Saturday 7 November 2015

// ये विरोध के विरोध के विरोध का समय नहीं - ये चिंता करने का समय है ..//


आरएसएस और भाजपा हिंदुत्व की ओर झुकी मानी जाती रही है ....
भाजपा सरकार बनने के बाद हिंदुत्व के झंडाबरदारों द्वारा कुछ वो कृत्य किये गए जो देश के कई लोगों को साम्प्रदायिक लगे ....
और शुरुआत हुई "विरोध" की ....
और विरोध के बाद शुरुआत हुई भड़काऊ और ओछे बयानों की ....
और फिर विरोध हुआ ऐसे ओछे नेताओं का और उनके बयानों का ....
और विरोध में बात आई "असहिष्णुता" की ....
और उसके बाद शुरुआत हुई "असहिष्णुता" के विरोध की ....
और उसके बाद अब विरोध हो गया है "असहिष्णुता के विरोध" का ....

यानि कुछ ऐसा हो रहा है कि विरोध के विरोध के विरोध का विरोध और उसका भी विरोध होता दिख रहा है .... और प्रजातंत्र होने के कारण सारा विरोध "प्रजातांत्रिक" माना जा रहा है - और निःसंदेह है भी ....

तो क्या इसका यह अभिप्राय निकाला जाए कि सब कुछ सही चल रहा है ????

मेरे विचार में सब कुछ सही नहीं चल रहा है - बल्कि कुछ भी सही नहीं चल रहा है .... और ऐसा मैं इसलिए मानता हूँ कि जब सत्ता पक्ष ही विरोध पर उतर आये तो मैं इसे भयावह मानता हूँ ....

स्पष्ट कर दूँ कि सत्ता पक्ष को भी विरोध का अधिकार तो है - पर सत्ता पक्ष के लिए उचित यही होता है कि विरोध करने के बजाय अपने पक्ष में एक माहौल या सहमति बनाए ....

यानि यदि आरएसएस और भाजपा हिंदुत्व के पक्ष में कुछ करना या कहना चाहती है - या इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहती है - तो उसे ऐसे उद्देश्य के लिए एक राष्ट्रीय सहमति निर्मित करने की दिशा में पापड़ बेलने होंगे .... ना कि इस उद्देश्य को सांप्रदायिक मानने वालों का विरोध और दमन ....

और विरोध भी ऐसा भोंडा - जिसका कि विरोध निश्चित ही होगा - और एक कदम आगे बढ़ कर होगा .... और इस प्रकार होगा केवल विरोध - झगड़ा - टंटा - नुक्सान - और अंततः विनाश !!!!

इसलिए चिंता होती है कि - हम चले तो थे चीन से आगे निकलने - पर कहीं पाकिस्तान जैसे टुच्चे देश से भी पिछड़ ना जाएं ... इसलिए ये विरोध का समय नहीं है - बल्कि ये चिंता करने का समय आ गया है !!!!

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