संतो की माया अपरम्पार ....
संतो की संताई को नमन ....
पर संतों की बाढ़ सी आ गई है .... विशेषकर भाजपा में तो हर कोई संत है .... जिनका नामकरण आप उनकी संस्था से या उनके कर्मक्षेत्र (या क्रियाकर्मक्षेत्र) से या नदी पहाड़ से भी कर सकते हैं - जैसे माननीय श्रीमान विजय गोयल जी को 'दिल्ली का संत' तो कहा ही जा सकता है - फिर भाजपा में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल आदि के कई संत हैं जो वास्तव में संत जैसे ही वस्त्र धारण कर संत जैसा दिखने का प्रयास करते हुए संत जैसे दिखते भी हैं - और इस क्रम में आप हिमालय के संत और माउंट आबू के संत सतपुरा-विंध्याचल के संत तथा गंगा के संत यमुना के संत नर्मदा के संत या खान नदी के संत या जूना नाले के संत आदि की खोज कर उन्हें चिन्हित नामित भी कर ही सकते हैं ....
पर मैं दावे से कह सकता हूँ कि सबसे पहले इस श्रृंखला में नाम आता है 'पूज्य गांधी बापू' का जिन्हें सबसे पहले "साबरमती के संत" के रूप में जाना माना और पहचाना गया .... क्योंकि उनका ताल्लुक साबरमती नदी से रहा - इसलिए साबरमती के संत ....
पर साबरमती भी कोई छोटी पतली नदी तो है नहीं - और हमारे 'पूज्य मोदी बाबू' का ताल्लुक भी गुजराती नदी साबरमती से सीधे-सीधे स्थापित होता है - इसलिए 'पूज्य मोदी बाबू' भी तो हो ही गए "साबरमती के संत" .... कोई शक ??
अतः साबरमती के दो संत हो गए - एक 'पूज्य गांधी बापू' और दूसरे 'पूज्य मोदी बाबू' .... और इसमें मैं किसी भी ऐतराज़ की गुंजाइश नहीं देखता ....
पर मेरा ऐतराज़ तो फिर भी है - पर वो जरा हट के ....
'पूज्य गांधी बापू' को सर्वत्र एवं मुख्य रूप से "अहिंसा" के लिए जाना और माना जाता रहा है - उन्होंने जो "अहिंसा" के लिए किया वो विश्व में अनुकरणीय माना गया और उन्हें अहिंसा का पुजारी माना गया .... इसलिए भले ही बापू को सफाई पसंद रही हो - पर "अहिंसा" छोड़ "स्वच्छता" को उनके नाम से चिपका देना मुझे कुछ जंचता नहीं ....
और ऐसा इसलिए भी कि हमारे 'पूज्य मोदी बाबू' ने ही सबसे पहले "स्वच्छता" का नारा दिया - पूरे विश्व में घूम-घूम कर चिल्ला-चिल्ला कर बताया कि हमारे देश में कितनी गन्दगी है - और फिर खुद झाड़ू हाथ में उठाया - और कर दी स्वच्छता अभियान की शुरुआत - एक बहुत ही प्रशंसनीय और अनुकरणीय पहल ....
अतः मेरा स्पष्ट मानना है की 'साबरमती के संत' 'पूज्य गांधी बापू' को 'अहिंसा' का संत ही माना और कहा जाए और उन्हें 'स्वच्छता' का श्रेय ना दिया जाए .... और साबरमती के ही दूसरे बड़े संत 'पूज्य मोदी बाबू' को ही "स्वच्छता" का श्रेय दिया जाए ....
पर याद रहे केवल 'स्वच्छता' का - 'अहिंसा' का कदापि नहीं !!!!
साबरमति के सन्त( मोदी) तूने क्या किया कमाल, उधोगपति हो गये मालामाल , जनता हो रहीं कन्गाल!
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