Saturday 17 December 2016

// मैं धारक को एक भी रूपया अदा करने हेतु वचनबद्ध नहीं हूँ - गवर्नर वास्ते प्रधानमंत्री ..//


भारतीय रिज़र्व बैंक भी एक प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान था .. शायद अब नहीं .. अब तो यह संसद के समतुल्य हो चुका है .. क्योंकि किसी भी प्रकार की "वचनबद्धता" के पलीते लग चुके हैं .. .. 

और साथ ही क्योंकि बड़े ही शर्मनाक और हैरतअंगेज़ तरीके से करोड़ों के नए नोट मार्केट में गलत हाथों से जब्त हो चुके हैं - जिसके लिए कुछ बेवकूफ और समस्त भक्त बैंकों को दोषी मान रहे हैं बिना ये अकल खुरचे कि इतनी बड़ी धांधली बैंकों की ब्रांचों से संभव ही नहीं है - क्योंकि ऐसा कर गुजरने की उनकी औकात ही नहीं है .... और यदि धांधली हुई है तो भी बैंकिंग की संपूर्ण व्यवस्था भारतीय रिज़र्व बैंक के तहत ही तो आती है .... यानि भारतीय रिज़र्व बैंक करोड़ों के नए नोटों के मार्केट में गलत हाथों में पहुँचने के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार है .. ..

और संसद की प्रतिष्ठा इसलिए नहीं बची है कि उसने एक विचित्र व्यक्ति के नेतृत्व में भारतीय रिज़र्व बैंक जैसे प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान को अपनी सनक और बेवकूफियों और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया है .. ..

इसलिए तय होता है कि एक विचित्र व्यक्ति के वशीभूत ना तो संसद स्वायत्त संस्था रही है ना ही भारतीय रिज़र्व बैंक .. ..

और आज मुझे ये एहसास हो रहा है कि संस्थाएं व्यक्तियों की मोहताज हैं ना कि व्यक्ति संस्थाओं के मोहताज .. क्योंकि जिस भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रतिष्ठा को पिछले ७० सालों में अनेक योग्य व्यक्तियों ने स्थापित किया था उसे एक विचित्र व्यक्ति ने एक झटके में धूल धूसरित कर दिखाया .. .. 

इसलिए सावधान !! .. संस्थानों पर असीमित भरोसा ना करें और बेवकूफों की असीमित (अ)क्षमताओं को कदापि हल्के में ना लें .. अन्यथा हो सकता है कि शेमलेस कैशलेस भारतीय रिज़र्व बैंक इस उदघोषणा के साथ अपने एकमात्र शेष बचे नोट छपाई दायित्व का निर्वहन कुछ यूँ करे कि .. .. "मैं धारक को एक भी रूपया अदा करने हेतु वचनबद्ध नहीं हूँ - भूल चूक लेनी देनी" गवर्नर वास्ते प्रधानमंत्री .. .. ..

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