Wednesday 29 October 2014

//// कच्चे रंग और कच्चे नेताओं की एक समान केमिस्ट्री ////

हम बाजार से नया कपडा लाते हैं और यदि उसका रंग कच्चा हुआ और उसे दूसरे कपड़ों के साथ धो दिया तो वो कच्चा रंग नए कपड़े से निकल दूसरे कपड़ों पर लग जाता है - और ऐसा पक्के से लगता है कि फिर निकलता ही नहीं ....
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ये रंग की कौन से केमिस्ट्री है जिसके कारण रंग का ये खेल होता है .... किसी के समझ पड़े तो बताना कि जब रंग कच्चा होने के कारण ही निकलता है तो फिर दूसरे कपडे में चिपक पक्का कैसे हो जाता है ????
पर मुझे अब ये जरूर समझ आ रहा है कि ऐसा केवल रंगो के साथ ही नहीं होता - ऐसा अब रंगीली राजनीति में भी हो रहा है ....
कांग्रेस पार्टी की जब पहली बार अभी धुलाई हुई तो इसके कई कच्चे नेता पार्टी को छोड़ निकल लिए और भाजपा में चिपक गए - और भाजपा का भी रंग बिगाड़ गए - और ऐसा रंग बिगाड़ गए हैं कि भाजपा न तो कभी अपने असली रंग में आ सकेगी और ना ही बाहर से आ चिपके गंदे रंग से मुक्त हो सकेगी ....
एक बात और गौर करने लायक है कि - कांग्रेस और भाजपा में अब झीना सा अंतर आन पड़ा है - धुलाई के बाद कांग्रेस का रंग जरूर फीका पड़ चुका है - पर ध्यान रहे रंग फीका हुआ है भाजपा जैसे बदरंग नहीं हुआ है .... और यदि इस फीके रंग पर कोई नया रंगरेज़ नया रंग चढ़ा देता है तो .... तो क्या मज़बूत कपडा फिर नया नहीं हो सकता है ?!?!
और अंततः मेरे अनुसार कांग्रेस और भाजपा दोनों का डीएनए भी एक है - और इनका दरजी धोबी और रंगरेज़ भी एक है - और इनकी सिलाई धुलाई और रंगाई भी एक ही जगह होती आई है ....
अतः साफ़ है देश ने ऊपर से रंगीली राजनीति रुपी कपडे बदले हैं - अंदर से अभी कोई बदलाव नहीं हैं !!!!
अतः मित्रों सावधान रहो - जागते रहो !!!!

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