Monday 19 October 2015

// साहित्यकारों की मौलिक रचनाओं के मुकाबले क्या 'मोदीजाप' टिकेगा ? ..//


कल एबीपी न्यूज़ चैनल पर 'साहित्यकार और सरकार' पर बहस हो रही थी ....

भाजपा और आरएसएस के गैरसाहित्यिक फूहड़ प्रवक्ताओं द्वारा चिल्ला चोट मचाई गई - कपड़े फाड़े गए - और रट लगा दी कि फलां-फलां समय इन साहित्यकारों ने अपने पुरूस्कार लौटाने जैसा धाँसू और असरकारक कदम क्यों नहीं उठाया - अब ही क्यूँ - ये मोदी के विरुद्ध साज़िश है - ये कुछ कोंग्रेसियों और वामपंथी साहित्यकारों का षड़यंत्र है - ये सारे साहित्यकार 'दरबारी' हैं ....

और साहित्यकारों ने भी फिर धाँसू प्रतिकार कर मारा - साहित्यिक स्टाइल में - एक के बाद एक घरेलू उत्पाद मौलिक खालिस डायलॉग जुमले टोंचे व्यंग तीर आदि का उपयोग कर ....

और उनमें से एक साहित्यकार मुनव्वर राणा ने तो फ्लिपकार्ट और स्नैपडील को भी मात दे ऑन-लाइन ही अपना पुरूस्कार लौटा मारा - और धर दिया पारदर्शी डिब्बाबंद ट्रॉफीनुमा पुरूस्कार वहीँ मेज पर एक लाख के चेक के साथ ....
और फिर दे मारे कुछ लाख-लाख रूपये से भी कहीं अधिक मूल्य के घरेलू निर्मित डायलॉग - जिनकी बानगी देखिये ....

मैं रायबरेली से आता हूँ - सत्ता मेरे शहर की नालियों से बहते हुए ही दिल्ली तक पहुँचती थी ....
मैं मुसलमान हूँ मुझे पाकिस्तानी भी करार दिया जा सकता है ....
देश में बिजली के तार नहीं जुड़े हैं लेकिन मुसलामानों के तार दाऊद से जोड़ दिए जाते हैं ....

तो अब मैं सोच रहा था कि भाजपा क्या करेगी .... क्या वो भी कोई टक्कर के डायलॉग देगी ??

अरे छोड़िये जनाब ये फूहड़ लोगों की औकात नहीं कि साहित्यकारों का मुकाबला कर सकें .... इनके प्रतिकार की औकात तो बस एक ही डायलॉग एक ही वक्तव्य एक ही छंद एक ही शेर एक ही श्लोक और एक ही जुमले तक सीमित है और वो है .... फटे गले से बोले गए शब्द .... मोदी ! मोदी ! मोदी ! ....

तो मित्रो आगे-आगे देखिएगा कि फ्री फ़ोकट की घरेलू निर्मित साहित्यिक गालियां कितनी असरकारक सिद्ध होती हैं और - मोदी ! मोदी ! मोदी ! का क्या हश्र होता है .... भरपूर मनोरंजन के लिए तैयार रहें !!!!

No comments:

Post a Comment