Friday 23 October 2015

// बारूद के ढेर पर बैठ बीड़ी पीने से आपके 'अच्छे दिन' भी नहीं आने वाले ..//


और आज सरकार के साथ-साथ साहित्य पर संग्राम भी सड़क पर आ गया ....

ज्ञातव्य हो कि साहित्यकारों द्वारा देश के हालात के खिलाफ अपने सम्मान लौटा दिए गए थे .... और लगातार लौटाए जा रहे थे ....

और आज कुछ और साहित्यकार दिल्ली में एक मौन जुलूस निकाल रहे हैं - मुहँ पर काली पट्टी बांधे .... विरोध हो रहा है कुलबर्गी की हत्या का - और आज के हालात हालातों का ....

पर साथ ही कुछ पोस्टर भी दिखे जिसके द्वारा विरोध उन साहित्यकारों का भी हो रहा है जिन्होनें पुरूस्कार लौटा दिए थे .... 

प्रथम दृष्टया लगता है कि साहित्यकार भी राजनीति का शिकार हो कर रहेंगे .... कुछ पैदाइशी दरबारी थे - कुछ दरबारी हो गए थे - कुछ दरबारी हो जाएंगे - कुछ तटस्थ दरबारी करार दे दिए जाएंगे - और कुछ दरबारी तटस्थ घोषित हो सम्मानित कर दिए जाएंगे .... और सम्मानित ना होने वाले कुछ एक दरबारी अपने आप को असम्मानित मान कलपते बिलखते रहेंगे ....

समाज बांटा गया .... हिन्दू मुसलमान में .... जातियों में .... अमीर गरीब में .... 
और आज साहित्यकार भी बाँट दिए गए .... पुरूस्कार लौटाने और ना लौटाने वालों में .... दरबारी और गैरदरबारी में ....

पर मैं कुछ अलग भी सोचता हूँ .... ये ओछी राजनीति साहित्यकारों को बाँट सकेगी कि नहीं यह तो नहीं कह सकता - पर ये ज़रूर मानता हूँ कि मात्र एक नैसर्गिक साहित्यकार यदि अपनी वाली पर आ जाए तो टुच्चों की राजनीति की धज्जियां उड़ा सकता है ....

मसलन .... मोदी ने कितनी बकवास कर ली पर क्या वे कभी दिनकर की एक लाइन का भी मुकाबला कर सके या कर सकेंगे - "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" .... कदापि नहीं ना !!!!

इसलिए इस मोदी सरकार को अपनी साहित्यिक भाषा में कहना चाहूँगा कि .... बारूद के ढेर पर बैठ बीड़ी पीने से आपके 'अच्छे दिन' भी नहीं आने वाले .... मुगालते में मत रहना - सावधान !!!!

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