याकूब को फाँसी हो गई .... याकूब को उसके किये की सजा मिल गई .... न्याय हो गया ....
पर इस दौरान देश में खूब बहस हुई .... फाँसी के औचित्य पर - अन्य फाँसियों पर - अन्य सज़ायाफ्ता अपराधियों पर - अन्य प्रकरणों में अपनाई गईं या नहीं अपनाई गईं न्यायिक प्रक्रिया पर - अन्य दया याचिकाओं के हश्र पर - पिछले राष्ट्रपतियों और सरकारों के द्वारा क्रियान्वयन या अकर्मण्यता पर - मृत्यु दंड के आंकड़ों पर - कितने चढ़े कितने बचे क्यों चढ़े क्यों बचे किसने चढ़ाया किसने बचाया आदि विषयों पर ....
पर सभी बहस में अपना बचाव या पक्ष रखने में भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा एक ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया जाता रहा जिसका लुब्बेलुबाब यह रहा कि - ये सभी प्रश्न याकूब की फाँसी के वक्त ही क्यों - आज क्यों - अभी क्यों ऐसे क्यों और वैसे क्यों .... और इस तरह मुद्दे पर आने से बचा जाता रहा है ....
तो अब जब याकूब को फाँसी हो गई है - उस विषयक सारा निपटान हो गया है - तो मैं भाजपा सरकार से पूछना चाहूँगा कि वो शुभ घडी कब आएगी जब वो सभी प्रश्न पूछे जा सकेंगे या उन विषयों को उठाया जा सकेगा ????
मसलन अब इस बात का जवाब कब मिलेगा कि १९९१ में इस देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की हत्या के जुर्म में धराए आरोपित और न्यायित हत्यारों या अपराधियों को जिन्हे १९९९ में इस देश के सर्वोच्च न्यायलय द्वारा फाँसी की सजा सुना दी गई थी उन्हें अभी तक फाँसी क्यों नहीं हुई थी और अंततः उन्हें अब फाँसी नहीं दी जा सकेगी तो इसके लिए जिम्मेदार या दोषी कौन ?? क्या इस का दोषी मैं हूँ या ओबामा या याकूब या सलमान या आसाराम या दिग्विजय या राजीव जी की आत्मा या हमारे कई राष्ट्रपति या कई सरकारें या हमारे लचीले या छेद वाले कानून या व्यवस्थाएं या परिपाटियाँ या राजनीति ??
मसलन अब कब और कौन संतोषप्रद उत्तर देगा कि इस देश की विभिन्न जेलों में फाँसी की सजा पा चुके कितने कैदी हैं जिनकी दया याचिकाएं लंबित हो उन्हें सरकारी रोटियां या प्रायोजित मालपुए खिलाए जा रहे हैं - फिर भी उनके हलक़ सूख रहे हैं और उनकी गर्दनें लंबी होने का इंतज़ार कर रही हैं ??
मुझे लगता है कि गर्दनें लंबी होने में तो लंबा वक़्त लगेगा - अभी तो लंबी ज़ुबान की अतार्किक तूतू-मैंमैं ही देखने सुनने को मिलती रहेगी .... विडंबना जारी है .... खामोशsssssss !!!!
बर्ह्म प्रकाश जी जो आज हुआ उस का विश्लेषण करो , लगता हैं आप को याकूब की फांसी का गहरा सदमा पंहुचा हैं !
ReplyDeleteराजीव की हत्या , और आतंकवादी हमला दोनों अलग अलग केस हैं एक मैं सिर्फ एक व्यक्ति को तार्केट किया गया और दूसरे मैं पुरे सहर को , एक में सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु हुई दूसरे में पुरे के पूरे परिवार तबाह हो गए !
जाओ जा कर पुछो उन परिवारो से जिन्होंने अपनों को खोया था , बात पुरानी हो गई इसका मतलब ये नहीं लोग वो मंजर भूल गए होगे !
यदि तुम को फिर भी याकूब पर दया आये तो अपने दिमाग का इलाज जरूर करवा लेना ओवैसी के चमचो !