Sunday 28 September 2014

//// जयललिता मुजरिम घोषित - मेरी विवेचना ////

//// जयललिता मुजरिम घोषित - मेरी विवेचना ////
इसके मायने ये हुए कि वर्षों से एक अपराधी तमिलनाडु और देश के कामकाज के निर्णयों में सीधे सीधे सक्रिय और लिप्त था - और उसने अनेकों जनविरोधी गलत अनैतिक कार्य किये ही होंगे .... व्यक्तिगत रूप में भी अनेकों शरीफ और ईमानदार लोगों को प्रताड़ित किया ही होगा - और ऐसे अपराधों की वजह से लाखों लोग प्रभावित और प्रताड़ित हुए ही होंगे .... और इसलिए इस त्रासदी की भरपाई करना तो दूर इसकी रूपरेखा के बारे में कल्पना करना भी असंभव है .... यानि जो गलत हुआ वो सब अपूरणीय IRREPARABLE है !!!!
इसलिए मेरी सोच और दलील है कि पुरानी घिसी पिटी बातों पर पुनर्विचार ज़रूरी है जैसे कि - "जब तक आरोपी पर आरोप सिद्ध नहीं हो जाते उसे अपराधी मानना और राजनीति द्वारा सत्ता में आने से रोकना गलत होगा - क्योंकि ये किसी एक व्यक्ति के अधिकारों का हनन हो सकता है - इत्यादि " !!!!
उपरोक्त विवेचना द्वारा मैं प्रश्न रखता हूँ कि मान लीजिये जयललिता को 1996 में ही राजनीती और सत्ता से कानूनी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया होता, तो जो निर्णय आज आया है उसके परिप्रेक्ष्य में लाखों लोगों को अकल्पनीय अन्याय नहीं सहना पड़ा होता - और यदि आज का निर्णय जयललिता के पक्ष में आया होता तो अन्याय केवल एक जयललिता के साथ ही तो हुआ होता - कोई पहाड़ तो टूट नहीं गया होता !!!!
अतः मेरी मोदी सरकार से मांग है कि इस जयललिता प्रकरण को एक नज़ीर के रूप में लेते हुए तत्काल ही कानून में वांछित परिवर्तन करें .... बाकी के काम और भाषणबाज़ी बाद में .... ये कार्य झाड़ू सफाई शौचालय बुलेट ट्रेन स्मार्ट सिटी आदि से ज्यादा और तत्काल आवश्यक है !!!! आखिरकार सांसदों और मंत्रिमंडल और सरकार का प्रथम अत्यावश्यक और अति महत्त्वपूर्ण कार्य नए और अच्छे कानून बनाना और पारित करना ही तो है - झाड़ू लगाने का काम तो और भी लोग कर ही लेंगे !!!!
और अंत में एक बात और - ये जितने लोग भी जया-भक्ति का भोंडा प्रदर्शन कर रहे हैं और पब्लिक प्रॉपर्टी को नुक्सान पहुंचा रहे हैं उनको भी सख्ती से दबाना चाहिए .... इसे यदि इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाये कि एक भ्रष्ट व्यक्ति के सपोर्ट में सामान्यतः एक भ्रष्ट ही सामने आएगा तो श्रेयस्कर होगा .... ऐसे सभी व्यक्तियों के यहाँ भी यदि छापे डाले जाएंगे तो हो सकता है जयललिता से भी अधिक संपत्ति मिल जाए .... और हां जयललतिा भी यदि किसी व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी थोपती है तो उस व्यक्ति की भी ज़रा विशेष जांच होनी ही चाहिए .... पर ऐसा होगा लगता नहीं .... क्योंकि हमाम में तो सब नंगे ही लगते हैं !!!! नहीं क्या ????
और लगे हाथ आप सब के लिए भी एक प्रश्न .... वर्त्तमान में 37 सांसद जयललिता के रहमो करम पर AIADMK से चुन कर सत्तासीन हैं - क्या इन सबका इस्तीफ़ा नहीं होना चाहिए - ????
और यदि थोड़ी और दिमागी कसरत करनी हो तो कल्पना करें कि NDA को वर्तमान में 344 के स्थान पर 270 सीटें ही आई होती और जयललिता की AIADMK सरकार में शामिल हुई ही होती तो क्या NDA की भी नैतिकता के प्रश्न उठते - जैसे की DMK और UPA के समय NDA ने उठाये थे ????
अरे माफ़ कीजियेगा मैं भी कहाँ नैतिकता की अव्यवहारिक बाते करने लगा .... ज़रा गुस्सा ज़्यादा ही आ गया - पर क्या करूँ अभी तो बहुत लिखने का मन कर रहा है - मुझे लालू - चौटाला - गोपाल कांडा बहुत अच्छे से याद आ रहे हैं - पर कड़वा घूँट पी अभी तो यहीं रुकूँगा 

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