Monday 29 August 2016

// क्या लोकतंत्र के मंदिर के प्रति भी कोई मर्यादा निर्धारित नहीं होनी चाहिए ?? ....//


आदरणीय माननीय जैन संत श्री तरुण सागर जी को हरयाणा विधानसभा में प्रवचन देने हेतु निश्चित ही औपचारिक निमंत्रण दिया गया होगा .... इसलिए विधानसभा में उनका प्रवचन हो गया ....

तो क्या भविष्य में भी अन्य धार्मिक संतो या मौलवियों आदि को भी हम विधानसभाओं के अंदर प्रवचन देते देखेंगे ?? .. यदि हाँ - तो किन-किन को और किन को नहीं ?? .. और इसका चाहना या अनुमोदन या निर्णय कौन करेगा और कौन नहीं ?? ....

क्या ऐसा संभव नहीं था या उचित ना होता कि प्रवचन का आयोजन विधानसभा के बाहर हो गया होता ?? .... और यदि ऐसा ही होता तो क्या फर्क पड़ जाता भला ?? ....

क्या हम हरयाणा विधानसभा में जल्दी ही रूपए ५१ लाख सरकारी सहायता प्राप्त बाबा राम रहीम का प्रवचन भी होते देख पाएंगे ?? .. या आसाराम जेल से छूटने के बाद मध्यप्रदेश या किसी अन्य विधानसभा से प्रवचन देते पाए जाएंगे ?? ..
या फिर कभी ये भी हो जाएगा कि प्रधानमंत्री या स्पीकर या राष्ट्रपति के कोई गुरु ही संसद में प्रवचन देते पाए जाएंगे ?? ....

और अंतिम प्रश्न .... क्या कभी ऐसा तो नहीं हो जाएगा कि कोई जैन संत किसी प्रेयर हेतु किसी चर्च में या इबादत हेतु हाजी अली या अरदास हेतु स्वर्णमंदिर या प्रार्थना हेतु सिद्धि विनायक मंदिर में अपने ही उसी वेश में पहुँच जाए जिस वेश में वो लोकतंत्र के मंदिर मानी जाने वाली विधानसभा में पहुंचे थे ?? ....

और बिल्कुल अंतिम प्रश्न .... क्या कोई भी मुस्लिम या सिख या हिन्दू संत जैसे ही कोई जैन संत सांसद का चुनाव लड़ देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते ?? .. और यदि बन गए तो क्या पूरे विश्व में वो वस्त्रहीन ही जाएंगे ?? .... 

मैं ये सब सोच रहा हूँ क्योंकि मैं इस देश का नागरिक हूँ .. चिंतित हूँ .. और क्योंकि शायद मैं नास्तिक हूँ - और नरक में जाने योग्य हूँ .... पर आप मत सोचियेगा .. और सोचियेगा तो प्रतिक्रिया मत दीजियेगा .... नहीं तो ....................................... तौबा !! .... कुछ भी हो सकेगा .. अकल्पनीय !! .. है ना ????

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