Friday 18 January 2019

// किसी की "खांसी" का मज़ाक उड़ाना चलेगा.. पर "सूअर बुखार" का मज़ाक नहीं ??..//


कर्नाटक क़े एक मंत्री हरिप्रसाद ने शालीनता की सीमाएं लांघते हुए - संस्कारों को तिलांजलि दे चुकी भाजपा क़े अध्यक्ष अमित शाह को हुए स्वाइन फ्लू से - भाजपा द्वारा शायद अत्यंत सभ्यता से कर्नाटक सरकार को गिराने के प्रजातान्त्रिक प्रयासों को - आपस में जोड़ दिया..

और यहाँ तक बकवास पटक मारी कि.. क्योंकि भाजपा अध्यक्ष कर्नाटक में सरकार गिराने की कोशिशें कर रहे थे इसलिए ऐसा हुआ - और यदि अमित शाह ऐसी और कोशिश करेंगे तो उन्हें उल्टी और लूज मोशन भी होगा.. मानों प्रजातंत्र में भाजपा द्वारा सरकारें गिराना कोई गुनाह हो !!.. छी: !!..

और तो और हरिप्रसाद ने 'स्वाइन फ्लू' का हिंदीकरण भी कर मारा.. 'सूअर बुखार' !!..

मेरी प्रतिक्रिया.. ..

किसी भी व्यक्ति की बीमारी का मज़ाक उड़ाना या उस पर तंज़ कसना हम भारतियों क़े संस्कारों में तो था ही नहीं.. हमारे इसमें तो मुहंफट्ट होने के बजाय अंधे को अँधा नहीं कहते हुए सूरदास कहने की शिक्षा दी जाती रही है.. हमारे इसमें तो यदि किसी को बड़ी बीमारी हो जाए या दुर्घटना हो जाए या विपदाएं आन पड़े तो कहते हैं - हे ईश्वर ऐसे बुरे दिन तो दुश्मन को भी ना दिखाना..

पर हमारे संस्कारों की राजनीतिक धज्जियां तब से उड़ना शुरू हुईं जब से केजरीवाल की बीमारी "खांसी" का मज़ाक उड़ाया गया.. और उनके नाम को खांसी और खुजली तक से जोड़ दिया गया.. और कहा गया कि यदि ये सत्य है कि उसे खांसी आती है.. तो फिर मज़ाक तो बनेगा.. और यदि खुजली नहीं भी है तो क्या हुआ.. कुछ तो मन से भी कहा जाएगा..

पर अब जब 'स्वाइन फ्लू' को 'सूअर बुखार' कहा गया तो पहाड़ आसमान में घुस टपक पड़ा.. जबकि 'स्वाइन' का मतलब 'सूअर' ही होता है और 'फ्लू' को 'बुखार' ही कहा जाता है - ये भी अकाट्य सत्य ही तो है !!..

पर अमित शाह क़े लिए हरिप्रसाद का मुहंफट्ट ये कहना कि यदि वो कर्नाटक की सरकार गिराने की और कोशिशें करेंगे तो उन्हें उल्टी और लूज़ मोशन भी होगा - मुझे ठीक या उपयुक्त नहीं भी लगता हो - पर मैं इसका विरोध भी नहीं कर सकता.. क्योंकि मैंने कई भारतीय संस्कारियों को कई घिनौने कृत्य करने वाले टुच्चों क़े लिए यह तक कहते सुना है कि जब ये मरेगा तो इसके तो कीड़े पड़ेंगे - आदि.. और ऐसा सबकुछ भी हमारे संस्कारों का ही हिस्सा है.. और दुआ और बद्दुआ बहुतायत में हमारे यहाँ प्राचीन काल से दी जाती रही हैं.. जिसकी पुष्टि हमारे धर्म ग्रंथों से भी की जा सकती है..

इसलिए मैं चाहूंगा कि हमारे संस्कारों क़े बारे में पुनः मंथन हो - पुनरावलोकन हो.. और हो सके तो इस बात का विशेष ध्यान दिया जाए कि यदि किसी की निंदा भी करनी हो या जायज़ बद्दुआएं भी देनी हों तो सीधे-सीधे मुहंफट्ट दे देना गलत है.. और तो और किसी स्वर्गीय मसलन गांधीजी नेहरूजी के लिए भी मुहंफट्ट बकवास करते रहना भी उतना ही गलत है.. निंदा और बद्दुआएं भी जरा घुमा फिरा कर दी जा सकती हैं.. अन्यथा आप भी मुहंफट्ट हरिप्रसाद या मोदी जैसे ही निंदनीय हो जाएंगे.. समझे ??..

मसलन मुझे ही देखिए.. मैंने अभी तक ना तो सुषमा ना जेटली ना पर्रिकर ना प्रसाद ना सोनिया ना पंवार ना संदीप पात्रा ना अर्नब गोस्वामी और ना ही शाह की बीमारी क़े लिए एक भी शब्द बोला.. और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि मोदी तक भी कभी बीमार पड़े तो भी मैं मुहंफट्ट जैसे एक शब्द भी गलत नहीं बोलूंगा.. क्योंकि मैं तो संस्कारी हूँ ही हूँ.. हूँ ना.. या हुआ ना !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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