Saturday 9 February 2019

// हाथी की मूर्तियों और जिन्दा गधों की ऐसी-की-तैसी.. ..//


मैने माना कि जनता के पैसों से हाथी की मूर्तियां लगवाना गलत और बेवकूफी था..

पर फिर तो सरकारी इमारतों के निर्माण में नक्काशी या सजावट के नाम पर बेल-बूटे और जानवर या आकृतियां बनाना भी गलत मानना पड़ेगा.. और इमारतों के गेट पर शेर मोर बतख कुत्ते लगवाना भी गलत मानना पड़ेगा.. और फिर तो गधे घोड़े आदि इधर उधर चौराहों पार्कों में लगवाना भी तो गलत मानना पड़ेगा..

और फिर विशेषकर गधों द्वारा जनता के पैसों का मनमाना बेवकूफाना दुरूपयोग तो बिल्कुल नहीं चलेगा.. है ना !!..

मसलन फिर तो अनाप शनाप ऊंची मूर्तियों के नाम पर करोड़ों खर्च करना भी तो गलत मानों..
फिर तो राष्ट्रपिता के हत्यारे गोडसे के मंदिर निर्माण को भी तो दंड योग्य मानों.. 
और भक्तों तथा फुर्सतियों के द्वारा जबरन चंदा इकट्ठा कर कई सामाजिक धार्मिक कार्य करवाने के धंधे को भी तो गलत मानना पड़ेगा..
और आस्था के नाम पर स्नान जैसे व्यक्तिगत कार्य हेतु करोड़ों रूपए के सरकारी खर्चे को भी तो गलत मानना पड़ेगा.. है ना !!..

इसलिए मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट यदि हाथी की मूर्तियों के विरुद्ध कोई स्वागतयोग्य उचित कड़ी कार्यवाही करता है तो ऐसा करना मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना होगा.. पर ये हाथ डालना ही होगा.. आज नहीं तो कल डालना होगा.. और जनता को भी अब जागरूक हो अपने धर्म जाति नेता और पार्टी को परे रख नाना प्रकार के टुच्चों द्वारा जनता के धन का अनवरत होता दुरूपयोग रोकना ही होगा..

विशेषकर हमारे नौकरों या वेतन भोगी सेवादारों या चौकीदारों द्वारा जनप्रतिनिधि होने के नाम पर जनता के पैसे के दुरूपयोग के विरोध में आवाज़ बुलंद करने की शुरुआत तो करनी ही होगी..

तो आइये.. एक शुरुआत कोर्ट ने मायावती के हाथियों के विरुद्ध एक टिप्पणी से की है.. एक शुरुआत हम भी एक टिपण्णी से करें..
हाथी की मूर्तियों और जिन्दा गधों की ऐसी-की-तैसी.. ..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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