Saturday 21 January 2017

// 'चुनाव-चिन्ह' की भी अपनी अहमियत तो होती ही है .. पर आखिर कितनी ?? ....//


अब देखिये ना - 'साईकिल' तो है ही चलायमान सो कोई साईकिल ले भगा - बड़े आराम से .. कोई 'हाथ' पकड़ भागने-भगाने के लिए लालायित है .. कोई 'कमल' के पास जाने में भी कीचड में सने जाने से भयभीत है .. कोई 'हाथी' की डांवाडोल सवारी से घबरा रहा है .. ..

पर कोई समझदार 'झाड़ू' से पंगा क्यों लेगा ?? .. जबकि झाडू तो चलते ही सफाई कर देता है और कभी कभार तो पिटाई कर भगा भी देता है .. ..

और इसलिए ही मैं सोच रहा था कि ये तो अच्छा हुआ "पहलवान" को चुनाव आयोग ने "लंगोट" का चुनाव चिन्ह आवंटित नहीं किया था - नहीं तो आज तो गज़ब हो जाता .. टुच्चे कहते बेटा बाप की लंगोट खींच ले गया .. छि: !! ..../

खैर ये तो हुई थोड़े से मज़ाक की बात .. पर अब थोड़ी सीरियस कल्पना भी हो जाए .. .. 

मुझे लगता है कि 'लाल लंगोट' चिन्ह तो बाबा की शीघ्र बनने वाली पतंजलिकट्टु पार्टी के लिए बुक्ड है - और "छि:छि:छि:" भी होगी जब बालकृष्ण लंगोट खींच के भागेंगे .. छि: !! .. कितना रंगीन वीभत्स दृश्य निर्मित होगा ना .. .. सफ़ेद वस्त्रों पर लाल लंगोट लपेटे सारा काला धन ले कोई भगासन कर रहा होगा .. और कोई लंगोट विहीन तब भी कालेधन का जाप कर रहा होगा .. और कोई तब भी उसे झूठी सांत्वना दे रहा होगा कि - "अच्छे दिन आने वाले हैं " .. ..

मेरी कल्पना का अभिप्राय यह है कि ऐसी "धंधे वाली राजनीति" में किसी का क्या भरोसा .. और 'चुनाव चिन्ह' की भी आखिर कितनी अहमियत .. कल तक जो कमल खिलता हुआ दिखता था वही कमल आज मुरझाया हुआ लग रहा है .. कल तक जो कीचड में था क्या पता कल किसी हाथ में हो .. है ना !!

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