बहुत दिन बीत गए.. समय बदल गया.. और पहले जब मोदी अपने आपको गरीब या चायवाला या गाँधी परिवार का सताया हुआ बताते थे - यानि सिम्पथी कार्ड खेलते थे - तो उनका कार्ड चल जाता था..
शायद इसलिए कि तब वो प्रधानमंत्री नहीं थे.. और प्रधानमंत्री बनने की लयबद्ध ताल ठोंक रहे थे - इसलिए उनका रोना-गाना जनता को हजम हो जाता था और असर भी कर जाता था..
पर प्रधानमंत्री बनने के बाद अब जब उनके रंग-ढंग देख सबको यह अच्छे से ज्ञान हो गया है कि मोदी गरीब नहीं बल्कि बेहद अमीर हैं और अमीरों के ही संगी साथी हैं - तब उनका अपने आप को चायवाला या गरीब या गरीब का बेटा कहते रहना लोगों को अखरने लगा है.. और तो और अब तो भक्तों को भी अखरने लगा है कि उनके बेहद रसूक वाले और ५६ इंची का सीना बताने वाले बड़े साहेब यह सब बार-बार बोल-बोल कर फ़ोकट क्यूँ पकाने लगे हैँ ??..
और अभी जब किसी कॉंग्रेसी ने अपनी उचित टिपण्णी में मोदी की माँ का अनावश्यक समावेश कर मारा तो मोदी ने हमेशा की तरह मौके को लपकने का प्रयास किया और चुनावी रैली में भी इसका ज़िक्र दिल से खुश होते हुए और ऊपर से रोते हुए अपने फूहड़ नाटकीय अंदाज़ में कर मारा.. पर इस बार वो परिणाम नहीं मिले जो पूर्व में मिलते थे.. तो इसका कारण क्या ??..
मेरे हिसाब से असहाय द्वारा रोने-धोने या अपना दुःख-दर्द बांटने या किसी को बताने से एक सहानुभूति अर्जित कर लेने में - और सशक्त द्वारा खिसियाने या बच्चों जैसे मिमियाने में बहुत फर्क होता है.. और जब सशक्त भी असहाय जैसे रोने मिमियाने लगे तो उसका असर बहुत उल्टा ही होता है..
और मेरे मत में पहले जब कभी भी मोदी रोते गाते रहे या अपना दुःख-दर्द पेलते रहे तब उनको इसका फायदा भी होता रहा.. पर अब जब से प्रधानमंत्री मोदी बच्चों जैसे या फूहड़ तरीके से मिमियाने लगे हैँ तब से जनता को लगने लगा है कि जो खुद इतना सामर्थ्यवान होकर भी मिमिया रहा है वो रोतला नौटंकीबाज़ किस काम का ??..
और तो और जो अपनी माँ के ज़िक्र पर या बाप के ज़िक्र पर या नीच शब्द पर इतना मिमिया रहा है वो एक कॉंग्रेसी "पप्पू" द्वारा बार-बार "चोर" कहने पर चुप है.. उसके मुहं से एक बार विलाप नहीं सुना कि उन्हें बहुत पीड़ा हुई कि कोई उन्हें खुलेआम "चोर" कह रहा है जबकि उन्होंने चोरी करी ही नहीं ??..
तो इसका निष्कर्ष तो यही निकलता है कि - क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वायदे पूरे नहीं किए और कुछ ठोस या अच्छा कार्य भी नहीं किया - बल्कि बिना रेनकोट पहने हमाम में घुस गए और पूरे गीले हो गए और चोरी पकड़ी गई - इसलिए बेचारे मिमियाने के अलावा अब कर भी क्या सकते थे.. सो मिमिया ही रहे हैँ..
और मुझे लगता है कि २०१९ आने तक वो मिमियाना भी बंद कर देंगे और आक्रामक हो गाली गलौज पर ही उतर आएँगे.. क्योंकि शायद तब तक उनके पास इसके अलावा भी कोई चारा नहीं बचेगा..
इसलिए मेरा सोचना है कि जिस किसी को मोदी के रोने-धोने मिमियाने की नाटक-नौटंकी का लुत्फ़ उठाना हो वो अभी उठा ले.. बाद में तो गुस्साहट छटपटाहट में गाली गलौज सुनने का एक अलग ही मज़ा आने वाला है..
तो इंतज़ार करते रहिये - खुश रहिए और हँसते रहिए.. हा !! हा !! हा !!..
ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl
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