Tuesday 26 April 2016

// अब हम किसके सामने अपना दुखड़ा रोएं ??....//


यदि न्याय के एक ही प्रतिपादित सिद्धांत को मान लें कि - "ससमय न्याय नहीं मिलना अपने आप में ही अन्याय है" - तो शायद दावा करना गलत ना होगा कि इस देश की न्याय व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो चुकी है .... 

और इस न्याय व्यवस्था को चाक-चौबंद करने की जवाबदारी हम कह सकते हैं कि दो शीर्षस्थ व्यक्तियों की ठहराई जा सकती है .... सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश और प्रधानमंत्री ....

और मेरी समझ में हम देशवासियों ने और इस देश की संवैधानिक कानून व्यवस्था ने इन दोनों व्यक्तियों को इतना अधिकार और स्वतंत्रता तो दे ही रखी है कि ये दोनों महानुभाव आपस में अपने मन की बात - अपने दायित्वों की बात - अपनी पीड़ा अपना दुःख अपनी समस्या आदि पर कोई भी बात कभी भी कर ही सकते हैं .... वैसे क्योंकि रहते भी दोनों दिल्ली में ही हैं - इसलिए शौकिया तौर पर ही सही 'चाय पे चर्चा' भी कभी भी और कई बार कर ही सकते हैं - बिना किसी रोकटोक के ....

और हाँ - दोनों के पास लिखने लिखाने वाले काबिलों की तो पूरी फ़ौज है - इसलिए ये चाहें तो पत्रों का आदान प्रदान भी कर ही सकते हैं - बिना किसी रोकटोक के ....

पर अभी हाल ही में न्यायाधीश महोदय ने ना मालूम क्यों अपना दुखड़ा रो दिया प्रधानमंत्री के सामने एक सार्वजनिक समारोह में .. और प्रधानमंत्री ने भी सुन लिया .. और बहुत संजीदा हो सार्वजनिक इज़हार कर दिया कि समस्या का उन्हें संज्ञान है ....

और !! .... और फिर क्या ?? .... बस !! .... और क्या ?? कब ?? कैसे ?? क्या ?? ....

तो अब आप भी सोचें और मैं तो सोच ही रहा हूँ कि इन रोने धोने वालों से ही कहा जाए कि ....

रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें .. जिनको मजबूरिये हालात ने रोने ना दिया ....
या फिर ....
सुनने वालों से कहो उनका भी रोना सुन लें .. जिनको मखौलिये हालात में सुना ना गया ....

या फिर ....

क्रन्तिवीरों से कहो उनसे भी बदला ले लें .. जिनको सुरक्षा के हालात ने ठुकने ना दिया ....

या फिर .... कोई हमें बताए कि अब हम किसके सामने अपना दुखड़ा रोएं ??

// मेरे 'fb page' का लिंक .... << https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl >> //

5 comments:

  1. इस विषय में विभिन्न लोगो के बयान सुने और पढ़े। पर कोई त्वरित कार्यवाही होती नहीं दिख रही और न ही दिखेगी। हमारी न्याय व्यवस्था लोकतंत्र का वीभत्स रूप पेश करती है।इसका एक बड़ा कारण ये है कि हम में से कोई भी न्याय व्यवस्था पर उंगली तक नहीं उठा सकता जबकि उंगली उठाने के लाखो कारण मौजूद है जो इस व्यवस्था को पंगू बना रहे है पर न्यायालय के अपमान के नाम पर देश का बड़े से बड़ा और शक्तिशाली नागरिक भी चुप रहता है आप कुछ भी करो पर न्यायालय की आलोचना नहीं कर सकते। देश में न्यायाधीशों की कमी का रोना रोया जा रहा है। पर किसी ने सोचा है जो न्यायाधीश है उनको जबरदस्ती काम के बोझ से लड़ा जाता है कुछ विभाग ऐसे है जो साल भर कुछ नहीं करते पर पर फरवरी मार्च आते ही सक्रिय हो जाते है जिनमे आबकारी और ट्रांसपोर्ट विभाग मुख्य है ये विभाग अपना लक्ष्य पूरा करने के उद्देश्य से जबरदस्ती केस बना कर समन जारी करवाते है जिससे न्यायालय का समय बर्बाद होता है। ऐसा ही एक समन मुझे मिला था। जिसमे मेरी मोटरसायकल से दुर्घटना होना बताया गया था। जब मैं कोर्ट पहुंचा तो मेरे केस की केस फ़ाइल ही नहीं थी। पर समन था तो कोर्ट में पेश होना भी जरूर था। मेरी पेश होने की बारी जब आई मेरे खड़े होते ही जज साहेब ने 200 रूपये का जुर्माना सुना दिया मैंने कुछ कहना चाहा तो तुरंत उसको 400 रूपये कर दिया मैंने फिर कुछ कहना चाहा तुरंत जुर्माना 800 रूपये कर दिया मेरे चुप रहने पर जुर्माना 1600 रूपये कर दिया मैंने जुर्माना भरने से इनकार किया तो मुझे जेल भेजने की ताकीद कर दी अब मैंने जज साहब से कहा साहब आप मुझे जेल भेज रहे है बस एक मेहरबानी कर दीजिये कि मुझे मेरा अपराध बता दीजिये। तब जज साहेब ने मेरी फ़ाइल जो थी ही नहीं को पेश करने के लिए कहा क्योंकि मेरी पेशी मेरे द्वारा जमा किये समन के आधार पर की गयी थी। अब जज साहब और सभी लोगो का मुंह देखने लायक था। कोई नहीं बता पा रहा था मुझे सजा क्यों दी जा रही है ये एक उदाहरण है हमारी अदालतों के इन्साफ का। लोग चुपचाप जुर्माना भर देते है झमेले से बचने के लिए।जिसका फायदा पुलिस, आबकारी विभाग और वकील उठाते है।मेरे केस में मैंने कोई वकील नहीं किया था। पुरे वाकये में कोर्ट और जज साहेब के लगभग एक घंटा बर्बाद हो गया। ये एक बहुत बड़ा कारण है कोर्ट का समय बर्बाद करने का।

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  2. इस विषय में विभिन्न लोगो के बयान सुने और पढ़े। पर कोई त्वरित कार्यवाही होती नहीं दिख रही और न ही दिखेगी। हमारी न्याय व्यवस्था लोकतंत्र का वीभत्स रूप पेश करती है।इसका एक बड़ा कारण ये है कि हम में से कोई भी न्याय व्यवस्था पर उंगली तक नहीं उठा सकता जबकि उंगली उठाने के लाखो कारण मौजूद है जो इस व्यवस्था को पंगू बना रहे है पर न्यायालय के अपमान के नाम पर देश का बड़े से बड़ा और शक्तिशाली नागरिक भी चुप रहता है आप कुछ भी करो पर न्यायालय की आलोचना नहीं कर सकते। देश में न्यायाधीशों की कमी का रोना रोया जा रहा है। पर किसी ने सोचा है जो न्यायाधीश है उनको जबरदस्ती काम के बोझ से लड़ा जाता है कुछ विभाग ऐसे है जो साल भर कुछ नहीं करते पर पर फरवरी मार्च आते ही सक्रिय हो जाते है जिनमे आबकारी और ट्रांसपोर्ट विभाग मुख्य है ये विभाग अपना लक्ष्य पूरा करने के उद्देश्य से जबरदस्ती केस बना कर समन जारी करवाते है जिससे न्यायालय का समय बर्बाद होता है। ऐसा ही एक समन मुझे मिला था। जिसमे मेरी मोटरसायकल से दुर्घटना होना बताया गया था। जब मैं कोर्ट पहुंचा तो मेरे केस की केस फ़ाइल ही नहीं थी। पर समन था तो कोर्ट में पेश होना भी जरूर था। मेरी पेश होने की बारी जब आई मेरे खड़े होते ही जज साहेब ने 200 रूपये का जुर्माना सुना दिया मैंने कुछ कहना चाहा तो तुरंत उसको 400 रूपये कर दिया मैंने फिर कुछ कहना चाहा तुरंत जुर्माना 800 रूपये कर दिया मेरे चुप रहने पर जुर्माना 1600 रूपये कर दिया मैंने जुर्माना भरने से इनकार किया तो मुझे जेल भेजने की ताकीद कर दी अब मैंने जज साहब से कहा साहब आप मुझे जेल भेज रहे है बस एक मेहरबानी कर दीजिये कि मुझे मेरा अपराध बता दीजिये। तब जज साहेब ने मेरी फ़ाइल जो थी ही नहीं को पेश करने के लिए कहा क्योंकि मेरी पेशी मेरे द्वारा जमा किये समन के आधार पर की गयी थी। अब जज साहब और सभी लोगो का मुंह देखने लायक था। कोई नहीं बता पा रहा था मुझे सजा क्यों दी जा रही है ये एक उदाहरण है हमारी अदालतों के इन्साफ का। लोग चुपचाप जुर्माना भर देते है झमेले से बचने के लिए।जिसका फायदा पुलिस, आबकारी विभाग और वकील उठाते है।मेरे केस में मैंने कोई वकील नहीं किया था। पुरे वाकये में कोर्ट और जज साहेब के लगभग एक घंटा बर्बाद हो गया। ये एक बहुत बड़ा कारण है कोर्ट का समय बर्बाद करने का।

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  3. इस विषय में विभिन्न लोगो के बयान सुने और पढ़े। पर कोई त्वरित कार्यवाही होती नहीं दिख रही और न ही दिखेगी। हमारी न्याय व्यवस्था लोकतंत्र का वीभत्स रूप पेश करती है।इसका एक बड़ा कारण ये है कि हम में से कोई भी न्याय व्यवस्था पर उंगली तक नहीं उठा सकता जबकि उंगली उठाने के लाखो कारण मौजूद है जो इस व्यवस्था को पंगू बना रहे है पर न्यायालय के अपमान के नाम पर देश का बड़े से बड़ा और शक्तिशाली नागरिक भी चुप रहता है आप कुछ भी करो पर न्यायालय की आलोचना नहीं कर सकते। देश में न्यायाधीशों की कमी का रोना रोया जा रहा है। पर किसी ने सोचा है जो न्यायाधीश है उनको जबरदस्ती काम के बोझ से लड़ा जाता है कुछ विभाग ऐसे है जो साल भर कुछ नहीं करते पर पर फरवरी मार्च आते ही सक्रिय हो जाते है जिनमे आबकारी और ट्रांसपोर्ट विभाग मुख्य है ये विभाग अपना लक्ष्य पूरा करने के उद्देश्य से जबरदस्ती केस बना कर समन जारी करवाते है जिससे न्यायालय का समय बर्बाद होता है। ऐसा ही एक समन मुझे मिला था। जिसमे मेरी मोटरसायकल से दुर्घटना होना बताया गया था। जब मैं कोर्ट पहुंचा तो मेरे केस की केस फ़ाइल ही नहीं थी। पर समन था तो कोर्ट में पेश होना भी जरूर था। मेरी पेश होने की बारी जब आई मेरे खड़े होते ही जज साहेब ने 200 रूपये का जुर्माना सुना दिया मैंने कुछ कहना चाहा तो तुरंत उसको 400 रूपये कर दिया मैंने फिर कुछ कहना चाहा तुरंत जुर्माना 800 रूपये कर दिया मेरे चुप रहने पर जुर्माना 1600 रूपये कर दिया मैंने जुर्माना भरने से इनकार किया तो मुझे जेल भेजने की ताकीद कर दी अब मैंने जज साहब से कहा साहब आप मुझे जेल भेज रहे है बस एक मेहरबानी कर दीजिये कि मुझे मेरा अपराध बता दीजिये। तब जज साहेब ने मेरी फ़ाइल जो थी ही नहीं को पेश करने के लिए कहा क्योंकि मेरी पेशी मेरे द्वारा जमा किये समन के आधार पर की गयी थी। अब जज साहब और सभी लोगो का मुंह देखने लायक था। कोई नहीं बता पा रहा था मुझे सजा क्यों दी जा रही है ये एक उदाहरण है हमारी अदालतों के इन्साफ का। लोग चुपचाप जुर्माना भर देते है झमेले से बचने के लिए।जिसका फायदा पुलिस, आबकारी विभाग और वकील उठाते है।मेरे केस में मैंने कोई वकील नहीं किया था। पुरे वाकये में कोर्ट और जज साहेब के लगभग एक घंटा बर्बाद हो गया। ये एक बहुत बड़ा कारण है कोर्ट का समय बर्बाद करने का।

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    1. Thanks for the informative and valuable comments which are thought-provoking and gives me some good feed to write further on this issue.

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