भाइयों और बहनों - मितरों - भक्तों - और सवा सौ करोड़ देशवासियों !! ..
राज्यसभा से मोदी जी के भाषण का सीधा प्रसारण हो रहा है .. जबकि विपक्ष आदरणीय मनमोहन सिंह पर मोदी जी की ओछी टिप्पणी पर सदन से बहिर्गमन कर गया है .. ..
"चरखे" पर मेरा अनुसंधान बहुत दिनों से चल ही रहा था .. कल लोकसभा से और आज अभी-अभी राज्यसभा से प्राप्त हुए स्तरहीन ज्ञान से कुछ परिणाम परिलक्षित हुए हैं - जिन्हें मैं पीड़ा के साथ आपसे साझा करना चाहता हूँ .. ..
चरखा प्रायः लकड़ी का ही उपयुक्त होता है .. क्योंकि अतिउपयोगी लकड़ी की अपनी अनेक विशिष्टताएं जो होती हैं .. ..
पर एक 'चरखा' जो हम गुजरात से दिल्ली ले आए हैं वो तो लगता है बीड़ का बना है - फ़ोकट वज़नी ठोस अनुपयुक्त और अनुपयोगी - यानि देखने में उपयोगी पर ठस किसी काम का नहीं .. चलाते चलाते थकान हो जाए - पर सूत ना कपास लट्ठम-लट्ठ !! ..
और ये 'चरखा' तो आवाज़ भी बहुत करता है .. थोड़ा सा भी हिले डुले तो इसमें से 'चीं-चुर्र-चर्र' की आवाज़ें आने लगती हैं .. क्योंकि इसकी तो चूलें भी हिली ढीली खिसकी लगती हैं ....
इसलिए मेरा सुझाव है कि इस भारी भरकम 'चरखे' को तो साबरमती में ही फेंक देना श्रेयस्कर होगा .. ..
बाक़ी तो बापू ज़िंदाबाद !! .. जिन्हें बताना चाहूंगा कि .. बापू सेहत के लिए तो ये 'चरखा' हानिकारक है !! .. है ना !!
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