Saturday 6 September 2014

प्रधानमंत्री ने जम्मू काश्मीर के पूरे क्षेत्र में आयी बाढ़ और उत्पन्न विपदाओं से निपटने के लिए मानवता के नाते पाकिस्तान को पाकिस्तान अधीन कश्मीर के रहवासियों के लिए भी राहत और मदद देने की पेशकश की ....
जवाब में पाकिस्तान ने किसी भी मदद लेने या आवश्यकता को नकार दिया - बल्कि उलटे भारत को मदद देने की पेशकश कर दी ....
शायद ऐसा ही होना पूर्णतः अपेक्षित भी रहा होगा ....
देखें यदि ये मात्र औपचारिक शिष्टाचार के नाते शुरू की गयी बातें थीं तो भारत पाकिस्तान को धन्यवाद देता है अथवा नहीं ? और इस शिष्टाचार - शिष्टाचार से आगे क्या हासिल होता है ??
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प्रधानमंत्री के उलट मेरी बात !!!!
//// क्या कहा? "बच्चों महत्वाकांक्षा जीवन में बोझ की तरह है" - और आप 2024 तक के PM? ////
प्रधानमंत्री के वार्तालाप में विरोधाभास एवं दोष ....
"महत्वाकांक्षा जीवन में बोझ की तरह है" वार्तालाप में एक समय ये वक्तव्य मेरी राय में बहुत ही गलत आपत्तिजनक और बच्चों को भ्रमित करने वाला है! मेरे हिसाब से बच्चों को तो महत्वाकांक्षी होना ही चाहिए - लेकिन हाँ मोदी जी के समान उम्र के एक पड़ाव में आकर जब आप अपनी आधी से ज़्यादा ज़िन्दगी जी चुके होते हैं जब आप अपने फ़र्ज़ और लक्ष्य पूरे कर चुके होते हैं तब आपको महत्वाकांक्षा रखने के बजाय संतोष महसूस करना शुरू कर देना चाहिए और भगवान को धन्यवाद आदि !
पर विरोधाभास देखें - हमारे प्रधानमंत्री जी शिक्षक दिवस के मौके पर बच्चों से बातचीत करते हुए अपनी खुद की ये महत्वाकांक्षा ज़ाहिर करने में नहीं चूके कि वो 2024 तक प्रधानमंत्री रहना चाहते है .... और हां ये बात वो उस ही बालक को सम्बोधित करते हुए कहते है जिसको कि वो साथ साथ में यह भी कहते हैं कि इस देश का हर बच्चा प्रधानमंत्री बन सकता है और तुम 2024 के बाद प्रधानमंत्री बनने का अभी से प्रयास करो आदि - और इस प्रकार वे एक स्कूली बालक के मन में एक बहुत ही ऊँची महत्वाकांक्षा का बीज बो देते हैं ....
ये कैसा विरोधाभास है ? ये वार्तालाप का क्या तरीका है ? ये अवसर का कैसा चयन है ? मेरी तो समझ से परे है ! जिसको ये फ़िज़ूल लुब्बेलुबाब भाता हो ये उसको मुबारक !!!!
मैं तो सभी बच्चों को कल शिक्षक दिवस के उपलक्ष में प्रधानमंत्री के उलट यही कहना चाहूंगा कि: -
 //// बच्चों महत्वकांक्षी होना अपने लिए ऊँचे लक्ष्य स्थापित करना आदि बहुत अच्छी बात है - पर सावधान, हवा में उड़ना अव्यवहारिक होना फेंकना और फाँकना गलत है ////
और हाँ ! प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि - "कुछ बनने के बजाय करने के सपने देखें" ....
पर प्रधानमंत्री के उलट यही कहना चाहूंगा कि: -
//// बनने के सपने जरूर देखें और करने के सपने नहीं देखें - नहीं तो करते ही रह जाओगे - करने के तो निर्णय करें - पक्के निर्णय पक्के निश्चय के साथ .... उदहारण - जैसे आप ने टीचर बनने का सपना देखा - फिर उसके बाद पढाई का निर्णय करना पड़ेगा और पढ़ना पड़ेगा ना की पढने के भी सपने देखने से काम चलेगा - देखा है कभी अनपढ़ टीचर - अनपढ़ मंत्री नेता तो देखा होगा पर टीचर नहीं देखा होगा ////
और अंत में बच्चों को अपनी तरफ से भी एक और सुझाव: - 

//// हमेशा ये ना मान लेवें की बड़े आदमी द्वारा कही गयी बात सही ही होगी - इसके बजाय अपनी अल्प आयु में अपने माँ बाप परिवार के बुज़ुर्गों शिक्षकों और अपने हितैषियों पर भरोसा करें - पर जैसे जैसे बड़े हों अपनी अकल और तर्क का इस्तेमाल जरूर ही करें - और अपनी आत्मा की आवाज़ को भी ज़रूर सुनें ////
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