द्रौपदी की एक पुख्ता कहानी है कि उसके वस्त्र को खींच कर 'चीर हरण' का कुप्रयास किया गया था - पर ईश कृपा से साड़ी को जितना भी खींचा गया था साडी चमत्कारिक रूप से बढ़ती गई थी ....
शायद वो सतयुग जैसा कोई ज़माना रहा होगा .... पूरा सतयुग भी नहीं कह सकते क्योंकि आखिर 'चीर हरण' का कुप्रयास कोई शौर्य का पुण्य कार्य तो हो नहीं सकता ....
पर आज का युग निश्चित ही सतयुग नहीं है .... कारण - हमारे शिवराज और व्यापम के प्रकरण पर जरा गौर फरमाएं ....
बहुत दिनों से कई लोग शिवराज को नंगा प्रदर्शित करने का प्रयास करते रहे हैं - पर शिवराज हैं कि कभी चड्डी तो कभी लंगोट कच्छा पायजामा निक्कर पतलून सूट धोती बनियान कुरता आदि जब तब जरूरत के मुताबिक़ धारण करते रहे हैं .... अर्थात - वस्त्रहीन होने से बचते रहते हैं .... यहाँ तक कि कभी नैतिकता का तो कभी शुचिता को चोला ओढ़ लेते हैं - तो कभी 'मामा' भैय्या का लबादा .... पर सब बेकार .... क्योंकि दिन-ब-दिन शिवराज का तो जैसे 'चीर क्षरण' ही होता जा रहा है .... रंगत और कपड़े उतरते ही जा रहे हैं ....
इसलिए कन्फ्यूज्ड हूँ कि तब कौन सा युग था - और अब कौन सा युग है ??
पर हाँ एक बात अच्छे से जान गया हूँ कि व्यापम में लिप्त कुछ उच्च कोटि के नंगों का चीर हरण आवश्यक है .... और ऐसा 'चीर हरण' निश्चित ही शौर्य का पुण्य कार्य होगा ....
अतः आइये !! हम सब 'चीर हरण' के इस पुण्य कार्य में अपना योगदान अवश्य देवें !!!! धन्यवाद !!!!
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