Saturday 29 December 2018

// १० को फॉरवर्ड कर पूरे देश में फैलाने हेतु फैक्टरियों में तैयार व्हाट्सएप संदेशों बाबत..//


संघियों और भाजपाइयों और भक्तों का दर्दनाक निराशाजनक २०१८ जैसे-जैसे बीतता जा रहा है और २०१९ नज़दीक आते जा रहा है.. वैसे-वैसे घबराहट बढ़ती जा रही है.. हार सन्निकट दिख रही है - अच्छे दिन खिसकते दिख रहे हैं और बुरे दिन आते दिख रहे हैं.. और इसलिए कुछ निराशा है तो कुछ उत्सुकता के साथ गुस्सा है.. और डर तो है ही है..

और बस इन सबकी अभिव्यक्ति के लिए ही आजकल १० लोगों को फॉरवर्ड कर पूरे देश में फैला दिए जाने के आह्वाहन सहित फैक्टरियों में तैयार हुए कई व्हाट्सएप संदेश ऐसे ऐसे लोगों द्वारा फारवर्ड किए जा रहे हैं - जिन्हें शायद स्वयं मौलिक लिखने का शऊर हासिल नहीं - क्योंकि शायद तर्कसंगत बुद्धि भी नहीं - या फिर राजनीति से कभी अरुचि तो कभी बिना समझे निठल्ले बैठे ठाले टांग अड़ाने की बुरी आदत है..

और ये संदेश प्रायः ३ प्रकार के होते हैं.. ..

पहले प्रकार के संदेश तो मोदी वंदना के होते हैं जिन्हे एक युग पुरुष और आज तक का सबसे कर्मठ ईमानदार योग्य नेता बताया जाता है - और ऐसा करते हुए पुराने सभी नेताओं और पार्टियों की दिल मसोस कर और नथुने फुलाकर ढूँढ-ढूंढ बुराइयां की जाती हैं.. इसे आप राजनीतिक श्रेणी में डाल सकते हैं..

दूसरे प्रकार के संदेश वो होते हैं जिन्हें हिन्दू-मुसलमान के परिप्रेक्ष्य में गढ़ा गया होता है.. पर मज़े की बात है कि इस प्रकार के संदेशों में मुसलमानों पर कम ही कहा जाता है पर हिंदुत्व को बीच में ला पटक हिन्दुओं को जबरदस्त धोया जाता है.. मसलन ये कहा जाता है कि हिन्दू हज़ारों सालों से एकजुट नहीं रहे इसलिए ऐसे बदतर हालात हो चले हैं कि हिन्दू खतरे में आ गए हैं - और सदाबहार जयचंदों और विभीषणों का उल्हाना देने के बाद ये समझाने का प्रयास किया जाता है कि हिन्दुओं को एक होना पड़ेगा.. इसे आप धार्मिक सामाजिक श्रेणी में डाल सकते हैं..

और तीसरे प्रकार के संदेशों में राष्ट्रीयता और राष्ट्र प्रेम पर फोकस होता है और ये पेलने की कोशिश होती है कि जो मोदी के विरुद्ध हैं या हिन्दू धर्म की बांग नहीं भरते - वो दोषी ही नहीं राष्ट्रद्रोही हैं.. और ऐसा करते अक्सर भारतीय सेना और पाकिस्तान को भी घसीट लिया जाता है.. इसे आप या तो राष्ट्रीय या बकवास श्रेणी में डाल सकते हैं..

संघियों और भाजपाइयों और भक्तों के ऐसे सभी प्रकार के संदेशों पर मेरी प्रतिक्रिया.. ..

सभी राजनीतिक संदेश ये दर्शाते हैं कि 'मोदी ब्रांड' को अब विज्ञापन के साथ-साथ टेके की जरूरत आन पड़ी है.. क्योंकि अब ये ब्रांड आउट ऑफ़ फैशन हो चला है..

सभी धार्मिक सामाजिक संदेश ये दर्शाते हैं कि.. अब कर्म विहीन मोदी को ईश्वर का ही सहारा है - वरना लोगों ने तो धूल चटा देनी है..

और सभी राष्ट्रीय या बकवास संदेश ये दर्शाते हैं कि.. ये जाहिल लोग जो १० लोगों को फॉरवर्ड कर संदेश को पूरे देश में फैलाने की बात करते हैं - वो ये सोचते हैं कि उन्हें छोड़ बाकी सभी लोग इतने देशप्रेमी नहीं हैं जितने वे स्वयं हैं.. और उनके ही प्रयासों से लोगों में देशप्रेम की भावना जाग्रत होगी..

और इसलिए मेरा निष्कर्ष ये है कि.. इनके कोई भी संदेश कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं.. और ना होंगे !!..
और प्रत्यक्ष को प्रमाण ये है कि इनके हिंदी भाषा में तैयार किए गए संदेश मध्यप्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही लोगों के पल्ले नहीं पड़े.. पूरे देश की बात तो अब स्वप्न ही है.. दिवास्वप्न !!..

और अंततः भक्तों के नाम हमेशा की तरह एक संदेश मेरी तरफ से भी..
लगे रहो भक्तों लगे रहो.. तुम्हारी जमात की भी कोई कमी नहीं है.. आजकल १० ढूंढने जाओ तो १ तो अब भी मोदी मोदी मोदी करता मिल ही जाता है.. समझे !!.. समझ पड़ी हो तो मेरे इस संदेश को किसी को भी फॉरवर्ड मत कर देना.. हा !! हा !! हा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Friday 28 December 2018

// सत्तापक्ष मोदी विकल्प विहीन.. बस है तो एक 'तोड़' संबित या एक 'जुगाड़' स्मृति !!..//


मौसम ठंडा हो चला है.. और माहौल ठंडा-ठंडा सा लग भी रहा है.. ..
एक ओर ईश्वर की खुशनुमा मज़ेदार शीत-शरद देन.. और दूसरी ओर निरंतर चकर-पकर करने वाले भक्तों की मजबूरी की वजह से एक चुप्पी मौन स्तब्धता घबराहट उदासी उबासी का सा ठंडा-ठंडा माहौल..

और वो इसलिए क्योंकि कल तक जो उचक लचक कर विपक्ष को मोदी के विकल्प का नाम बताने की चुनौती दे रहे थे - उन्हें जवाब मिलने लगा है.. और जवाब इतना गर्म है कि भक्त बौखला तो रहे हैं पर बावजूद ठंडे-ठंडे लग रहे हैं - मानों सर्द मौसम में चौराहे पर किसी ने जलते उलाव के पास नंगा कर छोड़ दिया हो..

और भाइयों और बहनों और मित्रों !!.. मोदी के विकल्प का पहला जवाब विपक्ष की बजाय सत्तापक्ष से ही आया है.. और वो नाम है गडकरी - जो कर रहा है भक्तों की किरकिरी..

और किरकिरी इसलिए क्योंकि गडकरी का नाम सामने आते ही देश का हर समझदार समझने लगा है कि प्रधानमंत्री पद के लिए अब मोदी के नाम का तो सवाल ही नहीं उठता.. इसलिए मोदी का विकल्प तो अब अपरिहार्य हो गया है..

और मेरा दावा है कि अभी तो पहला नाम सामने आया है गडकरी - कल कोई सुषमा का नाम भी लेगा पर अनमने मन से - फिर अरुण जेटली का भी नाम आएगा जो आते ही कूड़ेदान में फिका जाएगा - और फिर नाम आएगा अमित शाह का जो धिक्कार दिया जाएगा !!.. और फिर योगी का नाम भी उछाला जाएगा जो उछलते ही धड़ाम से गिर भी जाएगा !!..

तो क्या फिर सुरेश प्रभु अनुपम खेर या रामदेव या आडवाणी या फिर राजनाथ को प्रधानमंत्री पद का दावेदार पेश किया जाएगा ??.. हा !! हा !! हा !! .. नहीं ना !!

यानि मेरे अनुभव की बातों का निचोड़ ये निकला कि प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी अब कोई विकल्प नहीं - और सत्तापक्ष के पास मोदी का कोई विकल्प नहीं !!..
पर क्या कोई तोड़ भी नहीं ????..

और मेरे हिसाब से मोदी का विकल्प कोई हो या ना हो - मोदी का एक 'तोड़' तो जरूर है.. और वो है संबित पात्रा उर्फ़ संदीप पात्रा !!.. क्योंकि तोड़ने मरोड़ने में इस नगीने का कोई सानी नहीं है - और ये ठीकठाक झूठ भी बोल लेता है - जोरदार आवाज में बोल लेता है - और लंबी-लंबी भी छोड़ लेता है.. और शायद मोदी से अधिक पॉपुलर भी है.. और यकीनन मोदी और मोदी भक्तों के लिए हमेशा से संकट मोचक भी रहा है.. और ये हिन्दू भी है.. और ये हिन्दू-हिंदुत्व के घालमेल में भी निपुण है..

परन्तु एक ओर विकल्प के आभाव में और दूसरी ओर 'तोड़' के स्वयं ना करने पर या मोदी-शाह द्वारा स्वार्थवश अस्वीकार्य कर देने पर - एक 'जुगाड़' भी हो सकती है.. स्मृति ईरानी !!.. क्योंकि इनमें भी मोदी जैसे कई लक्षण पाए जाते हैं..

अब मर्ज़ी भक्तों की !!.. 'तोड़' पसंद कर लो या 'जुगाड़' से काम चलाना.. समझे !!..

और जहां तक मोदी के बाद अगले प्रधानमंत्री का प्रश्न है तो - शीत लहर के बाद ग्रीष्म ऋतु आएगी - ठंडा पड़ा माहौल गर्माएगा - और २०१९ के चुनावों के बाद विपक्ष के बीच में से ही एक प्रधानमंत्री सबके सामने होगा.. शर्तिया !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Tuesday 25 December 2018

// संकट मोचक के धर्म और जाति से क्या फर्क पड़ता है.. उनके कर्मों पर ध्यान दो.. ..//


हमें बचपन से ही समझाया गया कि जीवन में कर्मों का कितना विशेष महत्व है और व्यक्ति अच्छा या बुरा अपने कर्मों से ही तो बनता है.. इसलिए धर्म और जाति से कुछ नहीं होता.. आदि !!..

पर जैसे जैसे बड़े हुए इस राम के देश में ये समझ आया कि धर्म और जाति का भी अपना ही विशेष महत्व है - क्योंकि ये वोट और सत्ता हथियाने के काम आते हैं - और यहाँ कर्म गौण हो जाते हैं..

और इसलिए आजकल हमारे समाज और देश में धर्म और जाति का महत्त्व स्वाभाविक रूप से बहुत बढ़ गया है.. और इसलिए आजकल लोग तो श्रद्धेय आराध्य भगवान् हनुमान जी के धर्म और जाति के बारे में एक बहुत ही सार्थक बहस कर रहे हैं.. और हर कोई उन्हें अपनी जाति या धर्म से जोड़कर उन्हें सम्मान देने और अपना उल्लू सीधा करने में लगा है..

पर ऐसा करते हुए हनुमान जी के कर्मों पर तो कोई ध्यान ही नहीं दे रहा.. जबकि कर्मों का भी तो अपना महत्त्व होना ही चाहिए..
तो आइए मैं आपका ध्यान कुछ ऐतिहासिक कर्मों की तरफ आकर्षित करना चाहूंगा.. कृपया गौर फरमाएं कि..

जिनने खुद अपनी शादी नहीं की हो - वो दूसरे की बीवी की रक्षा के लिए - तीसरे अपराधी का घर फूंक आए.. क्या कभी ऐसा निष्कपट निःस्वार्थ बहादुर शक्तिशाली संकट-मोचक महान व्यक्तित्व कोई और देखा सुना है ??..

और इसलिए कहता हूँ कि..
किसी भी संकट मोचक के धर्म और जाति से क्या फर्क पड़ता है.. उनके कर्मों पर ध्यान दो !!.. और उनके कर्मों के परिणामों पर ध्यान दो !!..

और हनुमान जी के कर्मों के गौरवान्वित परिणामों पर ध्यान दो कि.. उन्होंने अपने प्रभु राम की धर्मपत्नी अपनी माँ तुल्य सीता मैय्या को राक्षसी रावण के चंगुल से सकुशल छुड़वाने के प्रयास में संकट मोचक बनते हुए पूरी लंका दहन कर इतिहास रच डाला !!.. फिर हनुमान जी कौन सी धर्म जाति के थे - क्या फर्क पड़ता है.. वे तो अपने प्रभु राम के थे.. है ना !!..

संकट मोचक पवनसुत हनुमान जी की जय !!.. जय श्री राम !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Monday 24 December 2018

// हाय मेरी जान !!.. साहेब को अब 'जान का खतरा' है - या 'जाने का खतरा' ??..//


पिछले सालों में शायद जितनी बार भी ये बोला गया होगा कि कन्हैया कुमार देशद्रोही है उतनी ही बार यह भी बोला गया है कि - साहेब की जान को खतरा है !!..

अब ये दोनों बातें मैं साथ-साथ इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि ये ठीक वैसी ही बातें हैं जिनके बारे में आपको बता दूँ - कि ये बातें हैं बातों का क्या ??..

और ये बातें अब इतनी घिस पिट गई हैं कि इन बातों पर अब कोई विशेष बात नहीं होती.. और बुद्धिजीवी लोग इसे सुनते भी नहीं हैं - और समझदार इसे जिस कान से सुनते हैं उसी कान से निकाल देते हैं - और भक्त जिस कान से सुनते हैं दूसरे कान से निकालने लगे हैं..

पर अभी कुछ दिन पहले एक कोई नसीरुद्दीन शाह नाम के ख्याति प्राप्त संजीदा व्यक्ति ने बैठे-ठाले या खड़े-नाले कुछ ऐसे-ऐसे विचार व्यक्त कर मारे कि - अब इस देश में इंसान की जान की कीमत गाय की जान से भी गई गुजरी हो गई है - और उन्हें डर लगता है - उन्हें भी खतरा महसूस होता है..

अब क्योंकि ये व्यक्ति तो अक्ल से भी और शक्ल से भी संजीदा व्यक्ति लग पड़ता है - और क्योंकि शायद इस व्यक्ति की हस्ती साहेब से ज्यादा होगी या फिर साहेब की हस्ती इस व्यक्ति की हस्ती के मुक़ाबले गिर गई होगी - इसलिए इस बात में लोगों को काफी कुछ दम लगा होगा.. और शायद इसलिए ही लोग इस पर बहुत बातें करने लगे हैं..

और बातों बातों में कुछ असहिष्णु बेवकूफों ने तो यहाँ तक कह मारा है कि यदि नसीरुद्दीन शाह को यहाँ डर लगता है और उनकी जान को खतरा है तो वो पाकिस्तान चले जाएं.. और कुछ परोपकारी टाइप बेवकूफों ने तो उनके पाकिस्तान जाने की टिकिट देने की भी घोषणा कर मारी है.. मानो वे जैसे फटी-फटी में भक्तों को संडास के समय साहेब की आवश्यक अनुमति लेने जैसे अनुभव से ओतप्रोत हों - और उन्हें अपने अनुभवों से लगा होगा कि नसीरुद्दीन शाह भी पाकिस्तान तो तब ही जा पाएंगे जब उन्हें टिकिट सहित अनुमति प्राप्त होगी..

और मैं सोच रहा हूँ.. साहेब की जान को खतरा बताने वाले लोग ये भी बोलते रहते हैं कि इस देश में तो सबसे बड़ा खतरा हिन्दुओं को है.. और भक्त हैं कि बस "खतरा" सुनते ही इनके अंदर बैठा राष्ट्रप्रेम का कीड़ा इन्हें काटने लगता है और ये ऐसी ही बातों से आह्लादित और उकसित हो पूरे जोश-खरोश से इस कार्य में जुट जाते हैं कि अब वे ही ऐसे सभी खतरों का सामना या तो स्वयं करेंगे - या स्वयं सेवक संघ से करवाएंगे !!..

मसलन अब जब ५ राज्यों के चुनावों में साहेब की हालत और हालात और पतेली सब पतली हो चली हैं और अब उनके 'जाने का खतरा' भक्तों के खतरनाक चेहरों पर पढ़ा जा सकता है.. तब भक्त सोच रहे हैं कि गलती कहाँ हुई ??.. कहीं साहेब पाकिस्तान चले गए थे इसलिए तो नहीं ??..

या फिर क्योंकि नसीरुद्दीन शाह जैसे संजीदा लोग भी अब खुलकर बोलने लगे हैं - 'जाने का खतरा' इसलिए भी महसूस होने लगा हैं ??..

तो उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में मेरे भक्तु और भक्तों से सरल प्रश्न..

ये साहेब पाकिस्तान क्यों चले गए थे ??.. क्या सिद्धू जैसे किसी बुलावे पर गए थे ??.. या खुद ही चले गए थे ??.. या किसी ने भेजा था ??.. और यदि भेजा था तो क्या तब किसी फोकटी परोपकारी ने उन्हें कोई टिकिट भी भेजा था ??..
और.. .. 
हाय मेरी जान !!.. साहेब को अब 'जान का खतरा' है - या 'जाने का खतरा' ??.. ..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Saturday 22 December 2018

// 'न्याय के मंदिर' बने 'लाचारी के अड्डे'.. और नेताओं के ठिकाने 'न्याय के कोठे' !!....//


सोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी मुठभेड़ प्रकरण में सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया..

पर सभी २२ आरोपियों को बरी करते हुए जज साहब ने पीड़ितों को न्याय ना दिला पाने के कारण खेद भी जताया - और अपनी लाचारी को बताते हुए कहा कि जब सभी गवाह पलट गए या गवाही देने से कतरा गए - और उनके सामने कोई ठोस सबूत ही नहीं रखे गए और पुख्ता प्रकरण ही नहीं बनाया गया - तो फिर न्याय कैसे किया जा सकता था ??..

और शायद यही सबसे बड़ी व्यथा है कि अब इस देश में न्याय भी न्यायाधीशों और न्यायालयों के बस से बाहर हो - गुंडे टुच्चों और नेताओं और उनके ठिकानों में स्थानांतरित हो गया है..

यानि आप न्यायाधीशों को 'लाचार' और नेताओं को 'न्याय के ठेकेदार' कह सकते हैं..
और आप 'न्याय के मंदिरों' यानि न्यायालयों को 'लाचारी के अड्डे' और संसद को या फिर नेताओं के सरकारी एवं निजी ठिकानों को 'न्याय के कोठे' कह सकते हैं..

और इन सबके बीच हम सब न्यायप्रिय लोग अपने आपको बेबस मान सकते हैं..
यानि न्याय 'लाचार' हो गया है और जनता 'बेबस' !!..

और इस बेबसी के होते मुझे बहुत घबराहट सी हो रही है.. लग रहा है कि अब तो बेबसी से निकलकर न्यायहित में अराजक होना पड़ेगा - और जिन से न्याय की उम्मीद थी ऐसे न्यायाधीशों को सशक्त कर सबसे पहले तो उन्हें ही न्याय देने दिलवाने के काबिल बनाना बनवाना होगा..

पर जनाब थोड़ा ठहरिए.. और गौर करिए.. ..
ये ठीक वैसा ही होगा जैसे कि जिस भगवान् ईश्वर से हम रक्षा की आशा रखते हैं उसी ईश्वर भगवान् की रक्षा हेतु हम दंगे फसाद और अनेक अपराध करने के लिए उकसा दिए जाते रहे हैं.. यानि जो धर्म हमारी रक्षा के लिए स्थापित हुए थे आज उसी धर्म की रक्षा की आड़ में खुल्लेआम सभी आपराधिक अनैतिक कार्य किए करवाए जा रहे हैं..

तो विचार कीजिए कि क्या हम सब ईश्वर भगवान् की रक्षा करें ??.. और न्याय मिले इस हेतु न्याय सम्मत कायदे कानून की धज्जियाँ उड़ाएं और अराजक हो जाएं ??..

या फिर थोड़ा सम्भल जाएं - स्थितियों का पुनरावलोकन करें और ये जानें कि अब ऐसी विकट स्थितियां इसलिए आन पड़ी हैं क्योंकि पहले तो नेता गुंडागर्दी और अपराध करने लगे थे - परन्तु अब तो गुंडे अपराधी ही नेता बने जा रहे हैं..

और इसलिए अभी के लिए तो भगवान् और न्यायाधीशों को माफ़ करें या परे रखें.. पहले तो हमें इन गुंडों और अपराधियों को निपटाना होगा - जो आजकल नेतागिरी कर रहे हैं !!.. समझे !!..
समझ गए तो.. "पहचान कौन ??".. ..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Wednesday 19 December 2018

// मोदी इज़्ज़त से जाते हैं या बड़े बेआबरू होकर जाते हैं.. क्या फर्क पड़ता है ??..//


और हौले हौले - लगातार - हवा बदलती रही - हवा के रुख बदलते रहे - हवा ख़राब भी होती रही - और नौबत यहाँ तक आ गई कि मोदी और भक्त स्वयं तथ्यों की स्वीकारोक्ति करने लगे..

जी हाँ !!.. तथ्यों की स्वीकारोक्ति !!.. ..
मसलन मोदी कहते रहे हैं कि.. उनके द्वारा काम करने में बहुत समस्याएं आ रही हैं और पैदा भी की जा रही हैं - लोग उनके पीछे पड़े हैं - उन्हें काम नहीं करने दे रहे - कुछ लोग उन्हें सफल होते नहीं देखना चाहते - उनके रास्ते में कई रोड़े अटकाए जा रहे हैं - उन्हें कुछ लोग गालियां दे रहे हैं - उनके विरुद्ध अनाप शनाप भद्दी-भद्दी बाते बोल रहे हैं - उनके विरुद्ध झूठी बातें फैलाई जा रही हैं - उनके दामन में दाग लग जाएं ऐसे प्रयास हो रहे हैं - उनके विरुद्ध षड्यंत्र हो रहे हैं - उनके माँ बाप उनकी जाति और उनकी गरीबी और फकीरी पर भी अनाप शनाप तंज़ किए जाते रहे हैं.. आदि अनादि..

और भक्तु सहित सभी भक्त हैं कि बेचारे बहुत मायूस से होते जा रहे हैं.. और दिन रात व्हाट्सअप और सोशल मीडिया के सरल उपयोग से चीत्कार जैसा कर कई धाँसू मैसेज बना कर डाल रहे हैं और अथक बिंदास फॉरवार्ड तो कर ही रहे हैं - और शनैः शनैः जाने अनजाने वो भी तथ्यों की ही स्वीकारोक्ति करने लगे हैं.. ..

मसलन भक्तों का भी मानना है कि.. लोग मोदी के बारे में अनाप शनाप बोल रहे हैं - लोग मोदी को समझे ही नहीं - एक मोदी हैं जो १८-१८ घंटे काम कर रहे हैं और लोग हैं कि उन्हें दुत्कार रहे हैं - मोदी की विदेशों में तो तारीफ हो रही है पर स्वयं अपने ही देश में उन्हें भला बुरा कहा जा रहा है - मोदी के विरुद्ध साज़िश हो रही है - मोदी का सब लोग मज़ाक बना रहे हैं - मोदी को गालियां दी जा रही हैं - कुछ लोग तो उन्हें हराकर प्रधानमंत्री पद हासिल करने की जुगाड़ कर रहे हैं.. और अब तो यहां तक कहने लगे हैं कि लोग बेवकूफ हैं जो उन्हें वोट नहीं देकर हरा दिए हैं या हरा रहे हैं या हराने वाले हैं..

और मैं सोच रहा हूँ कि.. सत्य और लाख टके की बात तो बस एक ही है कि.. मोदी जिस जोश खरोश और मान सम्मान और ठपके के साथ २०१४ में लोगों के अभूतपूर्व समर्थन के साथ आए थे - उसके उलट बहुत ही बेआबरू होकर २०१९ में जा रहे हैं..

और गौरतलब है कि ये व्यथा तो अब उपरोक्तानुसार स्वयं मोदी और उनके भक्त भी लिखने बोलने और दिल से मानने भी लगे हैं.. है ना !!..

और मैं ??.. बस "मोदी जा रहे हैं" - इस बात से बहुत संतुष्ट और प्रसन्न हूँ !!..

अब वो इज़्ज़त से जाते हैं या बड़े बेआबरू होकर जाते हैं - मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता..
क्या आपको भी फर्क नहीं पड़ता ??.. या फिर फर्क पड़ता है !!.. .. .. हा !! हा !! हा !! ..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Monday 17 December 2018

// सज्जन कुमार तो बढ़िया निपटे.. बाकी लाखों अपराधियों और टुच्चों का क्या ??..//


वाह !! वाह !! वाह !!.. एक राहत भरी न्यायसंगत खबर आई है !!..
कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा हुई है !!..  

१९८४ दंगो में लगभग २००० निर्दोष सिक्खों की हत्या कर दी गई थी.. उन २००० सिक्खों में से ५ सिक्खों की हत्या का दोषी मानते हुए आज सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है - जिसका ये अभिप्राय भी निकलता है कि अन्य सिक्खों के हत्यारों को सजा मिलना शेष है..
और ये सज्जन कुमार एक कांग्रेसी नेता थे और अभी तक भी बने हुए हैं.. और चूँकि कोर्ट द्वारा ये भी कहा गया है कि सज्जन कुमार को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने के कारण वो हमेशा बचता रहा था.. इसलिए आज पूरी कांग्रेस दोषी करार हुई है..

यहां गौरतलब है कि कोर्ट ने हत्या के मामले में तो सज्जन कुमार को बरी कर दिया है - पर उसे दंगा भड़काने और साजिश रचने का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है..

और इसलिए इस मौके पर मेरी संवेदनशील विवेचना.. ..

आज अपराधी सज्जन कुमार को हुई सजा से साफ़ है कि..
हमारे सभ्य समाज में और न्यायिक प्रावधानों में दंगो और भीड़ की गुंडई और भीड़ को भड़काने उकसाने या फिर साज़िश रचने और भीड़ द्वारा जान-माल की हानि के लिए कोई भी जगह नहीं है.. ये सब संगीन आपराधिक कृत्य हैं..
और भले ही कोई ह्त्या किसी ने अपने हाथों से ना भी करी हो पर हत्या होने के कारण का दोषी होने पर भी उसे उम्र कैद या फांसी तक की सजा हो सकती है..
और हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां अपराधियों और हत्यारों तक को संरक्षण देती आई हैं.. और दे रही हैं..

और हमें ये भी मानना होगा कि हमारे स्वतंत्र देश का इतिहास दंगो और भीड़ द्वारा किए गए जान-माल की हानि के सैंकड़ों-हज़ारों प्रकरणों से पटा पड़ा है.. पर सज़ायाफ्ता लगभग नगण्य हैं..

मसलन यहाँ गुजरात के दंगे भी हुए और भीड़ द्वारा आरक्षण हेतु भी अनेक हिंसक प्रदर्शन और दंगे भी हुए.. और तो और गौहत्या रोकने हेतु भी भीड़ के द्वारा कई दंगे फसाद और हत्याएं भी हुई.. और यहां तक कि कई टुच्चों के भ्रष्टाचार के कारण कई गरीब लोग बीमार और भूखे मृत्यु को प्राप्त हो गए.. पर सजा नगण्य ही रही..

और इसलिए मेरा मानना है कि यदि कोर्ट ने आज बाबरी मस्जिद - राम जन्म भूमि विवाद को त्वरित सुनवाई योग्य ना मानते हुए अच्छा ही किया हो.. पर १९८४ के दंगों का आंशिक न्याय ३४ साल बाद देने के लिए भी कहीं न कहीं अपने आपको भी कटघरे में खड़ा किया हुआ है.. ..

मुझे मालुम है कि कोर्ट के आज के निर्णय से आपराधिक कांग्रेस की बहुत किरकिरी होगी और उसे कई प्रकार से खरी खोटी सुनाई जाएगी - और सुनानी भी चाहिए.. बल्कि यदि कोई सजा का प्रावधान हो तो उसे वो सजा भी सुनाई जानी चाहिए..

पर साथ ही इस देश में दंगे करवाने में पारंगत कई ढेर सारे टुच्चों पर भी कार्यवाही होनी चाहिए.. लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोर्ट द्वारा ऐसी वृहद कार्यवाही की जाएगी या संभव ही हो पाएगी..

इसलिए शायद अब तक बचे हुए और आगे कुकुरमुत्तों जैसे उग रहे और पनप रहे कई राजनीतिक वर्चस्व प्राप्त अपराधियों और कई राजनीतिक संरक्षण प्राप्त टुच्चों का तोड़ तो हम सभ्य समाज के लोगों को ही मिलकर निकालना होगा..
अन्यथा और ३०-३५ साल बाद हमारी औलादें तब तक भुला से दिए गए प्रकरणों में इक्के-दुक्के निर्णय और सुन लेंगी मसलन - अख़लाक़ की हत्या के दोषी को उम्रकैद - या फिर पद्मावती विवाद में या हिसार दंगों के लिए फलां फलां दोषी थे.. या फिर गुजरात दंगो के मुख्य आरोपी की मृत्य उपरान्त प्रकरण समाप्त !!..

इति मेरी आंशिक विवेचना अभी के लिए समाप्त !!..
जय हिन्द !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Saturday 15 December 2018

// मी लार्ड !! आप तो कन्नी काट लिए.. अब आगे न्यायिक प्रक्रिया के विकल्प क्या ??..//


मेरे दिल दिमाग में हमारे न्यायाधीशों के प्रति एक विशेष इज़्ज़त का स्थान रहा - जो बीते वर्षों में और बढ़ता गया जब न्यायालय ने कार्यपालिका के क्षेत्र में उचित आवश्यक दखलंदाज़ी करी और जनहित में कुछ प्रकरणों में विवेचना उपरांत निर्णय दिए.. इनमें से कई मुद्दे तो दीपावली के पटाखों या पर्यावरण या ताजमहल के क्षरण या आधार कार्ड या निजता या किसी विशेष मंदिर या दरगाह में प्रवेश या किसी धर्म विशेष की परम्पराओं या आस्थाओं या व्यवस्थाओं या मान्यताओं आदि जैसे विविध मुद्दों से संबंधित थे..

और मेरी जानकारी अनुसार सभी प्रकरणों में न्यायालय में इस बात पर भी तमाम दलीलों के साथ जिरह हुई थी कि क्या न्यायालय को इन प्रकरणों में दखलंदाज़ी का अधिकार है भी या नहीं ??.. और न्यायालय ने स्वाभाविक रूप से ये मानकर ही कि उसे अधिकार है - निर्णय दिए होंगे !!..

पर राफेल के मामले में मुझे लगता है कि न्यायालय द्वारा ये बोलकर कि चूंकि मामला 'देश की सुरक्षा' से जुड़ा है इसलिए इस मामले में वो सरकार के विरुद्ध उठ रही किसी भी शंका आक्षेप आरोप पर मामले में दखलंदाज़ी नहीं करना चाहता या कर सकता है - मुझे चौंका दिया है..
और मैं सोचने पर मजबूर हूँ कि जब न्यायालय किसी मामले में न्याय करने से कन्नी काट ले तो फिर आगे क्या ??..

और मैं यह भी सोचकर परेशान हूँ कि जब न्यायालय किसी प्रकरण के 'देश की सुरक्षा' से जुड़े होने के कारण न्याय देने से कन्नी काट ले.. तो क्या 'देश की सुरक्षा' को दुश्मनों चोर उचक्कों भ्रष्टाचारियों अपराधियों देशद्रोहियों और स्वार्थी तत्वों के हवाले छोड़ दिया जाना मजबूरी होगा ??..

और यदि ऐसी मजबूरी नहीं तो आगे क्या ??..

और इस संबंध में एक और बात गौरतलब है कि.. अधिकाँश प्रकरणों में कोई भी न्यायालय अपना निर्णय देते हुए यह भी प्रतिपादित करता है कि उसके निर्णय से असहमत कोई भी पक्ष आगे किस प्रकार से अपील कर सकता है - और अधिकांशतः तो इसके लिए अवधि भी निर्धारित कर दी जाती है.. मसलन किसी आरोपी की बेल निरस्त करते हुए वो सामान्यतः ऊपरी न्यायालय में अपील करने हेतु प्रावधान भी निर्णीत कर देता है..

पर राफेल प्रकरण में न्यायालय ने ये तो बता दिया कि वो कुछ नहीं कर सकता - पर आगे क्या किया जा सकता है इस पर शायद पूर्ण मौन ही साध लिया गया.. बिल्कुल प्रधानमंत्री जैसा मौन !!..

और इसलिए मेरा भी 'मी लार्ड' से प्रश्न..
'मी लार्ड' !!.. राफेल मामले में आगे न्यायिक प्रक्रिया के विकल्प क्या ??..

और मेरे जैसे आम नागरिक के लिए जो अपने देश से प्यार ही नहीं करता बल्कि अपने देश की फ़िक्र भी करता रहता है - वो राफेल मामले में आगे देशहित में क्या करे क्या ना करे - या किस बात की प्रतीक्षा करे - या क्या आशा रखे ??..

या फिर क्या मैं भी सड़कों पर उतर कर चिल्लाऊं..
" ये चौकीदार की चोरी है - जेपीसी जरूरी है " !!.. ..

निर्णय 'मी लार्ड' आप पर छोड़ता हूँ !!..
वैसे किसी मित्र के पास कोई उचित विकल्प हो तो बताकर अनुग्रहित करे.. और यदि किसी भक्त के पास कोई अन्य बकवास हो तो वो ना बताकर अनुग्रहित करे !!..

धन्यवाद !!.. इंकलाब ज़िंदाबाद !!.. जय हिन्द !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Friday 14 December 2018

// यदि SC भी लाचार है तो प्रधानमंत्री पद से मोदी को हटाना ही अब एकमात्र विकल्प.. //


निश्चित रूप से जब कोई भी कार्य करना करवाना हो तो उस कार्य के क्रियान्वयन हेतु कर्ता को सुविधा और अधिकार भी देने ही पड़ते हैं.. लेकिन सारी समस्या तब खड़ी होती है जब उन सुविधाओं और अधिकारों का दुरूपयोग हो.. और समस्या तब और विकराल हो जाती है जब अधिकारों को पूर्ण (अब्सोल्युट) मान लिया जाकर उस पर किसी प्रकार का अंकुश ना लगाया जा सके..

उपरोक्त बात को समझने के लिए उदाहरणार्थ..

सरकार को अधिकार है कि वो कुछ भी कितना भी और किसी भी दामों पर खरीद सके - और इसलिए नेताओं की सुख सुविधा और उनके रहने खाने पीने हेतु अरबों की अनाप शनाप खरीदी होती रही है - और इनके लिए इतनी महंगी कारें या हेलीकॉप्टरों की अवाश्यकता की स्वीकृति दी जाती रहीं हैं - और इनके बेतहाशा वेतन पर कोई प्रश्न नहीं उठा सकता !!..
केंद्र को SC/ST एक्ट या शाहबानूँ प्रकरण में अध्यादेश के जरिए न्यायालय के निर्णय को पलटने के अधिकार थे - सो उसने पलट दिए थे.. और शायद इसलिए ही केंद्र सरकार पर नियोजित प्रायोजित दबाव भी बनाया जा रहा है कि वो सबरीमाला प्रकरण में भी न्यायालय के निर्णय को मानने से इंकार करे और राम मंदिर निर्माण पर अपने अधिकारों का उपयोग कर निर्माण का कार्य प्रशस्त करे..
केंद्र सरकार को किसी को भी किसी भी पद पर आसीन करने के अधिकार हैं - मसलन इसलिए ही वो राज्यपाल के पद पर आनंदीबेन कल्याण सिंह किरण बेदी जैसे राजनीति में ओतप्रोत व्यक्तियों को धड़ल्ले से पदासीन करती रही - और संबित पात्रा जैसे व्यक्ति को उन्हें उपकृत करने के लिए ओएनजीसी जैसी संस्थाओं के डायरेक्टर पद पर लाखों के वेतन पर पदासीन करती रही है - या मनचाहे आरबीआई के गवर्नर को भी..
क्यों ??.. क्योंकि ऐसा सबकुछ करना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है..

आज राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी आया है.. और मोटे-मोटे रूप में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकने की बात कही है - और उसके किसी भी निर्णय के पीछे उसकी विश्वसनीयता और बुद्धिमत्ता पर भी कोई टिपण्णी या प्रश्नचिन्ह लगाने से इंकार कर दिया है..

इसके मायने ये हुए कि राहुल गांधी को तो ये कहने का अधिकार है कि "चौकीदार चोर है" पर कोर्ट को इसके पीछे के तथ्यों की पड़ताल करने का या ऐसा कहने का अधिकार नहीं है.. क्योंकि न्यायपालिका के कार्यपालिका में दखलंदाज़ी के अधिकार या तो नहीं हैं - या सीमित हैं..

और देखा जाए तो ये बात तर्कपूर्ण भी है.. क्योंकि यदि जिस व्यक्ति या संस्था पर आप कार्य करने का दायित्व सौंपते हैं तो उसे अधिकारों से वंचित किया जाना भी उपयुक्त या व्यवहारिक नहीं होगा..

और इसलिए ही मेरा मानना है कि जिस किसी को भी आप कार्य करने या करवाने का दायित्व और अधिकार सौंपें - आप पहले उसकी क्षमता और ईमादारी को अच्छी तरह जांच परख लें - अन्यथा आपको निराशा हाथ लगेगी.. और इसलिए मेरा मानना है कि ये आपका सर्वथा सदैव ही कर्तव्य बनता है कि प्रधानमंत्री के असीमित अधिकार प्राप्त पद पर आप ऐसे व्यक्ति को ही बैठाएं जो सभी शंकाओं से ऊपर हो एक जांचा परखा योग्य व्यक्ति ही हो..

या कल्पना करें कि यदि न्यायाधीश भी भ्रष्ट हो जाएं तो क्या कीजिएगा ?? किसके आगे रोना रोइएगा या गुहार लगाइएगा ??..

और इसलिए मेरा मानना है कि जिन्हें लगता है कि राफेल में घोटाला हुआ है - उन्हें मोदी जैसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद से हटाने हेतु लोकतांत्रिक प्रयास और प्रार्थना करते रहना होगी !!..
सत्यमेव जयते !!.. भारत माता की जय !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Wednesday 12 December 2018

// बड़बोले संबित पात्रा की बद्तमीज़ियाँ.. और बड़बोले मोदी की चुप्पियाँ.. ले डूबीं !!.. ..//


५ राज्यों के चुनाव परिणाम आ गए.. और ३ राज्यों में कांग्रेस की जीत ऱाहुल के सर सेहरा बन गई - और ५ राज्यों में निरंक परिणाम मोदी के मत्थे फूट गए..

कांग्रेस की बड़ी कामयाबी के पीछे निश्चित ही ऱाहुल गाँधी का लगन और अक्ल के साथ किया गया परिश्रम और उनकी नैसर्गिक खानदानी राजनीतिक काबलियत रही है..
पर मेरी नज़र में इसके कुछ और कारण भी रहे.. ..

और उन अन्य कारणों में.. .. एक तरफ तो गोदी मीडिया के टीवी चैनल्स पर बड़बोले संबित पात्रा की भयंकर अराजक चिल्लाचोट से पूर्ण - बदतमीज़ी से भरपूर - और बहस करने की भोंडी कला से परिपूर्ण - वो समस्त बहस भी रहीं - जिसमें संबित पात्रा अथक और लगातार ऱाहुल और उनके पूरे खानदान का इरादतन उपहास करते रहे - और अपने विरोधियों को गाली-गलौज तक के स्तर पर उतरकर नीचा दिखाने का ही प्रयास करते रहे..

और दूसरी तरफ देश के प्रधानमंत्री भी अत्यधिक चुनावी रैलियों में अपनी ही भोंडी शैली में भाषणबाज़ी करते हुए - ऱाहुल और उनके खानदान का तो उपहास करते ही रहे - पर एक प्रधानमंत्री से और जनता से जुड़े हर एक मामले पर एक घुन्ने अपराधी जैसे चुप्पी साधे रहे..

और परिणाम ना केवल ये हुआ कि ०-५ के निरंक से सुशोभित हो गए.. अपितु परिणाम यह भी है कि आगे क्या करें इसमें भी बहुत उलझनें खड़ी हो गई हैं.. ..

क्योंकि यदि संबित पात्रा ने बहस करने की अपनी कला में और मोदी ने अपने भाषण देने की कला में परिवर्तन कर पूर्ण शालीनता बरतने का प्रयास किया - तो शायद वो भी भक्तों को रास नहीं आएगा और शायद अब लोगों को आकर्षित भी नहीं करेगा.. क्योंकि उदाहरण के तौर पर - यदि एक दबंग गुर्राता भौंकता कुत्ता एकदम से भौंकना बंदकर कूँ-कूँ मिमियाने लगे तो भी तो अटपटा ही लगेगा ना !!..

और इसलिए भक्तों के नाम भी एक संदेश !!..
हर व्यक्ति को ईश्वर ने एक विशेष गुण से बख्शा होता है - यदि व्यक्ति अपने उस गुण को पहचान उसका सदुपयोग कर ले तो वो कृतार्थ हो जाता है या तर जाता है - पर यदि वो उसी गुण का दुरूपयोग कर बैठता है तो वो बर्बाद हो जाता है.. मसलन यदि ईश्वर ने आपको भक्ति-गुण से नवाज़ा है तो उसका भी सदुपयोग करें - दुरूपयोग कदापि नहीं..
बाकी तो भक्ति भी आपकी और आगे मर्ज़ी भी आपकी !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Monday 10 December 2018

// जुमलेबाजों की "डबल इंजिन" वाली सरकारें अब और नहीं.. कभी नहीं !!.. ..//

जब मोदी २०१४ के पूर्व 'मोदी' का प्रचार कर रहे थे तब वो भाजपा शासित प्रदेशों की रैलियों में कहा करते थे कि आप केंद्र में मेरी सरकार बनवाओगे तो प्रदेश में प्रगति की ट्रेन में "डबल इंजिन" की ताकत लगने से प्रदेश की अपार प्रगति होगी.. और जब वो "डबल इंजिन" बोलते थे तो वो अपने पूरे शरीर का भार अपने हाथों पर डाल ताकत पेलने का अद्भुत एक्शन भी करते थे..

और शायद जनता को उनके एक्शन में ही कुछ दम सा लगता दिखाई पड़ा होगा - इसलिए जनता ने भी मोदी को जिता कई सिंगल इंजिनों से चल रही सरकारों में "डबल इंजिन" लगवा दिया था..

और अब जब केंद्र में मोदी की सरकार है और राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की ही सरकारें हैं - तो भी इन राज्यों की चुनावी रैलियों में मोदी द्वारा ये बताना तो दूर की कौड़ी ही रही कि दूसरा इंजिन लगने का क्या फायदा हुआ - बल्कि इस बार तो वो "डबल इंजिन" बोलते ही नहीं दिखे.. और तो और वो दमखम और दम पेलते अद्भुत एक्शन भी नहीं दिखे..

ऐसा क्यूँ ??..

और यदि आप ये सोच रहे हैं कि मोदी को इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकारें जाने का एहसास हो गया है इसलिए वे अब "डबल इंजिन" की बात नहीं कर रहे हैं तो आप केवल सीमित परिधि वाला अर्ध सत्य ही सोच रहे हैं.. क्योंकि अब जनता बहुत शानी हो गई है - और आगामी पूर्ण सत्य ये है कि.. यदि इन ३ राज्यों में जनता भाजपा को हराकर कांग्रेस को जिता देती है तो फिर तो २०१९ में भी "डबल इंजिन" की भाजपा सरकार कैसे बनेगी ??.. फिर तो कांग्रेस की "डबल इंजिन" वाली सरकार ही संभव हो सकेगी.. है ना ??.. हा !! हा !! हा !!..

बस भक्त इसलिए ही उदास हैं और मोदी इसलिए ही परेशान - क्योंकि अब ना तो कोई दम लग पा रहा है - और ना ही कोई दम बचा है..

और ऐसा इसलिए हो गया है कि पिछले ५४ महीनों में दोनों इंजिन अपनी इच्छा स्वार्थ और सहूलियत के अनुसार मनमानी विपरीत दिशा में अपना दम लगाते हुए ट्रेन के अस्थि पंजर ढीले कर चुके हैं.. और अंततः खुद ही लस्त-पस्त हो चुके हैं.. और अब दोनों की स्टीम नीचे से आवाज़ करती निकल रही है..

और अंत में प्रिय भक्तों के नाम एक संदेश !!.. कोई भी देश या कौम ऊटपटांग उपमाओं या जुमलेबाज़ी के भरोसे प्रगति नहीं कर सकती.. और २०१९ के बाद भाजपा की "डबल इंजिन" वाली एक भी सरकार अस्तित्व में रह नहीं सकती..

और ऐसा मैं इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के पहले एकता के साथ रणनीति बनाने के लिए सभी विपक्षी दलों की महत्वपूर्ण बैठक आज होने जा रही है.. और कृपया गौर करें कि अरविन्द केजरीवाल भी इस मीटिंग में भाग लेने वाले हैं.. समझे !! नहीं समझे ??.. अरे भाई अब कई जेसीबी मशीनें आपकी जमीन खोदने एकसाथ पहुँचने का प्रयास कर रही हैं !!.. सावधान !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Sunday 9 December 2018

// यदि EVM में गड़बड़ी नहीं.. तो भक्तों के अलावा अन्य लोग बेवकूफ भी नहीं.. ..//


आज भक्तु बहुत टेंशन में था.. शायद उसने अन्य टीवी चैनलों के अलावा रिपब्लिक टीवी पर भी भाजपा की हार का आंकलन देख लिया होगा.. और उसने एमपी छत्तीसगढ़ में कांटे की टक्कर के अलावा राजस्थान में अति संभावित हार को भांप लिया होगा..

और टेंशन में भक्तु मेरे पास आता ही है सो आज सुबह-सुबह आ गया..
और बतियाने लगा कि राजस्थान में क्या होगा ??.. और मैने सहज सपाट जवाब दे दिया कि वहां तो कांग्रेस जीत रही है..
और अपने एमपी में क्या होगा ??.. और मैने कह दिया कि यदि EVM वाला लफड़ा इस बार नहीं हुआ होगा तो कांग्रेस शर्तिया जीतेगी - नहीं तो फिर कांटे की टक्कर है !!..

बस फिर क्या था EVM के नाम पर भड़के से भक्तु ने वही सवाल दाग दिया जो भक्त और टीवी एंकर और भाजपाई प्रवक्ता सदैव पूछते रहते हैं कि.. यदि कांग्रेस जीत जाती है और भाजपा हार जाती है तो फिर कम से कम आप ये तो मान लोगे ना कि EVM में कोई गड़बड़ी नहीं है ??..

और मैने भी जवाब में भक्तु से एक प्रतिप्रश्न दाग ही दिया कि.. ..
यदि भाजपा हार जाती है तो फिर कम से कम आप ये तो मान लोगे ना कि देश में भक्तों के अलावा कोई अन्य लोग खालिस स्थाई बेवकूफ नहीं हैं ??.. एक-आध बार भाजपा को चुनने की बेवकूफी हो गई थी पर अब कभी नहीं होगी !!..

और भक्तु अपने सवाल का उत्तर लिए बिना और मेरे सवाल का उत्तर दिए बिना ही बहुत इज़्ज़त से हाथ जोड़ नमस्कार कर चला गया.. और मुझे लगा कि मेरा भक्तु इतना भी बेवकूफ नहीं है.. वो अन्य भक्तों से कुछ तो अलग है - और आजकल तो वो समझने भी लगा है..

माय डिअर भक्तु !!.. सो क्योटो क्यूट !!.. है ना !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Saturday 8 December 2018

// एग्जिट पोल पर गोदी मीडिया के रवैय्ये से भी तय हो रहा है कि.. "चौकीदार चोर है"..//


कई बार ऐसी स्थितियां आ ही जाती हैं कि ना चाहते हुए भी आपको कुल्हाड़ी पर पाँव दे मारने की मजबूरी आन पड़ती है.. और ऐसी ही परिस्थितियों में चुनाव संपन्न होते ही गोदी मीडिया के द्वारा अपने अपने तरीके से और अपनी सहूलियत या अपनी पसंद के अनुसार एग्जिट पोल्स के रिजल्ट्स भी लगे हाथ तत्काल परस दिए गए..

और चाहे अनचाहे एग्जिट पोल्स के रिजल्ट्स भाजपा के विपरीत और कांग्रेस के पक्ष में बताए जा रहे हैं और दिख भी रहे हैं और अनुमानित भी किए जा रहे हैं - और मुझे लगता है कि हैं ही हैं..

और इसलिए गोदी मीडिया की उछल कूद थिरकन नदारद हो गई है और एक सन्नाटे या स्तब्धता जैसा माहौल बन रहा है - और सन्नाटा और स्तब्धता भी कैसी ?? - ठीक भक्तों जैसी !!..

और इसलिए गोदी मीडिया पर जो डिबेट्स चल रही हैं - उसमें राहुल गांधी और मोदी को अलग करने के प्रयास दिख रहे हैं - मानों मीडिया ये कह रहा है कि ये बदलाव ना तो राहुल की स्मार्टनेस की वजह से आता दिख रहा है और ना ही मोदी की मूर्खताओं की वजह से.. इसके तो कई और कारण ही हैं..

और सबसे गौरतलब बात तो ये है कि.. बहुत सारे लोग पक्ष विपक्ष में बहुत सारे मुद्दे और कारण बता रहे हैं कि ऐसा इसलिए और वैसा इसलिए हो रहा है या होगा और ढीमका ढ़माका.. पर गोदी मीडिया में अभी तक किसी ने नहीं कहा कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा इसलिए पिछड़ रही है क्योंकि राहुल की चुनावी रैलियों में राफेल का मुद्दा उठाया जाता रहा और "चौकीदार चोर है" का नारा चिपकू फेविकोल के साथ चिपक गया था.. जिसकी काट मोदी को अंत तक नहीं सूझी !!..

और इसलिए मैं अब आश्वस्त हो गया हूँ कि राफेल में भ्रष्टाचार हुआ है और "चौकीदार चोर है" में सच्चाई दिखती है !!..

अभी एग्जिट पोल्स के रिजल्ट्स पर तो इतनी ही प्रतिक्रिया.. आगामी ११ तारिख को चुनाव के अधिकृत परिणाम आने पर थोड़ी और छिछालेदारी की प्रतीक्षा की जा सकती है.. छिछालेदारी या तो मेरी होगी या फिर मोदी की.. हा !! हा !! धन्यवाद !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Friday 7 December 2018

// 'भानुमति के कुनबे' वाला गप्पू - पप्पू के 'कुनबे' पर इतना हलाकान क्यों हुआ रे ??.. //


और आज अंततः ५ राज्यों के प्रतिष्ठा के चुनाव निपट जाएंगे.. या सही मायने में कहूँ तो 'अप्रतिष्ठा' के चुनाव निपट जाएंगे !!..
और ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जो तथाकथित महारथी चुनाव मैदान में थे उनकी प्रतिष्ठा तो पहले से ही बची नहीं थी - और इस चुनाव में उनकी अप्रतिष्ठा के ही और खुलकर सामने आने और घटने बढ़ने के आसार थे..

और हुआ भी ऐसा ही.. इन चुनावों में हमारे गप्पू जी की अप्रतिष्ठा बहुत उचक गई - और हमारे पप्पू जी की अप्रतिष्ठा थोड़ी कम हुई..

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस चुनाव में एक बार फिर राज्यों से संबंधित मूल मुद्दे अलग हटा दिए गए और चुनाव को केंद्रित कर दिया गया 'गप्पू' और 'पप्पू' के बीच.. पप्पू के कुनबे और गप्पू चौकीदार की चोरी के बीच..

और पप्पू ने इस बार गप्पू को अच्छा धोया और इतना तो धो ही दिया जिसका अनुमान शायद किसी को नहीं था..
और जैसा कि अनुमान था अपने गप्पू जी पप्पू के 'कुनबे' को ही कोसते रहे.. और ये बताने के बजाय कि उनके कुनबे ने क्या किया वो ज्यादातर दूसरों के कुनबों की आलोचना करते रहे..

और शायद जाने अनजाने - स्वतः या चक्रव्यूह में फंसे - या अपनी प्रकृति एवं विकृति अनुरूप - गप्पू जी बस यही गलती कर गए.. 'कुनबों' की बातों में ही उलझ कर रह गए..

क्योंकि ये तो सत्य है कि "कांग्रेस एक कुनबा है" - और सत्य ये भी है कि ये एक खालिस और प्रतिष्ठित कुनबा है - और इसकी शुरुआत मोतीलाल नेहरू या फिर जवाहर लाल नेहरू से होती है जिन्होंने इस देश के लिए जब शानदार कामों की शुरुआत की थी - तब ना तो गप्पू और ना ही पप्पू पैदा हुए थे..

पर ये जो गप्पू है ना - अव्वल तो इसका कोई कुनबा ही नहीं है.. और यदि है तो उसे 'भानुमति का कुनबा' कहा जा सकता है.. क्योंकि इधर उधर से दो चार संघियों के नाम लेते तो हैं पर वो भी प्रतिष्ठा की कसौटी पर सही नहीं उतर पाते.. और ये उनका कोई योगदान भी प्रस्थापित सिद्ध नहीं कर पाते - उलटे जब उनके कारनामों का ज़िक्र भी होने लगता है तो ये अपनी और अपनों की बगले झाँकने लगते हैं..

और इसलिए मुझे लगता है कि इस बार गप्पू जी समझदारों के उस सिद्धांत से भी पटखनी खा गए जो कहता है कि तुम उस विधा या विषय की बहस या प्रतिस्पर्धा में कदापि ना उलझो या उतरो जिसमें तुम बहुत कमज़ोर हो..

और इसलिए अंततः चुनाव के निपटने के साथ ही मेरा प्रश्न भक्तों के लिए.. ..

ये 'भानुमति के कुनबे' वाला गप्पू फुदक उचक पप्पू के 'कुनबे' पर इतना हलाकान क्यों हुआ रे ??..
और जब केंद्र और राज्यों में गप्पू के भानुमति के कुनबे वालों की ही सरकारें थीं.. तो राज्यों के नेतृत्व पर और सामयिक मुद्दों पर और केंद्र पर अपनी उपलब्धियों पर फुदका उचका क्यों नहीं ??.. जबकि फ़ोकट हवा में फुदकना और उचकना तो गप्पू की फितरत में है !!..

और भक्त कुछ कहें इसके पहले एक जवाब मैं ही दे देता हूँ.. गप्पू अबकी बार हवा में उचका फुदका इसलिए नहीं क्योंकि हवा बहुत खराब थी.. हा !! हा !! हा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Thursday 6 December 2018

// 'पुलिस रिफॉर्म्स' चाहिएं ?? तो पहले हानिकारक मोदी जैसों को तो हटाना ही होगा....//


कोई ज़माना था कि पुलिस को देख हमें सुरक्षा की भावना का एहसास हो जाता था.. और शायद अपराधियों को एक डर लगने लगता था - पिटने और जेल जाने का..

फिर कुछ ऐसा हुआ कि हमें पुलिस को देखते ही डर लगने लगा कि अब तो फंसे इनके चंगुल में.. और अपराधियों को पुलिस देख एक सुकून मिलने लगा और याराना भाव की अनुभूति ..
लेकिन तब भी पुलिस का अपना एक रुतबा तो कायम ही था.. है ना !!..

लेकिन देखते ही देखते.. अब तो नौबत यहां तक आ गई है कि.. पुलिस को देखते ही या तो घृणा या गुस्से या बेचारगी या डर या तिरस्कार का एहसास होता है.. और सुरक्षा गई तेल लेने - अच्छे से अच्छा शरीफ थर-थर कांपने लगता है.. और जब उसे पुलिस के चंगुल में फंसने का एहसास हो जाता है तो उसे तड़प कर किसी नेता का ख्याल आता है या फिर रिश्वत देकर छूटने का..

यानि आजकल नेता जो हैं ना - वो हमारी पुलिस से ऊपर हैं पुलिस के माई-बाप हैं और पुलिस को कब्जाए बैठे हैं..

और क्योंकि नेता भ्रष्ट हैं दुष्ट हैं निर्मोही हैं और जुगाड़ू भी.. इसलिए अब पुलिस के सभ्य समाज में और सुचारू व्यवस्था में कोई उपयोगी मायने ही नहीं बचे हैं..

और नौबत यहाँ तक हो आई है कि पुलिसवाला बेचारा नेता के कहे पर चले तो मुश्किल क्योंकि तब वो अपनी पुलिसिया ड्यूटी का निर्वहन नहीं कर पाएगा और ब्लैकमेल हो नेता की तगड़ी गिरफ्त में आ जाएगा.. और यदि उसने नेता के कहे पर चलने से इंकार कर दिया तो वो मारा जाएगा..

और बेचारा 'सुबोध' मारा गया !!!!..

और ये तो अब सामान्य सी बात होने लगी है.. और कल कई और पुलिसवाले मारे जाएंगे.. और सब चुप रह जाएंगे.. ठीक वैसे ही जैसे कई सरकारी कर्मचारी और अधिकारी डर डर के मजबूरन अपराध करते या अपराधियों का साथ देते या अपराध और अपराधियों से मुहं मोड़कर चुपचाप जी रहे हैं - या फिर दिलेरी या कर्तव्यपरायणता दिखाने पर सताए या मार दिए जा रहे हैं..

तो फिर इसका इलाज क्या है ??..

इसका इलाज ये है कि बहुप्रतीक्षित बहुचर्चित वांछित 'पुलिस रिफॉर्म्स' को तत्काल अमली जामा पहनाया जाए.. और इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले तो मोदी जैसे हानिकारक नेता को प्रधानमंत्री पद पर से हटाया जाकर एक शुरुआत की जाए.. और फिर उम्मीद लगाई जाए कि जो अगला आएगा वो ईमानदार कामदार दमदार जानदार शानदार होगा.. क्योंकि उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है और अच्छी शुरुआत के बिना अच्छे अंजाम की कल्पना भी नहीं की जा सकती है..

तो यदि आप चाहते हैं कि पुलिस वैसी ही हो जैसी बीते ज़माने में होती थी या फिर अपेक्षा के अनुरूप पुलिस आपके हक़ में और अपराधियों और घिनौने नेताओं के विरुद्ध रीढ़ की सीधी हड्डी के साथ खड़ी रह सके तो.. तो बस एक छोटी सी शुरआत तो करनी ही पड़ेगी और मोदी को हटाना होगा.. बाकी मर्ज़ी आपकी - और यदि कोई और विकल्प आपके पास हो तो आपको मुबारक !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Wednesday 5 December 2018

// 'हिन्दू'>'हिंदुत्व' की तर्ज़ पर अब..'भारत माता की जय'>'भारत्व मातृत्व की जय' ??..//


वैसे तो हमारे देश 'इंडिया' और 'भारत' का नाम 'हिन्दुस्तान' भी है - और इसलिए ये देश ऑटोमेटिकली और बिना किसी कन्फ्यूज़न के 'हिन्दू' से जुड़ा जुडाया माना जा सकता है - और मैं भी पैदाइश से ही ये 'हिन्दू' और 'हिन्दुस्तान' शब्द सुनता भी आया था और काफी कुछ समझता भी आया था..

पर मोदी सरकार के आने के बाद ये 'हिन्दू' शब्द कुछ ज्यादा ही सुनने में आया - और मेरी समझ में ये नहीं आया कि इसके मायने जब सर्वविदित हैं तो फिर नए सिरे से इसे समझाने की कोशिश या इसे परिभाषित करने की मूर्खता या इस पर नाहक बहस क्यों की जा रही है ??..

पर फिर थोड़ा गौर करने पर 'हिन्दू' पर बहस का कारण समझ आया - जब 'संघ विचारक' नाम से कुछ संघियों को टीवी डिबेट में यह कहते सुना कि 'हिन्दू' का मतलब समझने के लिए पहले आपको ये समझना होगा कि 'हिन्दू' और 'हिन्दुत्व' में अंतर है - और 'हिन्दुत्व' के क्या मायने होते हैं.. और फिर धर्म के नाम पर राजनीति और नंगा नाच भी शुरू हुआ.. और मुझे ये भी पक्का हो गया कि ये जो 'संघ विचारक' हैं वो निहायत संकीर्ण विचारों के होते हुए केवल संघ पर ही विचार कर सकते हैं - इंसानियत पर विचार करना तो उनके बस की बात ही नहीं..

बहरहाल.. पूरे देश को 'हिन्दू-हिंदुत्व' के चक्कर में उलझाते हुए साथ ही साथ राष्ट्रीयता की भी बातें खूब होने लगीं - और इसी दौरान 'वन्दे मातरम्' और 'भारत माता की जय' पर भी गजब की सियासत पेली जाती रही.. और गुरु घंटालों द्वारा घंटों की सारहीन हास्यास्पद टीवी बहस भी होती रही - इस मकसद के साथ कि - 'हिन्दू-हिन्दुत्व' के तड़के के साथ राष्ट्रवाद या राष्ट्रप्रेम के नाम पर छलावे से देश में साम्प्रदायिकता का ज़हर घोला जाए..

और अब जाकर पप्पू ने इस बहस को और गरमा दिया - इसे नया तड़का मारकर..
पप्पू ने कह दिया कि - गप्पू हमेशा हर रैली में 'भारत माता की जय' तो बोलते रहते हैं पर उन्हें 'भारत माता' के मतलब भी नहीं मालुम.. और फिर गप्पू ने भी पलटवार किया और फुस्सी दहाड़ मार दी कि - अब पप्पू हमें बताएंगे 'भारत माता' के मतलब ??.. और 'भारत माता की जय' बोलने के लिए क्या नामदारों से इज़ाज़त लेनी पड़ेगी ?? - आदि - और हमेशा की तरह बकवास से भरपूर अनादि !!..

मेरी प्रतिक्रिया..

गप्पू को पप्पू की बात को समझना होगा और मेरी बात को भी - क्योंकि आखिर गप्पू ने देश की चौकीदारी करने का बीड़ा जो अपने कमज़ोर कांधों पर उठा रखा है..

और मेरी बात संघ के विचारकों की ही तर्ज़ पर कुछ यूँ है कि.. गप्पू चौकीदार जी !!.. 'भारत' को समझने के लिए सबसे पहले 'भारत्व' भी कुछ होता है ये समझना होगा.. और जब 'भारत्व' का मतलब समझ पड़ जाए तो फिर 'माता' और 'मातृत्व' क्या होता है यह भी समझना होगा..

और आप जैसे बिगड़ैल अज्ञानी को समझाने के लिए आज पहला त्वरित पाठ.. ..
भारत-इंडिया-हिन्दुस्तान मतलब हमारा देश मतलब हमारा राष्ट्र यानि 'नेशन'.. और इसलिए जैसे नेशन का 'नॅशनलिस्म' और 'हिन्दू का 'हिन्दुत्व' या 'हिन्दुइस्म' होता है वैसे ही 'भारत' का 'भारत्व' हो जाएगा.. और जिस दिन तुम्हें ये 'भारत्व' या 'नॅशनलिस्म' या 'राष्ट्रवाद' का मतलब समझ पड़ जाए - बस उसी दिन इस देश की किसी भी माँ के पास - जिसने अपना बेटा सांप्रदायिक दंगो की भेंट चढ़ते देखा हो - जाकर बैठ जाना.. शायद तुम्हें 'माता' और 'मातृत्व' का सही ज्ञान भी मिल जाए !!..

और ज्ञान प्राप्ति होते ही जय जय चिल्लाना जयकारे लगाना..
'भारत माता की जय' - 'भारत्व मातृत्व की जय' - और इसका मतलब 'संघ विचारकों' को भी समझा देना.. ' समझे गप्पू जी !!..

(टीप : यह पूरा बकवास लेख - देश में हो रही पूर्ण बकवास पर ही आधारित है)

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Tuesday 4 December 2018

// 'शहीद सुबोध' को श्रद्धांजलि देते समय 'अख़लाक़' को भी याद कर लीजिएगा !!.. ..//


देश ने पिछले दिनों देखा कि गौहत्या का मुद्दा कई इंसानों की हत्या का कारण बना.. पर ना तो गौहत्याएं रुकीं और ना ही इंसानों की हत्याएं..

और अभी फिर बुलंदशहर में एक पुलिस इंस्पेक्टर की भी हिंसक भीड़ ने हत्या कर दी.. और शायद इस ५६ इंची नाकारा सरकार के रहते - और शायद हो सकता है उसके बाद भी काफी समय तक - अब उन्हीं शर्मनाक कारणों से ऐसी ही हत्याएं होती रहेंगी..

ऐसा क्यों ??..

ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे लगता है ऐसा ५६ इंची नाकारा सरकार के संरक्षण में एक सोची समझी चाल के तहत ही शुरू किया गया था.. और भीड़ के उन्माद और दिमाग के दिवालियेपन का फायदा उठा भीड़ को उकसा कर ही ये सब वहशियाना हरकतों को अंजाम दिया या दिलवाया गया था..

और मेरी नज़र में भीड़ की याददाश्त तो बहुत कम और कमजोर रहती है - पर भीड़ की आदत बहुत पक्की सी हो जाती है..

और नतीजन.. योगी जब राजस्थान में हनुमान जी की जाति की विवेचना करते हुए चुनावी छल्लों में लिप्त अपना सरकारी काम करते हुए सदैव की तरह अपने उत्तरदायित्वों के तथाकथित निर्वहन करने का ढोंग कर रहे थे - शायद तब ही उनके तथाकथित उज्जवल 'उत्तरप्रदेस' के बुलंदशहर में सुबोध नामक एक पुलिस इंस्पेक्टर - जो गौहत्या की ही एक वारदात विषयक अपनी ड्यूटी निभाने के अपने उत्तरदायित्वों का ईमानदारी और बहादुरी से निर्वहन कर रहे थे - एक उग्र सांप्रदायिक अंधों की भीड़ के हिस्से बने कुछ दंगाई टाइप की औलादों द्वारा शहीद किए जा रहे थे..

और मुझे लगता है कि भीड़ के कुछ हैवानों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा होगा.. पर कुछ बिगड़ैल आदतों और धार्मिक चश्मे से हर घटना को देखने वालों को एहसास हो रहा होगा कि पहले तो मुसलमान मरे थे और अब तो हिन्दू भी मर रहे हैं - मसलन पहले तो अख़लाक़ मरे थे - अब सुबोध भी ??..

पर मैं तो यही सोच रहा हूँ कि गाय के नाम पर इंसानों की हत्या को जायज़ कैसे ठहराया जा सकता है ??.. पर अब हत्याएं तो होती रहेंगी.. क्योंकि भीड़ की आदत इतनी जल्दी कहाँ छूटती है - और विशेषकर तब जब भीड़ में असल गुनहगारों को अब तक उचित सजा ना देकर राजनाथ वाली कड़ी से कड़ी सजा देने की ही बात कही गई हो.. ..

बस मैं इसलिए ही कहता हूँ कि रवीश कुमार को सुनते रहिए !!.. और मान लीजिए कि ये ५६ इंची नाकारा सरकार के रहते आपको सजग रहना है और अपने दोस्तों और परिजनों को दंगाई बनाने से रोकना है..

और इसके लिए मैं सोचता हूँ कि समस्त साम्प्रदायिक अतिवादी संगठनों से अपने दोस्तों और परिजनों को बचाएं.. अन्यथा आपके कई अपने ऐसे ही बिलावजह मारे जाएंगे - और कईयों पर उनके मारे जाने के प्रकरण दर्ज हो वो कोर्ट कचहरी और नेताओं दलालों के चक्कर काट-काट कर अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर लेंगे..

और भूल कर भी कोई ये ना सोचे कि वो धर्म की रक्षा कर बहुत बहादुरी या पुण्य का काम कर रहा है.. क्योंकि वो असल में तो इंसानियत की हत्या कर रहा है..

इसलिए एक बार फिर कहूंगा - रवीश कुमार की कही गई हर बात को सुनते और समझते रहिए - और आज बहादुर सुबोध की शहादत पर ही सही अपनी बुद्धि का सदुपयोग कर अपने अंतर में झांकिए और कुछ बोध प्राप्ति की चेष्टा करते रहिए..

और हाँ 'शहीद सुबोध' को विनम्र श्रद्धांजलि देते समय धर्म और जाति का चश्मा उतार 'अख़लाक़' को भी याद कर लीजिएगा !!.. धन्यवाद !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Monday 3 December 2018

// विवादित स्थल पर मस्जिद या नमाज़ अदा करना हराम.. पर मंदिर चलेगा ??.. ..//


मुझे शहर से २५-३० किलोमीटर दूर एक रेस्ट हाउस में मित्रों की वो दाल-बाटी की पार्टी बार-बार याद आ रही है जिसमें ३ मित्रों को दारू भी लाने की जिम्मेदारी दी गई थी - और उनमें से एक ही पहुंचा और दो हो लिए गायब.. मतलब दारू की शॉर्टेज हो गई थी.. और ऐसी विकट परिस्थिति में एक दारूकुट्टा मित्र एक-आध पेग लगा कर दूसरे को समझा रहा था.. अबे साले तू मत पी - तुझको स्कूटर चला के घर भी वापस जाना है.. ..

पर जनाब जब उससे ये पूछ लिया गया कि यार तुझको भी तो मोटर साइकिल चलाकर घर वापस जाना है तो वो बोला - मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता - बचपन से पीकर चला रहा हूँ.. और पार्टी में सभी मित्र हंस दिए.. और खूब ठिठोली जारी रही !!..

और आज मुझे वो बहुत पुराना वाकया इसलिए याद हो आता है क्योंकि - अभी कई टीवी डिबेट्स में मैने कुछ शानों को चिल्ला-चिल्ला कर ये कहते सुना कि.. तुम वहां मस्जिद बना ही नहीं सकते क्योंकि वो जगह विवादित है - और विवादित जगह पर ना तो मस्जिद बन सकती है ना ही नमाज़ अदा की जा सकती है.. ऐसा करना इस्लाम में हराम बताया गया है.. ..

और दम्भ के नशे में चूर मंदिर निर्माण करने के समर्थक जो ये बात पेलते हैं उनसे पलट कर कोई ये नहीं पूछता कि.. क्या विवादित स्थल पर मंदिर बनाया जा सकता है ??.. और पाठ पूजा अर्चना हो सकती है ??.. ..

और मुझे हमेशा लगता है कि यदि उनसे ऐसा पूछ लिया जाए तो शायद जवाब भी पूरी बेशर्मी से कुछ ऐसा-वैसा ही आएगा कि - हमें फर्क नहीं पड़ता - हमारे इसमें तो शुरू से ही ये सब चलता है.. या फिर हमेशा की तरह वाक्चातुर्य के सहारे या एंकर के सहारे मुद्दे को भटका अनाप शनाप बकना शुरू हो जाएगा.. ..

और अब मैं ये भी खुलासा कर दूँ कि जिस तरह से मैं दारू पीने को हानिकारक मानता हूँ.. वैसे ही मैं आज की स्थिति में किसी भी और धर्मस्थल का निर्माण करना या करवाना भी उपयुक्त नहीं मानता हूँ.. क्योंकि दारू पीने से बेहतर है आप उस पैसे से परिवार या समाज या स्वयं के लिए ही कुछ अच्छा करें - और धर्मस्थल बनाने से बेहतर है आप जनता की भलाई के लिए अस्पताल या स्कूल कॉलेज आदि का निर्माण करें या करवाने में सहयोग दें..

और शायद इसलिए ही दारू-दंगड़ का वो ठिठोली से भरपूर वाकया आज मुझे मंदिर मस्जिद के हो रहे झगडे-फसाद के समय निहायत प्रासंगिक हो बहुत गुदगुदाता भी है और लजाता भी है और आक्रोशित भी करता है..

शायद इसलिए भी कि मैं ना तो दारू पीता हूँ और ना ही मंदिर जाता हूँ..
और इसलिए यदि मैं किसी की भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा हूँ - तो हाथ जोड़कर अग्रिम रूप से माफ़ी मांगता हूँ..
धन्यवाद !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Saturday 1 December 2018

कौन कहता है कि मोदी सरकार ने दलितों के लिए कुछ नहीं किया ??..


// भक्त नाहक परेशान ना हों.. मोदी के विकल्प के भी विकल्प ही विकल्प !!.. ..//


जब मोदी सत्ता में आए थे तो भक्त कहते थे.. मोदी के अलावा तो कोई विकल्प था ही नहीं !!..

पर जब १-२ साल बाद मोदी की कलई खुलने लगी तो भक्त कहने लगे.. मोदी अच्छे हैं और ठीक-ठाक काम कर रहे हैं - इसलिए अभी मोदी के विकल्प की आवश्यकता नहीं !!..

और जब २-३ साल बाद मोदी नाकारा साबित होने लगे तो भक्त कहने लगे.. विपक्ष में भी कोई काबिल नहीं - इसलिए अभी तो मोदी का कोई विकल्प नहीं - हो तो बताओ ??..

और फिर जब ३-४ साल बाद मोदी नाकारा और विफल साबित हो गए तो भक्त कहने लगे कि.. माना मोदी उतने सफल नहीं हो सके - पर यदि उनको हटाना हो तो फिर उनका कोई भी विकल्प हो तो सुझाओ.. क्या राहुल गांधी उनका विकल्प हो सकते हैं ??..

और फिर अब जब पूरे ४.५ साल बाद ये स्पष्ट होने लगा है कि मोदी तो हानिकारक हैं - तो भक्त अब दबी जुबान कहने लगे हैं कि.. अब करें तो क्या करें ??.. अब मोदी का भाजपा में भी कोई विकल्प नहीं दिख रहा !!..

और मुझे लगता है कि भक्त ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि शायद भक्तों को भी लगातार ताने और कटाक्ष और व्यंग्य और सत्य सुन-सुन कर - और हिकारत और हास्य के पात्र बनने के बाद ये अहसास हो गया है कि - क्योंकि सुषमा स्वराज जेटली राजनाथ गडकरी रविशंकर प्रसाद पियूष गोयल पर्रिकर अमित शाह आदि में कोई भी ऐसा नहीं है जो मोदी के समान लोगों को बेवकूफ बनाने की कला रखता हो.. इसलिए भाजपा में भी मोदी का विकल्प मिलना तो असंभव ही होगा..

और मैं भक्तों से पहली बार सहमत हो भक्तों को ढांढस बंधाते हुए उन्हें यह कहना चाहूंगा कि.. फिलहाल अपना संक्षिप्त दिमाग फ़ोकट खर्च मत करो और ये विकल्प-विकल्प रटना  बंद करो.. क्योंकि अब तो मोदी का जाना यूँ भी तय हो गया है.. और मोदी के जाने के बाद भारत जैसे देश में उनकी कुर्सी खाली रह जाए ऐसा तो असंभव ही है.. क्योंकि यदि कोई और नहीं मिलेगा तो भी - 'आप' तो है ना.. और यदि नहीं तो फिर हम तो हूँ ना !!.. अन्यथा वैसे तो भक्तों आप स्वयं भी कोई मोदी से बुरे नहीं - तो आप ही सही.. है ना !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Friday 30 November 2018

// जनता को अब जीडीपी के आंकड़े समझ आते हैं.. और ये भी कि "चौकीदार चोर है"..//


मोदी या मोदी सरकार की एक शर्मनाक विशेषता देखी गई है कि जिस बात पर भी उसकी उचित आलोचना होती है वो उसे नेहरू-गांधी परिवार या यूपीए या कांग्रेस या फिर विपक्ष पर मढ़ देते हैं.. मसलन यदि आप आज की इमरजेंसी जैसे हालातों पर कुछ कहेंगे तो वो इंदिरा द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की बात करने लगेंगे.. या फिर यदि आप आज के दंगों की बात करोगे तो वो सिख विरोधी दंगो पर बोलने लगेंगे.. या फिर यदि आपने राफेल की बात छेड़ दी तो वो पूरे फ़ैल जाएंगे और बोफोर्स और हेराल्ड से लेकर अब तक चर्चा में रहे नेहरू-गांधी परिवार और यूपीए के सारे संभावित झूठे सच्चे सभी घोटाले उद्घृत कर मारेंगे.. और गोदी मीडिया के बेशर्म बिकाऊ एंकर भी मोदी या मोदी सरकार से प्रश्न पूछने के बजाय प्रश्न विपक्ष से ही पूछते-पूछते पीछे ही पड़ जाएंगे..

मतलब ये कि जैसे ही इनकी चोरी पकड़ी जाती है वो गोदी मीडिया की भरपूर मदद से ये प्रयास करने लगते हैं कि चूंकि ऐसी चोरी-चकारी या गलती या धूर्तता तो नेहरू वंशज के नामदारों ने या फिर यूपीए या कॉंग्रेसियों ने भी करी थी - और वो भी ६० साल तक करी थी - इसलिए अब उनसे इतनी जल्दी ४-५ साल में ही कोई प्रश्न ना पूछे जाएं और किसी भी प्रकार की निम्न तुलना नहीं की जाए..

पर इस दौरान बहुत से विषय ऐसे भी आए जिनमें आंकड़ों के सहारे ये तय हो गया था कि मोदी सरकार यूपीए की तुलना में पीछे रह गई.. और ऐसे हो विषयों में एक विषय था - "जीडीपी" - जिसके कारण मोदी सरकार की खूब आलोचना और बदनामी होती रही थी.. और जिसकी काट भक्तों को भी ढूंढें नहीं मिल रही थी.. और संबित पात्रा को भी टेके लगाने में परेशानी होती रही थी..

पर अब ताज़ी ताज़ी घोषणा हुई है "जीडीपी" के बारे में.. वही जीडीपी जो नोटबंदी के बाद यकीनन और शर्तिया लुढ़क गई थी..

जी हाँ खालिस नाकारा वित्तमंत्री द्वारा वित्तमंत्रालय से ही संबंधित घोषणा हुई है कि - खबरदार !!.. अब बहुत हुआ.. कान खोल के सुन लो.. हमारी वाली जीडीपी उनकी वाली जीडीपी से भिन्न है - और हमारी वाली जीडीपी उनकी वाली जीडीपी से ज्यादा थी ज्यादा है और ज्यादा रहेगी !!..

इसलिए सावधान !!.. साहेब के निष्ठावान वित्तमंत्री और दयनीय अर्थव्यवस्था पर प्रश्न उठाने की अब कोई हिमाकत नहीं करे.. और अब आप संबित पात्रा को भी उनकी प्रकृति और विकृति अनुसार सदैव की तरह पूरी अभद्रता के साथ उछलते कूदते चिल्लाते देखने के लिए तैयार रहें..

यानि अब मोदी सरकार का ये प्रयास रहेगा कि कोई भी आमजन महंगाई या बेरोजगारी पर भी उनकी सरकार को दोष ना दे और चुपचाप सब कुछ सहता रहे.. और इसलिए आजका सबसे डरावना प्रश्न खड़ा होता है कि.. फिर गरीब का रोना कौन रोएगा और कौन सुनेगा - और आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा ??..

और मेरा जवाब है.. बस ४-५ महीने और !!..
क्योंकि अब तो जनता भी समझने लगी है कि ये "जीडीपी" क्या होता है या "जीडीपी" से क्या होता है.. और तो और अब तो जनता को ये बात भी जगजाहिर हो चुकी है कि - "चौकीदार चोर है".. और लोगों को ये बात भी समझने आने लगी है कि यदि मोदीराज में महंगाई बेरोजगारी कष्ट और परेशानियां बढ़ी हैं तो वो ना तो नेहरू की वजह से और ना ही किसी अन्य उचित कारणों से.. असल में दोषी तो मोदी ही हैं.. हानिकारक तो मोदी ही हैं !!..

इसलिए भाजपा और भक्तो को एक सलाह !!.. मोदी सरकार द्वारा "जीडीपी" के आंकड़ों में हेराफेरी करने से बात बनने वाली नहीं.. महंगाई पर रोक लगानी होगी - और राफेल के खुलासों के बाद अब चोर को चौकीदारी से तत्काल हटाना ही होगा..
और जनता को हर विषय पर "जी.डी.पी" यानि "जवाब देना पड़ेगा".. समझे !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Wednesday 28 November 2018

// पप्पू यदि सोने का चम्मच लेकर पैदा हुआ था.. तो गप्पू के मुहं में क्या था ??.. ..//


आज तो मुझे बहुत तरसीली हंसी आई.. यानि गप्पू पर तरस के साथ हंसी आई.. 

एक नकारा नकली गप्पू 'कामदार' राजस्थान के नागौर में एक चुनावी सभा में दलील पेल रहा था कि - ये नामदार तो मुहं में सोने का चम्मच लेकर पैदा हुआ था - ओर ना ही मैं और ना ही आप मुहं में सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए - और मैं भी गरीब था आप भी गरीब हो और दुखी हो और पीड़ित हो - इसलिए मैं आपका दुःख-दर्द समझता हूँ - इसलिए आप भाजपा को वोट देना !!..

और मैं हंसा इसलिए कि शायद सदैव दूसरों का उपहास करते रहने वाले 'गप्पू' को इतना इल्म भी नहीं कि चुनावी रैली अभी राजस्थान के विधानसभा के चुनाव के लिए थी - नाकि देश के लोकसभा चुनाव की.. और इसलिए पप्पू या गप्पू अपने मुहं में क्या लेकर पैदा हुए अभी इस बात का तो कोई महत्त्व या विषय ही नहीं है.. और यदि ऐसी ही किसी बकवास का कोई महत्व हो सकता है तो वो तो ये होगा ना कि - वसुंधरा राजे सिंधिया अपने मुहं में क्या लेकर पैदा हुई थी ??..

और यदि मैं मेरे प्रधानमंत्री की बात पर गैरसंजीदा हो विश्वास करूँ तो - मुझे लगता है कि वसुंधरा यकीनन बिना चम्मच के तो पैदा नहीं ही हुई होगी.. और उसके मुहं में भी सोने या फिर कोई अन्य कीमती चम्मच जरूर रहा होगा..

और इसलिए भाइयों और बहनों !!.. और मित्रों !!.. गप्पू अनुसार यह तय होता है कि गरीबी क्या होती है ये या तो गरीबों को मालुम है या खुद गप्पू को.. बाकी वसुंधरा को तो इसका इल्म नहीं होगा.. और इसी कारण ही वसुंधरा ने राजस्थान के गरीबों की वाट लगा दी !!..

मेरा कहने का मतलब ये है कि केवल मैं ही नहीं अब तो मोदी भी राजस्थान में यही बोल रहे हैं कि वसुंधरा ने तो राजस्थान की वाट लगा दी.. इसलिए राजस्थान की जनता को भाजपा को तो भूल कर भी वोट नहीं देना चाहिए !!..
और शायद इसलिए ही राजस्थान में भाजपा बुरी तरह से हारेगी ही !!..

तो ये तो बात हुई राजस्थान के चुनावों की.. पर मैं ये सोच रहा था कि आखिर बाल नरेंद्र मुहं में क्या लेकर पैदा हुआ होगा ??.. और जो मेरी समझ में आया वो ये कि.. आइसक्रीम खाने के उपयोग में आने वाला लकड़ी का वो चपटा चम्मच जिससे यदि दाल सब्जी भी खानी हो या दूध ही पीना हो तो उसे जुबान से चाटना ही पड़ता है.. और चाटना भी बहुत पड़ता है पर पेट नहीं भरता.. और मोदी जी में इस बात के भरपूर लक्षण विध्यमान हैं..

इति चम्मच पुराण !!.. पैदाइशी चमचे भक्तों के बारे में फिर कभी !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Tuesday 27 November 2018

// अभी मोदी के मिमयाने का लुत्फ़ उठा लें.. आगे तो गाली गलौज का मज़ा आएगा..//


बहुत दिन बीत गए.. समय बदल गया.. और पहले जब मोदी अपने आपको गरीब या चायवाला या गाँधी परिवार का सताया हुआ बताते थे - यानि सिम्पथी कार्ड खेलते थे - तो उनका कार्ड चल जाता था..

शायद इसलिए कि तब वो प्रधानमंत्री नहीं थे.. और प्रधानमंत्री बनने की लयबद्ध ताल ठोंक रहे थे - इसलिए उनका रोना-गाना जनता को हजम हो जाता था और असर भी कर जाता था..

पर प्रधानमंत्री बनने के बाद अब जब उनके रंग-ढंग देख सबको यह अच्छे से ज्ञान हो गया है कि मोदी गरीब नहीं बल्कि बेहद अमीर हैं और अमीरों के ही संगी साथी हैं - तब उनका अपने आप को चायवाला या गरीब या गरीब का बेटा कहते रहना लोगों को अखरने लगा है.. और तो और अब तो भक्तों को भी अखरने लगा है कि उनके बेहद रसूक वाले और ५६ इंची का सीना बताने वाले बड़े साहेब यह सब बार-बार बोल-बोल कर फ़ोकट क्यूँ पकाने लगे हैँ ??..

और अभी जब किसी कॉंग्रेसी ने अपनी उचित टिपण्णी में मोदी की माँ का अनावश्यक समावेश कर मारा तो मोदी ने हमेशा की तरह मौके को लपकने का प्रयास किया और चुनावी रैली में भी इसका ज़िक्र दिल से खुश होते हुए और ऊपर से रोते हुए अपने फूहड़ नाटकीय अंदाज़ में कर मारा.. पर इस बार वो परिणाम नहीं मिले जो पूर्व में मिलते थे.. तो इसका कारण क्या ??..

मेरे हिसाब से असहाय द्वारा रोने-धोने या अपना दुःख-दर्द बांटने या किसी को बताने से एक सहानुभूति अर्जित कर लेने में - और सशक्त द्वारा खिसियाने या बच्चों जैसे मिमियाने में बहुत फर्क होता है.. और जब सशक्त भी असहाय जैसे रोने मिमियाने लगे तो उसका असर बहुत उल्टा ही होता है..

और मेरे मत में पहले जब कभी भी मोदी रोते गाते रहे या अपना दुःख-दर्द पेलते रहे तब उनको इसका फायदा भी होता रहा.. पर अब जब से प्रधानमंत्री मोदी बच्चों जैसे या फूहड़ तरीके से मिमियाने लगे हैँ तब से जनता को लगने लगा है कि जो खुद इतना सामर्थ्यवान होकर भी मिमिया रहा है वो रोतला नौटंकीबाज़ किस काम का ??..

और तो और जो अपनी माँ के ज़िक्र पर या बाप के ज़िक्र पर या नीच शब्द पर इतना मिमिया रहा है वो एक कॉंग्रेसी "पप्पू" द्वारा बार-बार "चोर" कहने पर चुप है.. उसके मुहं से एक बार विलाप नहीं सुना कि उन्हें बहुत पीड़ा हुई कि कोई उन्हें खुलेआम "चोर" कह रहा है जबकि उन्होंने चोरी करी ही नहीं ??..

तो इसका निष्कर्ष तो यही निकलता है कि - क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वायदे पूरे नहीं किए और कुछ ठोस या अच्छा कार्य भी नहीं किया - बल्कि बिना रेनकोट पहने हमाम में घुस गए और पूरे गीले हो गए और चोरी पकड़ी गई - इसलिए बेचारे मिमियाने के अलावा अब कर भी क्या सकते थे.. सो मिमिया ही रहे हैँ..

और मुझे लगता है कि २०१९ आने तक वो मिमियाना भी बंद कर देंगे और आक्रामक हो गाली गलौज पर ही उतर आएँगे.. क्योंकि शायद तब तक उनके पास इसके अलावा भी कोई चारा नहीं बचेगा..

इसलिए मेरा सोचना है कि जिस किसी को मोदी के रोने-धोने मिमियाने की नाटक-नौटंकी का लुत्फ़ उठाना हो वो अभी उठा ले.. बाद में तो गुस्साहट छटपटाहट में गाली गलौज सुनने का एक अलग ही मज़ा आने वाला है..

तो इंतज़ार करते रहिये - खुश रहिए और हँसते रहिए.. हा !! हा !! हा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Monday 26 November 2018

// अब रामजी के सौजन्य से ही सही - मोदी से मुक्ति मिलना तो तय ही लग रहा है !!.. ..//


मध्य प्रदेश और राजस्थान में आगामी २८ तारीख और ७ दिसंबर को होने वाले मतदान के ठीक पहले अयोध्या में २४-२५ तारीख को होने वाली पूर्व घोषित नाटक नौटंकी अति फूहड़ता के साथ और देश को अनावश्यक रूप से करोड़ों का चूना लगा निपट गई !!..

और एक बार फिर २५ तारीख को भी देश को बता दिया गया कि ढाक के तीन पात ही होते हैं.. और मंदिर कब बनेगा इसकी तारीख नहीं बताई जाएगी !!..

तो फिर मुझे समझ नहीं आया कि ये सत्ता में बैठे सशक्त माने जाने वाले लोग जो देश में ५० साल तक राज करने का हास्यास्पद दावा ठोंक रहे हैं आखिर लाखों की संख्या में अयोध्या में जमावड़ा क्यों करवाए थे.. और जमावड़े के पहले विवादित और उकसाऊ भड़काऊ बयानबाज़ी क्यों कर रहे थे और करवा रहे थे ??..

और थोड़ा सा ही सोचने के बाद मुझे समझ पड़ी कि पागल और भोले लोगों का क्या भरोसा - वो तो कभी भी कुछ तो भी कर ही सकते हैं.. इसलिए राम-राम करते हुए हो लिए इकट्ठे..

पर फिर मुझे एहसास हुआ कि जो इकट्ठे हुए वो तो पागल या भोले हो ही सकते हैं पर जिन्होनें इकठ्ठा करवाया वो तो पागल नहीं - वो तो शातिर लोग हैं !!.. और इसलिए पड़ताल जरूरी हुई कि आखिर ये राम मंदिर मुद्दे को इस समय इस तरह योजनाबद्ध तरीके से उचकाने का क्या उद्देश्य हो सकता था..
और जो मेरी समझ में आया वो निम्नानुसार है..

अब तो जग जाहिर हो चुका है कि जो अपनी माँ के नाम पर की गई टिपण्णी को भी अपनी राजनीति करने का जरिया बना रहा है - और राफेल नोटबंदी रूपए की कीमत तेल के भाव बेरोजगारी आदि अन्य मुद्दों पर कन्नी काट रहा है.. और जिसे "चौकीदार चोर है" नारे का कोई तोड़ सूझ ही नहीं पड़ रहा है - वो हार रहा है - और सही बोले तो निपट रहा है !!..

और इसलिए अब पार्टी और संघ भी चिंतित हो चले हैं.. क्योंकि मोदी की हार के बाद लगे झटके से पार्टी और संघ को भी लगने वाले झटकों से उबार पाना टेढ़ी खीर ही साबित होगा.. और हो तो यहाँ तक सकता है कि अगले ५० साल तक भी सत्ता हथियाना असंभव हो जाए - क्योंकि वैसे भी इस चुनाव के बाद केजरीवाल की केंद्र में एंट्री हो ही जाएगी !!..

और शायद इसलिए एक बार फिर राम का सहारा ले मोदी पर यह आक्षेप मढ़ते हुए कि उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए कुछ नहीं किया - मोदी को कटघरे में खड़ा कर दिया जाए और फिर स्टाइल से मोदी को पृथक कर दिया जाए.. और अब आगामी चुनाव में किसी अन्य भाजपाई का नाम आगे कर वोट मांगे जाएं..

और फिर शायद मोदी मुंडी उठा ये कहते रहें कि क्योंकि मामला न्यायलय में था इसलिए उनके द्वारा "राजधर्म" का पालन करने की मजबूरी थी - और कोंग्रेसी सिब्बल की बातों में आकर न्यायालय प्रकरण में देरी कर रहा था - इसलिए वो चाहकर भी मंदिर निर्माण हेतु कुछ ना कर सके..
और भाजपा और संघ और भक्त और अंधभक्त देश के हिन्दुओं के सामने यह परोस सकें कि देखो राम के आगे तो मोदी तक की कुर्बानी दे दी गई है.. इसलिए इस बार भी हर हिन्दू द्वारा वोट भाजपा को ही दिया जाए.. और इस बार पुनः जीतने पर मंदिर निर्माण की तारिख भी बता दी जाएगी..

और इसलिए मैं अति प्रसन्न हूँ - और रामजी का आभारी भी.. क्योंकि अब जो कुछ भी होगा होता रहे.. पर देश को रामजी के सौजन्य से ही सही - मोदी से मुक्ति मिलना तो तय ही लग रहा है.. .. जय श्रीराम !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Sunday 25 November 2018

// मामा तू अब डूबेगा - मोदी ले के डूबेगा !!.. ..//


और अंततः मध्यप्रदेश के चुनावों का प्रचार प्रसार और लोगों को बहलाने और बेवकूफ बनाने के समस्त प्रचलित प्रयोग उपक्रम बयानबाज़ी लफ़्फ़ाज़ी कोशिशें अपने चरम पर पहुँचते हुए समाप्त होने वाली हैं..
और २८ नवम्बर को चूना आयोग के सौजन्य से पारम्परिक अनियमितताओं के साथ मतदान भी संपन्न हो ही जाएगा.. और ११ दिसम्बर को यह भी पता चल ही जाएगा कि बाज़ी किसके हत्थे चढ़ी - सांपनाथ या नागनाथ के ??.. और यह भी कि 'आप' को भी वोट देने की समझदारी कितने लोगों ने बताई !!..

और इस दौरान गौर करने लायक सबसे बड़ी बात तो यह रही कि मोदी थोड़े छिटके से थोड़े थके से थोड़े थूक के चाटे से थोड़े घबराए से थोड़े अनमने से पूरे प्रचार प्रसार में लगभग नदारद रहते हुए अप्रभावी ही रहे.. और जो दो चार रैलियां की भी उसमें भी वो ५६ इंच का दमखम भरते तो दिखे नहीं - पर हाँ कभी इधर पलट कभी उधर पलट खिसियाए हुए तालियां जरूर पीटते दिखे.. और नेहरू परिवार के भूत से ग्रसित भी..
और इस बार लोग हैरान हैं कि मोदी राहुल और उनके परिवार को अहमियत देते हैं या नहीं ??.. और यदि देते हैं तो फिर इतने कपड़े क्यूँ फाड़ते हैं.. और यदि नहीं देते हैं तो फिर उनके बारे में इतनी ढेर सारी बकवास क्यों करते हैं ??.. यानि लगता है बेचारे कन्फ्यूज्ड हैं क्योंकि अब वो फ्यूज्ड हैं.. 

और तो और भक्तों के मुहं से वो 'मोदी-मोदी-मोदी' के फ़ोकट फटकारे भी पुरजोर आवाज़ में निकले ही नहीं.. बेचारे !!..

और इसके इतर पप्पू कुछ छाए रहे और पुरजोर आवाज़ में एक नारा बोलने लगवाने और चिपकवाने में सफल भी हुए.. और यदि उस चुनाव का नारा था " अच्छे दिन - आने वाले हैं " तो इस चुनाव का नारा रहा - " चौकदार - चोर है ".. .. और इसके अलावा इस बार मोदी को कोई नारा सूझ ही नहीं पड़ा और ले दे के 'नामदार' 'कामदार' का नया अप्रभावी टेप ही चलाने का प्रयास करते और ५६ इंच के विपरीत व्यवहार करते हुए मंच पर तालियां पीटते और लम्बी-लम्बी सांसों के साथ सिसकते से ही दिखे..

और विशेष बात ये है कि क्योंकि मोदी निपटे हुए फेल हैं - इसलिए इस बार शिवराज ने समझदारी से सारा भार अपने कंधो पर उठा लिया है.. और इसलिए अब सारा दामोदर शिवराज के कार्य और कारनामों पर आ कर टिक गया है..

और मैं महसूस कर रहा हूँ कि अव्वल तो शिवराज के कारनामे किये गए कार्य पर भारी पड़ रहे हैं और फिर उन्हें इस बार अपनी एंटी इंकम्बैंसी के बजाय मोदी की नकारा इंकम्बैंसी का ज्यादा नुक्सान उठाना पड़ रहा है..

यानि हालात ऐसे हो चले हैं कि जो अब तक तारनहार बने हुए थे वो ही डुबो रहे हैं.. बेचारे शिवराज !!..
और राजस्थान की तर्ज़ पर मध्यप्रदेश के लिए आप कह सकते हैं कि..
" मोदी तेरी खैर नहीं - मामा तुझ से बैर सही ".. ..
या फिर.. ..   
" मामा तू अब डूबेगा - मोदी ले के डूबेगा " .. .. ( क्योंकि मोदी डुबवा रहा है और शिवराज के डूबने का मतलब २०१९ में मोदी भी डूबेगा ).. ..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

Saturday 24 November 2018

// मैं अपने प्रमाणित सुचारू दिल-दिमाग के साथ पुनः आपके बीच आ रहा हूँ !!.. ..//


कोई उसे फेंकू बुलाता रहा कोई गप्पू तो कोई चौकीदार तो कोई चोर तो कोई 'साहेब' भी.. पर जब से वो सत्तासीन हुआ मुझे फूटी आँख नहीं भाया.. क्योंकि मेरे दिमाग ने उसे नाप-तोल लिया था और दिल ने दिमाग की बातों पर ठप्पा लगा दिया था.. और तब से ही मैं मेरे दिमाग की बातें दिल से लिखने लगा था.. और 'साहेब' के प्रखर विरोध में लिखते हुए मेरे दिल को बहुत सुकून और संतोष मिलता रहा..

पर जब कभी भी बेशर्मी बद्तमीज़ी क्रूरता और वहशियाना हरकतों की सीमाएं लांघी गईं मेरा दिल भी विचलित हुए बिना नहीं रहा.. पर जब से मुझे ये भरोसा हो गया था कि अब बुरे दिन जाने वाले हैं मेरा दिल सुकून महसूस करने लगा था..

पर ना जाने क्यों कुछ हफ्ते पहले मेरे उसी दिल में कुछ विचलन सा यूँ ही हो गया - और मैं डॉक्टरों और अस्पतालों के हवाले हो गया.. पर मेरा दिल सही निकला और डॉक्टरों द्वारा कुछ थोड़ा बहुत सहलाने बहलाने से ही दुरुस्त हो चला.. पर इस बीच फेफड़ों ने कुछ नखरा बताया लेकिन फिर वो भी मेरे दिल दिमाग के काबू में आ गए..

और अब तो डॉक्टरों ने भी मुझे ये प्रमाण-पत्र दे दिया है कि अव्वल तो मेरे पास भी एक दिल है - और अब वो भी बिल्कुल ठीक है तंदरुस्त है - और मेरा दिमाग भी ठिकाने ही रहा है..

और इसलिए अब मुंबई में स्वास्थ लाभ लेते हुए मेरा दिल सहजता से अपना काम करने लगा है और दिमाग में बदस्तूर रसद जारी है..

आप सब से कटा-कटा महसूस होने और इसी कारण काफी उदास रहने के बाद अब मैं खुश हूँ - क्योंकि अब मैं फिर से आप सबके बीच में आकर अपने दिमाग की बातें दिल से लिखने के लिए तैयार हूँ.. और शीघ्र ही गर्त में जाते हुए उस सत्तासीन 'साहेब' को एक छोटा सा धक्का मेरी तरफ से भी देने के लिए अपने दिल और दिमाग को तैयार कर रहा हूँ..

यानि मैं शीघ्र ही आप सबका प्यार आशीर्वाद और शुभकामनाएं प्राप्त करने के लिए अपने प्रमाणित सुचारु दिल-दिमाग के साथ पुनः आपके बीच आ रहा हूँ..
आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद !!.. जय हिन्द !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl