आरएसएस एक पुरानी संस्था है - स्वतंत्र है - हिंदूवादी है ....
अब भले ही इस संस्था की विचारधारा कुछ लोगों की समझ अनुसार गड़बड़ रही हो - जैसे कि हिन्दुस्तान में बस जो है हिन्दू है .... और फिर भले ही इस संस्था के कई अनुषांगिक अंग दूसरों पर क्या पहनना क्या नहीं पहनना - क्या खाना क्या नहीं खाना - या क्या सोचना क्या नहीं सोचना - किसको पूजना कैसे पूजना कब पूजना - कब कौन सा त्यौहार कैसे मनाना कैसे नहीं मनाना आदि के बारे में अपने स्वतंत्र विचार रखते हुए दूसरों पर थोपने की चाहत रखते रहे हों .. पर चूँकि ये संस्था स्वतंत्र है अतः इसे भी क्या पहनना और क्या नहीं पहनना इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए ....
इसलिए मैं सर्वप्रथम संघियों को चड्डी की जगह फुल पैंट पहनने की इज़ाज़त देता हूँ .... जाओ चड्डी उतार फेंको और पहन डालो फुल पैंट - ये तुम्हारा अधिकार है - जाओ ऐश करो - क्या याद रखोगे कि किस उदारवादी से पाला पड़ा था ....
पर यूँ ही मैं साथ ही यह भी सोच रहा था कि .. क्या हमारे पूर्वज हिन्दू फुल पैंट पहनते होंगे ?? .. और मुझे लगता है नहीं !! .... और इसलिए मैं सोच रहा था कि पैंट के बदले धोती कैसी रहती ??
ये पैंट ना पहनने का एक और कारण बनता है .. क्या है इनकी पोषाक की "चड्डी" इतनी गज़ब की थी कि इन संघियों को आमजन मज़ाक-मज़ाक में "चड्डी" कहकर भी बुलाते रहे हैं ....
तो क्या अब "चड्डी" के बदले "पैंट" पहनने पर वही लोग इन्हें मज़ाक-मज़ाक में कुछ अटपटे शाब्दिक नाम से तो नहीं बुलाएंगे ??
इसलिए मेरा पुनः सुझाव है कि पैंट की जगह धोती ही रहती तो बेहतर होता .... वैसे फिर दोहरा दूँ कि मुझे व्यक्तिगत रूप से तो कोई आपत्ति नहीं है .... और मैं तो यह भी आशा करता हूँ कि वेश के साथ इनकी सोच भी कुछ "हाफ" से कुछ "फुल" हो तो बेहतर ....
// मेरे 'fb page' का लिंक .... << https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl >> //
No comments:
Post a Comment