Tuesday 15 November 2016

// ये कैसा संयम ?? .. ये कैसी परीक्षा ?? .. ये कैसा न्याय ?? ....//


आज नईदुनिया अखबार में छपी खबर से मैं विचलित हो उठा हूँ ....
खबर अनुसार - उच्च न्यायालय के तत्कालीन जस्टिस दिलीप रावसाहेब देशमुख २०१२ में दतिया से भोपाल जा रहे थे - उनकी आरक्षित बर्थ किसी और को आवंटित हो गई - और उन्हें दूसरे कोच में बर्थ दी गई जो उन्हें नागवार गुजरी - और बस माननीय न्यायमूर्ति महोदय जी ने रेलवे पर केस ठोक दिया ....

और खुद जज साहेब का केस - तो आप अंदाजा लगा लें - क्या हुआ होगा .. जी हाँ !! पहले जिला उपभोक्त अदालत ने उनके पक्ष में रेलवे को ६० हज़ार रूपए मुआवज़ा देने का "न्यायसंगत" निर्णय दिया - जिसे अब दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने भी "न्यायसंगत" ही मानते हुए बरक़रार रखा ....

और इस निर्णय के मायने कि आपके हमारे सरकारी पैसे से माननीय न्यायमूर्ति महोदय जी को ६० हज़ार रूपए का मुआवज़ा दिया जाएगा ....

और जब मैं अपने ही पैसों के लिए लंबी लाइनों में लगते खपते मरते लाखों करोड़ों गरीबों को देख रहा हूँ तो सोच रहा हूँ कि ये कैसे कानून - कैसी व्यवस्था - कैसे उपभोक्ता - कैसा मुआवज़ा - कैसे न्यायालय - कैसा न्याय - कैसे न्यायमूर्ति - कैसे नेता - कैसी शर्म - कैसा पक्षपात - कैसी लूट - कैसी दादागिरी - कैसी सोच ???? .. और मैं यह भी सोच रहा हूँ कि उस न्यायमूर्ति को कुछ घंटे की यात्रा में अपनी आवंटित बर्थ के एवज़ में अन्य किसी बर्थ पर अपने शरीर को आराम देना पड़ा तो कितना बड़ा अनर्थ हो गया ?? .. और लाखों करोड़ों गरीबों को अपना पेट भरने की मजबूरी में अपने पैसे प्राप्त करने हेतु घंटो खड़े रह कष्ट झेलने में कुछ भी अनर्थ नहीं हुआ ना !! .. वो तो खड़ा है - तो आराम से खड़ा रहे - देशहित में खड़ा रहे - खड़े-खड़े भी ऐश करे .. और हाँ "संयम" से ही खड़ा रहे ???? ....

इसलिए आज विचलित हो यह भी सोच रहा हूँ ... कि ये कैसा "संयम" ???? ....
आज देखूँगा और समझूंगा ये "संयम" क्या बला है - इसके क्या मायने - और इसके क्या गुंताड़े ?? .... 

क्योंकि मेरा संयम तो टूट सा रहा है .. पर संयमित हो जो कर सकता था कर दिया - दुखते दिल से ये लेख लिख दिया .. अब आप चाहें तो मेरे संयम को धिक्कार भी सकते हैं सराह भी सकते हैं .... पर मैं ऐसी भीड़ के ऐसे संयम पर तरस ही खा सकता हूँ - और ऐसे संयम की परीक्षा लेने वाले को एक बार फिर धिक्कारता हूँ .... और मांग करता हूँ कि यदि उस न्यायमूर्ति को ६०००० रूपए का मुआवज़ा देय है - तो वैसे ही प्रत्येक गरीब को भी प्राप्त कालेधन में से ही ६०००० रूपए का मुआवज़ा देय हो .... और ऐसे संयम की परीक्षा लेने वालों को "मध्यप्रदेश के मंत्रीपुत्र के फॉर्मूले अनुसार पानी में गीली कम से कम एक चप्पल" तो रसीद हो ....

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