कुछ समय पहले यात्रा के दौरान आवाज़ आई - " चियाय - चियाय - गरमा गरम चियाय
" - मैंने चाय ली पर चाय बांसी और ठंडी निकली और फेंकनी ही पड़ी - स्वाभाविकतः
मैंने अपने आपको ठगा सा महसूस किया और मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा !!!!
खैर वो छोटी सी बात तो आई गयी हुई .....
मुझे आज भी इस बात पर प्रसन्नता संतोष और गर्व है कि एक चाय बेचने वाला भी हमारा प्रधानमंत्री बन सकता है ....
पर अब मेरे समक्ष एक यक्ष प्रश्न है कि - यदि हमारा प्रधानमंत्री एक चाय बेचने वाले जैसी हरकते करने लगे तो भी क्या मैं गर्व ही करता रहूँ ???? क्या मैं अप्रसन्नता और असंतोष का इज़हार भी ना करूँ ????
मुझे आज भी इस बात पर प्रसन्नता संतोष और गर्व है कि एक चाय बेचने वाला भी हमारा प्रधानमंत्री बन सकता है ....
पर अब मेरे समक्ष एक यक्ष प्रश्न है कि - यदि हमारा प्रधानमंत्री एक चाय बेचने वाले जैसी हरकते करने लगे तो भी क्या मैं गर्व ही करता रहूँ ???? क्या मैं अप्रसन्नता और असंतोष का इज़हार भी ना करूँ ????
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