपढ़ गँवार नहीं हुए क्या ??.. ठीक वैसे ही जैसे अरविन्द केजरीवाल एक पढ़े-लिखे शहरी हैं..

अब हैं तो हैं.. सत्य को कब तक झुठलाओगे..
समझे प्यारे अनपढ़ शहरी और पढ़ेलिखे गँवार भक्तों !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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उसने 'बर्बादी' का नाम 'विकास' रखा है..


// भक्तों के कारनामें !!.. संघ राजनीति में दखल दे सके - इस लायक भी ना छोड़ेंगे !!..//


कुछ कहते थे कि २०१४ हारे तो कांग्रेस ख़त्म हो जाएगी..
अब कुछ कह रहे हैं कि यदि २०१९ मोदी हारे तो भाजपा ख़त्म हो जाएगी..   

और कुछ कह रहे हैं कि २०१९ मोदी जीते तो प्रजातंत्र ख़त्म हो जाएगा..
और कुछ तो यहां तक फेंक दिए हैं कि भाजपा को ५० साल तक कोई हरा ही नहीं पाएगा.. 

और मेरा कहना है कि २०१९ मोदी हारनेवाला है..
५० साल वाला फेंकू जुमला तड़ीपार होने वाला है.. 

परन्तु ना तो कांग्रेस ना भाजपा ना प्रजातंत्र ख़त्म होने वाला है..

ख़त्म होगा तो बस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनीति में बढ़ता दखल और प्रभाव..

कारण ??..
संघ के मक्कारी हिसाब से संघ कभी भी राजनीतिक दखल नहीं करता..
और भक्तों की पूरी कोशिश है कि संघ सर्वोपरि रहे.. उसकी हर बात सही साबित हो..

और जाने अनजाने भक्तों के कारनामें भी इसी दिशा में किए जा रहे दीनदयाली प्रयास जैसे ही हैं..

यानि भक्तों के कारनामें कुछ यूँ ही हैं कि..
संघ राजनीति में दखल दे सके - इस लायक भी ना छोड़ेंगे..
भक्त तो डूबे हैं सनम - संघ को भी ले डूबेंगे..

तो आइए कहें - सबका साथ सबकी आवाज़.. आमीन !! आमीन !! आमीन !! ..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Wednesday 12 September 2018

और कौन-कौन मिला हुआ था ??..


// पिछले ४ साल में क्या हुआ ??.. ..//


परेशानी इस बात की हुई..
तेल में आग लगी डॉलर ७३ का हुआ..

तरस इस बात पर हो आया..
भक्त इस पर भी बेहद खुश हुआ..

पर अफ़सोस तो बस इस पर हुआ..
जो होना था बस वही नहीं हुआ..

और गुस्सा इस बात पर उगल आया..
धर्म जाति का धड़ल्ले से धंधा हुआ..

(ब्रह्म प्रकाश दुआ - १२/०९/१८)

// वाह क्या बंदी है - और क्या घेराबंदी है.. अभी तक सवालों के ही घेरे में ??.. ..//


स्मृति ईरानी ने बताया है कि..
राहुल गांधी हेराल्ड केस में सवालों के घेरे में हैं..

अब इनके बारे में क्या कहें.. ..

स्मृति ईरानी तो सारे घेरे तोड़कर कब से बाहर आ चुकी हैं..
और मोदी तो निःशब्द "शून्य" के घेरे में ही चल रहे हैं..

और शाह और गडकरी और जेटली और नड्डा के अलावा भी कई मंत्रियों और मंत्राणियों के घेरे भी बहुत बढ़ते जा रहे हैं - जिन्हें अपने पेट और अपनी औकात के नीचे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता.. और ये घेरे इनके झुकने में भी बाधक हो चुके हैं..
    
और मुझे तो देश के २ रक्षामंत्री निर्मला और पर्रिकर भी घिरे-घिरे ही दिखते हैं.. बेचारे - घेरे में घुसेड़े लाचारे !!..

इसलिए स्मृति ईरानी को घेरते हुए आज तो कहना ही पड़ेगा कि..

वाह क्या बंदी है - और क्या घेराबंदी है.. अभी तक सवालों के ही घेरे में ??..
हा !! हा !! हा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Tuesday 11 September 2018

// प्रजातंत्र के शेरुओं कुत्तों गधों का विश्लेषण.. और पेट्रोल डीज़ल का चार्ट.. ..//


याद है ना !!.. पद्मावती पद्मावत !!.. ये करणी सेना को हिंदुत्व को ज़िंदा करने या रखने के नाम से किसने और क्यों उकसाया और मोर्चे पर लगाया था ??..
और आज वही करणी सेना भाजपा और भक्तों के विरोध में सड़कों पर उतर चुकी है.. इस बार हिन्दू दलित-हिन्दू सवर्णों के झगडे में हिन्दू सवर्णो के पक्ष में..

और ये सब इसलिए हो पा रहा है कि देश में प्रजातंत्र है.. और इसलिए कुछ भी करने की छूट प्राप्त है.. और कुछ तो भी कहने की भी..

इसलिए ही तो प्रजातंत्र में ताज़ा-ताज़ा उल्लेख शेर और कुत्तों का हुआ है.. और उल्लेख किया है भक्तों के बाप के बाप यानि "दादा" ने.. जिन्होंने अब हिन्दुओं की एकता की वकालत की है और सभी हिन्दुओं को एक रहने की सलाह और समझाइश भी दी है.. और विचित्र दलील ये दी है कि यदि जंगल में शेर अकेला ही चल देगा तो कुत्तों का झुण्ड उस पर हमला कर उसे मार भी सकता है..

बस इसलिए ही कहता हूँ और भक्तों को समझाता हूँ कि शेर या शेरू होने या होने का भ्रम पालने से कुछ नहीं होता.. और हर बार कुत्तों की बात करने से भी कुछ हासिल नहीं होता.. क्योंकि कई बार तो शेरू को गधों से प्रेरणा लेते हुए भी पाया गया है..

इसलिए यदि प्रजातंत्र की बस्ती या जंगल को समग्र रूप से समझना हो तो मेरी बात समझो..
ये जो गधे और कुत्ते वगैरह हैं न ये प्रजातंत्र में बाहुल्य में पाए जाते हैं - जंगलों में भी बस्तियों में भी.. पर प्रजातंत्र के जंगल में कोई शेर वेर नहीं होता.. और कोई राजा वाजा भी नहीं होता.. होता है तो बस कोई सेवक जैसा प्रधानसेवक या चौकीदार टाइप ठोला..

और सबसे अव्वल बात तो यही है कि यदि गधा अपने आपको शेर समझ बैठे तो वो शेर हो नहीं जाता.. उसे तो कुत्ते ही निपटा देते हैं.. और जंगल में ये जो झुण्ड या भीड़ होती है ना वो शेरों की नहीं हुआ करती बल्कि वो तो कुत्तों की ही हुआ करती है जो अकेले में गुर्राते भौंकते हैं और जब एक हो जाते हैं तो कुत्तई पटक मारते हैं..

वैसे गधों के भी अपने झुण्ड रहते ही हैं.. जो भले ही काटने की क्षमता नहीं रखते हों और कुत्तों को निपटाने की औकात भी नहीं.. पर वो ढेंचू ढेंचू की पुरजोर आवाज़ करते रहते हैं.. सरपट दौड़ लगाते रहते हैं.. धूल के गुबार भी उड़ाते रहते हैं..

और इसलिए यदि अब हम जंगल से बाहर निकल बस्ती की बात भी करें तो मेरी समझाइश कुछ यूं बनती है कि..
हर मोर्चे पर हर बार कुत्ते या गधे लगाने से कुछ हासिल नहीं होता.. कभी कहीं गधे तो कभी कहीं कुत्ते लगाने पड़ते हैं.. और कभी कभार घोड़े या सांड भी छोड़ने पड़ते हैं..

और ये जो शेर होता है ना वो जंगल का प्राणी है.. ये इंसानों की बस्तियों में स्वच्छंद विचरण नहीं करता है जैसा कि कुछ गधे कल्पना और वर्णन करते हैं.. और यदि कोई शेर इंसानों के इलाके में घुस भी आए ना तो इंसान उसे गोली मार देते हैं.. या बेहोशी का इंजेक्शन शूट कर पिंजरे में बंद कर ज़ू में गधों कुत्तों बंदरों सूअरों के साथ ही रख देते हैं.. समझे बेवकूफों !!..

और बेवकूफों यह भी समझ लेना कि ये जो कुत्तों के झुण्ड होते हैं न वो तो जंगलों में भी और बस्तियों में भी पाए जाते हैं.. और गधों के झुण्ड भी.. इसलिए बेहतर होगा कि जंगल से बाहर निकल जानवरों जैसे जानवरों की बात करने के बजाय इंसानों की बस्ती के बारे में यथार्थ बातें की जाएं.. बिलकुल इंसानों जैसे - ना कि गधों कुत्तों जैसी..

मसलन यदि पेट्रोल और डीज़ल का कोई चार्ट भी बनाए हैं तो इंसानों जैसा तो बनाओ.. ये गधों की अक्ल के हिसाब का बना फिर शेर शेरू चिल्लाने और कुत्तों जैसे भोंकने से क्या फायदा होगा ??..

अब तो समझे ना.. और यदि नहीं समझे तो बताना कि "दादा" की बात समझ पड़ गई थी क्या ??.. हाहाहाहाहा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Monday 10 September 2018

मोदी सरकार ने कई ऐसे काम किए हैं जो राष्ट्रहित में नहीं थे...


// मोदी क्योंकि "असंभव" ही करते हैं.. इसलिए भाजपा के प्रस्ताव भी गजब "असंभव"..//


कल भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में एक राजनीतिक प्रस्ताव पारित होना बताया गया है.. और अजब गजब गौरतलब बताया गया है कि..

" 2022 तक देश मे ना कोई बेघर होगा, ना आतंकवाद होगा, ना जातिवाद और ना संप्रदायवाद होगा.."

धत्त तेरे की !!.. यानि.. राजनीतिक प्रस्ताव अनुसार तो अभी २०१९ तक राजनीति ही हुई है - काम तो कुछ हुआ नहीं.. और तो और अब तो घोषणा भी कर दी गई है कि २०१९ तक तो कुछ होने जाने वाला भी नहीं..

और इसलिए मैं सोच रहा था कि क्योंकि मैं हमेशा सही सोचता हूँ इसलिए..
२०१९ तक तो मोदी की ही छुट्टी हो जाएगी.. तो फिर ये इतने सारे काम जो मोदी ५ साल में नहीं कर सके - तब उनसे बड़ा वाला और कौनसा फेंकू आएगा जो इन कामों को केवल ३ साल में २०२२ तक पूरा कर लेगा ??.. यानि.. असंभव !!.. असंभव !!.. असंभव !!..

तो प्रश्न उठता है कि फिर ऐसी बकवास संभव क्यों ??.. कारण मैं बताता हूँ..

कारण ये है कि जो भक्त हैं ना इनको केवल यही विश्वास है कि मोदी केवल और केवल असंभव लगने जैसे ही कार्य कर सकते हैं.. और जो कार्य संभव हों वो उन्हें छोटेमोटे लगते हैं इसलिए वो करते ही नहीं.. और इसलिए वो उचित व्यावहारिक अपेक्षित कार्य करते ही नहीं.. और प्रायः फेंकते रहते हैं..

मसलन.. भक्तों को लगता है कि मोदी २०१९ में एक बार फिर ऐन-केन-प्रकारेण असंभव चुनाव जीत जाएंगे और फिर २०२२ तक सारे असंभव काम निपटा देंगे..
और भक्तों को ऐसा असंभव इसलिए संभव लगता है क्योंकि इसकी एक गौरतलब पृष्ठभूमि जो है..

मसलन गौर फरमाएं कि.. ५००-६०० करोड़ में तो राफेल कोई भी खरीद सकता था.. पर थी किसी भारत मैय्या के लल्लू लल्ला में हिम्मत जो १६००-१७०० करोड़ में खरीद कर बतलाता ??..

अब लाखों  करोड़ों अरबों भवन तो कोई भी बनवा सकता था.. पर थी किसी में हिम्मत कि वो लाखों भवनों में शौचालय बनवा कर भारत के नवनिर्माण की ताल ठोक पाता ??..

अब जेब में पैसे हों तो तो कोई भी बैंकों में खाते खुलवा सकता था.. पर खाली पीली बिना किसी पैसे-लत्ते के फोकटिया खाते बैंको से खुलवाने की जबरदस्ती और कौन कर सकता था ??..

अब जब गरीबों के घर में खाने के लाले पड़े हों तो थी किसी में इतनी धूर्तता जो उनको बहला फुसलाकर गैस कनेक्शन टिका गैस टंकियों का धंधा कर मारे ??..

अब चोर डाकुओं को तो कोई भी पकड़वा जेल भिजवा सकता था.. पर थी किसी में इतनी हिम्मत कि चोट्टों को राज्यसभा सांसद बनवा फिर बैंको से करोड़ों रूपए दिलवा फिर देश से बाहर भिजवा करोड़ों का घपला कर सके ??..

और क्या किसी ने इतना अजीबोगरीब सोचा भी होगा कि १००० का नोट विलोपित कर दो और २००० का चला दो - और चलने दो ??..

बस इसलिए ही आज फिर भक्तों की मानसिक स्थिति को देखते हुए भाजपा की कार्यकारिणी ने जो प्रस्ताव पारित किया है वो ऐसा ही है कि जो १००% असंभव हो और १०००% असंभव लगे भी.. ताकि भक्तों को विश्वास हो जाए कि मोदी प्रस्ताव में बघारी गई सभी असंभव बातें संभव कर देंगे..

इसलिए मैं कहता नहीं था कि मोदी भयंकर चालाक और भक्त निहायत बेवकूफ हैं..

तो क्या अब भी कोई शक की गुंजाइश ??.. नहीं ना !!..
मार दिया ना पकोड़ेवाले ने !!.. हाहाहाहा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Sunday 9 September 2018

// ये बेचारे !!.. "दिल्ली के नक्सलियों" के मारे !!.. ..//


तौबा तौबा !!..
दिल्ली के अर्बन नक्सलियों का काम देखने विदेश से इंटरनेशनल नक्सली दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक पहुंचे.. और देशभक्तों को तरजीह दिए बिना खूब तारीफ कर चले भी गए..

और सरकार भक्त और देशभक्त सब असहाय निष्क्रिय बने रह गए.. और बेचारे कुढ़ते सड़ते भी रह गए !!.. और "उफ़्फ़" तक ना कर सकने की असीम पीड़ा भी सहते रह गए !!..

ऐसे ही चलता रहा तो दिल्ली सरकार के बाद भारत सरकार पर भी नक्सलियों का कब्ज़ा हो जाएगा !!..
क्यों रूरल भक्तों क्या कहते हो ??..

अरे ये समस्त किस्म के भक्त अब कुछ कहने लायक ही कहाँ बचे हैं बेचारे.. क्योंकि विदेशी तो छोडो - कल तो देशी भी सामने से पिछवाड़े घातक वार कर गए.. और ये एक बार फिर बने रहे असहाय निष्क्रिय - बोले तो - खामोश !!..

जी हाँ कल ही की तो बात है..
प्रदेश की लिलिपुट सरकार देशभक्तों की.. केंद्र सरकार अंधदेशभक्तों की.. और जगह नोएडा का अर्बन इलाका.. और सभा थी दिल्ली के नक्सलियों की.. और वहां पहुंचे देशभक्तों की सर्टिफाइड पार्टी के दो चुने हुए चुनिंदा सांसद.. और वो भी डेरिंग डैशिंग डायनामिक ख्यात नक्सली की प्रशंसा कर आए - और सरकार की भूरी-भूरी आलोचना भी - यानि मानों लपेट-लपेट कर लट्ठ जूते सब कुछ टिका आए !!..

और भक्त फिर एक बार शर्माए लजाए से सन्न !!.. जैसे मानों कि किसी ने उसी चर्चित चौराहे पर इज़्ज़त आबरू ही लूट ली हो.. जैसे कि दिन-दहाड़े दल-दल लिंचिंग हो गई हो !!..

और मालुम है सरकार और भक्तों की ऐसी दुर्गति क्यों होती रहती है ??..
क्योंकि इनकी इज़्ज़त बची ही कहाँ है.. बेचारे - "दिल्ली के नक्सलियों" के मारे !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Saturday 8 September 2018

// तो भक्तों बताओ - "नीच" किसको बोला जाए ??.. बहुत जोर से इच्छा हो रही है.. //


तेल के भाव रिकॉर्ड ऊंचे..
और रुपैय्या धड़ाम नीचे..
और मोदी और मोदी सरकार हर मोर्चे पर निर्लज्ज हो नाकाम..
और २०१३-१४ के ढेर सारे वीडियो आज टीवी और सोशल मीडिया पर बार-बार दिखाए जा रहे हैं.. जिनमें तब के डायलॉग और गालियों और बयानों को बार-बार दिखाया जाकर मेरी यादों को ताज़ा किया जाकर मुझे झंझोड़ा जा रहा है और गुस्सा दिलाया जा रहा है.. और विशेषकर तब के पीछे से लम्बे बाल वाले मोदी के एक-एक शब्द मेरे संवेदनशील दिल दिमाग को बाण जैसे चुभ रहे हैं..

तो भक्तो तुम्हे तुम्हारे साहब की कसम - दिल से बताओ कि..
अब सरकार को तो "नीच" कह अपना मन हलका कर लूँ ना ??..

ऐसा मैं इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि जनता को पेट्रोल डीज़ल और रसोई गैस के भावों से और महंगाई से और देश में फैलाए झगड़े टंटों से और देश की हर स्तर पर गिरती साख और दयनीय हो रही स्थिति से बहुत कष्ट हो रहा है.. और मैं बहुत ही परेशान हूँ - दुखी हूँ - खिन्न हूँ - संतप्त हूँ - चिंतित हूँ - गुस्से में हूँ..

और सरकार आज भी दलित-सवर्णों के मुद्दे पर कोई बीच का रास्ता निकालने में - या फिर राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा पर कपड़े फाड़ने - या राम मंदिर के निर्माण पर बयान दे देकर लोगों को भड़काने - या फिर कांग्रेस और विरोधियों और आमजन तक को भी गालियां देने - या फिर मोदी का झूठा घटिया प्रचार करने कराने और चुनावी रणनीतियां बनाने में - या फिर कुछ ना मिले तो हिन्दू-मुसलमान करने में ही व्यस्त है..

और कभी कभार बीच-बीच में मौका ताड़ शौचालय जनधन उज्जवला या मुद्रा लोन आदि पर अपने गंदे हाथों से अपनी जख्मी गंदी मैली पीठ ठोंक लेती है.. और हाँ वो 'नीम कोटेड यूरिया' और सर्जिकल स्ट्राइक की विश्वस्तरीय धाँसू नायाब उपलब्धि पर भी.. और फिर लगे हाथ किसानों के लिए एमएसपी और जवानों के 'वन रैंक वन पेंशन' पर झूठ भी बोल लेती है..

पर मजाल है जो मूल मुद्दों पर भी कोई सार्थक बात कर ले ??.. या फिर व्यापम और राफेल पर ही सार्थक बोल सके.. ना !!.. बिलकुल नहीं !!..

और इसलिए मुझे लगता है कि सरकार "नीचता" पर तो उतर ही आई है..

पर भक्तों यदि तुमको लगता है कि पूरी सरकार दोषी नहीं है.. मसलम तुमको स्मृति ईरानी मासूम या गडकरी कर्मठ या राजनाथ अनभिज्ञ या जेटली बीमार या सुषमा फुर्सती या रविशंकर लाचार या निर्मला डरी हुई लगती हों - तो ठीक है.. मैं पूरी सरकार को "नीच" नहीं मानता..

पर यदि पूरी सरकार "नीच" नहीं तो फिर तो १८ घंटे काम करने वाले और सरकार के सभी सफलताओं असफलताओं के जवाबदार - और सरकार में एक और एकमात्र कर्ताधर्ता मोदी को "नीच" कह लूँ ??..

अब ये मत कह देना कि नहीं !!.. ना मोदी को न मोदी सरकार को "नीच" बोला जाए !!..
क्योंकि मुझे किसी ना किसी जवाबदार गुनहगार को "नीच" (जो असंसदीय शब्द भी नहीं है) बोलने की बहुत इच्छा हो रही है - क्योंकि मैं अपने सामने खुल्लमखुल्ला "नीचता" होते देख रहा हूँ..

तो भक्तों आज सारी बात तुम पर छोड़ता हूँ.. बता तो दो कि ये "नीच" कौन ?? और "नीच" किसको बोला जाए - मोदी को या मोदी सरकार को - या मोदी के सलाहकारों को - या मोदी के मित्रों को - या मोदी के भागीदारों को ??.. या फिर "नीच" के अलावा और कौन सा शब्द है जो "नीच" से बेहतर और उपयुक्त माना जाए.. मसलन "टुच्चा" चलेगा ??.. वइसे तो "टुच्चा" "नीच" से हल्का पड़ता है.. और मेरा मन कहता है कि जो मज़ा "नीच" बोलने में आएगा वो "टुच्चा" बोलने में नहीं आएगा.. पर ठीक है आपको जो सही लगे बता देना.. या तुम भी बोल लेना !!.. धन्यवाद !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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Friday 7 September 2018

// बदलाव तो अब आया है.. "विकल्प" के लिए विपक्ष नहीं संघ परेशान हो रहा है.. //


आरक्षण या एससी/एसटी एक्ट पर पहले तो दलितों को खूब तोका गया फिर ठिठोली करी फिर भड़काया फिर दलितों का थोड़ा सा पक्ष ले मारा.. बस फिर क्या था सवर्ण भड़क गए !!..

और अब मोदी को सूझ नहीं पड़ रही है कि क्या किया जाए.. क्योंकि अब तो बैठे-ठाले वो खुद चौतरफा घिर गए हैं.. एक तरफ खड्डा तो दूसरी तरफ कब्र - एक तरफ मित्र मंडली तो दूसरी तरफ हिन्दू पप्पू - एक तरफ शत्रुघन तो दूसरी तरफ शत्रुटन्न केजरी.. एक तरफ नाराज़ वोटर और चुनाव तो दूसरी तरफ मातृ संस्था संघ और प्रधानमंत्री का पद.. यानि जिधर देखो उधर उहापोह की विकट स्थितियां !!..

और क्योंकि अब नाराज़ वोटर दिन-ब-दिन और नाराज़ हुए जा रहे हैं - और चुनाव छाती से ऊपर सर पर आ रहे हैं - और संघ भी हालात भांप कर असहज होता दिख रहा है - तो प्रधानमंत्री का पद तो जाता ही दिख रहा है..

पर अब तक जो जहान सोच रहा था और कह रहा था - और जो भक्त उछाल रहे थे और जो मीडिया पर भुंकवाया जा रहा था - लगता है संघ के माथे भी वही मुद्दा आ चिपका पड़ा है कि - मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी का "विकल्प" क्या ??.. यानि सबसे बड़ा केवल एक शब्द का प्रश्न ही यही आन फंसा है कि.. विकल्प ?? विकल्प ?? विकल्प ??..

और अब मोदी का "विकल्प" ढूंढना भी तो आसान नहीं है क्योंकि जिस क्वालिटी के बचे-खुचे भक्त मोदी के हैं ना - वैसे तो संसार में किसी के नहीं हैं.. बोले तो राम के भी नहीं होंगे..

यानि मित्रों !!.. अब जाकर पेंच फंस गया है - और "विकल्प" पर ही फंस गया है !!..

बस थोड़ा बदलाव ये आया है कि अब "विकल्प" के लिए विपक्ष नहीं संघ स्वयं परेशान दिख रहा है !!..

और शायद इसलिए ही संभावित प्रत्याशियों ने भी मैदान में ताल ठोंकना शुरू कर दी है.. मसलन मोदी ने तो कांग्रेस मुक्त भारत का जुमला दिया था.. अब तो कोंग्रेसियों को नंगा करने की बात पर ताल ठोंकी जा रही है.. हाहाहाहा !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Thursday 6 September 2018

ये गंज क्यों ??..


// क्योंकि मैं दलितों और सवर्णों के पक्ष में हूँ.. मैं मोदी के विरोध में हूँ.. ..//


दलित एवं अन्य कई जातियां पिछड़ी पछाडी हुई थीं.. और कई अगड़ी होने के मज़े लेते हुए सवर्ण जातियां थीं.. और संविधान में पिछड़ी जातियों के आरक्षण जैसे प्रावधान थे.. और देश में आरक्षण आदि लागू हुआ था और चल रहा था.. और जब तब राजनीति के चलते इन प्रावधानों में कई झगडे टंटे होते रहे थे.. पर देश में काफी कुछ 'एडजस्टमेंट और सेटलमेंट' होता रहा था.. और शायद स्वाभाविक रूप से कुछ होना शेष भी था..

आज की विषयवस्तु के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बात इतनी हुई कि..
दलितों के पक्ष में एक एससी/एसटी एक्ट लागू था.. पर उसके कुछ प्रावधान किसी को  नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध और आपत्तिजनक लगे - और वो देश के कानून और अपने अधिकारों के तहत सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाने पहुँच गया.. और न्यायालय ने उसकी गुहार न्यायोचित और संवैधानिक पाते हुए एक्ट में कुछ संशोधन कर दिए..

और यहाँ से शुरू हुआ आज का झगड़ा टंटा..
दलितों ने मोदी को आँख दिखाई.. मोदी को चुनाव और कुर्सी दिखाई दी - और अपनी जान का खतरा.. और मोदी ने न्यायालय द्वारा दिए निर्णय को अपनी विशेष फूहड़ दादागिरी वाले स्टाइल में अमान्य करने की ठानी.. और देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने भी अपनी खैर मनाई और मोदी से कुर्सी छीनने के लिए पहली बार मोदी से अपनी सहमति जताई.. और मोदी सरकार ने न्यायालय का निर्णय पलट मारा.. और 'भाजपा का शाहबानो' कर मारा..

बस फिर क्या था.. सवर्णों की सुलग गई.. और सही सुलग गई.. क्योंकि सुलगना तो बनती भी थी..
और फिर जो होना था वो शुरू हो गया है.. यानि आगामी चुनावों तक झगडे टंटे चलेंगे और चलाए जाएंगे.. और कुछ हो कर रहेगा..

तो अब क्या होकर रहेगा ??..
मेरे हिसाब से अब या तो दलित या सवर्णो का वोट या दोनों का वोट मोदी को नहीं मिलेगा.. और इसलिए २०१४ में मिले ३१% वोट में झन्नाट कमी आएगी.. और यदि मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री के पद का चेहरा हुए तो २०१९ में मोदी की झन्नाटेदार हार होगी - नहीं तो भाजपा की हार होगी..

और फिर उसके बाद कुछ न कुछ 'एडजस्टमेंट और सेटलमेंट' हो जाएगा.. देश फिर अपनी चाल चलने लगेगा.. शर्तिया !!..

और इसलिए मैं दलितों और सवर्णों के पक्ष में हूँ.. मैं जनता के पक्ष में हूँ.. मैं देश के पक्ष में हूँ.. मैं न्याय के पक्ष में हूँ.. और मैं इसलिए ही मोदी के विरोध में हूँ.. मैं टुच्चों के विरोध में हूँ.. मैं बेवकूफों के विरोध में हूँ - और इसलिए बेचारे भक्तो के विरोध में भी हूँ ही !!..

और मैं चाहता हूँ कि गोदी मीडिया की ऐसी कि तैसी होती रहे और सोशल मीडिया पर पेलमपेल जारी रहे.. सड़कों पर विरोध जारी रहे.. सत्ता के गलियारों में गालियां जारी रहें.. और सत्तासीन टुच्चों की नींद ऐसे ही हराम होती रहे..

और राजनीति में केजरीवाल जैसे कुछ जानदार शानदार लोगों को मौका अब थोड़ा और शीघ्र मिले और देश तप खप के एक बार फिर शांति और विकास की राह पर चले.. आमीन !!..
!! जय हिन्द !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
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