Monday 3 December 2018

// विवादित स्थल पर मस्जिद या नमाज़ अदा करना हराम.. पर मंदिर चलेगा ??.. ..//


मुझे शहर से २५-३० किलोमीटर दूर एक रेस्ट हाउस में मित्रों की वो दाल-बाटी की पार्टी बार-बार याद आ रही है जिसमें ३ मित्रों को दारू भी लाने की जिम्मेदारी दी गई थी - और उनमें से एक ही पहुंचा और दो हो लिए गायब.. मतलब दारू की शॉर्टेज हो गई थी.. और ऐसी विकट परिस्थिति में एक दारूकुट्टा मित्र एक-आध पेग लगा कर दूसरे को समझा रहा था.. अबे साले तू मत पी - तुझको स्कूटर चला के घर भी वापस जाना है.. ..

पर जनाब जब उससे ये पूछ लिया गया कि यार तुझको भी तो मोटर साइकिल चलाकर घर वापस जाना है तो वो बोला - मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता - बचपन से पीकर चला रहा हूँ.. और पार्टी में सभी मित्र हंस दिए.. और खूब ठिठोली जारी रही !!..

और आज मुझे वो बहुत पुराना वाकया इसलिए याद हो आता है क्योंकि - अभी कई टीवी डिबेट्स में मैने कुछ शानों को चिल्ला-चिल्ला कर ये कहते सुना कि.. तुम वहां मस्जिद बना ही नहीं सकते क्योंकि वो जगह विवादित है - और विवादित जगह पर ना तो मस्जिद बन सकती है ना ही नमाज़ अदा की जा सकती है.. ऐसा करना इस्लाम में हराम बताया गया है.. ..

और दम्भ के नशे में चूर मंदिर निर्माण करने के समर्थक जो ये बात पेलते हैं उनसे पलट कर कोई ये नहीं पूछता कि.. क्या विवादित स्थल पर मंदिर बनाया जा सकता है ??.. और पाठ पूजा अर्चना हो सकती है ??.. ..

और मुझे हमेशा लगता है कि यदि उनसे ऐसा पूछ लिया जाए तो शायद जवाब भी पूरी बेशर्मी से कुछ ऐसा-वैसा ही आएगा कि - हमें फर्क नहीं पड़ता - हमारे इसमें तो शुरू से ही ये सब चलता है.. या फिर हमेशा की तरह वाक्चातुर्य के सहारे या एंकर के सहारे मुद्दे को भटका अनाप शनाप बकना शुरू हो जाएगा.. ..

और अब मैं ये भी खुलासा कर दूँ कि जिस तरह से मैं दारू पीने को हानिकारक मानता हूँ.. वैसे ही मैं आज की स्थिति में किसी भी और धर्मस्थल का निर्माण करना या करवाना भी उपयुक्त नहीं मानता हूँ.. क्योंकि दारू पीने से बेहतर है आप उस पैसे से परिवार या समाज या स्वयं के लिए ही कुछ अच्छा करें - और धर्मस्थल बनाने से बेहतर है आप जनता की भलाई के लिए अस्पताल या स्कूल कॉलेज आदि का निर्माण करें या करवाने में सहयोग दें..

और शायद इसलिए ही दारू-दंगड़ का वो ठिठोली से भरपूर वाकया आज मुझे मंदिर मस्जिद के हो रहे झगडे-फसाद के समय निहायत प्रासंगिक हो बहुत गुदगुदाता भी है और लजाता भी है और आक्रोशित भी करता है..

शायद इसलिए भी कि मैं ना तो दारू पीता हूँ और ना ही मंदिर जाता हूँ..
और इसलिए यदि मैं किसी की भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा हूँ - तो हाथ जोड़कर अग्रिम रूप से माफ़ी मांगता हूँ..
धन्यवाद !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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