Friday 26 August 2016

// जन्माष्टमी के दिन - एक काँधे पर जनाज़ा मुझे रुला गया ....//


कल जन्माष्टमी थी .. जन्म का दिन - हर्षोल्लास का दिन - हर्षोल्लास से मनाया गया - और निपट गया ....
इस मौके पर हमारे प्रधानमंत्री ने देशवासियों को शुभकामनाएं भी दीं - जिससे ज्ञात हुआ कि वे सजग ही रहे होंगे ....

पर जन्माष्टमी के दिन - मृत्यु से संबंधित एक समाचार भी दिल्ली मुम्बई में स्थित एवं स्थिर भाड़े के नेशनल मीडिया के माध्यम से छाया रहा ....

शायद ये मृत्यु अष्टमी के पहले सप्तमी की रही होगी .... और ये मृत्यु ओडिशा में हुई थी - जहां के समाचार यदाकदा ही आते हैं - इतने यदाकदा कि मुझे कई बार तो सोचना पड़ता है कि क्या ओडिशा स्वर्ग है जहां मीडिया में प्रसारित होने लायक पसंदीदा अपराध और गन्दगी भरी वारदातें नहीं होती होंगी - या फिर वहां के शासकों की मक्कार मीडिया वालों से बढ़िया सेटिंग हो रखी है .... या मीडिया के आलसीपन और मृतप्राय रवैय्ये से देश का वह भाग जो यकीनन कश्मीर जैसे ही देश का अभिन्न अंग है नेशनल मीडिया में अपनी जगह नहीं बना पाता है .. या ओडिशा में कोई मुख्यमंत्री या सरकार नाम की कोई चीज़ ही नहीं है .. या नेशनल मीडिया को ये केजरीवाल जैसे क्रांतिकारी उलझाए रखते हैं और उन्हें दिल्ली के बाहर निकलने ही कहाँ देते हैं ?? ....

और इसलिए ओडिशा का ये समाचार मुझे चौंका सा गया .... पर साथ ही रुला भी गया - हिला भी गया - झकझोर सा गया .... क्योंकि टीवी पर वीडियो दिखाया जा रहा था जिसमें ओडिशा के कालाहांडी में एक गरीब पति दाना मांझी अपनी पत्नी का शव अपने काँधे पर ढोते हुए चल रहा था आगे बढ़ रहा था - वो भी उसकी १२ वर्षीय बेटी के साथ .... और .. और .. और  .. बिना रोए - बिना चीत्कार - निर्विकार भाव से - वो अपना कर्त्तव्य निभा रहा था .. या कई-कई-कई बेशर्म लोगों के कर्तव्यों का जनाज़ा अकेले ही निकाल रहा था ....

जी हाँ वो दृश्य यकीनन एक जनाज़े का ही था .. पर कुछ अलग .... क्योंकि अब तक सुना था देखा था कि जनाज़ा चार कांधों पर निकलता है .. पर ये जनाज़ा एक काँधे पर ही निकल रहा था .... और ये जनाज़ा था हमारे इस देश के सत्ताधीशों का - 'सेवकों' का - मालिकों का - अमीरों का - बेशर्मों का - संवेदनहीनों का - सहिष्णुओं का - फेंकुओं का .. और सरकारों का - हमारी छिन्न-भिन्न व्यवस्थाओं का - और हमारे सड़े-गले तंत्र का ....

और इस तरह .... मृत्यु तो सप्तमी को हो चुकी थी - जनाज़ा भी निकल गया - और जन्माष्टमी के रोज कई मुद्दों को जन्म दे गया .... ऐसा जन्म जो रुला गया .... जो मुझे हर्षोल्लास से कुछ भी करने से वंचित कर गया ....

और मैं सोचता रहा कि मैं मोदी जी एवं मेरे अन्य मित्रों और स्वजनों द्वारा दी गई जन्माष्टमी की बधाइयों को किन शब्दों में अस्वीकार कर दूँ .. जन्म के त्यौहार के जश्न से अपने आपको कैसे अलग कर लूँ ????

और ये भी सोचता रहा कि हमारे ही समाज के उन संवेदनशील सजग लोगों का धन्यवाद किन शब्दों में करूँ जिनके कारण या जिनके प्रयासों से ओडिशा का ये समाचार वायरल हुआ जिसके बाद ही एम्बुलेंस आदि के इंतज़ाम हुए और ये सोया हुआ सरकारी तंत्र कुछ हरकत में आया .... यानि कुछ तो हुआ !!

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