Monday 1 August 2016

// मृत पशु और कचरा मैला अब कौन उठाएगा ?? .. सेवक चौकीदार या पोस्टमैन ?? ..//


बहुमुखी सर्वजन अनुपयोगी प्रतिभा के धनी हमारे नमो जी हमेशा बघारते रहते हैं .... हमेशा हरकतें करते रहते हैं .... मसलन गलियों में झाड़ू लगा चुके हैं - घाटों की सफाई कर चुके हैं - योग कर चुके हैं - झूला झूल चुके हैं - ड्रम बजा चुके हैं - शादी कर चुके हैं - घर से भाग चुके हैं - स्कूली पढ़ाई पूरी कर चुके हैं - दुनिया घूम चुके हैं - बिना छुट्टी वर्षों लगातार काम कर चुके हैं - एक दिन में कई चुनावी रैलियां कर चुके हैं - कई चुनाव जीत चुके हैं - कई चुनाव हरवा चुके हैं - नाना प्रकार के महँगे वस्त्र और टोपे धारण कर चुके हैं - हारे हुए टुच्चों को मंत्री बनवा चुके हैं - और जीते हुए काबिलों की छुट्टी कर चुके हैं - अपनी छाती ५६ इंच फुला चुके हैं - अपने कई विरोधियो को चित्त कर चुके हैं - और केजरीवाल से कई बार मात खा चुके हैं ....

और नमो जी कइयों के मित्र - भाई - सेवक - चौकीदार और रीसेंट में पोस्टमैन होने का दावा कर चुके हैं ....

पर वो इतना सब कुछ कर भी कभी प्रधानमंत्री हो जाने की दुर्घटना होने के कारण उनसे अपेक्षित कार्य करते नहीं दिखे .. गोया कि चुनांचे - वो स्वयं या भाजपा के लिए सब कुछ कर सकते हैं - पर प्रधानमंत्री का काम नहीं कर सकते .. क्योंकि उन्हें ये काम करते आता ही नहीं है ....

पर इस सत्य के कारण पूर्ण निराश होने की भी आवश्यकता नहीं है .. क्योंकि उनकी ये अद्भुत काबलियत भी देश के लिए लाभकारी हो सकती है ....

अब देखिये दलितों ने एक शानदार ऐतिहासिक स्वागतयोग्य बहुअपेक्षित निर्णय करा है कि वो आइंदा मृत पशुओं को और कचरा मैला उठाने का कार्य नहीं करेंगे .... 

मैं उपरोक्त निर्णय से बेहद खुश और आशान्वित हूँ और दलितों को बधाई देता हूँ .... क्योंकि मेरे हिसाब से ये एकमात्र संकल्प दलितों के उत्थान में सहायक होगा और कई बद-दिमाग लोगों के दिमाग ठिकाने लगाने में कारगर होगा ....

यह एक ऐसा निर्णय है जो देश की दशा और दिशा तय करेगा - और मोदी जी को धता बताते हुए मोदी जी के द्वारा दिए नारे 'सबका साथ सबका विकास' को सार्थक कर देगा .... क्योंकि वर्षों बाद दलित उनके द्वारा पीढ़ियों और सदियों से किये जाने वाले अत्यंत कठिन कार्य की अहम् महत्ता को समझेंगे - और समझेंगे कि सुनार जैसा कार्य तो फिर भी कोई कर लेगा पर मृत पशु और मैला उठाने का कार्य हर किसी के बस का नहीं .... उन्हें ये बात समझ पड़ेगी कि एक कार्यालय में सामान्य कार्य करने वाले के वेतन से भी अधिक वेतन या मेहनताना ऐसे कठिन कार्य करने वाले का होना चाहिए .... और उन्हें अपनी सर्वोच्च उपयोगिता का एहसास होगा ....

और इसलिए प्रश्न उठता है कि मृत पशु और कचरा मैला अब कौन उठाएगा ?? ....

और मेरा उत्तर है .. भक्त हैं ना - देशभक्त भी हैं ना - गौरक्षक तो हैं ही ना .. वो तमाम उपदेशक और प्रचारक और गुरु हैं ना जो बताते आए हैं - अपना कार्य स्वयं करो .. और कई हज़ारों विधायक और सांसद है ना जिनके दिल दिमाग में जनसेवा करने का जुनून ही समाया रहता है .... और फिर नमो जी तो हैं ही ना ?? .... इसलिए इस विषयक चिंता की कोई बात नहीं ....

पर मुझे चिंता एक बात की जरूर है - कि दलितों के निर्णय को कहीं बहला फुसला या दमन कर वापस लेने को मजबूर ना कर दिया जाए .... और कहीं ये ऐतिहासिक स्वर्णिम करवट बेकार ना चली जाए ....

इसलिए मैं आज दलितों से आह्वाहन करता हूँ कि अपने निर्णय पर अडिग रहें - अपने आत्मसम्मान को समझें - वो कठिन कार्य अब बाकी सब लोगों को भी करने के लिए मजबूर करें - और यदि वो कठिन कार्य करना ही चाहें तो उसकी भरपूर रकम वसूल कर अपनी और अपने परिवार की सामाजिक स्थिति को बेहतर और अन्य के समकक्ष लाएं .... और इस प्रकार मुख्यधारा में आकर पूरे देश के समग्र विकास को मूर्त रूप देने की कृपा करें .. यह देश आपका ऋणी रहेगा .. धन्यवाद !!!! जय हिन्द !!!!

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