चुनाव होने थे - हो गए .. जीतने वाले जीत गए और हारने वाले हार गए .. ..
पर क्या किसी को शर्म आई ?? .. ..
छोड़िये जनाब .. मोटी चमड़ी बेशर्मों के लिए क्या हार और क्या जीत !! .. वो तो केवल कर्म पर भरोसा करते हैं .. कर्म करते जाते हैं - उन्हें परिणाम और फल से कोई फर्क नहीं पड़ता - क्योंकि इनके लिए नैतिकता का खुद का बनाया तराजू जो होता है जो इनके हर कर्म को तोलने के बाद नैतिकता का प्रमाण पत्र दे देता है .. ..
और आपको तो मालुम ही है कि 'नैतिक हार' भी 'अनैतिक जीत' से कितनी महान होती है .. है ना ?? .. .. हुर्रे !! भक्तों को बधाई !! आखिरकार मोदी-शाह ने टुच्ची महानता का परिचय दे ही दिया !! .. ..
और अहमद पटेल तो वाकई जीत गए - सच्ची-मुच्ची जीत गए !! .. टुच्चे और दोगलों की मूर्खता की बदौलत ही जीत गए .. है ना ??
पर इस बीच एक और सवाल के छिलके निकल रहे हैं .. कि निहायत बेवकूफों और अकर्मण्य और ढोरों के जिम्मे व्यवस्था का हश्र देखिए कि कुल जमा १५०-२०० नेताओं के द्वारा एक नेता के चुनाव में मात्र अपना वोट डालने के लिए कैसी व्यवस्था ?? कैसे नियम कायदे ?? और कैसी मशक्कत ?? और वो भी आपके मेरे पैसों पर ?? .. ..
धिक्कार है ऐसी लुच्ची टुच्ची व्यवस्था पर और संचालन पर .. है ना !! .. ..
अब बिना गाली दिए सभ्य शब्दों में इससे अच्छा तो नहीं लिख सकता था ना !! .. ..
ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl
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