Monday 13 June 2016

// वही पुराना ढर्रा - वैसे ही आईआईटी क्रैक ग्राहक ?? ..//


आजकल ड्रग्स का धंधा चर्चा में है - मोदी के चमचे के कारण .... जो मुझे कुछ नहाया हुआ प्याज सा लगता है - यानि अजीब सा - गरीब सा - बावला सा ....

पर एक धंधा और है जो इस धंधे से भी पुराना है - और अक्ल के अंधों के लिए इसका पर्दाफाश भी अभी कुछ एक दिन पहले ही हुआ है ....

और धंधा है - "पढ़ाने का धंधा" .... इसे आप "प्रोडिकल साइंस" पढ़ाने का धंधा भी कह सकते हैं - बिलकुल नए प्रकार की पढाई - नया विषय - नया नाम ....
और ये धंधा चर्चा में आया है - बच्चा यादव के कारण .. ये वो बच्चा है जो बच्चा ना हो सबका बाप निकला - और इस धंधे का अहम किरदार भी .. बिहार के एक नामी बदनामी राजनैतिक संरक्षण प्राप्त सरकारी स्कूल के माध्यम से स्वसहायता प्राप्त धन्धेबाज़ गुंडे टाइप प्राचार्य - अज्ञानी गुरु श्री बच्चा यादव .... 

पर बता दूँ कि धंधे में नयापन कुछ भी नहीं है - क्योंकि इस धंधे के तरीके बहुत पुराने हैं .. और वो तरीका है कि आप सबको दिखाने के लिए पढ़ाने का नाटक करते रहें - पर अपने विद्यार्थियों या शिष्यों या चेले चपाटियों या सही मायने में अपने "ग्राहकों" से मोटी रकम ले उन्हें टॉपर या टॉपन-टॉप रैंक से पास करवा दें .... जिसे प्रोडिकल साइंस के ग्राहक आजकल परीक्षा को क्रैक करना कहते हैं - जी हाँ "क्रैक" !!

और यदि आप पढ़े लिखे हैं तो ये सब कैसे किया जाता है इसकी कल्पना करना भी बहुत आसान है .. ये करते क्या हैं कि अपनी दुकान कोटा या इंदौर जैसी पढाई की मंडी में लगाते हैं - और प्रश्नपत्र "क्रैक" करवा लेते हैं .. बस फिर क्या है - इनके ग्राहक परीक्षा "क्रैक" कर ही लेते हैं .... और परीक्षा परिणामों के अगले दिन ऐसी दुकानों के विज्ञापन छपते हैं - ग्राहकों के छोटे छोटे स्टाम्प साइज के फोटुओं सहित .... और बस ग्राहकों की अगली खेप तैयार .. एक बार फिर कुछ भी "क्रैक" करने के लिए ....

यदि आप आज ही आए आईआईट एडवांस २०१६ के रिजल्ट्स पर गौर फरमाएंगे और टीपेंगे कि - एक ही दुकान के २८ ग्राहक "क्रैक" करने में सफल - या एक ही दुकान के ३ क्रैकर टॉप पर ... तो शायद आप मेरी बात समझ ही जाएंगे .... जैसे आप समझ चुके हैं कि बच्चा के बच्चे प्रोडिकल साइंस एवं अन्य विषयों में टॉप कैसे किए थे ....

और इस सबके बीच - सरकार निष्क्रिय है - मौन है .. और लगता है कि स्मृति के सहारे सब कुछ भूलते हुए वही पुराने ढर्रे की शिक्षा नीति का निर्वहन हो रहा है - पर कुछ नए नाम से .. "ना पढ़ा हूँ ना पढ़ने दूंगा" ....

माँ सरस्वती ही बचाए ऐसे बच्चा से और ऐसे क्रैक ग्राहकों से - और ऐसी सरकारों से - और ऐसी स्मृतियों से !!

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