Monday 11 March 2019

// उलझे-उलझाए मामले मध्यस्थता से नहीं - मोदी के हारने से सुलझेंगे !!.. ..//


मध्यस्थता अपने आप में ही समझ आती है कि कुछ मध्य वाली चीज़ होगी.. यानि ना बाएं ना दाएं ना ऊपर ना नीचे ना घटबढ़ .. यानि जैसे कि संतुलित मध्यमार्गीय..

और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस देश के सबसे चर्चित और सबसे महत्वपूर्ण या महत्वहीन पर असरकारक विवाद को सुलझाने - या हो सकता है उलझाने के उद्देश्य से - मध्यस्थता का विधिवत हुक्म जारी कर दिया है.. या फिर हो सकता है कि आशा में निराशा में हताशा में या फिर किसी की अभिलाषा में या फिर अपने आपको असहाय या उहापोह में फंसे मानकर ऐसा असाधरण हुक्म दे दिया गया हो.. ..

मैं इस हुक्म का शायद इसलिए समर्थन करता हूँ क्योंकि मैं मध्यस्थता का पक्षधर रहा हूँ - क्योंकि लड़ाई झगड़े चाहे मैदानी अस्त्र शस्त्र गाली गलौज और जूतों के साथ हों - या जूते घिसाने वाले कानूनी टाइप हों - ज्यादातर हानिकारक ही होते हैं..
और इसलिए समर्थन के बावजूद मेरी प्रतिक्रिया भी..

मान लीजिए कि मोदी और शाह के बीच कभी ना कभी होने वाला झगड़ा टंटा आज हो जाए - और कानूनी प्रक्रिया या दांव पेंच में वो नौबत आ जाए कि "हम तो डूबें हैं सनम तुम को भी ले डूबेंगे" या "आ देखें ज़रा किसमें कितना है दम".. तो फिर क्या होगा ??.. मध्यस्थता !!..
जी हाँ मध्यस्थता ही एक अनचाहा प्रभावकारी विकल्प होगा जिसके तहत दोनों की कोई कमजोरी या टुच्चई जग जाहिर ना हो और मोदी और शाह और पार्टी और सरकार के हित में जैसे तैसे झगड़ा सुलट जाए.. मसलन अभी जब यूपी के एक भाजपाई सांसद और विधायक के बीच जूते भी प्रचलित हो गए तो आलाकमान ने मध्यस्थता सुनिश्चित कर करवा दी और मामला पार्टीहित में सुलटा लिया गया - जो देशहित में दुर्भाग्यपूर्ण हुआ.. हुआ ना !!..
पर कल्पना करिए कि मोदी-शाह के बीच मध्यस्थता के लिए उपयुक्त कौन होगा ??.. क्या आडवाणी या फिर रवीश कुमार या फिर जस्टिस काटजू या सुब्रमण्यम स्वामी या आलोक वर्मा या गडकरी ??.. हा !! हा !! हा !! .. मार दिया ना पापड़ वाले ने.. इनमें से कोई भी नहीं ना !!.. क्योंकि ये तो दोनों को ही निपटा देंगे और न्याय-व्याय की ऐसी की तैसी - ये तो निर्णय कर ही मारेंगे !!..
तो फिर क्या अंबानी अडानी या मोहन भागवत या बाबा रामदेव - या गिरिराज सिंह या फिर कैलाश विजयवर्गीय या आसाराम या राम रहीम ?? .. हाँ ये ठीक रहेगा !!.. पर ऐसा क्यों ??.. वो इसलिए क्योंकि मध्यस्थ ऐसा होना चाहिए कि जो केवल मध्यमार्ग पर चले और सभी पक्षों के हित की बात सुझा सके .. और सर्वहित या न्याय या न्यायसंगत भले ही जाएं भाड़ चूल्हे में !!..

बस इसलिए ही मेरी घोर आपत्ति श्री श्री रविशंकर को मध्यस्थ बनाए जाने पर है - क्योंकि वो इस महत्वपूर्ण महत्वहीन विवाद में एक पक्ष की ओर इस कदर बाएं-दाएं हैं कि मानों वो स्वयं ही एक पक्ष हों - और साथ ही वो एनजीटी के मामले में खुद उस कानून की धज्जियां उड़ा चुके हैं जिस कानून ने उन्हें बैठे ठाले मध्यस्थ नियुक्त कर मारा है.. और भले ही वो जाने-माने हों - पर वो ना तो सबकुछ जाने हुए माने जाते हैं और ना ही सब के माने हुए जाने जाते हैं..

बस इसलिए ही मुझे पक्का भरोसा है कि ये मध्यस्थता एक नए विवाद को जन्म देते हुए मूल विवाद को चुनावों तक आएं-बाएं-दाएं  करने के लिए है - इस गारंटी और आश्वासन के साथ कि चुनाव तक कुछ भी निर्णीत ना हो..

और मैं तो इस बात का भी स्वागत करता हूँ.. क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि चुनाव में मोदी के हारने के बाद तो देश की कई समस्याएं और झगडे टंटे आदि स्वतः ही मध्यमार्ग पर आ सुलझ सुलट जाएंगे..

इसलिए तय है कि उलझे-उलझाए मामले मध्यस्थता से नहीं - मोदी के हारने से सुलझेंगे.. अतः अभी तो रामजी को भी मोदी के ही भरोसे समझो - या फिर मेरे दिल-दिमाग की बात समझ नहीं पड़ी हो तो आप भी मध्यस्थों के भरोसे हो लो आएं-बाएं-दाएं !!.. हा !!.. हा !!..हा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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