Sunday 27 July 2014

शेर मुलाहिज़ा फ़रमाये !!!
>> बस एक ही उल्लू काफी था बर्बादॆ गुलिस्तां करने को !
>> हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा !!
मुझे इस शेर पर आपत्ति है क्योंकि इस शेर की दोनों पंक्तियों में विरोधाभास है ....
भाई जब पहली पंक्ति में ये मान लिया गया है कि एक उल्लू गुलिस्तां को बर्बाद करने के लिय काफी है तो फिर दूसरी पंक्ति में संशय उत्पन्न करना और अनावश्यक प्रश्न खड़ा करना कि यदि बहुत सारे उल्लू हों तो गुलिस्तां का अंजाम क्या होगा - कुछ जंचता नहीं है ....
और हाँ अब तो देशवासियों ने भी महसूस कर ही लिया है कि बर्बादी के लिए एक उल्लू ही काफी है .... और उल्लू बहुतायत में विद्यमान हैं .....
अतः मैं संशय की निर्मित स्तिथि को ख़त्म करते हुए तथ्यात्मक आधार पर इस शेर को निम्नानुसार पुनरीक्षित करना चाहूंगा ....
>> बस एक ही उल्लू काफी था बर्बादॆ गुलिस्तां करने को !
>> हर शाख से उल्लू उतरा है गुलिस्तां की वाट लगाने को !!
(टीप : नाचीज़ की तरफ से काबिल शायर के काबिल शेर की वाट लगाने के लिए माफी!)

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