मेरे कुछ मित्र मुझ से हमेशा ये कहते रहे हैं कि 'दद्दाजी' की निंदा मत करो - तुम बहुत
अच्छा सटीक अकाट्य और तथ्यात्मक लिखते हो - 'दद्दाजी' का नुक्सान हो जाएगा - उनकी वाट
लग जायेगी - लोग उन्हें हटा देंगे तो फिर कौन आएगा - उन्हें थोड़ा समय तो दो - बाकी
भी तो सब बर्बाद ही हैं - एक AK-49 बहुत ही अच्छे हैं तो भी वो अभी सीधे केंद्र में
नहीं आ सकते - 'दद्दाजी' सब ख़राब में कुछ तो अच्छे हैं ही (best amongst worst) - उन्हें
बख्श दो - उनकी आलोचना करना बंद करो और उन पर थोड़ा रहम करो - और बेहतर होगा की
तुम भी 'दद्दाजी' के 'अपने' बन जाओ !!!!
मेरे मित्र बात तो कुछ ठीक ठाक कह रहे थे - पर मेरे गले नहीं उतरी - तो मैंने भी उन्हें
सही सही कारण बता दिए कि मैं 'दद्दाजी' का 'अपना' क्यों नहीं बनना चाहता .... और जो
बताया आपको भी बता देता हूँ >>>>
हमारे 'दद्दाजी' भी कुछ अजीब ही हैं - एक तो बोलते बहुत हैं - और फिर इनकी 'अपने वालों' से ही कुछ पटरी नहीं बैठती - अब देखिये ....
इन्होने शादी की - पत्नी है पर दोनों अलग रहते हैं ....
बूढी माँ है पर साथ नहीं रखते - तीज त्यौहार मिल आते हैं ....
अपना घर परिवार था पर छोड़ कर अज्ञात वास तक में चले गए थे ....
एक पुत्तर सामने आया था - पर उसे विदेश छोड़ आये ....
भाई बहन हैं पर कभी आपस में मिलते नहीं दिखे, कभी उनकी बात तक नहीं करते ....
कई वृद्ध पिता तुल्य लोग हैं जिन्हे अपना गुरु भी मानते थे पर अब उन्हें भी कोई भाव नहीं देते ....
पुरखों की मूर्ती लगाने की भी बात आती है तो वो अपने पुरखों को छोड़ दूसरों के पुरखों की मूर्ती लगाने की बात करते हैं ....
कई नामकरण भी वो अपने पुरखों के बजाय दूसरों के पुरखों के नाम ही करने की बात करते हैं ....
मित्रों मित्रों तो बहुत बोलते हैं पर किसी भी मित्र के बारे में ज्यादा कभी कुछ बोलते नहीं दिखे ....
पर साहब जब जब संस्कारों की बात आती है तो बयान और बखान पर बखान सुन लो ....
कई बार तो शहंशाह के स्टाइल में बात करते दिखे और शहज़ादे शहज़ादे बोलते - पर शहज़ादे के साथ शहज़ादे जैसा व्यवहार कभी नहीं किया ....
और हाँ बहुत समय से हर चुनाव में ये एक व्यक्ति को दामादजी दामादजी कह कर पुकारते रहे - पर ना तो कभी उसका नाम लिया और ना ही कभी अंदरुनी रिश्तेदारी का इज़हार किया .... और अब जब फिर चुनाव आये तो फिर आ गए दामादजी इनकी ज़ुबां पर - लेकिन दामादजी की इज़्ज़त तो छोड़िये, 'दद्दाजी' फिर पीछे पड़ गए कि दामादजी ने सरकारी दहेज़ लिया है - वो भी एकड़ों जमीन के रूप में ....
सरकारी तंत्र ने एक बार फिर जांच करी और दामादजी को फिर दोषमुक्त घोषित कर दिया ....
और अब लगता है चूँकि उपचुनाव का प्रचार ख़त्म हो चुका है तो अगले चुनाव तक 'दद्दाजी' चुप हो जाएंगे ....
और इस चुप्पी का कारण है - वो दो चार ससुरे जो लगता है कि 'दद्दाजी' पर भी भारी हैं - वो परदे के पीछे 'दद्दाजी' को पप्पू बनाये हुए हैं - और इनसे अपने काम निकलवाते जा रहे हैं - यानी इनके ससुरे भी इनके 'अपने' ना हुए >>>>
तो मेरे प्यारे हितैषी मित्रों इसलिए मैं तो 'दद्दाजी' से दूर ही अच्छा .... दिमाग भी यही कहता है और दिल भी .... माफ़ करना यारों - बस तुम्हारी हमारी दोस्ती में दरार नहीं आनी चाहिए - और भले ही like share मत करना पर गाली भी मत देना क्योंकि भले ही मुझे असर न हो पर अच्छा भी नहीं लगता मेरे यार !!!!
हमारे 'दद्दाजी' भी कुछ अजीब ही हैं - एक तो बोलते बहुत हैं - और फिर इनकी 'अपने वालों' से ही कुछ पटरी नहीं बैठती - अब देखिये ....
इन्होने शादी की - पत्नी है पर दोनों अलग रहते हैं ....
बूढी माँ है पर साथ नहीं रखते - तीज त्यौहार मिल आते हैं ....
अपना घर परिवार था पर छोड़ कर अज्ञात वास तक में चले गए थे ....
एक पुत्तर सामने आया था - पर उसे विदेश छोड़ आये ....
भाई बहन हैं पर कभी आपस में मिलते नहीं दिखे, कभी उनकी बात तक नहीं करते ....
कई वृद्ध पिता तुल्य लोग हैं जिन्हे अपना गुरु भी मानते थे पर अब उन्हें भी कोई भाव नहीं देते ....
पुरखों की मूर्ती लगाने की भी बात आती है तो वो अपने पुरखों को छोड़ दूसरों के पुरखों की मूर्ती लगाने की बात करते हैं ....
कई नामकरण भी वो अपने पुरखों के बजाय दूसरों के पुरखों के नाम ही करने की बात करते हैं ....
मित्रों मित्रों तो बहुत बोलते हैं पर किसी भी मित्र के बारे में ज्यादा कभी कुछ बोलते नहीं दिखे ....
पर साहब जब जब संस्कारों की बात आती है तो बयान और बखान पर बखान सुन लो ....
कई बार तो शहंशाह के स्टाइल में बात करते दिखे और शहज़ादे शहज़ादे बोलते - पर शहज़ादे के साथ शहज़ादे जैसा व्यवहार कभी नहीं किया ....
और हाँ बहुत समय से हर चुनाव में ये एक व्यक्ति को दामादजी दामादजी कह कर पुकारते रहे - पर ना तो कभी उसका नाम लिया और ना ही कभी अंदरुनी रिश्तेदारी का इज़हार किया .... और अब जब फिर चुनाव आये तो फिर आ गए दामादजी इनकी ज़ुबां पर - लेकिन दामादजी की इज़्ज़त तो छोड़िये, 'दद्दाजी' फिर पीछे पड़ गए कि दामादजी ने सरकारी दहेज़ लिया है - वो भी एकड़ों जमीन के रूप में ....
सरकारी तंत्र ने एक बार फिर जांच करी और दामादजी को फिर दोषमुक्त घोषित कर दिया ....
और अब लगता है चूँकि उपचुनाव का प्रचार ख़त्म हो चुका है तो अगले चुनाव तक 'दद्दाजी' चुप हो जाएंगे ....
और इस चुप्पी का कारण है - वो दो चार ससुरे जो लगता है कि 'दद्दाजी' पर भी भारी हैं - वो परदे के पीछे 'दद्दाजी' को पप्पू बनाये हुए हैं - और इनसे अपने काम निकलवाते जा रहे हैं - यानी इनके ससुरे भी इनके 'अपने' ना हुए >>>>
तो मेरे प्यारे हितैषी मित्रों इसलिए मैं तो 'दद्दाजी' से दूर ही अच्छा .... दिमाग भी यही कहता है और दिल भी .... माफ़ करना यारों - बस तुम्हारी हमारी दोस्ती में दरार नहीं आनी चाहिए - और भले ही like share मत करना पर गाली भी मत देना क्योंकि भले ही मुझे असर न हो पर अच्छा भी नहीं लगता मेरे यार !!!!
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