Monday 21 September 2015

//// आरक्षण का आधार "हार्दिक" ना हो "आर्थिक" ही होना चाहिए ....////


आरक्षण पर आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत तक ने बयान दे दिया .... बयान भी क्या बखान दे दिया - जिसका लुब्बेलुबाब तो बस यही निकलता है कि - आरक्षण नीति पर समीक्षा होनी चाहिए ....

अब समीक्षा क्या होती है ? क्या हो सकती है ? क्या होनी चाहिए ? आदि विषय हवा में तैरने लगे हैं .... और राजनीतिक बयान और कयास भी चल पड़े हैं कि भागवत जी के बयान के क्या मतलब ? क्या संदर्भ ? क्या मायने ? क्या मकसद ? क्या महत्त्व ? क्या निशाने ? और बयान कितने तोड़े मरोड़े गए ? आदि ....

पर जैसा कि बड़े लोग करते आए हैं - मोहन भागवत बयान उपरान्त खामोश हैं - और खामोश ही अपेक्षित हैं ....

और अपेक्षित यह भी है कि - बिहार चुनाव तक सभी जवाबदार खामोश ही रहेंगे .... तथा राजनीतिक शाने पक्ष या विपक्ष में बिना तर्क अस्पष्ट भाषा में द्विअर्थी बयान देंगे .... तथा राजनीतिक बुद्धू पक्ष या विपक्ष में बिना तर्क स्पष्ट भाषा में बयान देंगे .... और कुछ एक समझदार तर्कसंगत बात भी करेंगे ....

इसलिए मेरी तर्कसंगत बात ....

आरक्षण पर समीक्षा होनी चाहिए .... आरक्षण का मकसद वंचित को सहायता देकर उसे ऊपर उठाना है .... और असली मायने में वंचित वही है जो सुख सुविधाओं से वंचित है - और सामान्यतः सुख सुविधाओं से वंचित वही है जो गरीब है जिसके पास सुख सुविधाएं प्राप्त करने हेतु धन और साधन नहीं हैं ....

अतः मेरे तर्क अनुसार आरक्षण जाति या धर्म आधारित नहीं होना चाहिए - बल्कि आरक्षण तो सीधे-सीधे वंचित गरीब के लिए गरीबी के तार्किक मापदंड निर्धारित करने के उपरान्त होना चाहिए .... यानि आरक्षण का आधार "हार्दिक" ना हो "आर्थिक" ही होना चाहिए !!!!

और हाँ !! मौन मोदी ने तुरंत इस विषय पर अपने मुख से अपनी राय समक्ष में रखनी चाहिए .... भले ही उनका बोलना मात्र ही बिहार चुनाव की हार का कारण स्थापित प्रतीत हो जाए या मान्य हो जाए ....

पर क्या शाने मोदी ऐसा करेंगे ? कुछ कहेंगे ?? इस यक्ष प्रश्न का सरल उत्तर है - कदापि नहीं .... और इसलिए मेरे अभिमत में तो ये "जुमला" जैसा ही "शगूफा" है जो किसी स्वहित में छोड़ा गया है .... जो अंततः समाज में विद्वेष की भावना बढ़ाने का नियोजित प्रयास प्रतीत होता है .... जो निंदनीय ही सिद्ध होगा !!!!

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