Sunday 26 July 2015

//// 'मौत की सज़ा' का विरोध कर लीजिये - पर 'याकूब की फाँसी' का विरोध नहीं ..////


विस्तृत न्याय प्रक्रिया परिपूर्ण होने पर न्यायलय द्वारा घोषित एक दुर्दांत अपराधी याकूब मेमन को १९९३ के मुंबई बम काण्ड में निर्दोष २५७ लोगों की मृत्यु के जुर्म में फाँसी की सज़ा हुई - जिसे ३० जुलाई को फाँसी पर टाँगा जाना नियत बताया गया है ....

पर इसी दौरान सलमान खान द्वारा याकूब मेमन के बचाव में अनेक ट्वीट कर उक्त फाँसी का विरोध कर डाला गया ....
निश्चित ही जिन शब्दों में फाँसी का विरोध किया गया वह न्यायालय की अवमानना है ....
सलमान का विरोध होना ही था - और विरोध हुआ भी - तथा उसके बाद सलमान खान द्वारा ट्वीट वापस ले लिए गए - और माफ़ी भी माँग ली गई - पर साथ ही टेका लगा दिया कि ये सब वो पिता के कहने पर कर रहे हैं ....

मेरी प्रतिक्रिया ....

ट्वीट वापस तो पिता के कहने पर ले लिए - पर सल्लू मियाँ बताओगे कि ट्वीट लिखे किसके कहने पर थे ??
मैं ये प्रश्न इस लिए पूछ रहा हूँ कि - याकूब की फाँसी रोकने के प्रयास तो सुनियोजित तरीके से समानांतर किये जा रहे थे / हैं जिसकी पुष्टि इस खुलासे से भी होती है कि २९१ हस्तियों द्वारा राष्ट्रपति को फाँसी रोकने के लिए चिट्ठी लिखी गई है ....

इसलिए अब महत्वपूर्ण ये भी हो जाता है कि केवल सलमान दोषी सिद्ध नहीं होते - अपितु हर वो व्यक्ति जो 'याकूब की फाँसी' का विरोध कर रहा है वो निश्चित ही न्यायालय की अवमानना का दोषी सिद्ध होता है ....

लेकिन यहां ये स्पष्ट कर दूँ कि जो व्यक्ति वस्तुतः अपने आप में 'मौत की सजा' के ही विरुद्ध हो तो उसे अपनी बात कहने का या मर्यादाओं में रहकर विरोध करने का अधिकार है .... पर जब तक इस देश के कानून में वांछित बदलाव नहीं होते - 'याकूब की फाँसी' का विरोध तो असंवैधानिक ही होगा ....

हाँ एक बात और !!!! इस प्रकरण में "मानवीय आधार" को घुसेड़ने का भी कोई औचित्य नहीं होगा .... वैसे इस प्रकरण में यदि मुखर आदरणीय सुषमा स्वराज यदि ये बताएँगी कि याकूब के प्रति "मानवीय आधार" के बारे में उनके क्या विचार हैं तो ये देश कृतार्थ हो जाएगा .... शायद भक्तों के भी ज्ञानचक्षु खुलेंगे !!!! धन्यवाद !!!!

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