Thursday 3 September 2015

//// ये मजबूरी की बेशर्मी - या बेशर्मी की मजबूरी ?? ..////


प्रधानमंत्री बनने से पहले जब मोदी जी सत्ता पाने के लिए आतुर हो दिन-ब-दिन रैली-रैली ऊंची-ऊंची फेंक रहे थे तब ही उन्होंने मनमोहन सरकार का उपहास करते हुए एक चुनावी रैली में बड़े ही दम्भ से कहा था - " सत्ता में आने पर शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाकर उन्हें न्याय दिलाउंगा - और देश का सम्मान लौटाएंगे " ....

तो यानी बात देश के सम्मान से जुडी होना तय हुआ ....

पर बाद में मोदी सरकार ने पलटी मारी - और बाकायदा संसद में घोषित कर दिया कि - अंतरराष्ट्रीय अदालत में कैप्टन कालिया पर हुए पाकिस्तानी अत्याचार के खिलाफ अपील करना संभव नहीं है ....

बात देश के सम्मान से जुडी थी - हल्ला मचना था - हल्ला मच गया था - मानवाधिकार और मानवीय आधार भी चर्चा में आ गए थे .... 

और मामला बढ़ता देख मानवीय आधार की पक्षधर हमारी तब यशस्वी विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने सार्वजनिक रूप से तुरंत वक्तव्य दिया था कि - " सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा बदलेगी - केस के अपवाद होने का मुद्दा बनाकर इंटरनेशनल कोर्ट जाएंगे " ....

सुषमा के वक्तव्य की सराहना होनी थी - हो भी गई थी .... आखिर बात देश के सम्मान से जो जुडी थी !!

पर जनाब अब सुप्रीम कोर्ट में देश का सम्मान लौटाने का दावा करने वाली मोदी सरकार ने एक बार फिर पलटी मार ली है - जबरदस्त पलटी - उल्टी पलटी .... उस मनमोहन सरकार की ही तरह जिस पर मोदी देश के सम्मान को गिरवी रखने का आरोप लगा रहे थे मोदी सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में शिमला समझौते की मजबूरी बता दी - और कह दिया कि चूँकि पाक इस मुद्दे को अंतराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने के लिए राजी नहीं है इसलिए अंतरराष्ट्रीय अदालत में कैप्टन कालिया पर हुए पाकिस्तानी अत्याचार के खिलाफ अपील करना संभव नहीं है .... 

यानि प्रथम दृष्टया तो यही दिखता है कि मोदी सरकार देश के सम्मान को लौटाने में असफल हो गई है - और ऐसी बेशर्मी का कारण "मजबूरी" जैसा कुछ प्रतीत होता है ....

मजबूरी इसलिए कि मोदी सरकार अब मजबूर सरकार सिद्ध हो चुकी है .... सिद्ध इसलिए कि काला धन ना ला पाने में मजबूर - भूमि अधिग्रहण बिल वापस लेने में मजबूर - OROP मामले में वादाखिलाफी हेतु मजबूर - संघ की शरण और काबू में जाने के लिए मजबूर - सांप्रदायिक ताकतों के आगे झुकने के लिए मजबूर - दागी नेताओं का इस्तीफ़ा ना लेने में मजबूर -  देश में लहराते पाकिस्तानी झंडे देखने और पाकिस्तान समर्थित नारे सुनने को मजबूर - और गजेन्द्र चौहान तथा रामनरेश यादव तथा नजीब जंग तथा नरेंद्र मोदी जी को तोकने और ढोने में मजबूर ....

पर क्योंकि ये मामला देश के सम्मान से जुड़ा है - मैं इसके बारे में बहुत सोच विचार कर रहा हूँ और समझ नहीं पा रहा हूँ कि ये मजबूरी बेशर्मी के कारण है - या ये बेशर्मी मजबूरी के कारण है ?? ....

फिर सोचता हूँ कि क्या फर्क पड़ता है - ये मजबूरी की बेशर्मी हो - या बेशर्मी की मजबूरी - दोनों ही स्थिति में इस सरकार की हर मोर्चे पर मजबूरी और बेशर्मी साफ़ दिखती ही है .... है ना !!!!

अमर शहीद कैप्टन सौरभ कालिया को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित .... माफ़ी के साथ !!!!

No comments:

Post a Comment