Monday 5 October 2015

// राजनीति उपरांत सार्थक परिणाम भी आएं .... नहीं तो गधे कहलाएं ....//


दादरी हत्याकांड में एक मुस्लिम भाई अख़लाक़ की जान ले ली जाती है .... भीड़ द्वारा .... भीड़ गाँव की .... गाँव हिन्दू बहुसंख्यक .... मुद्दा गौमांस के मार्फ़त धार्मिक भावनाओं से जुड़ ही जाता है .... और फिर कई प्रकार के ठेकेदार मैदान में कूद जाते हैं .... और सांप्रदायिक रंग तो अपने आप ही रंगीन हो जाता है ....

जो लोग हत्या की निंदा कर रहे हैं वो मुस्लिम समर्थक मान लिए जा रहे हैं .... वहीँ जो लोग हत्यारों को ढूंढ पकड़ कर सख्त कार्यवाही करने या होने पर नाक भौं सिकोड़ रहे हैं वो हिन्दू समर्थक मान लिए जा रहे हैं .... और जो इस मुद्दे को धर्म और सम्प्रदाय से जुड़ने जुड़ाने के तथ्य की निंदा कर रहे हैं वो हमेशा की तरह नादान 'सेक्युलर' माने जा रहे हैं .... बेचारे 'सेक्युलर' !!!!

और जो नेता अपनी रोजमर्रा की ऐश या रोजमर्रा के कार्य छोड़ दादरी गाँव और पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे हैं - अपनी औकात अनुसार सांत्वना दे रहे हैं और मदद की घोषणाएं कर रहे हैं - वे सभी राजनीति करने के दोषी ठहराए जा रहे हैं ....

मेरी एक 'सेक्युलर' और आम नागरिक की हैसियत से प्रतिक्रिया ....

जो राजनीति से जुड़े लोग एक दूसरे पर राजनीतिक आरोप लगा रहे हैं उसमें दोष ढूंढना तो ऐसा ही होगा कि आप फ़ोकट ऐतराज़ करने लगें कि - गधे धूल में लोट क्यूँ लगाते हैं ?? और फिर फ़ोकट दुलत्ती क्यों झाड़ते हैं ?? और फिर सरपट क्यों दौड़ने लगते हैं ?? और फिर बिना सुर ढेंचू-ढेंचू क्यों करने लगते हैं ?? और फिर इधर उधर बिना स्वच्छता का ध्यान रखे लीद क्यों कर देते हैं ?? ..... बिलकुल राजनीतिज्ञों की तरह !!!! 

पर मेरा ऐतराज़ उन गैर राजनीतिक लोगों से जरूर है जो इस संवेदनशील अहम् मुद्दे पर की जा रही राजनीति की निंदा कर रहे हैं .... वो इसलिए कि कानून बनाना और कानून व्यवस्था कायम करने का काम सरकार का है - और सरकार बनती है इन्ही राजनीतिक लोगों से जो बिल्कुल गधे माफिक अपनी प्रकृति अनुरूप राजनीति करते हैं ....

इसलिए बिना राजनीतिक प्राणियों के इस विषयक मंथन हो ही नहीं सकता .... इसलिए मेरा ऐसा मानना है कि इन सभी राजनीतिक प्राणियों को घेर-घेर कर दादरी के मैदान में घुसेड़ देना चाहिए और इन्हें मजबूर किया जाना चाहिए कि - लोटो धूल में - दुलत्तियाँ झाड़ो - इधर उधर सरपट दौड़ो - गला फाड़ चिल्लाओ - जहां चाहो वहां शौचो .... पर अबकी बार किसी निर्णय पर पहुँचो .... बनाओ नए क़ानून या कायम करो कानून व्यवस्था का राज - और दो सार्थक परिणाम ..... यदि बहुत बोल चुके तो चुप हो जाओ - और यदि चुप रहे हो तो बोलो - अपनी चुप्पी तोड़ो ....

और नहीं तो मान लो कि आप सब गधे हो ..... गधे जो किसी करम के नहीं !!!!

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