Tuesday 4 December 2018

// 'शहीद सुबोध' को श्रद्धांजलि देते समय 'अख़लाक़' को भी याद कर लीजिएगा !!.. ..//


देश ने पिछले दिनों देखा कि गौहत्या का मुद्दा कई इंसानों की हत्या का कारण बना.. पर ना तो गौहत्याएं रुकीं और ना ही इंसानों की हत्याएं..

और अभी फिर बुलंदशहर में एक पुलिस इंस्पेक्टर की भी हिंसक भीड़ ने हत्या कर दी.. और शायद इस ५६ इंची नाकारा सरकार के रहते - और शायद हो सकता है उसके बाद भी काफी समय तक - अब उन्हीं शर्मनाक कारणों से ऐसी ही हत्याएं होती रहेंगी..

ऐसा क्यों ??..

ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे लगता है ऐसा ५६ इंची नाकारा सरकार के संरक्षण में एक सोची समझी चाल के तहत ही शुरू किया गया था.. और भीड़ के उन्माद और दिमाग के दिवालियेपन का फायदा उठा भीड़ को उकसा कर ही ये सब वहशियाना हरकतों को अंजाम दिया या दिलवाया गया था..

और मेरी नज़र में भीड़ की याददाश्त तो बहुत कम और कमजोर रहती है - पर भीड़ की आदत बहुत पक्की सी हो जाती है..

और नतीजन.. योगी जब राजस्थान में हनुमान जी की जाति की विवेचना करते हुए चुनावी छल्लों में लिप्त अपना सरकारी काम करते हुए सदैव की तरह अपने उत्तरदायित्वों के तथाकथित निर्वहन करने का ढोंग कर रहे थे - शायद तब ही उनके तथाकथित उज्जवल 'उत्तरप्रदेस' के बुलंदशहर में सुबोध नामक एक पुलिस इंस्पेक्टर - जो गौहत्या की ही एक वारदात विषयक अपनी ड्यूटी निभाने के अपने उत्तरदायित्वों का ईमानदारी और बहादुरी से निर्वहन कर रहे थे - एक उग्र सांप्रदायिक अंधों की भीड़ के हिस्से बने कुछ दंगाई टाइप की औलादों द्वारा शहीद किए जा रहे थे..

और मुझे लगता है कि भीड़ के कुछ हैवानों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा होगा.. पर कुछ बिगड़ैल आदतों और धार्मिक चश्मे से हर घटना को देखने वालों को एहसास हो रहा होगा कि पहले तो मुसलमान मरे थे और अब तो हिन्दू भी मर रहे हैं - मसलन पहले तो अख़लाक़ मरे थे - अब सुबोध भी ??..

पर मैं तो यही सोच रहा हूँ कि गाय के नाम पर इंसानों की हत्या को जायज़ कैसे ठहराया जा सकता है ??.. पर अब हत्याएं तो होती रहेंगी.. क्योंकि भीड़ की आदत इतनी जल्दी कहाँ छूटती है - और विशेषकर तब जब भीड़ में असल गुनहगारों को अब तक उचित सजा ना देकर राजनाथ वाली कड़ी से कड़ी सजा देने की ही बात कही गई हो.. ..

बस मैं इसलिए ही कहता हूँ कि रवीश कुमार को सुनते रहिए !!.. और मान लीजिए कि ये ५६ इंची नाकारा सरकार के रहते आपको सजग रहना है और अपने दोस्तों और परिजनों को दंगाई बनाने से रोकना है..

और इसके लिए मैं सोचता हूँ कि समस्त साम्प्रदायिक अतिवादी संगठनों से अपने दोस्तों और परिजनों को बचाएं.. अन्यथा आपके कई अपने ऐसे ही बिलावजह मारे जाएंगे - और कईयों पर उनके मारे जाने के प्रकरण दर्ज हो वो कोर्ट कचहरी और नेताओं दलालों के चक्कर काट-काट कर अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर लेंगे..

और भूल कर भी कोई ये ना सोचे कि वो धर्म की रक्षा कर बहुत बहादुरी या पुण्य का काम कर रहा है.. क्योंकि वो असल में तो इंसानियत की हत्या कर रहा है..

इसलिए एक बार फिर कहूंगा - रवीश कुमार की कही गई हर बात को सुनते और समझते रहिए - और आज बहादुर सुबोध की शहादत पर ही सही अपनी बुद्धि का सदुपयोग कर अपने अंतर में झांकिए और कुछ बोध प्राप्ति की चेष्टा करते रहिए..

और हाँ 'शहीद सुबोध' को विनम्र श्रद्धांजलि देते समय धर्म और जाति का चश्मा उतार 'अख़लाक़' को भी याद कर लीजिएगा !!.. धन्यवाद !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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