पहली टिप्पणी.. ६ जवान शहीद हुए.. उनमें से ५ मुसलमान हैं : ओवैसी..
दूसरी टिप्पणी.. सेना को तैयारी में ५-७ महीने लगेंगे .. हम संघी ३ दिन में तैयार : भागवत..
अब मेरी टिप्पणी..
पहली ओवैसी की टिप्पणी सत्य पर आधारित थी.. दूसरी भागवत की टिप्पणी एक जुमला हो सत्य से कोसों दूर होते हुए हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण थी..
ओवैसी की टिप्पणी स्वयं पर या अपनी जमात पर गर्व करने के उद्देश्य से थी.. और भागवत की टिप्पणी स्वयं या अपने संगठन को महामंडित करने के उद्देश्य से थी और चाहे अनचाहे सेना को नीचा दिखाने के उद्देश्य से मानी गई..
ओवैसी की टिप्पणी पूर्व में दी गई अनेक टिप्पणियों से खिन्न होकर उनका मुंहतोड़ जवाब देने का प्रयास था.. और भागवत की टिप्पणी स्वयं मियामिट्ठू बनने के चक्कर में स्वयं के हाथों अपना ही मुंह तोड़ लेने की दुर्घटना हो गई..
दोनों टिप्पणियां सेना से संबंधित थीं.. पहली टिप्पणी पर सेना की प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं थी पर सेना ने प्रतिक्रिया दे दी.. दूसरी टिप्पणी पर सेना की प्रतिक्रिया हो सकती थी पर सेना ने प्रतिक्रिया नहीं दी..
ओवैसी की टिप्पणी की गोदी मीडिया पर एकतरफा घनघोर निंदा हुई.. भागवत की टिप्पणी पर प्रायोजित बहस भी खूब हुई..
मुझे पहली टिप्पणी दूसरी टिप्पणी से कहीं बेहतर लगी.. किसी को कोई आपत्ति ??.. और जिसे आपत्ति हो वो और सुन ले.. मुझे ओवैसी प्रतिक्रियात्मक साम्प्रदायिकता करते दिखते हैं जबकि भागवत उत्तेजक साम्प्रदायिकता..
और मुझे ओवैसी भागवत से ज्यादा काबिल भी लगते हैं !!..
ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl
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