तब की बात .. मैं शेर !! .. क्यों ?? .. मैं शेर - क्योंकि शेर ही जीतता है ..
अब की बात .. हाँ मैं गधा हूँ .. गधा मेहनती होता है .. ..
क्या भरोसा - २०१९ आते आते इनकी आगे की संभावित बात .. ..
हाँ मैं सूअर हूँ .. सूअर हर हालात में जी लेता है .. ..
हाँ मैं लोमड़ हूँ .. लोमड़ समझदार होता है .. ..
हाँ मैं सांप हूँ .. सांप कहीं भी घुस जाता है .. ..
हाँ मैं उल्लू हूँ .. उल्लू रात में खुद दिखता नहीं .. ..
हाँ मैं कुत्ता हूँ .. कुत्ता काट भी लेता है .. ..
पर मेरे दिमाग की बात - दिल से .. ..
ये इंसान अपने आपको इंसान कहने से इतना कतराने क्यों लगा है ?? .. क्या ये आत्मग्लानि का परिचायक है - या पशुवृत्ति - या फिर उकसावे का वशीभूत ?? .. ..
ये कभी ऐसा क्यों नहीं मानते कि ये भी एक इंसान ही हैं - एक आम आदमी जैसे ही तो हैं .. शायद ऐसा इसलिए नहीं कहते होंगे कि ऐसा तो एक 'आम आदमी' भी कहता है .. और ये कुछ ख़ास ना होते हुए भी आम बात करना पसंद नहीं करते .. शायद यही इनकी असलियत भी है और शख्सियत भी .. शायद यही इनकी आदत भी है और फितरत भी .. ..
और इसलिए अब मेरा विश्वास बढ़ता जा रहा है कि एक इंसान के आगे फिर भले ही वो एक आम आदमी ही क्यूँ ना हो .. सारे शेर सूअर लोमड़ सांप कुत्ते उल्लू गधे सब ढेर हैं .. हाँ हाँ - हा !! हा !! हा !! .. ..
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