याकूब मेमन की फाँसी पर देश में बहुत बहस हुई .... सबकी अपनी-अपनी सोच और अपनी-अपनी दलीलें थीं ....
फाँसी कल ३० जुलाई २०१५ को होनी थी .... पर सर्वोच्च न्यायलय में एक महत्वपूर्ण सुनवाई आज सुबह १०.३० बजे से जारी थी .... सबको इंतज़ार था - निर्णय का ....
निर्णय आया वो भी सर्वोच्च न्यायालय से - पर पहले याकूब प्रकरण में नहीं - बल्कि उसके पहले अप्रत्याशित रूप से राजीव गांधी ह्त्या प्रकरण में .... जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने राजीव गांधी के हत्यारों को मृत्यु दंड देने की केंद्र सरकार की याचिका को ख़ारिज कर दिया .... यानि इस देश के प्रधानमंत्री की हत्या के ३ हत्यारों को अब फाँसी नहीं होगी और सजा को आजीवन कारावास में बदला जाना होगा ....
और शाम होते होते अंततः याकूब फाँसी प्रकरण में भी निर्णय आ गया है .... फाँसी कल ३० जुलाई सुबह ७ बजे ही दी जाना तय हो गया है .... और अब लगता है कि रायता तो फैलेगा ही - फैलाया ही जाएगा !!!!
अतः इस प्रकरण में मेरी प्रतिक्रिया भी देना जरूरी है .... इस देश में जब कभी भी फाँसी हुई है या फाँसी होगी तो वो तो न्यायालय के आदेश से ही तो होना अपरिहार्य है - मेरे आपके कहने से तो कुछ होना नहीं - या मध्यप्रदेश का व्यापम तो कोई फाँसी हेतु चयन करेगा नहीं .... तो क्या किसी भी फाँसी पर सवाल नहीं उठाना चाहिए ?? .. नहीं ऐसा भी सही नहीं होगा - क्योंकि न्याय हमेशा सही किया जाता है ऐसा मान लेना भी गलत ही होगा .... पर यदि आप ऐसा मानते हैं कि न्याय हमेशा सही नहीं किया जाता है या किया जा सकता है तो विकल्प क्या ????
मेरे हिसाब से तो हाल फिलहाल विकल्प यही है कि जब सर्वाधिकार प्राप्त न्यायालय अपना काम पूर्ण कर निर्णय दे देता है तो उस निर्णय पर और उसके क्रियान्वयन पर अमल तो होना ही चाहिए .... और आगे भी ऐसे होता ही रहना चाहिए .... पर कहीं ना कहीं एक बहस या विवेचना की गुंजाइश भी अवश्य होनी चाहिए कि विभिन्न निर्णीत प्रकरणों में विरोधाभासी निर्णय या क्रियान्वयन क्यों ??
मसलन अब क्योंकि रायता फ़ैल ही गया है तो इस बात पर तो विवेचना होनी ही चाहिए कि जब मुंबई के सैंकड़ों निर्दोष व्यक्तियों की मौत का मुजरिम याकूब मेमन फांसी के फंदे तक पहुँच गया है तो भारत के तत्कालीन सत्तासीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे फाँसी के फंदे तक क्यों नहीं पहुंचे ??
अतः अंततः अपनी स्पष्ट राय रखना चाहूँगा कि - एक ऐसी 'संस्था' का गठन होना चाहिए जो विभिन्न न्यायालयों द्वारा दिए गए सभी निर्णयों की निरंतर विवेचना कर अपनी टिप्पणियाँ सार्वजनिक करती रहे .... हालांकि जिसका कोई वैधानिक महत्त्व ना हो .... पर जिसकी विवेचना और टिप्पणियाँ मात्र ही न्यायपालिका पर एक अंकुश जैसा लगाने और न्यायाधीशों को फीडबैक देने का काम कर सके - साथ ही सरकार को कानूनों में वांछित बदलाव हेतु भी मार्गदर्शन दे सके !!!!
और जब तक ऐसा कुछ नहीं होता - आइये मैं और आप मिलकर ऐसी काल्पनिक 'संस्था' का कार्य अपनी मर्यादाओं में रहकर करते रहें !! धन्यवाद !!
मुंबई बम धमाको में जिन्होंने अपनों को खोया था वो मुस्लिम, भी थे हिन्दू भी क्या तूने उनसे बात की हैं !
ReplyDeleteबात करते हैं फांशी के रोकने की !
मुंबई बम धमाको में जिन्होंने अपनों को खोया था वो मुस्लिम, भी थे हिन्दू भी क्या तूने उनसे बात की हैं !
ReplyDeleteबात करते हैं फांशी के रोकने की !
Brijesh kumar जी , दुआ जी ने फांसी रोकने की बात कहां कही है। क्या सोंच विचार करना भी गलत हो गया? अच्छा तो और लगता जब राजीव गाँधी के हत्यारों को भी फांसी होती।
ReplyDeleteकोई ऐसा ब्लॉक लिखो जिसमे उनके बारे मैं भी कुछ बताओ जिन्होंने याकूब की फांसी का विरोध किया ! देखे आप ऐसे व्यक्ति के बारे मैं क्या सोचते हो !
ReplyDeleteअजय जी राजीव के हत्यारों को आतंकवाद से मत जोड़ो , मुंबई बम ब्लाट में कितने बेगुनाह मारे गए थे पता हैं आप को ? कितने धमाके एक साथ किये गए थे क्या आप ने उस का विश्लेषण किया ?
ReplyDeleteराजीव के केस मैं एक वयक्ति को तार्केट किया गया था , पूरे सहर, उस की जनता को नहीं , जिसमे बच्चे , बड़े सब मारे गए थे !
आप लोग ओवैसी की भाषा बोलना बंद करो !
ReplyDeleteइस पर ब्लॉक लिखो ब्लॉक लिखने का इतना ही सोक हैं तो इन लोगो से भी जबाब मागो !
याकुब मेमन की फाँसी रुकवाने हिन्दुस्तान के जिन # चालीस
गद्दारो ने राष्ट्रपति को चिठ्ठी लिखी है..उनके नाम..!!
01- वृंदा_करात
02- प्रकाश_करात
03- शत्रुघ्न_सिन्हा
04- राम_जेठमलानी
05- महेश_भट्ट
06- शाहरुख_खान
07- अमिर_खान
08- सैफ_खान
09- नसीरुद्दीन_शाह
10- सलमान_खान
11- अरविंद_केजरीवाल
12- तिस्ता_सितलवाड
13- दिग्विजय_सिंग
14- लालू_यादव
15- नितीश_कुमार
16- अबु_आजमी
17- प्रशांत_भुषण
18- अससुद्दीन_ओवैसी
19- अखिलेश_यादव
20- आजम_खान
21- सचीन_पायलट
22- राहुल_राय
23- जनरैल_सिंहद
24- अलका_लांबा
25- आशुतोष
26- सागरिका_घोष
27- करिना_खान
28- सानिया_मिर्जा
29- अकबरूद्दिन_ओवैसी
30- शाजीया_इल्मी
31- अहमद_बुखारी
32- अभय_दुबे
33- रविश_कुमार
34- पुण्य_प्रसुन_बाजपेयी
35- ममता_बॅनर्जी
36- सिद्धारमैया
37-आशीष_खेतान
38- अग्निवेश
39- संजय सिंह
40- शकील_अहम....
है मेरे देश की जनता, देखलो ये गद्दारों की सूचि, इन्हें
आतंकवादी याकूब मेनन की चिंता आप लोगों से ज्यादा है.
1993 मैं 12 धमाके मैं मरे 257 लोगों के परिवार से ज्यादा
आतंकवादी याकूब की परिवार की चिंता ज्यादा है . अगली
बार जब ये गद्दार नेता आपके पास वोट मांगने जाये, तो 2 जूते जरुर देना...
http://www.huffingtonpost.in/2015/07/27/yakub-petition_n_7876830.html
Deleteक्या बात हैं ब्रह्म प्रकाश जी जब हम इज्जत से कुछ पूछते हैं तो आप जबाब नहीं देते !
ReplyDeleteफिर हम क्या करे ?
यदि ब्लॉक लिखने का इतना ही सोक तो उस पर पर्तिकिर्या भी देना सीखो , तभी आप को पता चलेगा आप की बुद्दि भी आप की उम्र के साथ बूढी तो नहीं हो गई !
ब्रजेश जी आपको भाषा की मर्यादा और सीमा की लकीर खींचने की आवश्यकता है I
Deleteन्याय में पक्षपात साफ़ दिख रहा है I लगता है अब न्याय की आँखों की रौशनी वापस आ गयी है I ब्रजेश कुमार जी ..... गद्दार और गद्दारी की परिभाषा का निर्धारण करने का अधिकार आपको कब, किसने और क्यों दिया है ? आप अपने अधकचरे ज्ञान के आधार पर अलग तरीके से व्याख्या कर रहे है I चिंता अगर आप को करनी ही है तो अयोध्या, गुजरात, दिल्ली, हाशिमपुरा, मुंबई, मुज़फ्फरनगर के सरकारी आतंकवादियों के बारे में भी कुछ कह दीजिये I पूरे प्रकरण की समस्या की जड़ में जाकर समझना होगा I एक याकूब, एक अफज़ल गुरु को फाँसी देने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता और निश्चय ही नहीं होगा I इससे अल्पसंख्यको के मन में असुरक्षा की भावना घर कर सकती है और न्याय व्यवस्ता के प्रति अविश्वास I देश को अगर प्रगति के पथ पर ले जाने का सपना पूरा करना है तो इस प्रकार की तुच्छ बातो से ऊपर उठाना होगा i
ReplyDeleteआज मैं दिग्विजय सिंह के ट्वीट जिसपर उन्होंने कहा है - देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका की साख दांव पर लगी है ..... पर बरबस सोचने पर मजबूर हो गया हूँ I
ये कैसा अन्याय विधाता कैसा तेरा कुटिल विधान I