हमारे महामहिम राष्टपति श्रीमान प्रणब मुखर्जी ने समाज में बढ़ते संघर्ष और मतभेद पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए बहुत उपयुक्त कहा है कि .. ..
"समाज में संघर्ष और वैचारिक मतभेद बढ़ रहे हैं - और परस्पर सम्मान बढ़ाने की सख्त जरूरत है - और पहले भी वैचारिक मतभेद थे लेकिन ऐसी स्थिति नहीं थी" .. ..
मेरी प्रतिक्रिया ....
मैं भी तो यही कहता रहा हूँ - बस फर्क ये हो गया कि राष्ट्रपति जी ने शायद अपनी मर्यादाओं में रहते ये सब कुछ बड़ी शालीनता से अब बोला है - और मैं यही बकबक दिलो दिमाग से पूर्ण मर्यादा के साथ बहुत पहले से कर रहा हूँ .. और मुझे अपनी बकबक पर कभी कभार तो इतना गर्व हो उठता है कि मुझे लगता है कि मैं भी राष्ट्रपति बनने का योग्य उम्मीदवार हूँ .. ..
पर मैं राष्ट्रपति बनना नहीं चाहता .. क्योंकि मैं मर्यादाओं में बंधकर अपनी बात अधूरी नहीं रखना चाहता .. मैं तो अपनी बात खुलकर कहना चाहता हूँ .. ..
और मेरी खुल्ली-खरी बात यह है कि .. ..
जब खादी की बिक्री बढ़ने का कारण मोदी हैं तो फिर समाज में संघर्ष और वैचारिक मतभेद बढ़ने के जवाबदार भी मोदी ही हैं .. और परस्पर सम्मान बढ़ाने हेतु दम्भी मोदी को हटाना आवश्यक है - और वैचारिक मतभेदों का मोदी द्वारा उपहास करने से उपजी स्थितियों को अब सुधारना ही होगा .. .. कोई शक़ ?? .. ..
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