पुराने तो जुमले हुए .... नए वादे उगले जा रहे हैं ....
भ्रष्टाचार क्या होता है .... नई परिभाषा बता रहे हैं ....
विशेष पैकेज का था वादा .... जिसे आवंटन बता रहे हैं ....
आवंटन भी ऐसे कैसे कर दें ....इसे खैरात बता रहे हैं ....
५०००० का तो पता नहीं .... इससे ज्यादा की बता रहे हैं ....
बोलती तो अभी भी बंद है .... पर फांकते ही जा रहे हैं ....
बरसात आ गई छा गई .... मेंढक भर्राए टर्राए रहे हैं ....
चुनाव भी तो आ ही गए .... नेता भी गर्राए टर्राए रहे हैं ....
(ब्रह्म प्रकाश दुआ - २५/०७/१५)
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