Friday 14 December 2018

// यदि SC भी लाचार है तो प्रधानमंत्री पद से मोदी को हटाना ही अब एकमात्र विकल्प.. //


निश्चित रूप से जब कोई भी कार्य करना करवाना हो तो उस कार्य के क्रियान्वयन हेतु कर्ता को सुविधा और अधिकार भी देने ही पड़ते हैं.. लेकिन सारी समस्या तब खड़ी होती है जब उन सुविधाओं और अधिकारों का दुरूपयोग हो.. और समस्या तब और विकराल हो जाती है जब अधिकारों को पूर्ण (अब्सोल्युट) मान लिया जाकर उस पर किसी प्रकार का अंकुश ना लगाया जा सके..

उपरोक्त बात को समझने के लिए उदाहरणार्थ..

सरकार को अधिकार है कि वो कुछ भी कितना भी और किसी भी दामों पर खरीद सके - और इसलिए नेताओं की सुख सुविधा और उनके रहने खाने पीने हेतु अरबों की अनाप शनाप खरीदी होती रही है - और इनके लिए इतनी महंगी कारें या हेलीकॉप्टरों की अवाश्यकता की स्वीकृति दी जाती रहीं हैं - और इनके बेतहाशा वेतन पर कोई प्रश्न नहीं उठा सकता !!..
केंद्र को SC/ST एक्ट या शाहबानूँ प्रकरण में अध्यादेश के जरिए न्यायालय के निर्णय को पलटने के अधिकार थे - सो उसने पलट दिए थे.. और शायद इसलिए ही केंद्र सरकार पर नियोजित प्रायोजित दबाव भी बनाया जा रहा है कि वो सबरीमाला प्रकरण में भी न्यायालय के निर्णय को मानने से इंकार करे और राम मंदिर निर्माण पर अपने अधिकारों का उपयोग कर निर्माण का कार्य प्रशस्त करे..
केंद्र सरकार को किसी को भी किसी भी पद पर आसीन करने के अधिकार हैं - मसलन इसलिए ही वो राज्यपाल के पद पर आनंदीबेन कल्याण सिंह किरण बेदी जैसे राजनीति में ओतप्रोत व्यक्तियों को धड़ल्ले से पदासीन करती रही - और संबित पात्रा जैसे व्यक्ति को उन्हें उपकृत करने के लिए ओएनजीसी जैसी संस्थाओं के डायरेक्टर पद पर लाखों के वेतन पर पदासीन करती रही है - या मनचाहे आरबीआई के गवर्नर को भी..
क्यों ??.. क्योंकि ऐसा सबकुछ करना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है..

आज राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी आया है.. और मोटे-मोटे रूप में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकने की बात कही है - और उसके किसी भी निर्णय के पीछे उसकी विश्वसनीयता और बुद्धिमत्ता पर भी कोई टिपण्णी या प्रश्नचिन्ह लगाने से इंकार कर दिया है..

इसके मायने ये हुए कि राहुल गांधी को तो ये कहने का अधिकार है कि "चौकीदार चोर है" पर कोर्ट को इसके पीछे के तथ्यों की पड़ताल करने का या ऐसा कहने का अधिकार नहीं है.. क्योंकि न्यायपालिका के कार्यपालिका में दखलंदाज़ी के अधिकार या तो नहीं हैं - या सीमित हैं..

और देखा जाए तो ये बात तर्कपूर्ण भी है.. क्योंकि यदि जिस व्यक्ति या संस्था पर आप कार्य करने का दायित्व सौंपते हैं तो उसे अधिकारों से वंचित किया जाना भी उपयुक्त या व्यवहारिक नहीं होगा..

और इसलिए ही मेरा मानना है कि जिस किसी को भी आप कार्य करने या करवाने का दायित्व और अधिकार सौंपें - आप पहले उसकी क्षमता और ईमादारी को अच्छी तरह जांच परख लें - अन्यथा आपको निराशा हाथ लगेगी.. और इसलिए मेरा मानना है कि ये आपका सर्वथा सदैव ही कर्तव्य बनता है कि प्रधानमंत्री के असीमित अधिकार प्राप्त पद पर आप ऐसे व्यक्ति को ही बैठाएं जो सभी शंकाओं से ऊपर हो एक जांचा परखा योग्य व्यक्ति ही हो..

या कल्पना करें कि यदि न्यायाधीश भी भ्रष्ट हो जाएं तो क्या कीजिएगा ?? किसके आगे रोना रोइएगा या गुहार लगाइएगा ??..

और इसलिए मेरा मानना है कि जिन्हें लगता है कि राफेल में घोटाला हुआ है - उन्हें मोदी जैसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद से हटाने हेतु लोकतांत्रिक प्रयास और प्रार्थना करते रहना होगी !!..
सत्यमेव जयते !!.. भारत माता की जय !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

No comments:

Post a Comment