Thursday 30 August 2018

// आगामी चुनावों के मद्देनज़र अब मोदी का मूल्यांकन क्यों और कैसे हो.. ..//


मेरी नज़र में नरेंद्र मोदी का मूल्याँकन जीती हारी गई सीटों की संख्या या उसके बाद अनेक राज्यों के चुनावों के परिणामों से नहीं होना चाहिए.. तब भी नहीं जब मोदी की लहर चल रही थी और तब भी नहीं जब मोदी की पार्टी कीचड़ में सनी सड़-गल मिट जाने वाली हो.. ..

राजनीति में चार-पांच साल सत्तासीन होने का कार्यकाल या हरामकाल पूर्ण पर्याप्त समयकाल होता है.. और जब कोई चुनावी जीत हासिल कर इस समय का हक़दार हो लुत्फ़ उठा जाता है तो उसका मूल्यांकन केवल और केवल उसके कार्यकाल / हरामकाल के गुण-दोषों के आधार पर ही होना चाहिए.. ना कि उसकी छवि या उसकी पार्टी या उसके वायदे या उसके व्यक्तिगत गुण-दोषों के आधार पर.. ..

और तो और उसका मूल्यांकन इस आधार पर भी नहीं होना चाहिए कि वो क्या करना चाहता था.. क्योंकि यदि वो कुछ अच्छा करना चाहता था और किसी ने उसको अच्छा करने से रोका भी नहीं था पर वो कुछ अच्छा नहीं कर पाया तो इसके लिए क्या किया जाए ??.. उसको जयंत भाई वाली फूल मालाएं चढ़ाई जाएं या जूतों से मारा जाए ??.. ..

क्योंकि जब कोई चाह कर या ना चाह कर भी कुछ अच्छा नहीं कर पाए या कुछ बुरा ही कर जाए तो दबी या लपलपाती जुबान तो हर कोई कहेगा ही कि - धत्त तेरे की - बकवास बहुत हो गई - अब किसी दूसरे को मौका मिले.. ..

इसलिए आज जबकि देश को अगले चुनाव में शिरकत करनी है तो मोदी का मूल्यांकन भी केवल उनकी उपलब्धियों और नाकामियों पर आधारित होना चाहिए.. और हर क्रियाकलाप के परिणाम पर विवेचना के पश्चात् ही होना चाहिए..

मसलन यदि कोई २०-३० करोड़ जनधन खाते खोलने की बात करता है तो उसे ये भी टटोलना चाहिए कि इसका परिणाम क्या निकला ?? क्या इससे खाताधारकों का फायदा हुआ या बैंकों का या देश का ??.. यदि ५-१० करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन दिया गया तो क्या इससे उन महिलाओं की ज़िन्दगी में कुछ स्थाई बदलाव आया भी कि नहीं ?? या किसी गैस वाले उद्योगपतियों का फायदा हो गया ??.. यदि १०-१२ करोड़ लोगों को मुद्रा लोन बाँट दिया गया तो क्या इससे उन लोगों की ज़िंदगी में कुछ स्थाई बदलाव आया कि नहीं ?? और क्या बेरोजगारी घटी या देश की अर्थव्यवस्था सुधरी ??.. ..

और मसलन क्या नोटबंदी मोदी और भाजपा के लिए सफल रही या शर्म से डूब मरने का कारण रही ??.. या फिर नोटबंदी मोदी को चौराहे पर पहुँचने और सजा को स्वीकार्य करने का उचित और न्यायोचित और आवश्यक कारण बन चुकी है.. जिसकी वजह से कम से कम आरबीआई की रिपोर्ट के बाद तो मेरे बूढ़े हाथों तक में अब खुजली भी हो रही है - क्योंकि मेरा दिल दिमाग उन सौ से अधिक निर्दोष लोगों पर भी जाता है जो बेवजह एटीएम कि लाइनों में खड़े-खड़े अपनी जान से हाथ धो बैठे थे - और उनको न्याय मिलना अभी तक लंबित है !!..

और क्या जो कार्य किए गए क्या वे भलाई के कार्य थे और पर्याप्त कार्य थे जिस आधार पर मोदी का मूल्यांकन अच्छा कर दिया जाए ??.. ..

और क्या मूल्यांकन इस आधार पर नकारात्मक ना किया जाए कि जो कार्य करने का वादा था या जो करने अपेक्षित थे वे किये ही नहीं गए.. मसलन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार - भ्रष्टाचार पर रोक - शिक्षा में सुधार - महिलाओं की सुरक्षा - सबके साथ से सबका विकास - महंगाई पर रोक - कालेधन की वापसी - पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब या कश्मीर समस्या का हल - आदि ??

और क्या यह भी देख परख नहीं लिया जाए कि मोदी के कारण इस देश को और हमारे समाज को कितनी हानि हुई ?? फिर चाहे वो सामजिक ताने बाने और भाईचारे और आपसी विश्वास को लगी ठेस और पलीते के विषयक हो या फिर चरमरा रही अर्थव्यवस्था के विषयक - या फिर देशवासियों के अपनी सरकार पर उठते विश्वास के विषयक ही क्यों ना हो ??..

और क्यों ना इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाए कि मोदी ने देश और समाज में आपसी वैमनस्य की वो शुरुआत करने की कोशिश की है जो विगत कई सालों से सुप्तावस्था में चली गई थी ??.. और नैतिक पतन तो चरम पर है ही !!..

और जहां तक चुनावी जीत की बात है तो क्या चुनावी परिणामों के अलावा इस पर गौर करना भी आवश्यक नहीं कि ये जीत कैसे हासिल की गई ??.. पैसे के बल पर - छल-कपट से - झूठ और फरेब के सहारे - और किसी को उफ्फ्फ तक नहीं करने दी जा रही - या किसी की उफ्फ्फ सुनी भी नहीं जा रही ??.. क्यों ??.. कहीं इस जीत का सरोकार उन्हीं सेठों और लठैतों से तो नहीं जो यही चाहते हैं कि एन-केन-प्रकारेण मोदी ही जीतें..

और अब एक बार फिर उन्हीं सेठों और लठैतों की पूरी कोशिश है कि इस देश में अब राजनीति तो ऐसे ही रहे - "जिसकी लाठी उसकी भैंस".. और यदि औकात है तो आओ लड़ लो ??..

और क्योंकि अब लड़ना आवश्यक है और औकात बताना भी आवश्यक है इसलिए ये भी आवश्यक है कि मोदी को सबक सिखाया जाए.. और जो भी मोदी का विरोध कर रहे हैं उनका समर्थन किया जाए..

बस इसलिए ही मैं.. ममता माया अखिलेश चंद्रबाबू पंवार अदि के प्रति शुभकामनाएं रखता हूँ.. और यहां तक कि राहुल के प्रति भी सद्भावनाएं..

और  केजरीवाल का दिल से और खुला समर्थन करता रहा हूँ.. जिसने मोदी के खिलाफ ऐसी लड़ाई अनवरत लड़ी जिसमें उसने अपनी और मोदी दोनों की औकात का खुल्लमखुल्ला स्पष्ट परिचय दिया है..

तो आओ आज मैं भी मोदी और उनके भक्तों को चुनौती देता हूँ.. औकात है तो २०१९ का चुनाव जीत के बताओ.. तुम्हारे पास सत्ता और पैसा है तो हमारे पास केजरीवाल रवीश अभिसार पुण्य प्रसून कन्हैया विनोद दुआ जैसी शख्सियतें हैं.. मैदान खुल्ला है.. तुम्हारा भी वही हश्र होगा जो तुम्हारी बेवकूफाना नोटबंदी का हुआ है !!.. शर्तिया !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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