Friday 12 September 2014

//// मेरे आह्वाहन मात्र पर बवाल !!!! ////

मैंने तो मेरे कल के पोस्ट "//// इस देश की सभी युवतियों से मेरा सादर आह्वाहन ////" में देश की युवतियों से आह्वाहन भर किया था कि जो लोग उन्हें नासमझ भोली बेवक़ूफ़ समझ रहे है उनके विरूद्ध आवाज़ ज़रूर उठायें ! मैं सोचता हूँ कि एक बुज़ुर्ग के नाते और सेक्युलर बुद्धिजीवी के नाते ये मेरा अधिकार भी था और दायित्व भी .... 
पर अब कुछ भाई लोगों ने पोस्ट के कमेंटस में मुझे गालियां दे दी हैं - मुद्दे से अलग मुद्दे की बात किये बगैर .... ये संस्कारी कौन हो सकते है कल्पना करना कठिन नहीं है !
इसलिए अब तो मुझे पक्का भरोसा हो गया कि मेरी बात में दम है - तीर निशाने पर लगा है - कुछ अवांछनीय तत्त्व नहीं चाहते कि युवतियां सजग हों जाएँ क्योंकि नहीं तो उनका 'डर्टी गेम प्लान' या 'धंधा-पानी' कैसे चलता रहेगा ?
ऐसे लोगों को धिक्कारते हुए यही कहूँगा कि बेटा तुम्हारे विलाप करने से कुछ नहीं होगा - युवतियां अब बहुत समझदार हैं ..... वाकई वो अपना बुरा भला अच्छे से समझती हैं !!!!
यदि मैं कमेंट्स में गालियों को विलोपित कर दूँ, तो ज्यादातर आलोचनाओं का एक मुख्य बिंदु ये है कि गरबों में कुछ मुसलमान युवक गलत नीयत से आते हैं .... ये आलोचना बिलकुल सही हो सकती है - पर यदि ये बात सही हैं तो ये बात भी सही है कि उक्त आयोजन मैं हिन्दू युवक भी गलत नियत से आते होंगे - और यह छोटी बात भी छोड़ देवें - फिर आपको मेरा ये आंकलन भी मानना पड़ेगा की उक्त आयोजन में कई युवतियां भी पूजा को छोड़ केवल डांस करने और कुछ अलग ही नीयत से आती हैं .... और ये युवतियां विभिन्न जातियों और धरम की होती हैं ....
तो क्या ये सही नहीं होगा कि आयोजक पहले ये निर्णय कर लें कि वो कौन सी जाती धर्म की लडकियां हैं और वो कौन सी जाती धर्म के लड़के हैं जो उस पवित्र स्थल पर सही नीयत से ही आते हों - और फिर केवल उन्ही 'सिलेक्टेड क्लास' का आयोजन हो जाए .... आयोजन फिर सार्वजनिक क्यों ? फिर केवल मुसलमान लड़कों पर केवल धर्म के आधार पर असंवैधानिक रोक उचित कैसे (भले ही ये व्यवहारिक रूप में और वस्तुपरक सही ही क्यों न हो) ???? ....
पर ऐसा होता नहीं है - क्यों ? क्योंकि आयोजकों को भीड़ भी बहुत अच्छी लगती है - यदि भीड़ नहीं होगी तो मज़ा कैसे आएगा ? उनकी चंदे की दुकान कैसे चलेगी ? उनका वोट बैंक कैसे सुधरेगा ? उनकी सार्वजनिक छवि कैसे निखरेगी ? और हाँ सबके इतर एक प्रश्न और कि फिर घर में ही पूजा नहीं कर लेनी चाहिए ?
इस प्रसंग में आयोजकों पर यह उक्ति बिलकुल सही बैठती है कि ---
उनका क्या करें जिन्हें - //// "अकेले में डर लगता है और भीड़ से परहेज़ है" ////
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अब मेरे प्रिय आलोचक चाहें जितना विलाप करते रहे .... गालियां देते रहे .... इधर उधर कि बात करके अपनी भड़ास निकालते रहें .... कोई फर्क नहीं पड़ेगा - युवतियों को भी नहीं और मुझे भी नहीं !!!!

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