Wednesday 24 August 2016

// दलहन में दलाली का खेल हो गया .. हराम का खाया भी गया - खाने भी दिया गया ....//


मेरी अद्यतन जानकारी अनुसार अरहर दाल एवं ज्यादातर अन्य दलहन भी वर्षा ऋतु में बोए जाते हैं और पैदावार शीत ऋतु उपरांत प्राप्त होती है ....

पर अब यदि वर्षा ऋतु के बीच में ही अरहर दाल और अन्य दलहनों के भाव टूट गए हैं - लुढ़क गए हैं .... तो क्यों ?? ....

मुझे कारण स्पष्ट है - यदि दालों के भाव ३०-४० रुपये लुढ़क गए हैं तो मुझे यकीन होता है कि - विगत कई महीनों से ये कम से कम ३०-४० रुपये का मुनाफा - बल्कि कहीं अधिक मुनाफा - किसी ना किसी अपात्र और कुपात्र की जेब में जा रहा था ....

और मुझे ये भी यकीन है कि ये मुनाफ़ा जिन जेबों में जा रहा था वो अपात्र कुपात्र सत्तापक्ष के ठुल्ले दल्ले छर्रे पट्ठे ही रहे होंगे .... यानि वो मस्त "खा रहे थे" और हमारे सेवक उन्हें खाने दे रहे थे .. बड़े आराम से - बड़े हराम से ....

और गरीब और आमजन हमारे सेवक की लाफ्फ़ाज़ी और दल्लों के अट्टाहास के बीच लुट रहा था .... और आज भी लुट ही रहा है .. बस थोड़ा सा कम ..

और मुझे लगता है कि लूट में जो थोड़ी सी कमी आन पड़ी है उसके कारण अब भक्त अट्टाहास करने ही वाले हैं .... झेलने के लिए तैयार रहें ....

और हाँ !! स्थिति का कुछ लाभ आप भी उठा लें .... जो भी नंगा कालर ऊंचा कर कहे कि - देखो अब दालों के भाव कम करवा दिए ना !! .. तो पहचान जाइयेगा कि यही वो भक्त है जिसके दल्लों से रिश्ते होने की पूरी संभावना है .... और वही आपका मुजरिम भी हो सकता है ....

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