Tuesday 11 September 2018

// प्रजातंत्र के शेरुओं कुत्तों गधों का विश्लेषण.. और पेट्रोल डीज़ल का चार्ट.. ..//


याद है ना !!.. पद्मावती पद्मावत !!.. ये करणी सेना को हिंदुत्व को ज़िंदा करने या रखने के नाम से किसने और क्यों उकसाया और मोर्चे पर लगाया था ??..
और आज वही करणी सेना भाजपा और भक्तों के विरोध में सड़कों पर उतर चुकी है.. इस बार हिन्दू दलित-हिन्दू सवर्णों के झगडे में हिन्दू सवर्णो के पक्ष में..

और ये सब इसलिए हो पा रहा है कि देश में प्रजातंत्र है.. और इसलिए कुछ भी करने की छूट प्राप्त है.. और कुछ तो भी कहने की भी..

इसलिए ही तो प्रजातंत्र में ताज़ा-ताज़ा उल्लेख शेर और कुत्तों का हुआ है.. और उल्लेख किया है भक्तों के बाप के बाप यानि "दादा" ने.. जिन्होंने अब हिन्दुओं की एकता की वकालत की है और सभी हिन्दुओं को एक रहने की सलाह और समझाइश भी दी है.. और विचित्र दलील ये दी है कि यदि जंगल में शेर अकेला ही चल देगा तो कुत्तों का झुण्ड उस पर हमला कर उसे मार भी सकता है..

बस इसलिए ही कहता हूँ और भक्तों को समझाता हूँ कि शेर या शेरू होने या होने का भ्रम पालने से कुछ नहीं होता.. और हर बार कुत्तों की बात करने से भी कुछ हासिल नहीं होता.. क्योंकि कई बार तो शेरू को गधों से प्रेरणा लेते हुए भी पाया गया है..

इसलिए यदि प्रजातंत्र की बस्ती या जंगल को समग्र रूप से समझना हो तो मेरी बात समझो..
ये जो गधे और कुत्ते वगैरह हैं न ये प्रजातंत्र में बाहुल्य में पाए जाते हैं - जंगलों में भी बस्तियों में भी.. पर प्रजातंत्र के जंगल में कोई शेर वेर नहीं होता.. और कोई राजा वाजा भी नहीं होता.. होता है तो बस कोई सेवक जैसा प्रधानसेवक या चौकीदार टाइप ठोला..

और सबसे अव्वल बात तो यही है कि यदि गधा अपने आपको शेर समझ बैठे तो वो शेर हो नहीं जाता.. उसे तो कुत्ते ही निपटा देते हैं.. और जंगल में ये जो झुण्ड या भीड़ होती है ना वो शेरों की नहीं हुआ करती बल्कि वो तो कुत्तों की ही हुआ करती है जो अकेले में गुर्राते भौंकते हैं और जब एक हो जाते हैं तो कुत्तई पटक मारते हैं..

वैसे गधों के भी अपने झुण्ड रहते ही हैं.. जो भले ही काटने की क्षमता नहीं रखते हों और कुत्तों को निपटाने की औकात भी नहीं.. पर वो ढेंचू ढेंचू की पुरजोर आवाज़ करते रहते हैं.. सरपट दौड़ लगाते रहते हैं.. धूल के गुबार भी उड़ाते रहते हैं..

और इसलिए यदि अब हम जंगल से बाहर निकल बस्ती की बात भी करें तो मेरी समझाइश कुछ यूं बनती है कि..
हर मोर्चे पर हर बार कुत्ते या गधे लगाने से कुछ हासिल नहीं होता.. कभी कहीं गधे तो कभी कहीं कुत्ते लगाने पड़ते हैं.. और कभी कभार घोड़े या सांड भी छोड़ने पड़ते हैं..

और ये जो शेर होता है ना वो जंगल का प्राणी है.. ये इंसानों की बस्तियों में स्वच्छंद विचरण नहीं करता है जैसा कि कुछ गधे कल्पना और वर्णन करते हैं.. और यदि कोई शेर इंसानों के इलाके में घुस भी आए ना तो इंसान उसे गोली मार देते हैं.. या बेहोशी का इंजेक्शन शूट कर पिंजरे में बंद कर ज़ू में गधों कुत्तों बंदरों सूअरों के साथ ही रख देते हैं.. समझे बेवकूफों !!..

और बेवकूफों यह भी समझ लेना कि ये जो कुत्तों के झुण्ड होते हैं न वो तो जंगलों में भी और बस्तियों में भी पाए जाते हैं.. और गधों के झुण्ड भी.. इसलिए बेहतर होगा कि जंगल से बाहर निकल जानवरों जैसे जानवरों की बात करने के बजाय इंसानों की बस्ती के बारे में यथार्थ बातें की जाएं.. बिलकुल इंसानों जैसे - ना कि गधों कुत्तों जैसी..

मसलन यदि पेट्रोल और डीज़ल का कोई चार्ट भी बनाए हैं तो इंसानों जैसा तो बनाओ.. ये गधों की अक्ल के हिसाब का बना फिर शेर शेरू चिल्लाने और कुत्तों जैसे भोंकने से क्या फायदा होगा ??..

अब तो समझे ना.. और यदि नहीं समझे तो बताना कि "दादा" की बात समझ पड़ गई थी क्या ??.. हाहाहाहाहा !!..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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