Thursday 3 November 2016

/ मोदी सरकार के एक बोझिल मंत्री वी.के सिंह कह रहे हैं कि .. पूर्व सैनिक रामकिशन जिसने आत्महत्या कर ली - वो तो कांग्रेसी था .. और मैं रहस्योद्घाटन करता हूँ कि सरदार वल्लभ भाई पटेल भी कांग्रेसी थे - कमलगट्टे कदापि नहीं .... और रीता बहुगुणा भी कांग्रेसी थी - समझदार कदापि नहीं ..../


2 comments:

  1. ऐसे मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए तो क्या वीडियो गेम खेलना चाहिए
    http://khabar.ndtv.com/news/blogs/ravish-kumars-blog-on-bhopal-encounter-issue-1620956
    ऐसे मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए तो क्या वीडियो गेम खेलना चाहिए
    भोपाल में जेल से भागे सिमी के सदस्‍यों के कथित एनकाउंटर मामले में सियासत गरमाई हुई है (फाइल फोटो)आए दिन कोई न कोई नेता या संवैधानिक प्रमुख, अपने ठोंगे से मूंगफली की तरह उलट कर ये सुझाव बांटने लगता है कि ऐसे मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए. हम कंफ्यूज़ हैं कि वो कौन से ‘ऐसे मामले’ हैं जिन पर राजनीति नहीं हो सकती है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ये बात कही है. खुद संवैधानिक पद पर रहते हुए आरोपी को क्रूर आतंकवादी बता कर ट्वीट कर रहे हैं, क्या ये राजनीति नहीं है? क्या ये उन्हीं ‘ऐसे मामलों’ में राजनीति नहीं है, जिन पर राजनीति न करने की सलाह बाकियों को दे रहे हैं?

    मुख्यमंत्री को इतना तो पता होगा कि जब तक आरोप साबित नहीं होते तब तक किसी को आतंकवादी नहीं कहना चाहिए. पर वे खुलकर क्रूर आतंकवादी लिख रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं कि मारे गए लोग निर्दोष हैं पर सज़ा अदालत देगी या मुख्यमंत्री ट्विटर पर देंगे. क्या इस देश में सिखों को, मुसलमानों को और बड़ी संख्या में हिन्दुओं को फर्ज़ी एनकाउंटर में नहीं मारा गया है? क्या ये सही नहीं है कि सभी दलों की सरकारों ने ये काम किया है? अगर एनकाउंटर संदिग्ध नहीं होते हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन क्यों बनाई है? क्या मुख्यमंत्री को सुप्रीम कोर्ट का आदर नहीं करना चाहिए?

    एनकाउंटर अदालत की निगाह में एक संदिग्ध गतिविधि है. एक नहीं, सैकड़ों उदाहरण दे सकता हूं. वैसे भी इस मामले में किसी राज्य का मुख्यमंत्री कैसे बिना साबित हुए क्रूर आतंकवादी लिख सकता है. क्या हमारे राजनेता अपने ऊपर लगे आरोपों को बिना फैसले या जांच के स्वीकर कर लेते हैं? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पार्टी के नेताओं और सरकार के अधिकारियों पर व्यापम घोटाले के तहत लगे आरोपों को बिना अंतिम फैसले के स्वीकार करते हैं. जब हमारे नेताओं ने अपने लिए कोई आदर्श मानदंड नहीं बनाए तो दूसरों के लिए कैसे तय कर सकते हैं.

    मध्य प्रदेश के एंटी टेरर स्कावड का प्रमुख कह रहा है कि भागे कैदियों के पास बंदूक नहीं थी तो फिर तस्वीर में कट्टे कहां से दिख रहे हैं. फिर आईजी पुलिस तीन दिन से किस आधार पर कह रहे हैं कि कैदियों ने जवाबी फायरिंग की. सरपंच का बयान है कि वे पत्थर चला रहे थे. दो आईपीएस अफसरों के बयान में इतना अंतर है. क्या इनमें से कोई एक अफसर गद्दार है? देशभक्त नहीं है? क्या इनमें से कोई एक आईपीएस इन क़ैदियों से सहानुभूति रखता है? क्या हम इस स्तर तक आने वाले हैं ? रमाशंकर यादव को मारकर अमरूद की लकड़ी और तीस चादरों से सीढ़ी बना रहे थे, उस वक्त जेल प्रशासन क्या कर रहा था. क्या..............
    पहली बार प्रकाशन: नवम्बर 3, 2016 04:09 PM IST

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    1. Well said .. 100% true and logical mentions ....

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