Friday 11 November 2016

// करे कोई भरे कोई मरे कोई .. ऐसा व्यवहार न्यायोचित नहीं ....//


बचपन से सुनते आए कि फलां-फलां केस में आरोपी को 'शक के लाभ' में या 'सबूतों के अभाव' में बरी कर दिया जाता रहा - और ये भी कि कानून अँधा होता है - आदि !! ....

फिर दलील सुनते कि हमारे देश का कानून कुछ यूँ है कि भले ही ९९ दोषी छूट जाएं पर एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए .. .. ..

पर आज देख रहा हूँ कि ५००-१००० के नोट बंद करने के सही कदम के तुगलकी फरमानों और बेवकूफाना क्रियान्वयन के कारण अब तक कालेधन्नासेठ प्रभावित नहीं दिखे पर सफ़ेद धन वाले आम जन हलाकान दिखे .. बुरी तरह प्रभावित दिखे .. चिंतित दिखे .. ठगे दिखे .. रोते दिखे .... 

मुझे यह भी महसूस हुआ कि कालेधन्नासेठ को १०० के नुक़सान से भी उतनी परेशानी नहीं होनी है जितनी कि एक गरीब को १ के नुक़सान से होनी है .. क्योंकि धंधे चौपट हो गए और गरीब में १ के नुक़सान उठाने की क्षमता नहीं है .... इसलिए मार तो गरीब को ही पड़ी है .. वो भी बिना किसी अपराध या फिर उचित या वैधानिक कारण के ....

यानि साफ़ दिखा कि ....

करे कोई भरे कोई मरे कोई ..
निर्दोष की कोई सुने नहीं ..
दोषी को कोई असर नहीं ..
चौकीदार भारत में नहीं ..
सरकार में अक्ल नहीं ..
बागों में बहार नहीं ..
और ....
ऐसा व्यवहार न्यायोचित नहीं ..

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