Saturday 10 May 2014

क्योंकि वड़ोदरा में वोटिंग हो गयी है और वाराणसी में १२ को होनी है - इसलिए उल्लू बनाइँग ???
क्यों भाई मोदी गूंगे हैं जो यह बात पहले खुद खुल कर नहीं बोल सकते थे ??? और अब राजनाथ बोल रहे हैं !!! हार का खतरा के खातिर ना बबुआ !!!
और भाई मेरे वैसे भी वाराणसी सीट तो तब रिटेन करोगे ना जब जीतोगे ? कि यूँही खाली पीली बोम !!!
http://www.abplive.in/video/2014/05/10/article310465.ece/Modi-to-retain-Varanasi-seat-hints-BJP-chief-Rajnath-Singh#.VIbCedKUeM9
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मोदी कहिन ----- "माँ बेटे की सरकार तो गयी" !!!!
ज़रा गौर फरमाइयेगा ....
यदि चल रहे प्रचार प्रसार को सही मान लें और ज़रा तर्क लगाएं तो ....
>> यदि UPA की सरकार जायेगी - तो NDA की सरकार आएगी ....
>> यदि कांग्रेस की सरकार जायेगी - तो भाजपा की सरकार आएगी ....
>> यदि मनमोहन सरकार जायेगी - तो मोदी सरकार आएगी ....
पर ज़रा विसंगति देखिये कि कोई भी ये तो बोल नहीं रहा है कि - "मनमोहन सरकार" जायेगी - तो फिर प्रश्न उठता है - "मोदी सरकार" कैसे आएगी ????
और इसके विपरीत मोदी तो बहुत ही फूहड़ और नीच अंदाज़ में अनावश्यक उपहास करके बार-बार यही कह रहें है कि - "माँ बेटे की सरकार तो गयी !"
और तर्क यह कहता है कि ....
>> यदि माँ बेटे की सरकार जायेगी - तो परित्यक्त की सरकार आएगी ....
तो क्या मोदी सरकार "परित्यक्त सरकार" ही कहलाएगी न ????
क्या अब भी मोदी अपनी ५६" ज़ुबान को लगाम देंगे ?? या ....
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वाराणसी के DM ने जब राहुल को अनुमति दी तो मोदी को क्यों नहीं ??? - जेटली !
बात में दम हैं - जब राहुल और मोदी में कोई अंतर ही नहीं है तो ये तो खुल्लमखुल्ला पक्षपात हो गया जिसकी वजह से मोदी जी को भारी कीमत चुकानी पड़ती दिख रही है !
पर एक प्रश्न उठ रहा है कि जब केजरीवाल को गुजरात में रोका गया था तब जेटली जी ने तो कोई बयान जारी नहीं किया था - गलती हो गयी हो तो अब बता दें कि - जब मोदी का वाराणसी में स्वछन्द विचरण को रोकना गलत है तो गुजरात में केजरीवाल को रोकना गलत क्योँ नहीं था ?
चलो अब जो हुआ सो हुआ गंगा किनारे इतना मातम क्यूँ ??
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मुझे लगता है कि अब दुष्ट बेशर्मों से प्रश्न पूछने की परिपाटी एवं व्यवस्था में व्यवहार कुशल चालाकी भरा परिवर्तन लाना होगा !
मैं अनुभव कर रहा हूँ कि बहुत काबिल पत्रकारों एवं आम जनता में से अनेक बुद्धिजीवियों और आम जनता में से ईमानदार तैश खाने वाले कुछ उत्साही लोगों द्वारा बहुत से तर्कसंगत एवं महत्वपूर्ण प्रश्न समक्ष में रखे जाते हैं - और ऐसा होने पर वे प्रश्न सार्वजनिक पटल पर काफी धूम भी मचाते हैं - हो सकता है कि कुछ असर भी छोड़ते हों - और हो सकता है कि उनका कुछ परिणाम भी निकलता हो - पर सामान्यतः ज्यादातर प्रश्न प्रश्न ही रह जाते हैं - और या तो उनको दफ़न कर दिया जाता है या उनका तात्कालिक, सामयिक, या दीर्घकालिक देहावसान हो जाता है !
और जिनसे या जिनके बारे में प्रश्न पूछे जाते हैं वो 8 -10 घिसे पिटे पर आज़माये असरकारक फॉर्मूले - जुमलों का उपयोग कर चालाकी से निजात पा लेते हैं - जैसे कि .... "प्रश्न ये नहीं है.." ; "पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दें.." ; "प्रश्न गलत नियत से पूछा जा रहा है" ; "इस प्रश्न के पीछेे गंदी राजनीति है" ; "इस प्रश्न का जवाब मैं दे चुका हूँ" ; "इस प्रश्न का जवाब मैं जनता को दूंगा" ; "जरूरी नहीं मैं हर प्रश्न का जवाब दूँ" ; "मैं ऐसे घटिया प्रश्न का जवाब नहीं दूंगा" .... आदि आदि !
अतः मेरा मानना है की हम भी अपनी शैली को बदलें और बजाय ऐसे सही सही प्रश्न पूछने के कि - "कहाँ से आया इतना पैसा?" हम कुछ गलत मनगढंत प्रश्न कुछ अलग अंदाज़ में पूछें जैसे कि: -
अडानी ने 500 अम्बानी ने 490 करोड़ दिए - भाजपा में मोदी समर्थक नेताओं / कार्यकर्ताओं के द्वारा चंदे के रूप में 1000 करोड़ जबरन वसूली में से 200 करोड़ पार्टी फण्ड के माद्यम से आये - खुद मोदी ने अपने अज्ञात स्त्रोत से लगभग 40 करोड़ लगाये - एवं बाकी के 3200 करोड़ सोनिया गांधी के जरिये इटली से आये - अतः प्रश्न उठता है कि - अम्बानी ने अडानी से कम क्यों दिए? 1000 करोड़ की वसूली में से 800 करोड़ कहाँ गए ? सोनिया गांधी ने मोदी जी को 3200 करोड़ क्यूँ दिए ???
(कृपया स्मरण करिए कि इसी स्तर के प्रश्न विपक्ष ने पूछे जैसे कि - केजरीवाल ने फोर्ड फाउंडेशन से पैसे क्यों लिए? अन्ना के 2 करोड़ रुपये क्यों हड़प कर लिए ? आदि )
आशा है आप मेरा आशय समझ गए होंगे !!!!!! यदि कुत्ते को गधा सूअर बोला जाए तो हो सकता है उसे बुरा लगे और वो भौंके और हम आशा करें की भौंकने में कुछ उगल भी दे .... और यदि कुछ भी न करे तो कम से कम गाली तो खाये ....
तुम डाल - डाल हम पात - पात .... तुम पात - पात हम जड़ में घुस पत्ता ही साफ़ करें ....
शायद इसीलिए संपूर्ण परिवर्तन और केजरीवाल जरूरी हैं .... क्योंकि जब उन्हें उनके प्रश्नों का जवाब नहीं मिला तो वो चुपचाप नहीं बैठ गए - उन्होंने सड़ी गली व्यवस्था की जड़ पर वार किया है ....
(टीप : मैं अपने आप को केवल "आम जनता में से ईमानदार तैश खाने वाले कुछ उत्साही लोगों" में से एक मानता हूँ - कृपया मुझे बुद्धिजीवी या काबिल पत्रकार न समझ बैठें - धन्यवाद ! )

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